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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ओपेक बैठक भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • 23 Jun 2018
  • 9 min read

संदर्भ

शुक्रवार को वियना में पेट्रोलियम निर्यातक देशों (ओपेक) के संगठन की द्विपक्षीय बैठक के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय समाचार संगठन द्वारा यह बताया गया कि कच्चा तेल निर्यातक देश एक "सौदे" के करीब हैं। आखिर यह “सौदा”(deal) क्या हो सकता है?

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • ओपेक 500,000 से 600,000 बैरल प्रतिदिन (bpd) पंप करने का फैसला कर सकता है, जो रूस के 1.5 मिलियन bpd से काफी कम है|
  • रूस ओपेक का हिस्सा नहीं है, बल्कि सऊदी अरब के साथ दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक है| वह अपना उत्पादन बढ़ाना चाहता है|
  • सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री, वस्तुतः ओपेक के नेता खालिद अल-फलीह ने कहा कि 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की वृद्धि "काम करने के लिये एक बेहतर लक्ष्य" हो सकता है।
  • रूस और ओपेक ने दिसंबर 2016 में उत्पादन में 1.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती करने के लिये एक सौदा किया, जिसने तेल की कीमतों में लगभग तीन गुना वृद्धि करने में मदद की है।
  • समझौते को लेकर रूस बाद में अपनी प्रतिबद्धता पर बेरूखी दिखाई और वह पुन: परिशोधन के विकल्प के साथ उत्पादन (output) में तत्काल वृद्धि चाहता है।
  • हालाँकि, इराक, ईरान और वेनेजुएला समेत अन्य ओपेक सदस्यों की सऊदी अरब या रूस जैसी अतिरिक्त उत्पादन क्षमता नहीं है और वे क्षमता बढ़ाने के लिये इच्छुक भी नहीं दिखाई दे रहे हैं।
  • उत्पादन में 500,000-600,000 bpd की वृद्धि वेनेजुएला, अंगोला और मेक्सिको के उत्पादन में गिरावट को दूर करने के लिये पर्याप्त होगी जिसके लिये ईरान को कोई आपत्ति नहीं होगी|

ईरान ने उत्पादन में वृद्धि का विरोध क्यों किया?

  • प्रत्येक ओपेक देश में तेल का एक अनुमानित मूल्य होता है जिसका उपयोग वह अपने राष्ट्रीय बजट को संतुलित करने के लिये करता है।
  • जिन देशों के पास सब्सिडी और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को वित्त पोषित करने के लिये कर या प्रेषण जैसा कोई अन्य प्रमुख राजस्व स्रोत नहीं है, उन्हें जादुई संख्या 80 डॉलर प्रति बैरल पर निगाह डालनी चाहिये।
  • लेकिन रूस  जो कि अन्य वस्तुओं का निर्यात भी करता है, अपने खर्च को पूरा करने के लिये 68 डॉलर प्रति बैरल को पर्याप्त मानता है।
  • तेल उत्पादन में किसी प्रकार की बढ़ोतरी ह्रासमान मूल्य को बढ़ावा देगा  और तेल पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं की आय कम हो सकती है, जिससे बजट घाटे को बढ़ावा मिल सकता है।

भू-राजनीतिक कारक

  • मध्य पूर्व में सऊदी अरब का 'महान विरोधी, ईरान 2015 के परमाणु समझौते से बाहर निकलने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से आहत है और मंज़ूरी निरस्त होने से पहले जितना संभव हो उतना तेल राजस्व बढ़ाने के लिये उत्पादक संघ (cartel) पर अपना पूर्ण अधिकार कर लेना चाहता है|
  • दूसरी ओर, सऊदी अरब ट्रंप के अनुरोध के साथ अतिरिक्त तेल के लिये दबाव डाल रहा है इसे 2019 की शुरुआत में सऊदी अरब के आईपीओ निवेशकों को आकर्षित करने के लिये भी बचाव की ज़रूरत है।
  • रूस के साथ तीन तरह का सौदा और अमेरिकी तेल दिग्गजों का एक कंसोर्टियम ईरान को और अधिक चिंतित कर सकता है।

क्या ऐसे कारकों की सूची है जो ओपेक के निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है?

