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शासन व्यवस्था

कर्नाटक मंदिर कर संशोधन विधेयक

  • 04 Mar 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल ,अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 26

मेन्स के लिये:

मंदिर प्रशासन, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप,पारदर्शिता एवं जवाबदेही

स्रोत: इंडियन ऐक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक, 2024, राज्य विधानसभा एवं उसके बाद राज्य विधानपरिषद द्वारा पारित किया गया था, अब इसे मंज़ूरी के लिये राज्यपाल के पास भेजा जाएगा।

  • वर्ष 1997 के विधेयक का उद्देश्य कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम (KHRI & CE), 1997 में कई प्रावधानों में संशोधन करना था।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • कराधान प्रणाली में परिवर्तन:
    • इस विधेयक का उद्देश्य हिंदू मंदिरों के कराधान में परिवर्तन करना था।
    • इसमें मंदिरों से होने वाली 1 करोड़ रुपए से अधिक की सकल वार्षिक आय का 10% भाग मंदिर के रख-रखाव के लिये एक सामान्य प्रस्ताव पारित किया है।
      • पूर्व में 10 लाख रुपए वार्षिक से अधिक आय वाले मंदिरों के लिये आवंटन शुद्ध आय का 10% था।
      • शुद्ध आय की गणना मंदिर पर हुए व्यय का हिसाब-किताब करने के बाद उसके लाभ के आधार पर की जाती है, जबकि सकल आय का तात्पर्य मंदिर द्वारा अर्जित कुल धनराशि से है।
    • विधेयक में 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए के बीच की आय वाले मंदिरों की आय का 5% आवंटित करने का भी सुझाव दिया गया है।
    • इन परिवर्तनों से 1 करोड़ रुपए से अधिक आय वाले 87 मंदिरों एवं 10 लाख रुपए से अधिक आय वाले 311 मंदिरों से अतिरिक्त 60 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे।
  • सामान्य निधि का उपयोग:
    • सामान्य निधि का उपयोग धार्मिक अध्ययन के साथ प्रचार-प्रसार, मंदिरों के रख-रखाव एवं अन्य धर्मार्थ कार्यों के लिये किया जा सकता है।
    • वर्ष 1997 के अधिनियम में संशोधन करके, वर्ष 2011 में सामान्य निधि बनाई गई थी।
  • प्रबंधन समिति की संरचना:
    • विधेयक में मंदिरों और धार्मिक संस्थानों की "प्रबंधन समिति" में विश्वकर्मा हिंदू मंदिर वास्तुकला एवं मूर्तिकला में एक कुशल सदस्य को जोड़ने का सुझाव दिया गया है।
      • मंदिरों एवं अन्य धार्मिक संस्थानों को KHRI&CE 1997 अधिनियम की धारा 25 के तहत एक "प्रबंधन समिति" स्थापित करने की आवश्यकता होती है, जिसमें नौ व्यक्ति शामिल होते हैं, जिसमें एक पुजारी, दो महिलाएँ, संस्थान के क्षेत्र का एक निवासी और साथ ही कम-से-कम एक अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति एक सदस्य शामिल होता है। 
  • राज्य धार्मिक परिषद:
    • विधेयक द्वारा राज्य धार्मिक परिषद को समिति अध्यक्षों की नियुक्ति करने के साथ  धार्मिक विवादों, मंदिर की स्थिति एवं ट्रस्टी नियुक्तियों को संभालने का अधिकार दिया। इसके अतिरिक्त, इसमें वार्षिक 25 लाख रुपए से अधिक आय वाले मंदिरों के लिये बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की निगरानी के लिये ज़िला एवं राज्य समितियों के निर्माण को अनिवार्य किया गया।

विधेयक के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • विधेयक को भेदभाव के आधार पर भी चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि यह केवल हिंदू मंदिरों पर लागू होता है, अन्य धार्मिक संस्थानों पर नहीं।
    • इस विधेयक की संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत भी जाँच की जा सकती है जो विधि के समक्ष समता और कानूनों की समान सुरक्षा की गारंटी देता है तथा राज्य की मनमाना एवं अनुचित कार्रवाई पर रोक लगाता है।
  • आलोचकों ने तर्क दिया कि इस प्रकार का हस्तक्षेप अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
    • अनुच्छेद 25 में उल्लिखित है कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन सभी व्यक्तियों को धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का समान हक होगा। 
      • अनुच्छेद 25(2) (a) राज्य को किसी भी धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक अथवा अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन अथवा प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
  • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 26 के तहत गारंटीकृत अधिकारों के संभावित उल्लंघन के संबंध में चिंताएँ व्यक्त की गईं।
    • अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने और धार्मिक तथा धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थान स्थापित करने की स्वायत्तता प्रदान करता है।
  • यह संभावना है कि इस विधेयक के माध्यम से सरकार द्वारा नियुक्त किये गए राज्य धार्मिक परिषद द्वारा मंदिर के धन और परिसंपत्तियों के संबंध में भ्रष्टाचार तथा कुप्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।
  • विपक्ष के अनुसार यह विधेयक सरकारी अतिक्रमण और मंदिरों का वित्तीय शोषण दर्शाता है।

अन्य राज्यों में मंदिर राजस्व प्रबंधन:

