भारतीय अर्थव्यवस्था
स्किलिंग इंडिया
- 03 Jul 2021
- 11 min read
यह एडिटोरियल दिनांक 01/07/2021 को हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित लेख “Holistic skilling'' पर आधारित है। यह भारत में कौशल विकास से संबंधित चुनौतियों के बारे में बात करता है।
किसी भी उद्यम की सफलता में पूंजी, सहयोग, नियामक तंत्र और सबसे आवश्यक वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान तथा कौशल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है और ये आपस में परस्पर संबद्ध भी हैं।
भारत में पिछले दशक में सरकारों द्वारा कौशल विकास हेतु कई पहलें शुरू की गई हैं। हालाँकि परिणाम अभी भी भ्रांतिजनक हैं। यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट-2020 के अनुसार, भारत में वर्ष 2010-2019 की अवधि में केवल 21.1 प्रतिशत श्रम बल कौशल युक्त था।
यह निराशाजनक परिणाम नीतिगत कार्रवाइयों में सामंजस्य की कमी और समग्र दृष्टिकोण के अभाव के कारण है। इसलिये यदि भारत जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त करना चाहता है तो उसे भारत में कौशल विकास से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
कौशल विकास से संबंधित मुद्दे
- एक-एक अंश दृष्टिकोण (Piecemeal Approach:): कौशल के लिये Piecemeal दृष्टिकोण को इस वर्ष के बजट में देखा जा सकता है जिसने राष्ट्रीय शिक्षुता प्रशिक्षण योजना को फिर से संगठित करने के लिये 3,000 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, लेकिन इसे केवल इंजीनियरिंग वर्ग तक सीमित कर दिया है, जबकि अन्य विज्ञान और कला वर्गों को इससे अलग रखा गया है।
- अतिभारित ज़िम्मेदारी: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का तीसरा चरण वर्ष 2020-21 में 8 लाख से अधिक लोगों को कौशल विकास प्रदान करने के लिये शुरू किया गया है।
- हालाँकि यह ज़िला कलेक्टरों की अध्यक्षता वाली ज़िला कौशल विकास समितियों पर अत्यधिक निर्भरता से ग्रस्त है। ये समितियाँ अपने अन्य कार्यों को देखते हुए इस भूमिका को प्राथमिकता देने में सक्षम नहीं हो पाती हैं।
- नीति प्रक्रिया में अनिरंतरता: अंतर-मंत्रालयी और अंतर-विभागीय मुद्दों को हल करने तथा केंद्र के प्रयासों के दोहराव को समाप्त करने के लिये वर्ष 2013 में राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (एनएसडीए) बनाई गई।
- हालाँकि अब इसे राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (NCVT) के हिस्से के रूप में शामिल कर लिया गया है।
- यह न केवल नीति प्रक्रिया में अनिरंतरता को दर्शाता है बल्कि नीति निर्माताओं के बीच कुछ उलझन को भी दर्शाता है।
- नए प्रवेशकों की भारी संख्या: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2023 तक 15-59 वर्ष की आयु के 7 करोड़ अतिरिक्त लोगों के श्रम बल में प्रवेश करने की उम्मीद है।
- युवाओं की बड़े संख्या में कौशलयुक्त होने के परिणामस्वरूप यह सर्वोपरि हो गया है कि रोज़गार गारंटी हेतु नीतिगत प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए ।
- अपर्याप्त प्रशिक्षण क्षमता: भारत में प्रशिक्षण प्राप्त लोगों के मध्य भी रोज़गार की दर कम है, इसका प्रमुख कारण पर्याप्त और गुणवत्तापरक प्रशिक्षण प्राप्त न होना रहा है। कम अवधि के प्रशिक्षण में सीखने की संभावनाएँ सीमित होती हैं। जहाँ अभियांत्रिकी के विद्यार्थी किसी विषय के लिये चार वर्ष का समय लेते हैं, वहीं उसी विषय के समरूप कोई कौशल प्रशिक्षण कुछ माह में प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- उद्यमिता कौशल की कमी: सरकार का दृष्टिकोण था कि PMKVY के अंतर्गत कौशल एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोग स्वरोज़गार की ओर मुड़ेंगे, इससे रोज़गार सृजन में वृद्धि होगी किंतु 24 प्रतिशत लोगों ने ही सिर्फ अपने व्यवसाय आरंभ किये, जबकि इनमें से भी सिर्फ 10 हज़ार लोगों ने ही मुद्रा (Micro Units Development and Refinance Agency-MUDRA) ऋण हेतु आवेदन किया।
- नियोक्ताओं की अनिच्छा: भारत में बेरोज़गारी की अधिकता के लिये सिर्फ कौशल प्रशिक्षण ही एकमात्र समस्या नहीं है बल्कि उद्यमों तथा लघु उद्योगों द्वारा लोगों को नियुक्त न करने की इच्छा भी एक बड़ा कारण है।
