भारतीय अर्थव्यवस्था
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रभाव
- 13 Feb 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रेंट क्रूड आयल की कीमत एक साल के बाद 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई है। ब्रेंट क्रूड आयल की कीमत में वृद्धि तेल उत्पादक देशों द्वारा उत्पादन में कटौती और कोविड-19 का टीका आने के बाद वैश्विक मांग में सुधार की उम्मीद के कारण देखी गई है।
- इतिहास में पहली बार वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (West Texas Intermediate- WTE) क्रूड आयल की कीमत अप्रैल 2020 में 40.32 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पहुँच गई थी।
- WTI और ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव से अन्य प्रकार के कच्चे तेलों की कीमतें भी प्रभावित होती हैं।
प्रमुख बिंदु
तेल का मूल्य निर्धारण:
- सामान्यतः पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) एक तेल उत्पादक संघ के रूप में कच्चे तेल का मूल्य निर्धारित करता है।
- सऊदी अरब के हाथ में OPEC का नेतृत्व है जो विश्व में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक (वैश्विक मांग का 10% निर्यात करता है) है।
- OPEC के 13 देश (ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला) सदस्य हैं।
- OPEC तेल उत्पादन में वृद्धि करके कीमतों में कमी और उत्पादन में कटौती करके कीमतों में बढ़ोतरी कर सकता है।
- तेल का मूल्य निर्धारण मुख्य रूप से स्वास्थ्य प्रतियोगिता के बजाय तेल निर्यातक देशों के बीच साझेदारी पर निर्भर करता है।
- तेल उत्पादन में कटौती या तेल के कुएँ पूरी तरह से बंद करना एक कठिन निर्णय है, क्योंकि इसे फिर से शुरू करना बेहद महँगा और जटिल है।
- यदि कोई देश उत्पादन में कटौती करता है और दूसरा देश इस प्रकार की कटौती नहीं करता है तो उसे बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी खोनी पड़ सकती है।
- OPEC तेल की वैश्विक कीमत और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये OPEC+ के रूप में रूस के साथ काम कर रहा है।
- OPEC और अन्य देश जो शीर्ष तेल-निर्यातक हैं, के गठबंधन को OPEC+ के नाम से जाना जाता है।
वर्तमान में मूल्य वृद्धि का कारण:
- सीमित आपूर्ति:
- प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कोविड-19 महामारी के कारण मांग में भारी गिरावट के चलते तेल उत्पादन में कटौती कर दी गई थी।
- फरवरी और मार्च 2020 में तेल आपूर्ति में OPEC और इसके सहयोगी देशों द्वारा कटौती के बाद सऊदी अरब ने कटौती करने का वादा किया था।
- तेल की कीमत में बढ़ोतरी करने के लिये OPEC और रूस (OPEC+) ने जनवरी 2021 की शुरुआत में तेल उत्पादन में कटौती करने पर सहमति व्यक्त की।
- प्रमुख तेल उत्पादक देशों द्वारा कोविड-19 महामारी के कारण मांग में भारी गिरावट के चलते तेल उत्पादन में कटौती कर दी गई थी।
- मांग में बढ़ोतरी:
- अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में कोविड-19 के टीके का निर्माण और लॉकडाउन के बाद उपभोग में बढ़ोतरी के चलते सुधार हुआ है।
भारत पर प्रभाव:
- चालू खाता घाटा: देश के आयात बिल में तेल की कीमतों में वृद्धि से बढ़ोतरी होगी, जिससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) और बढ़ जाएगा।
- तेल बिल में प्रतिवर्ष कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी से लगभग 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होती है।
- भारत अपनी कच्चे तेल की ज़रूरतों का 80% हिस्सा आयात करता है और भारत में जनवरी 2021 से कच्चे तेल की कीमत 54.8 डॉलर प्रति बैरल हो गई है।
- मुद्रास्फीति: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि (जो पिछले कुछ महीनों से बढ़ रही है) मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है।
- इस मुद्रास्फीति के कारण मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) को नीतिगत दरों का निर्धारण करने में कठिनाई होगी।
- भारत सरकार ने वर्ष 2020 में कमज़ोर आर्थिक गतिविधियों के बीच अपने राजस्व को बढ़ाने के लिये पेट्रोल और डीज़ल पर क्रमशः 13 और 11 रुपए प्रति लीटर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) लगा दिया था।
- राजकोषीय स्थिति: तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीज़ल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। अतः राजकोषीय संतुलन (Fiscal Balance) बिगड़ सकता है।
- भारत पिछले दो वर्षों में कम आर्थिक वृद्धि के कारण कर राजस्व की कमी के चलते अनिश्चित वित्तीय स्थिति में है।
- राजस्व में कमी से केंद्र के विभाजन योग्य कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा और राज्य सरकारों को माल तथा सेवा कर (GST) ढाँचे के तहत राजस्व कमी के लिये दिया जाने वाला मुआवज़ा प्रभावित होगा।
- सकारात्मक परिणाम: भारत को तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से लाभ भी हो सकता है।
- भारतीय तेल और गैस कंपनियों के मूल्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सरकार को भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड में विनिवेश (Disinvestment) से अधिक राशि प्राप्त हो सकती है।
- भारतीयों द्वारा फारस की खाड़ी से भेजी जाने वाली धनराशि बढ़ सकती है।
ब्रेंट और WTI के बीच अंतर
उत्पत्ति:
- ब्रेंट क्रूड आयल का उत्पादन उत्तरी सागर में शेटलैंड द्वीप (Shetland Islands) और नॉर्वे के बीच तेल क्षेत्रों में होता है।
- वेस्ट क्रूड इंटरमीडिएट (WTI) ऑयल क्षेत्र मुख्यत: अमेरिका (टेक्सास, लुइसियाना और नॉर्थ डकोटा) में अवस्थित है।
लाइट एंड स्वीट:
- ब्रेंट क्रूड आयल और WTI दोनों ही हल्के और स्वीट (Light and Sweet) होते हैं, लेकिन ब्रेंट में API भार थोड़ा अधिक होता है।
- अमेरिकी पेट्रोलियम संस्थान (API) कच्चे तेल या परिष्कृत उत्पादों के घनत्व का एक संकेतक है।
- ब्रेंट (0.37%) की तुलना में डब्ल्यूटीआई में कम सल्फर सामग्री (0.24%) होने के कारण इसे तुलनात्मक रूप में "मीठा" कहा जाता है।
बेंचमार्क मूल्य:
- OPEC द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला ब्रेंट क्रूड आयल मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बेंचमार्क मूल्य (Benchmark Price) है, जबकि अमेरिकी तेल कीमतों के लिये WTI क्रूड आयल मूल्य एक बेंचमार्क है।
- भारत मुख्य रूप से क्रूड आयल OPEC देशों से आयात करता है, अतः भारत में तेल की कीमतों के लिये ब्रेंट बेंचमार्क है।
शिपिंग लागत:
- शिपिंग की लागत आमतौर पर ब्रेंट क्रूड आयल के लिये कम होती है, क्योंकि इसका उत्पादन समुद्र के पास होता है, जिससे इसे कार्गो जहाज़ों में तुरंत लादा जा सकता है।
- WTI कच्चे तेल का शिपिंग का मूल्य अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन भूमि वाले क्षेत्रों में होता है, जहाँ भंडारण की सुविधा सीमित है।