संतुलित उर्वरण
प्रिलिम्स के लिये:पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजनाएँ, यूरिया की खपत, उर्वरक सब्सिडी मेन्स के लिये:संतुलित उर्वरण तथा उससे जुड़े लाभों के विषय में, संतुलित उर्वरण से संबंधित चुनौतियाँ एवं सरकारी पहल। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
लोकसभा चुनाव 2024 के पश्चात्, संतुलित उर्वरण को शासन द्वारा एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य के रूप में देखने की संभावना है।
- अत्यधिक उर्वरक खपत पर अंकुश लगाने के प्रयासों के बावजूद, भारत में यूरिया की खपत लगातार बढ़ी है, जो वर्ष 2023-24 में 35.8 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर (वर्ष 2013-14 से 16.9% अधिक) तक पहुँच गई है।
संतुलित उर्वरण क्या है?
- परिचय:
- संतुलित उर्वरण कृषि की एक प्रक्रिया है जो पौधों के स्वस्थ विकास एवं वृद्धि के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों की उचित मात्रा प्रदान करने पर आधारित है।
- आवश्यक पोषक तत्त्व:
- प्राथमिक पोषक तत्त्व: नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P) और पोटेशियम (K) बड़ी मात्रा में आवश्यक सबसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व हैं। ये तत्त्व पौधों की संरचना, ऊर्जा उत्पादन एवं समग्र स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- द्वितीयक पोषक तत्त्व: सल्फर (S), कैल्शियम (CA) और मैग्नीशियम (MG) भी आवश्यक हैं परंतु इन तत्त्वों की आवश्यकता, प्राथमिक पोषक तत्त्वों की तुलना में कम मात्रा में है।
- सूक्ष्म पोषक तत्त्व: आयरन (Fe), जिंक (Zn), कॉपर (Cu), मैंगनीज़ (Mn), बोरान (B) और मोलिब्डेनम (Mo) जैसे अवशेष तत्त्वों की बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है परंतु ये तत्त्व पौधों के कुछ विशिष्ट कार्यों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- सही अनुपात:
- संतुलित उर्वरण कई कारकों के आधार पर इन आवश्यक पोषक तत्त्वों की सही अनुपात में आपूर्ति करने पर ज़ोर देता है:
- मृदा का प्रकार: विभिन्न प्रकार की मृदाओं में अंतर्निहित पोषक तत्त्वों का स्तर अलग-अलग होता है। मृदा का परीक्षण करने से उसके पोषक तत्त्वों का पता चलता है, तथा उर्वरक चयन और प्रयोग की मात्रा का विवरण प्राप्त होता है।
- फसल की आवश्यकताएँ: विभिन्न फसलों को विकास के विभिन्न चरणों में विशिष्ट पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये, फलियों को नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिये अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता हो सकती है, जबकि फलों को बेहतर गुणवत्ता के लिये अतिरिक्त पोटेशियम की आवश्यकता हो सकती है।
- संतुलित उर्वरण कई कारकों के आधार पर इन आवश्यक पोषक तत्त्वों की सही अनुपात में आपूर्ति करने पर ज़ोर देता है:
संतुलित उर्वरण से होने वाले लाभ क्या हैं?
- बेहतर फसल पैदावार:
- पोषक तत्त्वों का उचित मिश्रण प्रदान करने से, पौधे अपनी पूरी क्षमता से विकसित हो सकते हैं, जिससे अधिक पैदावार होती है।
- उन्नत फसल गुणवत्ता:
- संतुलित पोषक तत्त्व कीटों और बीमारियों के प्रति बेहतर प्रतिरोध के साथ पौधों के स्वास्थ्य में योगदान देते हैं, जिससे अंततः फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देना:
- एकल-पोषक उर्वरक का अत्यधिक उपयोग मृदा के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकता है। एक मज़बूत मृदा पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने और दीर्घकालिक स्थिरता को प्रोत्साहित करने के लिये, संतुलित उर्वरक सहायक है।
- पर्यावरणीय प्रभाव में कमी:
- अत्यधिक उर्वरक का उपयोग मृदा में उपस्थित पोषक तत्त्वों को नष्ट कर सकता है, जिससे जल निकाय प्रदूषित हो सकते हैं। संतुलित उपयोग इस जोखिम को कम करता है।
- लागत प्रभावशीलता:
- संतुलित निषेचन संसाधनों के उपयोग को अधिकतम कर सकता है तथा अतिनिषेचन और पोषक तत्त्वों की कमी से बचाकर कुल उर्वरक लागत को कम कर सकता है।
संतुलित निषेचन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- मूल्य विकृतियाँ:
- यूरिया, जो कि एक एकल-पोषक नाइट्रोजन उर्वरक है, को सरकार द्वारा अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है, जिससे यह फॉस्फोरस युक्त DAP (डायमोनियम फॉस्फेट) और पोटेशियम युक्त MOP (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) जैसे अन्य उर्वरकों की तुलना में सस्ता हो जाता है।
