भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत-अमेरिका व्यापार विवाद: मुक्त व्यापार समझौता
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार अधिशेष, भारत-यूरोपीय संघ, व्यापार घाटा, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लिये:मुक्त व्यापार समझौते की अवधारणा एवं भारत की विदेश व्यापार नीति से संबंधी मुद्दे, सकल घरेलू उत्पाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्त्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया है कि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है, जिसके साथ भारत का महत्त्वपूर्ण व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) है।
- यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील (US-India mini-trade deal) को समाप्त करने से भारत को वैश्विक व्यापार पर अपने रुख की समग्र रूप से समीक्षा करने का अवसर प्राप्त होगा।
प्रमुख बिंदु
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
- FTA के बारे में:
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है। इसके तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है जिसके तहत दोनों देशों के मध्य उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ता हो जाता है।
- मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
- भारत तथा मुक्त व्यापार समझौते:
- नवंबर 2019 में भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर होने के बाद, 15 सदस्यीय FTA समूह जिसमें जापान, चीन और ऑस्ट्रेलिया, FTA शामिल हैं, भारत के लिये निष्क्रिय हो गया।
- लेकिन मई 2021 में यह घोषणा हुई कि भारत-यूरोपीय संघ की वार्ता, जो 2013 से रुकी हुई थी, फिर से शुरू की जाएगी। इसके बाद खबर आई कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों के साथ भी FTAs चर्चा के विभिन्न चरणों में हैं।
- FTA के बारे में:
- यूएस-इंडिया मिनी-ट्रेड डील के बारे में :
- भारत की मांग :
- सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) के तहत कुछ खास घरेलू उत्पादों पर निर्यात लाभ बहाल करने की मांग की गई है।
- कृषि, ऑटोमोबाइल, ऑटो और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के उत्पादों को बाज़ार तक अधिक-से-अधिक पहुँच प्रदान करने की भी मांग की गई है।
- अमेरिका की मांग :
- अमेरिका, कृषि तथा विनिर्माण उत्पादों, डेयरी उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों के लिये बाज़ार तक अधिक पहुँच की मांग कर रहा है।
- यू.एस. ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (US Trade Representative-USTR) के कार्यालय ने कंपनियों द्वारा अपने नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को देश के बाहर भेजने से प्रतिबंधित करने हेतु भारत द्वारा किये गए उपायों/मानदंडो को डिजिटल व्यापार के लिये प्रमुख बाधा के रूप में रेखांकित किया है।
- USTR रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि विदेशी ई-कॉमर्स फर्मों पर डेटा इक्वलाइजेशन लेवी (Equalisation Levy) लगाने का भारत का यह कदम अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करता है।
- अमेरिका ने भारत के साथ बढ़ते व्यापार घाटे पर भी चिंता व्यक्त की है।
- भारत की मांग :
- भारत-अमेरिका व्यापार संबंधी अन्य प्रमुख मुद्दे:
- टैरिफ: अमेरिका द्वारा भारत को "टैरिफ किंग" के रूप में संदर्भित किया गया है क्योंकि यह "अत्यधिक उच्च" आयात शुल्क आरोपित करता है।
- जून 2019 में ट्रम्प प्रशासन ने GSP योजना के तहत भारत के लाभों को समाप्त करने का निर्णय लिया था।
- बढ़ते व्यापार तनाव के बीच GSP सूची से हटाने से भारत को अंततः कई अमेरिकी आयातों पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने के लिये प्रेरित किया। इसने अमेरिका को भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) का रुख करने के लिये प्रेरित किया।
- बौद्धिक संपदा (IP): नवाचार को प्रोत्साहित करने और दवाओं तक पहुँच जैसे अन्य नीतिगत लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये IP सुरक्षा को संतुलित करने के तरीके पर दोनों पक्षों में भिन्नता है।
- पेटेंट, उल्लंघन दर और व्यापार संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी की सुरक्षा जैसी चिंताओं के आधार पर भारत 2021 के लिये "विशेष 301" प्राथमिकता निगरानी सूची में बना हुआ है।
- सेवाएँ: भारत द्वारा दोनों देशों के बीच अपने व्यवसाय (Careers) को साझा करने वाले श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के समन्वय के लिये "समग्रता समझौते" की तलाश जारी है।
- टैरिफ: अमेरिका द्वारा भारत को "टैरिफ किंग" के रूप में संदर्भित किया गया है क्योंकि यह "अत्यधिक उच्च" आयात शुल्क आरोपित करता है।
- भारत की विदेश व्यापार नीति से संबंधी मुद्दे:
- खराब विनिर्माण क्षेत्र: हाल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 14% है।
- जर्मनी, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे उन्नत और विकसित देशों के लिये तुलनीय आँकड़े क्रमशः 19%, 11%, 25% और 21% हैं।
- चीन, तुर्की, इंडोनेशिया, रूस, ब्राज़ील जैसे उभरते और विकासशील देशों के लिये, संबंधित आँकड़े क्रमशः 27%, 19%, 20%, 13%, 9% हैं, और निम्न आय वाले देशों के लिये यह हिस्सेदारी 8% है।
