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भारतीय राजव्यवस्था

आभासी न्यायालयों को जारी रखने के लिये लॉ पैनल की सिफारिश

  • 12 Sep 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

आभासी न्यायालय, संवैधानिक/वैधानिक प्रावधान 

मेन्स के लिये

COVID-19 और आभासी न्यायालय, आभासी न्यायालयों की सीमाएँ  

चर्चा में क्यों?

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभागीय स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि COVID-19 महामारी के पश्चात् भी आभासी न्यायालय (Virtual Courts) की कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिये। समिति का यह भी सुझाव है कि इसे सुविधाजनक बनाने के लिये कानून में आवश्यक बदलाव किये जाने चाहिये।

प्रमुख बिंदु 

  • समिति के अनुसार, न्यायालय ‘एक स्थान से अधिक सेवा है’। अधिवक्ताओं को स्वयं को ‘बदलते समय के साथ ढालना’ चाहिये क्योंकि प्रौद्योगिकी आगामी समय में एक ‘गेम चेंजर’ के रूप में उभरेगी।  
  • आभासी अदालतों के समर्थन में कहा गया कि डिजिटल न्याय सस्ता और तीव्र होने के साथ-साथ स्थानीय और आर्थिक बाधाओं को दूर करने तथा गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दृष्टि से  महत्त्वपूर्ण है। 
  • सभी पक्षों की सहमति से मामलों की चिह्नित श्रेणियों के लिये महामारी की अवधि के पश्चात् भी आभासी न्यायालय की कार्यवाही जारी रखी जानी चाहिये।
  • यह भी सुझाव दिया गया कि आभासी न्यायिक कार्यवाही को देश भर में स्थित विभिन्न अपीलीय न्यायाधिकरणों, जैसे- TDSAT, IPAB, NCLT आदि में स्थायी रूप से अपनाया जा सकता है, जिसमें  पक्षों/अधिवक्ताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • पैनल ने निष्कर्ष निकाला कि आभासी अदालतों में कुछ कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन वे वर्तमान परंपरागत न्याय प्रणाली में प्रगति की सूचक हैं, अतः इन्हें अपनाया जाना चाहिये। 

 आभासी न्यायालय के बारे में 

  • वर्तमान परिदृश्‍य में अभियोक्ता/वादी को अभियोग/वाद को ई-फाइलिंग के माध्‍यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से फाइल करने के लिये सुविधा प्रदान की गई है। कोर्ट फीस या अर्थदंड का भुगतान भी https://vcourts.gov.in के माध्यम से किया जाता है।
  • केस की स्थिति को सेवा वितरण के लिये बनाए गए विभिन्न चैनलों के माध्यम से ऑनलाइन देखा जा सकता हैं।
  • आभासी न्यायालय की अवधारणा का उद्देश्य अदालत में अभियोक्ता/वादी/अधिवक्ता की उपस्थिति को समाप्त करना और मामले का ऑनलाइन अधिनिर्णयन करना है। 

संवैधानिक / वैधानिक प्रावधान 

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 (4) में यह प्रावधान है कि खुली अदालत के अलावा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई निर्णय नहीं दिया जाएगा। ध्यातव्य है कि यह केवल ‘निर्णय सुनाने के संदर्भ में है, मामले की सुनवाई के संदर्भ में नहीं’।  
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा- 327 और सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा- 153b में भी आपराधिक और सिविल मामलों में खुली अदालत की सुनवाई का प्रावधान है।

COVID-19 और आभासी न्यायालय

  • देश के सर्वोच्च न्यायालय ने COVID-19 महामारी संकट के दौरान कानूनी और न्याय व्यवस्था का प्रबंधन करने के लिये आभासी न्यायिक कार्यवाही और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को अपनाने के लिये अपनी सहमति दी थी।
  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तर्क दिया गया कि ‘खुले न्यायालयों’ की संवैधानिक शर्तों को पूरा करने के लिये भौतिक रूप से सुनवाई करना आवश्यक नहीं है। खुली अदालतें अपने भौतिक  अस्तित्व में ऐसे समय में आई थी, जब तकनीक उतनी उन्नत अवस्था में नहीं थी।
  • जस्टिस एन. वी. रमाना की अगुवाई में उच्चतम न्यायालय के सात न्यायधीशों की एक समिति ने COVID-19 मामलों में अत्यधिक वृद्धि और इसके खतरनाक परिणामों को देखते हुए आभासी न्यायालय की प्रणाली को जारी रखने का फैसला किया।
  • इस दौरान अधिवक्ताओं ने आभासी स्क्रीन पर घर से ही काम किया तथा महत्त्वपूर्ण मामलों को ऑनलाइन सुना गया। इस दौरान न्यायालय द्वारा मामलों को दायर करने और न्यायिक प्रक्रियाओं के लिये ई-मेल और मैसेजिंग सेवाओं का उपयोग किया गया।

आभासी अदालतों की सीमाएँ  

  • आभासी न्यायालय की कार्यवाही के लिये बुनियादी ढाँचे की कमी एक प्रमुख समस्या है। अधिवक्ताओं का दावा है कि 50 प्रतिशत से अधिक अधिवक्ताओं के पास लैपटॉप या कंप्यूटर नहीं हैं। उन्होंने तर्क दिया है कि यह 'तकनीकी के जानकार अधिवक्ताओं' के अधिक पक्ष में है।
  • खुले न्यायालयों में अधिवक्ताओं के पास न्यायाधीशों की मनोदशा को समझ कर उन्हें समझाने का बेहतर मौका होता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई अधिवक्ताओं के साथ-साथ न्यायाधीशों पर भी एक मनोवैज्ञानिक दबाव डालती है, क्योंकि इसके माध्यम से दर्ज साक्ष्य, जैसे- चेहरे के भाव और मुद्राएँ आदि गैर-मौखिक संकेतों को विकृत किया जा सकता है। 
  • ऑनलाइन कार्यवाही में भाग लेने के लिये इंटरनेट की आवश्यक न्यूनतम गति 2mbps /sec होनी चाहिये और यह गति केवल 4G में उपलब्ध है। TRAI के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 तक केवल 436.12 मिलियन उपयोगकर्ताओं के पास ही 4G सेवा की उपलब्धता है। 

आगे की राह 

  • अदालत की सुनवाई में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से आभासी कोर्ट रूम की तकनीक को अपनाना वर्तमान महामारी के संकट के समय में अधिक महत्त्वपूर्ण है। 
  • आभासी कोर्ट रूम की प्रक्रिया को आगे भी जारी रखने के लिये पर्याप्त अवसंरचना का विकास किया जाना चाहिये। न्याय प्रशासन में तकनीकी नवाचारों को एक प्रगतिशील, संरचित और चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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