- यह यूरिया के अत्यधिक उपयोग को प्रोत्साहित करता है और अन्य महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की उपेक्षा करता है।
- विकृत उर्वरक मूल्य निर्धारण पोटाश के उपयोग में बाधा डालता है:
- उर्वरक की कीमतें तय करने की मौजूदा प्रणाली बाज़ार की ताकतों पर विचार करने में विफल रहती है, जिससे असंतुलन पैदा होता है। उदाहरण के लिये, पोटैशियम के प्रमुख स्रोत, म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) की कीमत इसे सीधे उपयोग करने वाले किसानों और इसे मिश्रण में शामिल करने वाली उर्वरक कंपनियों दोनों के लिये बहुत अधिक है।
- यह MOP के उपयोग को हतोत्साहित करता है, जिससे भारतीय खेतों में व्यापक रूप से पोटेशियम की कमी हो जाती है।
- मृदा परीक्षण अवसंरचना:
- भारत के ग्रामीण और दूरदराज़ के इलाकों में पर्याप्त मृदा परीक्षण सुविधाओं की कमी के कारण किसानों के लिये संतुलित उर्वरक तक पहुँच पाना मुश्किल हो जाता है।
- परीक्षणों के साथ भी, किसानों और विस्तार एजेंटों को परिणामों का मूल्यांकन करने तथा उन्हें उर्वरकों के लिये सिफारिशों में बदलने के लिये उचित रूप से प्रशिक्षित एवं सुसज्जित करने की आवश्यकता है।
- किसान जागरूकता और शिक्षाः
- अधिकांश किसानों में मृदा परीक्षण और अपनी फसलों की विशिष्ट आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता की कमी है।
- पारंपरिक प्रथाएँ और सीमित ज्ञान ज़्यादातर संतुलित निषेचन तकनीकों को अपनाने में बाधा डालते हैं।
- यह सटीक उर्वरक अनुप्रयोग तकनीकों की कमी के कारण होता है जिसके परिणामस्वरूप सूक्ष्म पोषक तत्त्वों पर सीमित ध्यान देने के साथ-साथ अधिक निषेचन और कम निषेचन जैसे मुद्दे सम्मिलित होते हैं।
- पिछली योजनाओं की सीमित सफलताः
- संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये बनाई गई पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना विफल रही क्योंकि इसमें यूरिया मूल्य निर्धारण पर ध्यान नहीं दिया गया। NBS के बावजूद यूरिया की खपत में वृद्धि जारी रही।
संतुलित उर्वरक सुनिश्चित करने के लिये कौन-सी सरकारी पहलें की गई हैं?
- पोषक तत्त्व-आधारित सब्सिडी (NBS) योजना
- धरती माता की पुनर्स्थापना, जागरूकता, पोषण और सुधार के लिये प्रधानमंत्री कार्यक्रम (PRANAM)
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) योजना
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- तरल नैनो यूरिया और नैनो DAP
संतुलित उर्वरकता प्राप्त करने के लिये भारत द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- एकीकृत पोषक तत्त्व प्रबंधन (INM):
- यह केवल रासायनिक उर्वरकों या कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहने की सीमाओं की पहचान करता है।
- यह एक समग्र दृष्टिकोण का समर्थन करता है जिसमें सम्मिलित हैं:
- रासायनिक उर्वरक: NPK जैसे आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
- कार्बनिक पदार्थ: मृदा स्वास्थ्य, जल प्रतिधारण और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार करता है। इसमें खाद (गाय का गोबर), कंपोस्ट और फसल अवशेष (ढैंचा फसल) शामिल हैं।
- फसल चक्र: विविध फसलों का उत्पादन करने से कीट और रोग चक्र को तोड़ने में सहायता मिलती है तथा पोषक तत्त्वों के उपयोग का बेहतर उपयोग होता है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उर्वरकों को अनुकूलित करना:
- अनुकूलित उर्वरक बहु-पोषक तत्त्व वाहक होते हैं जिनमें फसल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये मैक्रो और सूक्ष्म पोषक तत्त्व होते हैं जो साइट-विशिष्ट होते हैं तथा वैज्ञानिक फसल मॉडल द्वारा मान्य होते हैं।
- यह फसलों की विविध पोषक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये संतुलित पोषक उर्वरक दृष्टिकोण पर आधारित उभरती हुई अवधारणा है।
- इज़रायल में, कुछ उल्लेखनीय कदम उठाए जा रहे हैं:
- किसानों के लिये उपयोगकर्त्ता के अनुकूल मानचित्र और उर्वरक आवेदन अनुशंसाओं के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली मृदा मानचित्र तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के साथ इसका एकीकरण करना।
- उन्नत प्रयोगशाला विश्लेषण मूल NPK परीक्षणों के अतिरिक्त अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्व, कार्बनिक पदार्थ सामग्री व कटियन विनिमय क्षमता (Cation Exchange Capacity- CEC) के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं।
- मृदा परीक्षण के अतिरिक्त अन्य उन्नत दृष्टिकोण:
- मृदा परीक्षण फसल प्रतिक्रिया (STCR):
