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जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व मगरमच्छ दिवस

  • 18 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व मगरमच्छ दिवस, मगरमच्छ की प्रजातियाँ तथा वितरण, मगर या मार्श मगरमच्छ, एश्चुअरी या लवणीय जल के मगरमच्छ, घड़ियाल

मेन्स के लिये:

मानव-मगरमच्छ संघर्ष

चर्चा में क्यों?

प्रतिवर्ष 17 जून को 'विश्व मगरमच्छ दिवस’ मनाया जाता है। 

प्रमुख बिंदु:

  • यह दुनिया भर में लुप्तप्राय मगरमच्छों की स्थिति को उजागर करने के लिये एक वैश्विक जागरूकता अभियान है।
  • मगरमच्छ-मानव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ‘मगरमच्छ संरक्षण प्रयासों’ पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। 

भारत में मगरमच्छ की प्रजातियाँ:

  • भारत में तीन प्रकार की मगरमच्छ प्रजातियाँ (Crocodilian Species) प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं:

मगरमच्छ की प्रजातियाँ

वैज्ञानिक नाम 

विवरण 

मगर या मार्श मगरमच्छ

क्रोकोडायल पेलुस्ट्रिस (Crocodylus palustris)

  • मगर सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र में पाया जाता है। 
  •  भारत के अलावा मगर अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी पाया जाता है।
  • IUCN की ‘सुभेद्य’ सूची में शामिल है। 

एश्चुअरी या लवणीय जल के मगरमच्छ 

क्रोकोडायलस पोरस (Crocodylus porosus)

  • एश्चुअरी मगरमच्छ ओडिशा के भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है। 
  • भारत के अलावा यह दक्षिण पूर्व एशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।
  • IUCN की कम चिंतनीय Least Concern सूची में शामिल है।  

घड़ियाल

गैवियलिस गैंगेटिकस (Gavialis  \gangeticus)

  • घड़ियाल ज़्यादातर हिमालयी नदियों में पाया जाता है। घड़ियाल अपेक्षाकृत हानिरहित माना जाता है जो मुख्यत: अपने भोजन के लिये मत्स्य प्रजातियों पर निर्भर रहता है। 
  • आनुवांशिक रूप से मगरमच्छ की अन्य प्रजातियों की तुलना में कमज़ोर होता है।
  • IUCN की ‘गंभीर रूप से संकटापन्न’ (Critically Endangered) सूची में शामिल है।  

भारत में मानव-मगरमच्छ संघर्ष के प्रमुख हॉटस्पॉट:

  • गुजरात में वडोदरा:
    • वडोदरा नगर को ‘मानव-बहुल परिदृश्य’ में मगरमच्छों के एक द्वीप के रूप में वर्णित किया जाता है।
    • शहर के मध्य से बहने वाली विश्वामित्री नदी में 200 से अधिक मगर पाए जाते हैं।
    • मानसून के समय इस क्षेत्र में मगरमच्छों के घरों में घुसने की सूचना प्राय: मीडिया में व्याप्त रहती हैं।
    • वडोदरा की नगरपालिका सीमा में मगरों की संख्या जहाँ वर्ष 1950 में 250 थी वह वर्ष 2020 में बढ़कर 289 हो गई है।  
  • राजस्थान में कोटा:
    • मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में चंबल नदी पर अवस्थित है। जहाँ मगर तथा घड़ियाल दोनों की बहुसंख्यक रूप में पाए जाते हैं।
    • वर्ष 2012 में जवाहर सागर अभयारण्य, चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य, दर्रा अभयारण्य के कुछ भागों को मिलाकर मुकुंदरा हिल्स को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • चंबल नदी पर बनाए गए कोटा बैराज के आसपास शहरीकरण एवं अतिक्रमण तथा रेत खनन के कारण मानव-मगरमच्छ संघर्ष में वृद्धि हुई है।
  • ओडिशा में भीतरकनिका:
    • वर्ष 1975 में  भीतरकनिका में केवल 96 मगरमच्छ थे। परंतु प्रजनन और पालन कार्यक्रम (Breeding and Rearing Programme) शुरू करने के बाद वर्ष 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 1,757 से अधिक हो गई हैं। 
    • भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के परिधीय क्षेत्र में छह पंचायतें स्थित हैं। जब क्षेत्र में उच्च ज्वार की स्थिति होती है तो अनेक समुद्री मत्स्य प्रजातियाँ यहाँ राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश कर जाती हैं। जिन्हें एकत्रित करने के लिये लोग मगरमच्छ के संरक्षित जल निकायों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मानव-मगरमच्छ संघर्ष देखने को मिलता है। 

उड़ीसा में घड़ियाल:

  • उड़ीसा में भी घड़ियाल पाए जाते हैं परंतु यहाँ पर घड़ियाल चंबल नदी के समान प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं अपितु मुख्यत: प्रजनन केंद्रों में इनका संरक्षण किया जाता है।  
  • वर्ष 2019 में उड़ीसा अंगुल ज़िले में सतकोसिया घाट पर केवल 14 घड़ियाल तथा भुवनेश्वर के पास नंदनकानन चिड़ियाघर में कम-से-कम 90 घड़ियाल हैं। 

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह:

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मानव-मगरमच्छ संघर्ष देखने को मिलता है। वन विभाग द्वारा अंडमान एवं  निकोबार द्वीप समूह में कुछ वर्ष पहले कुलिंग (Culling) की सिफारिश की गई थी।
    • कुलिंग वांछित या अवांछित विशेषताओं के अनुसार एक समूह से जीवों को अलग करने की प्रक्रिया है।

निष्कर्ष:

  • सामान्यत: मानव-मगरमच्छ संघर्ष तब देखने को मिलता है जन मानव मगरमच्छ के प्राकृतिक आवास क्षेत्र में प्रवेश करते हैं या उनके उनके आवास क्षेत्र को क्षति पहुँचाते हैं, अत: इनकी कुलिंग के स्थान पर प्राकृतिक आवास में ही इसके संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिये। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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