  • अनिवार्य रूप से ओपेक कच्चे तेल की कीमतों पर नज़र रखते हुए अपने सदस्यों की बाज़ार हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने की कोशिश करता है, ताकि आय का उनका प्रमुख स्रोत आकर्षक बना रहे। लेकिन जैसा कि स्पष्ट है इसके लिये 14 सदस्यों के बीच वार्ता और समन्वय का होना महत्त्वपूर्ण है।
  • किसी भी उत्पादक संघ की तरह  प्रत्येक सदस्य धोखा देने की कोशिश करता है  और दूसरों की अनदेखी करता है।
  • 2014 के बाद सऊदी अरब ने वैश्विक बाज़ार में कीमतों को कम करने के लिये अधिक तेल प्रवाहित करना शुरू कर दिया।
  • 40 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिरावट ने शेल आयल को अमेरिका से बहने से रोका  और तेल की दुनिया में मध्य पूर्व के आधिपत्य को बनाए रखने में मदद की।
  • जब अमेरिका में शेल आयल का उत्पादन हुआ, तो सऊदी अरब को रूस और अन्य गैर-ओपेक देशों ने 2016 में संचयी रूप से 1.8 मिलियन bpd कटौती के लिये सहमति दी।
  • लेकिन मज़बूत वैश्विक मांग के साथ एक अधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में कीमतों के 80 डॉलर से अधिक बढ़ने से शेल आयल की दुकानों के कायाकल्प का संकेत मिला।
  • अमेरिका में इंफ्रास्ट्रक्चर बाधाओं ने अब तक शेल तेल के एक बड़े हिस्से को वैश्विक बाज़ारों से दूर रखा है, लेकिन एक बार इन बाधाओं को मंजूरी मिलने के बाद  अमेरिकी उद्यमी दुनिया के ऊर्जा प्रवाह को बदलने में सक्षम होंगे।
  • कच्चे तेल के उत्पादन में मामूली वृद्धि अमेरिका और कनाडा से शेल ऑयल के अत्यधिक प्रवाह को रोक सकती है।

भारत के लिये बैठक महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • बैठक से पूर्व  भारत ने ओपेक फोरम, जो कि उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों के मंत्रियों का एक कॉन्क्लेव है, के समक्ष आपूर्ति अंतराल को भरने की ज़ोरदार मांग की।
  • भारत ने कहा था कि उच्च कीमतें "दर्द" दे रही हैं साथ ही उसने "उचित" मूल्य निर्धारण के लिये भी अपील की।
  • कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से भारत के तेल आयात बिल में वृद्धि हुई है और इसने व्यापार घाटे का बोझ बढ़ा दिया है| यदि यही प्रवृत्ति जारी रही  तो सरकार को उत्पाद शुल्क में कटौती, राजकोषीय घाटे में वृद्धि और अपनी क्रेडिट रेटिंग को कम करने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा।
  • ओपेक से राहत मिलने के बाद भी तेल की वैश्विक कीमतों में कमी होने की संभावना नहीं है| 

ओपेक क्या है?

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका उद्देश्य पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये उचित और स्थिर कीमतों को सुरक्षित करने हेतु सदस्य देशों के बीच पेट्रोलियम नीतियों पर समन्वय और एकजुटता कायम करना है। 
  • यह विभिन्न देशों के उपयोग के लिये पेट्रोलियम की एक कुशल, आर्थिक और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करता है|
  • इसकी स्थापना 1960 में इसके संस्थापक सदस्य देशों ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला के साथ बगदाद सम्मेलन में की गई थी|
  • वर्तमान में इसके 15 सदस्य हैं, बाद में कतर, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, अंगोला, गैबोन और इक्वेटोरियल गिनी इसके सदस्य बने|
  • इंडोनेशिया 2016 तक इसका सदस्य था बाद में वह इससे बाहर हो गया|
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