- प्रतिकूल मुक्त व्यापार समझौता (FTA): पिछले एक दशक में, भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान), कोरिया गणराज्य, जापान और मलेशिया के साथ FTAs पर हस्ताक्षर किये।
- हालाँकि मोटे तौर पर यह माना जाता है कि भारत की तुलना में भारत के व्यापार भागीदारों को इन समझौतों से अधिक लाभ हुआ है।
- संरक्षणवाद: आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इस विचार को और बढ़ा दिया है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।
- खराब विनिर्माण क्षेत्र: हाल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 14% है।
आगे की राह:
- बहुपक्षवाद की ओर रूख: यह देखते हुए कि भारत किसी भी मेगा-व्यापार सौदे का भागीदार नहीं है, यह एक सकारात्मक व्यापार नीति एजेंडे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होगा।
- RCEP से बाहर निकलने के बाद, भारत को यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम सहित अपने संभावित FTA भागीदारों को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि यह कोविड के बाद की विश्व में चीन के लिये एक व्यवहार्य विकल्प है।
- आर्थिक सुधार: भारत की व्यापार नीति के ढाँचे को आर्थिक सुधारों द्वारा समर्थित होना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप एक खुली, प्रतिस्पर्द्धी और तकनीकी रूप से नवीन भारतीय अर्थव्यवस्था हो।
- विनिर्माण में सुधार: मेक इन इंडिया पहल जैसी योजनाओं के कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को बढ़ाने की जरूरत है।
- इसके अलावा, भारत की प्रमुख योजनाओं- स्मार्ट सिटी परियोजना, स्किल इंडिया प्रोग्राम और डिजिटल इंडिया के कार्यान्वयन के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा भारत के विनिर्माण क्षेत्र के व्यापक रीबूटिंग और कायाकल्प की आवश्यकता होगी।
- नवाचार की आवश्यकता: यदि नवाचार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, तो शायद भारत को एक नवाचार प्रोत्साहन नीति का अनावरण करना चाहिये, क्योंकि बौद्धिक संपदा अधिकार नवाचार रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पूर्वी आर्थिक मंच (EEF)
प्रिलिम्स के लियेपूर्वी आर्थिक मंच, एक्ट ईस्ट नीति, ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय मेन्स के लियेपूर्वी आर्थिक मंच का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छठे पूर्वी आर्थिक मंच (EEF) के पूर्ण सत्र को संबोधित किया।
- प्रधानमंत्री ने 'विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' के अनुरूप भारत-रूस संबंधों और सहयोग के संभावित क्षेत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
प्रमुख बिंदु
- प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:
- रूसी सुदूर-पूर्व के विकास के लिये राष्ट्रपति पुतिन के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के तहत रूस के एक विश्वसनीय भागीदार होने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।
- महामारी के दौरान सहयोग के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में उभरे स्वास्थ्य और फार्मा क्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- उन्होंने हीरा, कोकिंग कोल, स्टील, लकड़ी समेत आर्थिक सहयोग के अन्य संभावित क्षेत्रों का भी उल्लेख किया।
- पूर्वी आर्थिक मंच के बारे में:
- ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की स्थापना रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा वर्ष 2015 में की गई थी।
- इस फोरम की बैठक प्रत्येक वर्ष रूस के शहर व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में आयोजित की जाती है।
- यह फोरम विश्व अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों, क्षेत्रीय एकीकरण, औद्योगिक तथा तकनीकी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ रूस और अन्य देशों के समक्ष मौजूद वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
- फोरम के व्यापार कार्यक्रम में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख भागीदार देशों और आसियान के साथ कई व्यापारिक संवाद शामिल हैं, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में गतिशील रूप से विकासशील देशों का एक प्रमुख एकीकरण संगठन है।
- यह रूस और एशिया प्रशांत के देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को विकसित करने की रणनीति पर चर्चा करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में उभरा है।
- भारत-रूस संबंधों का महत्त्व:
- चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।
- रूस ने लद्दाख के विवादित गलवान घाटी क्षेत्र में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद रूस, भारत तथा चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन किया था।
- आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियार, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम), अंतरिक्ष (गगनयान) तथा हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा भारत और रूस के बीच आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों (जैसे- रोबोटिक्स, नैनोटेक, बायोटेक, खनन, कृषि-औद्योगिक एवं उच्च प्रौद्योगिकी) में अवसरों के उभरने की संभावना है।
