अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ईरान -इज़रायल संघर्ष
- 30 Apr 2024
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प्रिलिम्स के लिये:ईरान, इज़रायल, मध्य पूर्व, 1979 इस्लामी क्रांति, स्टक्सनेट, गाज़ा पट्टी, लाल सागर संकट, इज़रायली वायु रक्षा प्रणाली, ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन), दो राज्य समाधान, खाड़ी सहयोग परिषद, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA ) मेन्स के लिये:ईरान व इज़रायल के बीच संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, प्रमुख घटनाएँ जिनके कारण ईरान ने इज़रायल पर हमला किया, ईरान-इज़रायल संघर्ष का भारत और विश्व पर प्रभाव |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इज़रायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष ने खाड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा को प्रभावित करने वाली उथल-पुथल की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
- ईरान ने ड्रोन, क्रूज़ मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित 300 से अधिक प्रक्षेपक तैनात करके इज़रायल पर बड़े हमले किये हैं। इस कार्यवाही को व्यापक रूप से सीरिया के दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर घातक हमले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था।
- इससे खाड़ी क्षेत्र में समुद्री डकैती और लोगों को बंधक बनाने का अतिरिक्त संकट उत्पन्न हो गया है।
ईरान-इज़रायल संघर्ष के कारण क्या हैं?
- ऐतिहासिक संदर्भ: 1979 इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान और इज़रायल के मध्य उतार-चढ़ाव भरे संबंध रहे हैं, जिसने शाह के शासन के अंतर्गत ईरान को इज़रायल के निकट सहयोगी से एक ऐसे इस्लामी गणराज्य में परिवर्तित कर दिया जो वर्तमान में इज़रायल के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखता है।
- धार्मिक एवं वैचारिक मतभेद: ईरान शिया इस्लाम द्वारा शासित एक इस्लामी गणराज्य है, जबकि इज़रायल मुख्यतः यहूदी राज्य है।
- दोनों देशों के बीच धार्मिक एवं वैचारिक मतभेदों ने आपसी संदेह तथा शत्रुता को बढ़ावा दिया है।
- इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष: ईरान फिलिस्तीनी हितों का कट्टर समर्थक रहा है, जिसमें हमास और हिज़बुल्लाह जैसे आतंकवादी समूहों का समर्थन करना भी शामिल है, जिन्हें इज़रायल द्वारा आतंकवादी संगठन माना जाता है।
- इन समूहों के लिये ईरान के समर्थन और इज़रायल के विनाश के उसके आह्वान ने तनाव बढ़ा दिया है।
- भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: ईरान और इज़रायल मध्य-पूर्व में प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्धा करने वाले क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी हैं। सीरिया और यमन में गृहयुद्ध सहित विभिन्न क्षेत्रीय संघर्षों में उनके परस्पर विरोधी हित रहे हैं।
- जहाँ ईरान क्रमशः असद शासन और हूती विद्रोहियों का समर्थन करता है, वहीं इज़रायल इन देशों में ईरानी प्रभाव का विरोध करता है।
- परमाणु कार्यक्रम: इज़रायल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ी चिंता के साथ देखता है, उसे भय है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर सकता है जो इज़रायल की सुरक्षा के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है।
- इज़रायल, ईरान के परमाणु समझौते संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) का मुखर आलोचक रहा है और उसने ईरान की परमाणु गतिविधियों को बाधित करने के लिये गुप्त अभियानों सहित कई उपाय भी किये हैं।
- छद्म संघर्ष: ईरान और इज़रायल पड़ोसी देशों में विरोधी गुटों को समर्थन देकर छद्म संघर्ष में लगे हुये हैं।
- उदाहरण के लिये, लेबनान में हिज़बुल्लाह और इराक में शिया मिलिशिया के लिये ईरान के समर्थन को इज़रायल द्वारा खतरे के रूप में माना जाता है।
- क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन एक तरफ ईरान व उसके सहयोगियों तथा दूसरी तरफ इज़रायल और उसके सहयोगियों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा से उत्पन्न होता है।
- इस प्रतिस्पर्द्धा ने क्षेत्र में तनाव व संघर्ष की स्थिति को और बढ़ा दिया है।
हाल की कौन-सी घटनाएँ हैं जिन्होंने इज़रायल-ईरान प्रतिद्वंद्विता को एक नया आयाम दिया है?
