बाटागुर बास्का - एक गंभीर रूप से संकटापन्न जीव

संदर्भ
उत्तर नदी टेरपिन या बाटागुर  बास्का (Batagur baska) एक प्रकार का कछुआ है। यह पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में पाया जाता है। इन कछुओं के संरक्षण के लिये इन्हें इस वर्ष सर्दियों से पहले सुंदरबन वन विभाग द्वारा सुंदरबन टाइगर रिज़र्व में ताज़े जल के तीन पोखरों में रखा जाएगा। 

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (IUCN) ने उत्तर नदी टेरपिन या बाटागुर  बास्का को  अपनी संकटापन्न प्रजातियों की लाल सूची (Red List) में  गंभीर रूप से संकटापन्न जीव के रूप में वर्गीकृत किया है। दक्षिण एशिया के कई देशों में इसे विलुप्तप्राय मान लिया गया है। ये बंगाल टाइगर की तुलना में अधिक खतरे में है, लेकिन इनके बारे में लोगों को बहुत कम ज्ञात है। यह 60 सेंटीमीटर लंबा होता है। 
  • बाघ एक लुप्तप्राय (endangered) जीव है, जबकि यह गंभीर रूप से संकटापन्न (critically endangered) है। 
  • सुंदरबन के पास स्थित सजनाखाली में ऐसे कछुओं की संख्या 200 से अधिक है। 
  • आवास में कमी और शिकार ने इन प्रजातियों की आबादी को कम कर दिया है।

बाटागुर  वंश के तीन कछुए भारत में 
गौरतलब है कि बाटागुर  श्रेणी अथवा वंश के छ: बड़े ताजे जल के कछुओं में से तीन भारत में पाए जाते हैं। 
बाटागुर  कचुगा (लाल रंग का छत वाला कछुआ) और बाटागुर  ढोंगोका (तीन धारीदार छत वाले कछुए) गंगा की सहायक नदियों (जैसे- चंबल ) में पाए जाते हैं। 
उत्तर नदी टेरपिन इन तीन प्रजातियों में से सबसे अधिक लुप्तप्राय है। उनका  दीर्घकालिक भाग्य वन क्षेत्र में पुन: स्थापित पारिस्थितिक रूप से एक कार्यात्मक आवास पर निर्भर करता है।
पिछले दस वर्षों  से सुंदरबन टाइगर रिज़र्व के अधिकारी, कछुआ जीवनरक्षा गठबंधन के विशेषज्ञों के समर्थन से दुनिया के दूसरे सबसे लुप्तप्राय कछुओं को बचाने में प्रयासरत हैं।
गौरतलब है कि यांग्त्ज़ी नदी में पाए जाने वाले विशाल नरम खोल कछुओं (राफेटस स्विन्होई -Rafetus swinhoei) को मीठे पानी का सबसे लुप्तप्राय कछुआ माना जाता है।