- भारत द्वारा रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र में अपनी पहुँच के विस्तार के लिये कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- यूरेशियन आर्थिक संघ को पुनर्जीवित करना: रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन की वैधता के लिये भारत की सॉफ्ट पॉवर का लाभ उठाने के साथ शीत युद्ध के समय की तरह ही इस क्षेत्र पर अपने आधिपत्य को फिर से स्थापित करने का प्रयास करा रहा है।
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस साथ मिलकर अफगानिस्तान में अपनी पहुँच को बढ़ाने के लिये कार्य कर रहे हैं, साथ ही दोनों देशों ने ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को शीघ्र ही अंतिम रूप दिये जाने की मांग की है।
- बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- डिप्लोमेसी: रूस लंबे समय से भारत का मित्र रहा है; इसने न केवल भारत को एक दुर्जेय सैन्य प्रोफाइल बनाए रखने के लिये हथियार प्रदान किये बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर अमूल्य राजनयिक समर्थन भी दिया।
- रक्षा सहयोग: हालाँकि भारत जान-बूझकर अन्य देशों से अपनी नई रक्षा खरीद में विविधता लाया है, लेकिन इसके रक्षा उपकरण (60 से 70%) का बड़ा हिस्सा अभी भी रूस से है।
- ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम, SU-30 एयरक्राफ्ट और T-90 टैंकों का भारत में उत्पादन, दोनों देशों के बीच बढ़ रहे रक्षा व सुरक्षा संबंधों का एक उदाहरण है।
- सैन्य अभ्यास:
- अभ्यास- TSENTR
- इंद्र सैन्य अभ्यास- संयुक्त त्रि-सेवा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अभ्यास
- चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।
स्रोत: पी.आई.बी
सामाजिक न्याय
डिमेंशिया (मनोभ्रंश)
प्रिलिम्स के लिये :डिमेंशिया (मनोभ्रंश), विश्व स्वास्थ्य संगठन, ग्लोबल डिमेंशिया एक्शन प्लान मेन्स के लिये :डिमेंशिया (मनोभ्रंश) : परिचय, लक्षण तथा कारण, डिमेंशिया के लिये भारत द्वारा समर्थित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 'ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन द पब्लिक हेल्थ रिस्पांस टू डिमेंशिया' नामक एक रिपोर्ट जारी की।
- यह वर्ष 2017 में प्रकाशित WHO के 'ग्लोबल डिमेंशिया एक्शन प्लान' में डिमेंशिया हेतु वर्ष 2025 के लिये निर्धारित वैश्विक लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति का आकलन करता है।
प्रमुख बिंदु
- डिमेंशिया :
- मनोभ्रंश एक सिंड्रोम है, आमतौर पर एक पुरानी या प्रगतिशील प्रकृति का - जो उम्र बढ़ने के जैविक सिद्धांत के सामान्य परिणामों से भिन्न, संज्ञानात्मक कार्य (अर्थात् सोचने की प्रक्रिया क्षमता) में गिरावट की ओर ले जाता है।
- यह स्मृति, सोच-विचार, अभिविन्यास, समझ, गणना, सीखने की क्षमता, भाषा और निर्णय को प्रभावित करता है।
- हालाँकि इसमें चेतना (Consciousness) प्रभावित नहीं होती है।
- मनोभ्रंश के कारण होने वाली कुल मौतों में से 65% महिलाएँ हैं और मनोभ्रंश के कारण विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALYs) पुरुषों की तुलना में महिलाओं में लगभग 60% अधिक है।
- लक्षण :
- इसमें स्मृतिलोप, सोचने में कठिनाई, दृश्य धारणा, स्व-प्रबंधन, समस्या समाधान या भाषा और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता जैसे लक्षण शामिल हैं।
- इसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है जैसे- अवसाद, व्याकुलता, मानसिक उन्माद और चित्तवृति या मनोदशा।
- कारण :
- जब मस्तिष्क की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो मनोभ्रंश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह सिर में चोट, स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर या एचआईवी संक्रमण के कारण हो सकता है।
- उपचार :
- मनोभ्रंश को ठीक करने के लिये वर्तमान में कोई उपचार उपलब्ध नहीं है, हालाँकि नैदानिक परीक्षणों के विभिन्न चरणों में कई नए उपचारों की जाँच की जा रही है।
- वैश्विक परिदृश्य:
- डिमेंशिया वर्तमान में सभी प्रकार की बीमारियों से होने वाली मृत्यु का सातवांँ प्रमुख कारण है जो वैश्विक स्तर पर वृद्ध लोगों में विकलांगता और दूसरों पर निर्भरता के प्रमुख कारणों में से एक है।
- 55 मिलियन से अधिक लोग (8.1% महिलाएंँ और 65 वर्ष से अधिक आयु के 5.4% पुरुष) डिमेंशिया के साथ जी रहे हैं।
- वर्ष 2030 तक यह संख्या बढ़कर 78 मिलियन और वर्ष 2050 तक 139 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
- WHO के पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में डिमेंशिया (20.1 मिलियन) से पीड़ित लोगों की संख्या सबसे अधिक है तथा इसके बाद यूरोपीय क्षेत्र (14.1 मिलियन) का स्थान है।
- WHO के प्रयास:
- ग्लोबल एक्शन प्लान ऑन द पब्लिक हेल्थ रिस्पांस टू डिमेंशिया 2017-2025:
- यह डिमेंशिया/ मनोभ्रंश को संबोधित करने हेतु एक व्यापक खाका प्रस्तुत करता है।
- वैश्विक मनोभ्रंश वेधशाला:
- यह मनोभ्रंश संबंधी नीतियों, सेवा वितरण, महामारी विज्ञान और अनुसंधान पर निगरानी और जानकारी साझा करने की सुविधा हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय निगरानी मंच है।
- संज्ञानात्मक गिरावट और मनोभ्रंश के जोखिम में कमी हेतु दिशा-निर्देश:
- यह मनोभ्रंश के लिये परिवर्तनीय जोखिम कारकों को कम करने हेतु हस्तक्षेपों पर साक्ष्य-आधारित सिफारिशें प्रदान करता है।
- मेंटल हेल्थ गैप एक्शन प्रोग्राम:
- सामान्यतः यह विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मानसिक (Mental), स्नायविक (Neurologica) और मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों के लिये प्रथम दृष्टया देखभाल में मदद करने हेतु एक संसाधन है।
- ग्लोबल एक्शन प्लान ऑन द पब्लिक हेल्थ रिस्पांस टू डिमेंशिया 2017-2025:
- भारत की पहल:
- अल्ज़ाइमर्स एंड रिलेटेड डिसऑर्डर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया:
- यह सरकार से मनोभ्रंश पर अपनी योजना या नीति बनाने का आह्वान करता है जिसे सभी राज्यों में लागू किया जाना चाहिये तथा स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वित्तपोषण और निगरानी की जानी चाहिये।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन:
- यह न्यायसंगत, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंँच की परिकल्पना करता है और लोगों की ज़रूरतों के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी है।
- अल्ज़ाइमर्स एंड रिलेटेड डिसऑर्डर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ब्ल्यू स्ट्रैग्लर तारे
रिलिम्स के लिये:ब्ल्यू स्ट्रैग्लर तारे, ग्लोबुलर, गैया (Gaiya) टेलीस्कोप, हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, एस्ट्रोसैट, AstroSat, ओमेगा सेंटॉरी मेन्स के लिये:ब्लू स्ट्रैगलर का परिचय तथा इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में भारतीय शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत परिकल्पना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्लू स्ट्रैगलर (Blue Stragglers) का पहला व्यापक विश्लेषण करते हुए भारतीय शोधकर्त्ताओं ने इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में एक परिकल्पना प्रस्तुत की है।
- ब्लू स्ट्रैगलर्स खुले या गोलाकार समूहों में सितारों का एक ऐसा वर्ग हैं जो अन्य सितारों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े और नीले रंग के होने के कारण अलग ही दिखाई देते हैंI
प्रमुख बिंदु
- ब्लू स्ट्रैगलर तारों के विषय में:
- तारे असामान्य रूप से गर्म और चमकीले होते हैं तथा प्राचीन तारकीय समूहों, जिन्हें ग्लोबुलर (गोलाकार तारामंडल/तारा समूह) कहा जाता है, के कोर में पाए जाते हैं ।
- उनकी उत्पत्ति का एक संकेत यह है कि वे केवल घने तारकीय प्रणालियों में पाए जाते हैं, जहाँ सितारों के बीच की दूरी बहुत कम (एक प्रकाश वर्ष के एक अंश के बराबर) होती है ।
- एलन सैंडेज (कैलिफोर्निया के पासाडेना में कार्नेगी ऑब्ज़र्वेटरीज के एक खगोलशास्त्री) ने वर्ष 1952-53 में गोलाकार क्लस्टर M3 में ब्लू स्ट्रैगलर की खोज की थी।
- अधिकांश ब्लू स्ट्रैगलर सूर्य से कई हज़ार प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं और इनमें से ज़्यादातर लगभग 12 बिलियन वर्ष या उससे भी अधिक पुराने हैं।
- मिल्की वे आकाशगंगा का सबसे बड़ा और सबसे चमकीला ग्लोबुलर ओमेगा सेंटॉरी (Omega Centauri) है।
- ब्लू स्ट्रैगलर की विशेषता:
- लू स्ट्रैगलर सितारे तारकीय विकास के मानक सिद्धांतों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।
- एक ही बादल से एक ही निश्चित अवधि में जन्मे तारों का कोई एक समूह अलग से दूसरा समूह बना लेता है। तारे का निर्माण अंतर-तारकीय आणविक बादलों (बहुत ठंडी गैस और धूल के अपारदर्शी गुच्छ) में होता है।
- मानक तारकीय विकास के तहत जैसे-जैसे समय बीतता है, प्रत्येक तारा अपने द्रव्यमान के आधार पर अलग-अलग विकसित होने लगता है। जिसमें एक ही समय में उत्पन्न हुए सभी सितारों को हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख (Hertzsprung-Russell Diagram) पर स्पष्ट रूप से निर्धारित वक्र पर स्थित होना चाहिये।
- हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख तारों के तापमान को उनकी चमक के विरुद्ध या तारों के रंग को उनके पूर्ण परिमाण के विरुद्ध चित्रित करता है। यह सितारों के एक समूह को उनके विकास के विभिन्न चरणों में दर्शाता है।
- अभी तक इस आरेख की सबसे प्रमुख विशेषता इसका मुख्य अनुक्रम है, जो आरेख में ऊपर की तरफ बाईं ओर से (गर्म, चमकदार तारे) से नीचे दाईं ओर (शांत, दुर्बल तारे) तक चलता है।
- लू स्ट्रैगलर सितारे तारकीय विकास के मानक सिद्धांतों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।
- ब्लू स्ट्रैगलर विकसित होने के बाद मुख्य अनुक्रम से हट जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके मार्ग में एक विपथन आ जाता है जिसे टर्नऑफ के रूप में जाना जाता है।।
- चूँकि ब्लू स्ट्रैगलर इस इस वक्र से दूर रहते हैं, इसलिये वे असामान्य तारकीय विकास क्रम से गुज़र सकते हैं।
- वे एक अधिक शांत, लाल रंग की अवस्था प्राप्त करने के विकास क्रम में अपने समूह के अधिकांश अन्य सितारों से पिछड़ते हुए दिखाई देते हैं।
- परिकल्पना के विषय में:
- भारतीय शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि:
- कुल ब्लू स्ट्रैग्लर में से आधे तारे एक करीबी द्वि-ध्रुवीय/बाइनरी साथी तारे से बड़े पैमाने पर द्रव्य स्थानांतरण के माध्यम से बनते हैं।
- एक तिहाई संभावित रूप से दो सितारों के बीच टकराव के माध्यम से बनते हैं।
- शेष दो से अधिक तारों की परस्पर क्रिया से बनते हैं।
- इस परिकल्पना के लिये शोधकर्त्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) के गैया (Gaiya) टेलीस्कोप का उपयोग किया।
- आगे के अध्ययन के लिये, भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट (AstroSat) पर लगे पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप, साथ ही नैनीताल स्थित 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप का उपयोग किया जाएगा।
- यह अध्ययन विभिन्न आकाशगंगाओं सहित बड़ी तारकीय आबादी के अध्ययन में रोमांचक परिणामों को उजागर करने के साथ ही इन तारकीय प्रणालियों की जानकारी की समझ में और सुधार लाने में सहायक होगा।
- भारतीय शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि:
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
भूमि सिंक और उत्सर्जन
प्रिलिम्स के लिये:अक्षय ऊर्जा, कृत्रिम कार्बन पृथक्करण, बॉन चुनौती मेन्स के लिये:जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में संबंधित पहलें |
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद नीति-निर्माताओं और निगमों का अब भी यह मानना है कि भूमि तथा महासागरों जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक उनके जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम कर देंगे।
प्रमुख बिंदु
- भूमि सिंक :
- भूमि जलवायु प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो सक्रिय रूप से कार्बन, नाइट्रोजन, जल और ऑक्सीजन के प्रवाह के तौर पर जीवन के लिये बुनियादी आवश्यकताओं से जुड़ी हुई है।
- ग्रीनहाउस गैसें (GHG जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड ) एक प्राकृतिक चक्र का अनुसरण करती हैं - वे लगातार वातावरण में प्रवाहित होती हैं तथा प्राकृतिक 'सिंक' जैसे- भूमि और महासागरों के माध्यम से इसको हटाया जाता है।
- पौधों और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन को अवशोषित करने तथा इसे जीवित बायोमास में संग्रहीत करने की अद्वितीय क्षमता होती है।
- मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का लगभग 56% महासागरों और भूमि द्वारा अवशोषित किया जाता है।
- लगभग 30% भूमि द्वारा और शेष महासागरों द्वारा।
- भूमि की भूमिका का निर्धारण :
- CO2 उत्सर्जन को कम करने के लिये एक शमन मार्ग के रूप में भूमि (वन और कृषि भूमि) की भूमिका को वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) द्वारा मान्यता दी गई थी।
- वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल ने इस विचार का समर्थन किया कि सरकारों को न केवल अपने क्षेत्रों की भूमि कार्बन सिंक क्षमता को बढ़ाने के लिये नीतियों को नियोजित करना चाहिये, बल्कि इस तरह के शमन को जीवाश्म ईंधन की खपत से उत्सर्जन में कमी करने हेतु आवश्यकताओं के खिलाफ स्थापित किया जा सकता है।
- संबंधित आँकड़े :
- वर्ष 2019 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2007-2016 के दौरान मानवजनित CO2 उत्सर्जन का 13% भूमि उपयोग के लिये ज़िम्मेदार है।
- लेकिन इसने प्रतिवर्ष लगभग 11.2 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड का शुद्ध सिंक भी प्रदान किया, जो इसी अवधि में कुल CO2 उत्सर्जन के 29% के बराबर है।
- इसका आशय यह है कि विगत तीन दशकों के दौरान दुनिया के भूमि सिंक द्वारा 29 से 30% मानवजनित CO2 उत्सर्जन को अवशोषित किया गया है।
- वर्ष 2019 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2007-2016 के दौरान मानवजनित CO2 उत्सर्जन का 13% भूमि उपयोग के लिये ज़िम्मेदार है।
- चिंताएँ :
- ऊष्मा का बढ़ता स्तर :
- ऊष्मा का बढ़ता स्तर वनों में आर्द्रता की कमी को बढ़ा रहा है तथा जंगलों को भीषण आग/उष्मन का सामना करना पड़ रहा है।
- इसलिए एक ओर विभिन्न आर्थिक गतिविधियों हेतु वनों को काटा जा रहा है, जिससे जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलने वाले CO2 को कम करने के लिये सिंक के रूप में उनकी भूमिका कम हो रही है।
- दूसरी ओर जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी वैसे-वैसे वनों के क्षेत्रफल में कमी आएगी।
- मानवजनित और प्राकृतिक कारक:
- मानव-प्रेरित कारक जैसे वनों की कटाई तथा प्राकृतिक कारक जैसे- धूप, तापमान और वर्षा में परिवर्तनशीलता, भूमि कार्बन सिंक की क्षमता में भिन्नता पैदा कर सकती है।
- CO2 की मात्रा में वृद्धि:
- जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट: IPCC के अनुसार CO2 उत्सर्जन कम-से-कम दो मिलियन वर्षों में सबसे अधिक है। 1800 के दशक के अंत से मनुष्य ने 2,400 बिलियन टन CO2 का उत्सर्जन किया है।
- ऊष्मा का बढ़ता स्तर :
- सुझाव:
- वृक्ष लगाना:
- पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि को रोकने हेतु वैश्विक स्तर पर आवश्यक पैमाने पर जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिये किसी उचित रणनीति को अपनाया नहीं जा रहा है।
