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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अल्ट्रावायलेट–चमकीले तारे

  • 23 Jan 2021
  • 12 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खगोलविदों ने मिल्की वे गैलेक्सी (आकाशगंगा) में बड़े पैमाने पर जटिल गोलाकार क्लस्टर (NGC 2808) के अन्वेषण के दौरान उसमें अल्ट्रा वायलेट (Ultra Violet- UV) चमकीले तारों को देखा।

  •  खगोलविदों द्वारा इस कार्य को भारत के पहले मल्टी-वेवलेंथ स्पेस सैटेलाइट  (Multi-Wavelength Space Satellite) एस्ट्रोसैट (AstroSat) की सहायता से किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

डेटा: 

  • वैज्ञानिकों ने अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप ( एस्ट्रोसैट पटल से ) के डेटा को अन्य अंतरिक्ष मिशनों जैसे-हबल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) और गैया टेलीस्कोप (Gaia Telescope) के साथ-साथ ज़मीन आधारित ऑप्टिकल पर्यवेक्षण से प्राप्त डेटा के साथ मिलाकर प्राप्त किया है।
    • हबल स्पेस टेलीस्कोप: HST या हबल एक स्पेस टेलीस्कोप है जिसे वर्ष 1990 में पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित किया गया था जो अभी भी कार्यरत है। यह अब तक की सबसे बड़ी अंतरिक्ष दूरबीनों में से एक है तथा बहुमुखी उद्देश्यों के लिये प्रयोग की जाती है ।
    • गैया यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की एक अंतरिक्ष वेधशाला है, जिसे वर्ष 2013 में स्थापित किया गया था तथा वर्ष 2022 तक इसके संचालित होने की उम्मीद है। इस अंतरिक्ष वेधशाला को अभूतपूर्व सटीकता के साथ सितारों की स्थिति, दूरी और गति को मापने के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। 

खोज से प्राप्त परिणाम: 

  • लगभग 34 अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों का गोलाकार क्लस्टर पाया गया है। अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों में से एक सूर्य से लगभग 3000 गुना अधिक चमकीला है जिसकी सतह का तापमान लगभग 100,000 केल्विन है।
  • गर्म अल्ट्रावायलेट- चमकीले तारों को वैज्ञानिकों ने अपेक्षाकृत शीतल लाल विशाल (Relatively Cooler Red Giant) और मुख्य-अनुक्रम वाले तारों (Main-Sequence Stars) के रूप में अलग किया।
  • अधिकतर तारे जिन्हें क्षैतिज शाखा तारे (horizontal Branch Stars) कहा जाता है तथा जिन पर शायद ही कोई बाहरी आवरण/परत होती है, सौरमंडल में विकसित अवस्था में पाए गए। इस प्रकार वे अपने जीवन के अंतिम प्रमुख चरण, जिसे अनंतस्पर्शी विशाल चरण (Asymptotic Giant Phase) कहा जाता है, को छोड़ देने के लिये बाध्य होते हैं जो सीधे सफेद वामन (white dwarfs) में परिवर्तित हो जाते हैं।
    • क्षैतिज शाखा (HB) तारे के विकास का एक चरण है जो शीघ्र ही तारे की लाल वामन शाखा (Red Giant Branch) में परिवर्तित हो जाती है।

महत्त्व:

  • तारों के गुण: प्राप्त निष्कर्षों से इन तारों के गुणधर्मों जैसे-उनकी सतह का तापमान, प्रकाश और किरणों के निर्धारण में मदद मिलेगी।
  • तारकीय विकास में सहायक: वर्तमान में उत्कृष्ट प्रयोगशालाएँ विद्यमान हैं जहाँ खगोलविद् इस बात को समझ सकते हैं कि किस प्रकार तारों में उनके जन्म और मृत्यु के मध्य विभिन्न चरणों विकसित होते हैं।
    • तारे की मृत्यु: अभी तक यह बात पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि तारों का जीवन चक्र किस प्रकार समाप्त होता है क्योंकि उनमें से कई का पता इनके तेज़ी से विकसित होने वाले चरणों में नहीं लग पता है। अत: तारे की मृत्यु के कारणों का पता लगाने की दिशा में यह अध्ययन महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • अल्ट्रा वायलेट विकिरण: अल्ट्रा वायलेट विकिरण को चमकीले सितारों की पुरानी तारकीय प्रणालियों से प्राप्त होने वाले पराबैंगनी विकिरण का कारण माना जा सकता है।

NGC 2808 के बारे में:

  • NGC 2808  तारा समूह कैरिना (constellation Carina) एक गोलाकार क्लस्टर है जो आकाशगंगा में स्थित है तथा हमारी आकाशगंगा के सबसे विशाल तारा समूहों में से एक है। इसमें लाखों सितारे विद्यमान हैं।
  •  इस क्लस्टर में तारे की कम-से-कम पांँच पीढ़िया विद्यमान हैं। 

तारकीय विकास:

  • निहारिका/नेबुला:
    • नेबुला अंतरिक्ष में धूल और गैस (ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम) का एक बादल है ।
    • नेबुला सितारों की जन्मस्थली है।
  • मुख्य-अनुक्रम वाले तारे:
    • मुख्य अनुक्रम वाले तारे (Main Sequence Stars) वे हैं जिनका निर्माण धूल और गैस के परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण केंद्र में हाइड्रोजन परमाणुओं के हीलियम परमाणु के साथ संलयन के कारण होता है।
    • ब्रह्मांड के अधिकांश अर्थात् लगभग 90% तारे मुख्य अनुक्रम तारे हैं। सूर्य भी एक मुख्य अनुक्रम तारा है।
    • अपने विकास क्रम की अंतिम अवस्था में सूर्य के समान एक विशाल तारा रक्त दानव (Red Giant) में परिवर्तित हो जाता है तथा नेबुला अपनी बाहरी परतों की नाभिकीय ऊर्जा को खोकर अंत में यह एक श्वेत वामन (White Dwarf) में बदल जाता है।
  • लाल वामन :
    • कमज़ोर/क्षीण (जिनकी चमक सूर्य की चमक से 1/1000 कम होती है ) मुख्य अनुक्रम तारों को लाल वामन कहा जाता है।
  • प्रॉक्सिमा सेंचुरी (Proxima Centauri) जो कि सूर्य का सबसे निकटतम तारा है, एक लाल वामन है।

रक्त दानव:

  • रक्त दानव का  व्यास  सूर्य की तुलना में 10 से 100 गुना अधिक होता है।
  • ये अत्यधिक चमकीले होते हैं, हालाँकि उनकी सतह का तापमान सूर्य की तुलना में कम होता है।
  • रक्त दानव का विकास तारकीय विकास क्रम के अंत में होता है जिसमें तारे के केंद्र में हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है।
  • एक विशाल आकार वाले रक्त दानव को सामान्यत:  रेड महावामन (Red Supergiant) कहा जाता है।

निहारिका:

  • निहारिका (Nebula) गैस और धूल की एक बाह्य परत होती हैजो  एक तारे को रक्त दानव (Red Giant) से श्वेत वामन  (White Dwarf) में परिवर्तित करने पर लुप्त हो जाती है।

श्वेत वामन :

  • श्वेत वामन (White Dwarf)  तारे के विकास क्रम का अंतिम चरण होता है जो बहुत छोटा और गर्म होता है।
  • श्वेत वामन सामान्य तारों के अवशेष हैं, इसमें उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से समाप्त हो जाती है।
  • श्वेत वामन गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण बहुत उच्च घनत्व का विकृत (Degenerate) पदार्थ उत्सर्जित करता है ।

नोवा:

  • नोवा (Nova) श्वेत वामन तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने के बाद उसमें होने वाला एक तीव्र विस्फोट है। 
  • इस विस्फोट में अनियंत्रित गति से नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) की प्रक्रिया होती है जिस कारण तारे की चमक में अस्थायी रूप से वृद्धि होती है।
  • सुपरनोवा के विपरीत तारा विस्फोट के बाद अपनी पूर्व अवस्था में वापस लौट आता है।

सुपरनोवा:

  • सामान्य शब्दों में सुपरनोवा (Supernova) का अर्थ अंतरिक्ष में किसी भयंकर और चमकीले विस्फोट से है। खगोलविदों के अनुसार, जब एक सितारा अपने जीवन काल के अंतिम चरण में होता है तो वह एक भयंकर विस्फोट के साथ समाप्त हो जाता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं।

न्यूट्रॉन तारे (Neutron Star), सुपरनोवा घटना के बाद एक तारे के मृत अवशेष होते हैं जो लगभग पूरी तरह से न्यूट्रॉन से बने होते हैं।

Neutron-Star

एस्ट्रोसैट

  • एस्‍ट्रोसैट (AstroSat) भारत की बहु-तरंगदैर्ध्‍य दूरबीन (India’s Multi-Wavelength Space Telescope) है।
  • लॉन्च: इसे ISRO द्वारा वर्ष 2015 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (श्रीहरिकोटा) से PSLV द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • यह भारत का पहला समर्पित खगोल विज्ञान मिशन है। इस मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
  • न्यूट्रॉन तारे और ब्लैक होल युक्त द्वि-आधारी स्टार सिस्टम में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना।
    • न्यूट्रॉन तारे का चुंबकीय क्षेत्र का अनुमान लगाना।
    • हमारी आकाशगंगा के बाहर स्थित तारों के उद्भव क्षेत्रों और तारा प्रणाली में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना।
    • आकाश में नए अल्पावधि उज्ज्वल एक्स-रे स्रोतों का पता लगाना।
    • पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड के सीमित क्षेत्र का सर्वेक्षण करना।
  • एस्ट्रोसैट मिशन की अनूठी विशेषताओं में से एक यह भी है कि यह उपग्रह विभिन्न खगोलीय वस्तुओं का एक ही समय में बहु-तरंगदैर्ध्य (Multi-Wavelength) अवलोकन करने में सक्षम है।
  • ASTROSAT के लिये ग्राउंड कमांड और कंट्रोल सेंटर बंगलूरू में स्थित इसरो दूरमिति अनुवर्तन तथा आदेश नेटवर्क (ISTRAC) में स्थित है।
  • इसने भारत को उन देशों की श्रेणी में ला दिया है जिनके पास मल्टी वेवलेंथ स्पेस वेधशालाएँ हैं।

एस्ट्रोसैट मिशन का न्यूनतम जीवनकाल 5 वर्ष होने की उम्मीद थी।

स्रोत: पी.आई.बी.

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