- ईरान का परमाणु समझौते से हटना: वर्ष 2018 में इज़रायल ने ईरान परमाणु समझौते के संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) से हटने के अमेरिकी निर्णय की प्रशंसा की, जिसके विरुद्ध उसने वर्षों से पैरवी की थी तथा इसे एक महत्त्वपूर्ण कदम माना।
- ईरान के सेना जनरल की हत्या: 2020 में इज़रायल ने बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले का समर्थन किया, जिसमें एक शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत हो गयी, जिससे अमेरिकी सैनिकों के आवास वाले इराकी ठिकानों पर ईरान की ओर से जवाबी मिसाइल हमले हुये ।
- हमास मिसाइल हमलाः ईरान समर्थित संगठन हमास ने अक्तूबर 2023 में इज़रायल पर रॉकेट हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप नागरिक क्षेत्रों में काम करते समय हमास की कथित धमकियों की प्रतिक्रिया के रूप में गाज़ा पर इज़रायली द्वारा हवाई हमले हुये।
- यमन में ईरान समर्थित हूती गुट नवंबर 2023 से लाल सागर में इज़रायल और उसके सहयोगियों से जुड़े कई जहाज़ों पर हमला कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप "लाल सागर संकट" और आपूर्ति समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
- ईरानी दूतावास पर हवाई हमला और ईरान का जवाबी हमलाः संदिग्ध इज़रायली हवाई हमलों ने सीरिया में ईरानी दूतावास परिसर को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप हताहत हुए और जवाबी कार्रवाई में ईरान ने अप्रैल 2024 में इज़रायल पर मिसाइल हमला किया, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी शत्रुता में वृद्धि हुई।
ईरान-इज़रायल संघर्ष का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- आर्थिक निहितार्थ:
- इज़रायल और तेल समृद्ध ईरान के बीच संघर्ष इस क्षेत्र से तेल की आपूर्ति को बाधित कर सकता है, जिससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
- भारत फारस की खाड़ी के मुहाने पर स्थित महत्त्वपूर्ण होर्मुज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से प्रति दिन लगभग दो मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात करता है। क्षेत्र में किसी भी अशांति या युद्ध के कारण आपूर्ति की कमी, ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, मुद्रास्फीति और पूरे देश में मंद आर्थिक वृद्धि होगी।
- प्रवासी: क्षेत्र में तनाव के कारण पश्चिम एशिया और विशेष रूप से फारस की खाड़ी में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी प्रभावित हो सकते हैं।
- हमें उनकी सुरक्षा पर सर्वप्रथम होगी। भारत ने अतीत में बड़े पैमाने पर निकासी का आयोजन किया है-प्रथम खाड़ी युद्ध के समय कुवैत से तथा हाल ही में लीबिया और यूक्रेन से।
- संपर्कः भारत के रणनीतिक संपर्क हित प्रभावित हो सकते हैं। इसमें ईरान में चाबहार का बंदरगाह शामिल है, जो भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ता है।
- लाल सागरमें नौवहन बाधित होने से इस क्षेत्र में व्यापार प्रभावित होगा।
- इस क्षेत्र में व्यवधान के कारण देरी, उच्च नौवहन लागत और अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हो सकता है।
- भारत के लिये कूटनीतिक चुनौतियाँ:
- पिछले एक दशक में भारत के इज़रायल के साथ अच्छे संबंध रहे हैं और उसने रक्षा, प्रौद्योगिकी तथा स्टार्ट-अप में इज़रायली विशेषज्ञता का लाभ उठाया है।
- मुद्दा यह है कि यदि युद्ध अभियान ज़ोर पकड़ता है तो भारत को एक पक्ष चुनना पड़ सकता है। निःसंदेह, भारत हमेशा तटस्थ या मध्यमार्गी दृष्टिकोण अपना सकता है, लेकिन वे रणनीतियाँ वर्तमान में प्रभावी नहीं हैं।
इज़रायल और उसके पड़ोसियों के बीच शांति लाने के लिये किये गये प्रयास:
- ओस्लो समझौता: वर्ष1993 का अमेरिका द्वारा प्रायोजित किया गया ओस्लो समझौता, इज़रायल-फिलिस्तीनी शांति प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था, हालाँकि तब से शांति प्रक्रिया रुकी हुई है।
- अब्राहम समझौता: अब्राहम समझौते पर 2020 में इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच हस्ताक्षर किये गये थे तथा इसकी मध्यस्थता अमेरिका ने की थी।
- I2U2: I2U2 का अर्थ है भारत, इज़रायल, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात। इसका गठन अक्तूबर 2021 में इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच अब्राहम समझौते के बाद क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, अवसंरचनात्मक ढाँचे एवं परिवहन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये किया गया था।
- संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे अपने कई संस्थानों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को हल करने के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
- 1967 से पूर्व की सीमाओं पर आधारित टू-स्टेट साॅल्यूशन के तहत पूर्वी यरुशलम फिलिस्तीन की राजधानी होगी, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र लगातार मांग करता रहा है।
- अरब शांति पहल: अरब राज्यों ने भी शांति प्रयासों में भूमिका निभाई है, विशेष रूप से अरब शांति पहल के माध्यम से
- यह पहल, पहली बार 2002 में सऊदी अरब द्वारा प्रस्तावित और बाद में अरब लीग द्वारा समर्थित, इज़रायल को कब्ज़े वाले क्षेत्रों से पूर्ण वापसी एवं फिलिस्तीनी शरणार्थी मुद्दे के न्यायसंगत समाधान के बदले में अरब राज्यों के साथ सामान्य संबंध प्रदान करती है।