- इसी स्थित के समाधान हेतु ऐसे तरीके खोजे जाएंँ जिनसे वातावरण में उत्सर्जन को हटाया जा सके और पेड़ उगाने की रणनीति को इसका प्रयास का हिस्सा बनाया जाए।
- जीवाश्म ईंधन से मुक्त होना :
- विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ने के इस क्रम में भूमि का उपयोग करने की आवश्यकता है; लेकिन अंत में जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाना होगा।
- कृत्रिम कार्बन पृथक्करण:
- कृत्रिम कार्बन पृथक्करण प्रौद्योगिकियांँ बड़ी मात्रा में कार्बन को कुशलता से कैप्चर कर इसे परिवर्तित करती हैं और इसे हज़ारों वर्षों तक संग्रहीत भी करती हैं।
- यह तकनीक चार्ज इलेक्ट्रोकेमिकल प्लेटों से हवा के गुज़रने की पद्धति पर आधारित है।
- प्रौद्योगिकी का उद्देश्य भविष्य के लिये कोयले को एक व्यवहार्य, तकनीकी, पर्यावरणीय अनुकूल और आर्थिक मुद्दा बनाना है।
- कृत्रिम कार्बन पृथक्करण प्रौद्योगिकियांँ बड़ी मात्रा में कार्बन को कुशलता से कैप्चर कर इसे परिवर्तित करती हैं और इसे हज़ारों वर्षों तक संग्रहीत भी करती हैं।
- वृक्ष लगाना:
- संबंधित पहलें:
- बॉन चुनौती:
- बॉन चुनौती (Bonn Challenge) एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
- बॉन चैलेंज एक वैश्विक प्रयास है जिसके तहत 2020 तक दुनिया की वनों की कटाई और खराब हुई भूमि के 150 मिलियन हेक्टेयर और 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि को बहाल किया जा सकता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक :
- मार्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2021-2030 को दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को रोकने के लिये पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के रूप में घोषित किया है।
- LEAF गठबंधन:
- यह अमेरिका, ब्रिटेन और नॉर्वे के नेतृत्व में अपने उष्णकटिबंधीय वनों (Tropical Forests) की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध देशों को वित्तपोषण प्रदान हेतु कम-से-कम 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर जुटाने का एक प्रयास है।
- बॉन चुनौती:
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के लिये खतरा: ओडिशा
प्रिलिम्स के लिये:भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, ब्राह्मणी नदी मेन्स के लिये:भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के लिये उत्पन्न खतरे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं के अनुसार, ब्राह्मणी नदी बेसिन से ताज़े पानी के नियोजित पथांतरण के कारण ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान हेतु गंभीर खतरे की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
प्रमुख बिंदु
- मुद्दे:
- उद्योगों के लिये अतिरिक्त जल आवंटन, जिससे समुद्र में ताज़े पानी के बहाव में कमी आने की संभावना है।
- ताज़े पानी के सामान्य प्रवाह में कमी के कारण ऊपरी क्षेत्र में खारे जल का अंतर्ग्रहण बढ़ जाएगा, यह स्थानीय वनस्पतियों और जीवों के साथ-साथ ब्राह्मणी और खरसरोटा (ब्राह्मणी की सहायक नदी) नदियों पर निर्भर किसानों एवं मछुआरों की आजीविका को प्रभावित करेगा।
- मानव-मगरमच्छ संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है क्योंकि मुहाने पर रहने वाले मगरमच्छ मुख्य अभयारण्य क्षेत्र को छोड़ देंगे और लवणता बढ़ने पर ऊपर की ओर पलायन करेंगे।
- जल के बहाव में कमी से मैंग्रोव में कमी आएगी और मैंग्रोव के बिना गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य समुद्री रेगिस्तान बन जाएगा।
- भितरकनिका से पोषक तत्त्व, गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य में प्रवाहित हो जाते हैं, जो विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले ओलिव रिडले समुद्री कछुओं को नेस्टिंग/नीडन के लिये आकर्षित करता है।
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान:
- परिचय:
- इसमें भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यह रामसर स्थल है। इसे वर्ष 1988 में भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया था।
- भितरकनिका ब्राह्मणी, बैतरणी, धामरा और महानदी नदी प्रणालियों के मुहाने में स्थित है। यह ओडिशा के केंद्रपाड़ा ज़िले में है।
- यह ओडिशा के बेहतरीन जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में से एक है और अपने मैंग्रोव, प्रवासी पक्षियों, कछुओं, मुहाना के मगरमच्छों तथा अनगिनत खाड़ियों के लिये प्रसिद्ध है।
- ऐसा कहा जाता है कि यहाँ देश के मुहाना या खारे जल के मगरमच्छों का 70% हिस्सा रहता है, जिसका संरक्षण वर्ष 1975 में शुरू किया गया था।
- संरक्षित क्षेत्र: भितरकनिका का प्रतिनिधित्व 3 संरक्षित क्षेत्रों द्वारा किया जाता है जो इस प्रकार हैं:
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान।
- भितरकनिका वन्यजीव अभयारण्य।
- गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य।
- परिचय:
- ब्राह्मणी नदी:
- यह पूर्वोत्तर ओडिशा राज्य, पूर्वी भारत में एक नदी है। दक्षिणी बिहार राज्य में शंख और दक्षिण कोयल नदियों के संगम से बनी ब्राह्मणी 300 मील तक बहती है।