  • तेलंगाना की व्यवस्था:
    • तेलंगाना मंदिर राजस्व के संबंध में कर्नाटक की ही भाँति एक प्रणाली का अनुपालन करता है जहाँ तेलंगाना धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्था तथा विन्यास अधिनियम, 1987 की धारा 70 के तहत एक "कॉमन गुड फंड" तैयार किया जाता है।
    • वार्षिक रूप से 50,000 रुपए से अधिक आय वाले मंदिरों को अपनी कुल आय का 1.5% राज्य सरकार को प्रदान करना अनिवार्य है।
      • इन निधियों का उपयोग मंदिर के रखरखाव, जीर्णोद्धार, वेद-पाठशालाओं (धार्मिक विद्यालयों) और नए मंदिरों की स्थापना के लिये किया जाता है।
  • केरल की व्यवस्था:
    • केरल संबद्ध विषय हेतु एक अलग दृष्टिकोण अपनाता है जहाँ मंदिरों का प्रबंधन मुख्य रूप से राज्य द्वारा संचालित देवस्वओम (मंदिर) बोर्डों द्वारा किया जाता है।
      • केरल में पाँच स्वायत्त देवस्वोम बोर्ड मौजूद हैं जो 3,000 से अधिक मंदिरों की देख-रेख करते हैं। बोर्ड के सदस्यों को सामान्य तौर पर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो अमूमन राजनेता होते हैं।
      • प्रत्येक देवस्वोम बोर्ड राज्य सरकार द्वारा आवंटित बजट के साथ कार्य करता है और राजस्व आँकड़ों का खुलासा करने के लिये बाध्य नहीं है। त्रावणकोर और कोचीन के अतिरिक्त प्रत्येक देवस्वोम बोर्ड के तहत मंदिरों का प्रशासन तथा प्रबंधन अलग-अलग कानून द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो एक साझा अधिनियम (त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, 1950) द्वारा शासित होते हैं।

राज्य द्वारा मंदिरों के विनियमन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

  • ब्रिटिश सरकार के पूर्त विन्यास अधिनियम, 1863 का उद्देश्य स्थानीय समितियों को मंदिर के नियंत्रण के संबंध में अधिकार प्रदान कर मंदिर के प्रबंधन को पंथनिरपेक्ष बनाना था।
  • वर्ष 1927 में जस्टिस पार्टी ने मद्रास हिंदू धार्मिक विन्यास अधिनियम कार्यान्वित किया जो मंदिरों को विनियमित करने के लिये एक निर्वाचित सरकार द्वारा किये गए शुरुआती प्रयासों में से एक था।
  • वर्ष 1950 में भारत के विधि आयोग ने मंदिर के राजस्व के दुरुपयोग की रोकथाम करने के लिये कानून की अनुशंसा की जिसके परिणामस्वरूप तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और पूर्त विन्यास (TN HR&CEई) अधिनियम, 1951 क्रियान्वित किया गया।
    • यह मंदिरों और उनकी परिसंपत्तियों के प्रशासन, सुरक्षा और संरक्षण के लिये हिंदू धार्मिक और पूर्त विन्यास विभाग के गठन का प्रावधान करता है।
  • TN HR&CE अधिनियम अधिनियमित किया गया था, लेकिन इसकी संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी। ऐतिहासिक शिरूर मठ मामले (1954) में, न्यायालय ने समग्र कानून को बरकरार रखा, हालाँकि इसने कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया। वर्ष 1959 में एक संशोधित TN HR&CE अधिनियम बनाया गया था।

भारत में अन्य धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन किस प्रकार किया जाता है?

  • उपासना स्थल अधिनियम, 1991:
    • यह किसी भी उपासना स्थल के रूपांतरण को प्रतिबंधित करने और उसकी स्थिति को स्थिर करने अर्थात् धार्मिक स्वरूप के रखरखाव तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये एक अधिनियम के रूप में वर्णित किया गया है जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 के दौरान अस्तित्व में था।
      • अधिनियम में प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा अवशेषों को शामिल नहीं किया गया है, जो प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा शासित होते हैं।
      • इसके कार्यान्वयन से पूर्व निपटाए गए मामले, सुलझाए गए विवाद या रूपांतरण भी इसमें शामिल नहीं हैं। विशेष रूप से, यह अधिनियम संबंधित कानूनी कार्यवाही सहित, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में ज्ञात उपासना स्थल पर लागू नहीं होता है।
  • भारत का संविधान:
    • अनुच्छेद 26 के तहत संविधान में कहा गया है कि धार्मिक समूहों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थानों की स्थापना व प्रबंधन करने, धार्मिक मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने तथा संपत्ति का स्वामित्व, अधिग्रहण व प्रशासन करने का अधिकार है।
    • मुस्लिम, ईसाई, सिख और अन्य धार्मिक संप्रदाय इन संवैधानिक आश्वस्तियों का भरपूर उपयोग कर अपनी संस्थाओं का प्रबंधन करते हैं।
  • शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC):
    • SGPC सिख नेतृत्व वाली एक समिति है जो भारत और विदेशों में सिख गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है।
      • SGPC का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से सिख संगत द्वारा किया जाता है अर्थात् 18 वर्ष से अधिक उम्र के सिख पुरुष एवं महिला मतदाता जो सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के प्रावधानों के तहत मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं।
  • वक्फ अधिनियम 1954: 
    • के वक्फ अधिनियम, 1954 ने केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की, जो औकाफ (दान की गई संपत्ति) के प्रशासन और राज्य वक्फ बोर्डों के कामकाज पर केंद्र सरकार को सलाह देती है।
      • राज्य वक्फ बोर्ड अपने राज्य में मस्जिदों, कब्रिस्तानों और धार्मिक वक्फों पर नियंत्रण रखते हैं। वक्फ बोर्ड का प्राथमिक कार्य यह सुनिश्चित करना है कि उसकी संपत्तियों और संप्राप्ति का उचित प्रबंधन तथा उपयोग किया जाए।
        • वक्फ मुस्लिम कानून द्वारा मान्यता प्राप्त धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये चल या अचल संपत्तियों का एक स्थायी समर्पित गठन है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

Q. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? विवेचना कीजिये। (2016)

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