- बैंकों से ऋण प्राप्ति में कठिनाई, गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPAs) की अधिकता तथा निवेश दर के निम्न होने के कारण रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- उद्योगों की सीमित भूमिका: अधिकांश प्रशिक्षण संस्थानों में उद्योग क्षेत्र की भूमिका सीमित होने के कारण प्रशिक्षण की गुणवत्ता तथा प्रशिक्षण के उपरांत रोज़गार एवं वेतन का स्तर निम्न बना रहा।
- विद्यार्थियों में कम आकर्षण: कौशल प्रशिक्षण संस्थानों जैसे- ITI तथा पाॅलीटेक्निक में इनकी क्षमता के अनुपात में विद्यार्थियों का नामांकन कम हुआ। इसका प्रमुख कारण युवाओं के बीच कौशल विकास कार्यक्रमों को लेकर सीमित जागरूकता को माना जा सकता है।
आगे की राह
- शिक्षा और कौशल के बीच अलगाव को समाप्त करना: शिक्षा प्रणाली के औपचारिक और व्यावसायिक कृत्रिम अलगाव को समाप्त करने की आवश्यकता है, इससे शिक्षा और कौशल हेतु एक सक्षम ढाँचे के साथ निर्बाध एकीकरण की अनुमति प्राप्त होगी।
- इस संदर्भ में नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 में एक सही नीति की परिकल्पना की गई है क्योंकि यह स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों स्तरों पर व्यावसायिक व औपचारिक शिक्षा के एकीकरण पर ज़ोर देती है।
- NEP ने एक पायलट 'हब-एन-स्पोक' मॉडल का भी प्रस्ताव रखा, जिसमें ITI के वैचारिक ढाँचे को VET से संबंधित प्रशिक्षण और आसपास के 5-7 स्कूलों के छात्रों को एक्सपोज़र प्रदान करने के लिये 'हब' बनाया गया।
- कौशल सर्वेक्षण: नियोक्ताओं की सटीक कौशल आवश्यकताओं का पता लगाने के लिये सर्वेक्षण किये जा सकते हैं।
- ऐसे सर्वेक्षणों के विश्लेषण से प्रशिक्षण कार्यक्रमों के पाठ्यक्रम ढाँचे को डिज़ाइन करने में मदद मिलेगी और इस प्रकार मानकीकृत पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण वितरण प्रणाली विकसित की जा सकती है।
- प्रशिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) को प्रशिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन तथा इन संस्थानों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये, साथ ही ऐसी विधियों एवं तकनीकों का सृजन करना चाहिये जो प्रशिक्षण संस्थानों की कार्य-दक्षता में वृद्धि करें।
- शिक्षा और प्रशिक्षण खर्च में वृद्धि: भविष्य में स्किल इंडिया प्रोग्राम भी सकारात्मक परिणाम नहीं दे पाएगा यदि शिक्षा में सरकारी व्यय कम रहता है क्योंकि उचित शिक्षा के अभाव में प्रशिक्षण के लिये ज़मीन तैयार नहीं हो पाती है।
- यदि शिक्षा पर खर्च सीमित बना रहता है तो स्किल इंडिया कार्यक्रम अपेक्षित परिणाम देने में सक्षम नहीं हो सकेगा। इसके लिये मूलभूत स्तर पर विद्यार्थियों के भीतर कौशल शिक्षा के प्रति रुझान पैदा करना आवश्यक है। स्कूली शिक्षा के लिये सरकार का बजट आवंटन वर्ष 2013-14 के 2.81 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2018-19 में 2.05 प्रतिशत पर आ गया है, जो शिक्षा के क्षेत्र में उभरती गंभीर समस्या की ओर संकेत करता है।
- ऐसे में NEP द्वारा शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च को GDP के 6 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रस्ताव सही दिशा में उठाया गया कदम है।
- अंतर्राष्ट्रीय सफलता मॉडल को आत्मसात करना: भारत को चीन, जर्मनी, जापान, ब्राज़ील और सिंगापुर के तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण /शिक्षा मॉडल से सीखने की ज़रूरत है, जिनके पास अतीत में इसी तरह की चुनौतियाँ थीं। साथ ही एक व्यापक मॉडल को अपनाने के लिये अपने स्वयं के अनुभवों से सीखने की आवश्यकता होती है। यह कौशल अंतराल को पाट सकता है और युवाओं की रोज़गार योग्यता सुनिश्चित कर सकता है।
निष्कर्ष
भारत को आत्मानिर्भर बनाने और विभिन्न योजनाओं से संबंधित दोहराव को खत्म करने के लिये सभी कौशल प्रयासों को एक मंच के तहत लाने की आवश्यकता है। मुख्यधारा व व्यावसायिक कार्यक्रमों के बीच पाठ्यक्रम बदलने के लिये व्यावहारिक एवं वास्तविक शिक्षा के साथ एक मज़बूत संस्थागत ढाँचे को स्थापित करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत को आत्मनिर्भर बनाने और विभिन्न योजनाओं से संबंधित दोहराव को खत्म करने के लिये सभी कौशल प्रयासों को एक मंच के तहत लाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।