- यह प्रायः दक्षिण-दक्षिण पूर्व में बोनाईगढ़ और तालचेर से होकर बहती है तथा फिर महानदी की उत्तरी शाखाओं में शामिल होने के लिये पूर्व की ओर मुड़ जाती है, जो तब पलमायरास पॉइंट पर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- यह उन कुछ नदियों में से एक है जो पूर्वी घाट को काटती है और इसने रेंगाली में एक छोटी घाटी बनाई है, जहाँ एक बाँध का निर्माण किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
आभासी न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, आभासी न्यायालय की कार्यवाही के वैज्ञानिक पक्ष मेन्स के लिये:आभासी न्यायालय से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना ने आभासी सुनवाई के लिये सर्वोच्च न्यायालय में नए लगाए गए ओपन न्यायालय सॉफ्टवेयर के प्रति असंतोष व्यक्त किया है।
- यह असंतोष आभासी सुनवाई के दौरान आवाज़ो की प्रतिध्वनि की समस्या से उत्पन्न हुआ।
प्रमुख बिंदु
- आभासी न्यायालय के बारे में:
- आभासी न्यायालय या ई-न्यायालय एक अवधारणा है जिसका उद्देश्य न्यायालय में वादियों या वकीलों की उपस्थिति को समाप्त करना और मामले का ऑनलाइन निर्णय करना है।
- इसके लिये एक ऑनलाइन वातावरण और एक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सक्षम बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 2020 में कोरोनावायरस महामारी के मद्देनज़र, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए देश भर के सभी न्यायालयों को न्यायिक कार्यवाही के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का व्यापक रूप से उपयोग करने का निर्देश दिया।
- इससे पहले न्यायिक प्रणाली में CJI द्वारा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पोर्टल 'SUPACE' लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करना था।
- साथ ही SC ने न्यायालय की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिये ड्राफ्ट मॉडल नियम जारी किये हैं।
- आभासी न्यायालय या ई-न्यायालय एक अवधारणा है जिसका उद्देश्य न्यायालय में वादियों या वकीलों की उपस्थिति को समाप्त करना और मामले का ऑनलाइन निर्णय करना है।
ई-न्यायालय परियोजना
- ई-समिति द्वारा प्रस्तुत "भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना-2005" के आधार पर इसकी अवधारणा की गई थी। इसमें भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय न्यायपालिका को ICT सक्षमता युक्त करने की परिकल्पना की गई थी ।
- ई-न्यायालय मिशन मोड प्रोजेक्ट, एक अखिल भारतीय परियोजना है, जिसकी निगरानी और वित्तपोषण न्याय विभाग, कानून तथा न्याय मंत्रालय द्वारा देश भर के ज़िला न्यायालयों के लिये किया जाता है।
- लाभ:
- वहनीय न्याय: ई-न्यायालय के विस्तार से समाज के सभी वर्गों के लिये न्यायालयों में न्याय तक सस्ती और आसान पहुँच सुनिश्चित होगी।
- न्याय की तेज़ी से डिलीवरी: ई-न्यायालय के प्रसार से न्याय निर्णयन प्रक्रिया तीव्र हो जाएगी तथा इसके लिये आवश्यक उपकरण प्रदान किये जाने चाहिये।
- पारदर्शिता: ई-न्यायालय चुनौतियों को दूर कर सेवा वितरण तंत्र को पारदर्शी और लागत प्रभावी बना सकते हैं।
- सेवा वितरण के लिये बनाए गए विभिन्न चैनलों के माध्यम से वादी अपने मामले की स्थिति ऑनलाइन देख सकते हैं।
- न्यायपालिका का एकीकरण: विभिन्न न्यायालयों और विभिन्न विभागों के बीच डेटा साझा करना भी आसान हो जाएगा क्योंकि एकीकृत प्रणाली के तहत सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध होगा।
- यह न्यायालयी प्रक्रियाओं में सुधार लाने और नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में फायदेमंद होगा।
- चुनौतियाँ:
- संचालन संबंधी कठिनाइयाँ: आभासी न्यायालय में खराब कनेक्टिविटी, प्रतिध्वनि और अन्य व्यवधानों के कारण सुनवाई के दौरान तकनीकी रुकावटें देखी गई हैं।
- प्रक्रिया में वादी की निकटता न होने से विश्वास की कमी जैसे अन्य मुद्दें शामिल हैं।
- हैकिंग और साइबर सुरक्षा: प्रौद्योगिकी के स्तर पर साइबर सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता होगी।
- बुनियादी ढाँचा: अधिकांश तालुका/गाँवों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और बिजली तथा इंटरनेट कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- ई-न्यायालय रिकॉर्ड बनाए रखना: परंपरागत स्टाफ दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य को प्रभावी ढंग से संभालने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित और प्रशिक्षित नहीं है जो साक्ष्यों तथा विवरणों को वादी एवं परिषद के साथ-साथ न्यायालय तक आसानी से पहुँचा सकें।
- संचालन संबंधी कठिनाइयाँ: आभासी न्यायालय में खराब कनेक्टिविटी, प्रतिध्वनि और अन्य व्यवधानों के कारण सुनवाई के दौरान तकनीकी रुकावटें देखी गई हैं।
आगे की राह:
- भारत की न्यायिक प्रणाली के लिये एक नया मंच विकसित करते समय डेटा गोपनीयता और डेटा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- आभासी कार्यवाही प्रदान करने के लिये बुनियादी ढाँचे को पर्याप्त मशीनरी और डेटा कनेक्टिविटी के साथ अद्यतन करने की आवश्यकता है।