- भारत की भूमिका
- कूटनीतिक संबंध: भारत ने ऐतिहासिक रूप से इज़रायल और फिलिस्तीन सहित विभिन्न अरब राज्यों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाये रखे हैं।
- टू-स्टेट साॅल्यूशन: भारत ने परंपरागत रूप से 1967 से पूर्व की सीमाओं के आधार पर इज़रायल के साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन किया है, जिसमें पूर्वी यरुशलम फिलिस्तीन की राजधानी के रूप में कार्य करेगा। इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के इस समाधान को "टू-स्टेट साॅल्यूशन" के रूप में जाना जाता है।
- भारत इस विचार का समर्थन करता है, जो कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं और समूहों की राय के अनुरूप है।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) जैसे मध्य पूर्व के मुद्दों को संबोधित करने वाले बहुपक्षीय मंचों में भाग लिया है।
- भारत ने विभिन्न मंचों पर व्यक्त किया है कि वह स्थायी शांति लाने के लिये कूटनीतिक प्रयासों के साथ-साथ इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष जैसे क्षेत्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है।
- मानवीय सहायता: भारत ने विभिन्न माध्यमों से फिलिस्तीनियों को मानवीय सहायता प्रदान की है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को योगदान और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के लिये समर्थन करना शामिल है।
- इस सहायता का उद्देश्य फिलिस्तीनियों की मानवीय पीड़ा को कम करना और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में योगदान करना है।
आगे की राह
- सतत् युद्धविराम और दो-राज्य के मध्य समाधान:
- इज़रायल को जल्द से जल्द गाज़ा में एक स्थायी युद्धविराम स्वीकार करना चाहिये, गाज़ा के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहायता के लिये सीमाएँ से प्रतिबन्ध समाप्त कर देना चाहिये तथा टू स्टेट सॉल्यूशन को साकार करके 70 साल पुराने संकट को समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिये।
- क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा, शांति और स्थिरता हेतु दो-राज्य समाधान ही एकमात्र संभव रास्ता है।
- समाधान इज़रायल के साथ-साथ एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना करेगा; दो अलग वर्ग के लोगों के लिये दो राज्य।
- सैद्धांतिक रूप से इससे इज़रायल को सुरक्षा प्राप्त होगी और फिलिस्तीनियों को एक राज्य प्रदान करते हुए उसे यहूदी जनसांख्यिकीय बहुमत बनाए रखने की अनुमति मिलेगी।
- संवाद और कूटनीति:
- अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थों की सहायता से दोनों देशों को सीधी बातचीत में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने से विश्वास बनाने एवं सामान्य स्थल खोजने में सहायता मिल सकती है।
- ईरान और इज़रायल यूरोपीय संघ या संयुक्त राष्ट्र जैसे तटस्थ तीसरे पक्ष की सहायता से सीधी बातचीत में शामिल हो सकते हैं।
- परमाणु प्रसार संबंधी चिंताओं का समाधान:
- ईरान संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) की शर्तों का पालन कर सकता है तथा समझौते का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अपनी परमाणु सामग्री के अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति प्रदान कर सकता है।
- बदले में, इज़रायल ईरान को शांतिपूर्ण रूप से परमाणु ऊर्जा रखने के अधिकार को मान्यता दे सकता है और ईरानी परमाणु सुविधाओं के खिलाफ सैन्य हमलों से परहेज़ करने के लिये प्रतिबद्ध हो सकता है।
- क्षेत्रीय सहयोग:
- अरब लीग या खाड़ी सहयोग परिषद जैसे क्षेत्रीय संगठनों के ढाँचे के भीतर ईरान और इज़रायल के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने से साझा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने तथा मध्य पूर्व में स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिल सकती है।
- मध्य-पूर्व के लिये दीर्घकालिक दृष्टिकोण:
- क्षेत्रीय शक्तियाँ मध्य-पूर्व के लिये एक व्यापक सुरक्षा वास्तुकला स्थापित करने हेतु मिलकर काम कर सकती हैं, जिसमें विश्वास-निर्माण के उपाय, हथियार नियंत्रण समझौते और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये आवश्यक तंत्र की स्थापना शामिल हैं।
- ऐतिहासिक शिकायतों, क्षेत्रीय विवादों और धार्मिक अतिवाद जैसे अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने से शांति तथा सुलह के लिये अनुकूल वातावरण बनाने में सहायता मिल सकती है।
- संबंधों का सामान्यीकरण:
- ईरान और इज़रायल राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में कदम उठा सकते हैं, जैसे कि राजदूतों का आदान-प्रदान, दूतावासों का पुनः संचालन करना तथा लोगों से लोगों के मध्य आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना, जैसे;इज़रायल तथा संयुक्त अरब अमीरात व बहरीन जैसे कुछ अरब राज्यों के बीच शांति समझौतों के समान।
दृष्टि मेन्स प्रश्न ईरान-इज़रायल संघर्ष में भारत की हिस्सेदारी क्या है? चर्चा कीजिये कि भारत तनाव क्यों नहीं बढ़ाना चाहता |
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