- एक उपयोगकर्त्ता के अनुकूल ई-न्यायालय तंत्र विकसित किया जाना चाहिये, जो आम जनता के लिये सरल और आसानी से सुलभ हो, यह भारत में वादियों को ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- वार्ता और संगोष्ठियों के माध्यम से ई-न्यायालय के बारे में जागरूकता पैदा कर सुविधाओं के संबंध में जानकारी देने में मदद मिल सकती है और ई-न्यायालय आसानी से न्याय की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
'बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार'
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य, नोबेल पुरस्कार, सुंदरबन, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय जीवविज्ञानी शैलेंद्र सिंह को तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered) कछुए की प्रजातियों को उनके विलुप्त होने की स्थिति से बाहर लाने हेतु बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार (Behler Turtle Conservation Award) से सम्मानित किया गया है।
- देश में मीठे पानी के कछुओं और अन्य प्रकार के कछुओं की 29 प्रजातियांँ पाई जाती हैं।
प्रमुख बिंदु
- बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार के बारे में:
- वर्ष 2006 में स्थापित यह पुरस्कार कछुओं के संरक्षण एवं जैविकी तथा चेलोनियन कंज़र्वेशन एंड बायोलॉजी कम्युनिटी में नेतृत्व क्षमता को सम्मानित करने हेतु दिया जाने वाला एक प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है।
- इसे कछुआ संरक्षण के "नोबेल पुरस्कार" के रूप में भी जाना जाता है।
- ‘बहलर कछुआ संरक्षण पुरस्कार’ कछुआ संरक्षण में शामिल कई वैश्विक निकायों जैसे ‘टर्टल सर्वाइवल एलायंस (TSA), IUCN/SSC कच्छप और मीठे पानी के कछुआ विशेषज्ञ समूह, कछुआ संरक्षण तथा ‘कछुआ संरक्षण कोष’ द्वारा प्रदान किया जाता है।
- वर्तमान संदर्भ में तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय कछुओं को देश के विभिन्न हिस्सों में टीएसए इंडिया के अनुसंधान, संरक्षण प्रजनन और शिक्षा कार्यक्रम के एक भाग के रूप में संरक्षित किया जा रहा है।
- नॉर्दन रिवर टेरापिन (Batagur kachuga) को सुंदरबन में संरक्षित किया जा रहा है।
- चंबल में रेड - क्राउन रूफ टर्टल (बाटागुर बास्का)।
- असम के विभिन्न मंदिरों में ब्लैक सॉफ्टशेल टर्टल (निल्सोनिया नाइग्रिकन्स (Nilssonia Nigricans)।
- नॉर्दन रिवर टेरापिन :
- पर्यावास :
- सुंदरबन पारिस्थितिकी क्षेत्र उनका प्राकृतिक आवास है।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN की रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES : परिशिष्ट- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अनुसूची- I
- संकट :
- 19वीं और 20वीं सदी में कलकत्ता के बाज़ारों में आपूर्ति सहित स्थानीय जीवन निर्वाह और कर्मकांडी उपभोग के साथ-साथ कुछ क्षेत्रीय व्यापार के लिये इनका दुरूपयोग किया गया।
- पर्यावास :
- रेड - क्राउन रूफ टर्टल:
- पर्यावास :
- ऐतिहासिक रूप से यह प्रजाति भारत और बांग्लादेश दोनों में गंगा नदी में पाई जाती थी। यह ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी पाया जाता है।
- वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य इस प्रजाति की पर्याप्त आबादी वाला एकमात्र क्षेत्र है।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN की रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES: परिशिष्ट- II
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अनुसूची- I
- संकट :
- प्रदूषण और बड़े पैमाने पर विकास गतिविधियों जैसे- मानव उपभोग और सिंचाई के लिये जल की निकासी तथा अपस्ट्रीम बाँधों एवं जलाशयों से अनियमित प्रवाह के कारण आवास की हानि या गिरावट होती है।
- पर्यावास :
- ब्लैक सॉफ्टशेल कछुआ :
- पर्यावास :
- वे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में मंदिरों के तालाबों में पाए जाते हैं।
- इसकी वितरण सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियाँ भी शामिल हैं।
- संरक्षण की स्थिति :
- IUCN रेड लिस्ट : गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- CITES : परिशिष्ट- I
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : कोई कानूनी संरक्षण नहीं
- संकट :
- कछुए के मांस और अंडे का सेवन, रेत खनन (Silt Mining), आर्द्रभूमि का अतिक्रमण एवं बाढ़ के पैटर्न में बदलाव।
- पर्यावास :
भारतीय जल क्षेत्र के समुद्री कछुए :
- समुद्री कछुए , टेरेपिन (ताज़े जल के कछुए) और अन्य कछुओं की तुलना में आकार में बड़े होते हैं।
- भारतीय जल में कछुए की पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं अर्थात् ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल्स, लॉगरहेड, हॉक्सबिल, लेदरबैक।
- ओलिव रिडले, लेदरबैक और लॉगरहेड को IUCN रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज़ (IUCN Red List of Threatened Species) में 'सुभेद्य' (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- हॉक्सबिल कछुए को 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय (Critically Endangered)' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और ग्रीन टर्टल को IUCN की खतरनाक प्रजातियों की रेड लिस्ट में 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, अनुसूची- I के तहत संरक्षित हैं।