- विशिष्ट मृदा के प्रकार, फसल की विविधता और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर उर्वरक की अनुशंसाएँ तय करता है।
- यह फसल द्वारा पोषक तत्त्वों के ग्रहण और मृदा में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता पर विचार करता है।
- निदान और अनुशंसा एकीकरण प्रणाली (DRIS):
- पोषक तत्त्वों के अनुपात (जैसे,N/P, N/K) के लिये पौधे के ऊतकों का विश्लेषण करता है और उच्च पैदावार के लिये स्थापित इष्टतम अनुपातों से उनकी तुलना करता है।
- फिर टॉप ड्रेसिंग के माध्यम से कमी वाले पोषक तत्त्वों की पूर्ति की जाती है। (लंबी अवधि वाली फसलों के लिये अधिक उपयुक्त)।
- मृदा परीक्षण फसल प्रतिक्रिया (STCR):
- अन्य चरणः
- किसानों को शिक्षा और प्रशिक्षण: इन दृष्टिकोणों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये किसानों को ज्ञान और कौशल से समर्थ बनाना।
- बेहतर बाज़ार पहुँच: उचित मूल्य पर अनुकूलित उर्वरकों और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- नीति और सब्सिडी में सुधार: लक्षित सब्सिडी के माध्यम से संतुलित उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना।
- निरंतर अनुसंधान और विकास: नई प्रौद्योगिकियों और फसल-विशिष्ट पोषक तत्त्व प्रबंधन समाधानों का विकास करना।
निष्कर्ष
- संतुलित उर्वरकीकरण भारतीय कृषि में कई चुनौतियों का एक सम्मोहक समाधान प्रदान करता है। पूर्ण रूप से जैविक कृषि की ओर तेज़ी से बदलाव के लिये श्रीलंका का हालिया प्रयास इसी तरह के बड़े बदलावों पर विचार कर रहे भारतीय नीति निर्माताओं के लिये एक चेतावनी के रूप में काम करता है।
- फसलों को पोषक तत्त्वों का सही मिश्रण प्रदान करके, यह न केवल पैदावार में वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार सुनिश्चित करता है बल्कि मृदा के स्वास्थ्य को भी बढ़ाता है तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है।
- हालाँकि बड़े पैमाने पर संतुलित उर्वरक प्राप्त करने के लिये विषम उर्वरक मूल्य निर्धारण नीतियों, सीमित मृदा परीक्षण बुनियादी ढाँचे और किसानों के बीच ज्ञान की कमी जैसी बाधाओं पर काबू पाना आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. संतुलित उर्वरकीकरण और उससे संबंधित लाभों के बारे में चर्चा कीजिये। साथ ही, इससे संबंधित प्रमुख चुनौतियों और सरकारी पहलों का भी उल्लेख कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में पिछले पाँच वर्षों में खरीफ की फसलों की खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न1. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? लघु और सीमांत कृषकों के लिये, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है?(2017) प्रश्न2. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न3. राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आर्थिक सहायता व्यवस्था का उसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013) |
वैश्विक टीकाकरण पर WHO की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:टीकाकरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप, टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (EPI), राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण, सतत् विकास लक्ष्य (SDG), यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (UIP), मिशन इंद्रधनुष, न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (PCV), अधिकृत सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता। मेन्स के लिये:वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम, भारतीय टीकाकरण कार्यक्रमों का महत्त्व। |
स्रोत: विश्व स्वास्थ्य संगठन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक टीकाकरण के प्रयासों ने पिछले 50 वर्षों में अनुमानित 154 मिलियन लोगों की जान बचाई है।
- रिपोर्ट मई 2024 में होने वाले टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (Expanded Programme on Immunization- EPI) की 50वीं वर्षगाँठ से पूर्व विश्व टीकाकरण सप्ताह के अवसर पर जारी की गई थी।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- रिपोर्ट से पता चलता है कि शिशुओं के स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करने के लिये टीकाकरण का योगदान किसी भी स्वास्थ्य योजना से अधिक है।
- खसरा टीकाकरण:
- वर्ष 1974 के बाद से बचाए गए अनुमानित 15 करोड़ 40 लाख लोगों में से अनुमानित 9 करोड़ 40 लाख लोगों को खसरा का टीका लगाया गया था।
- अभी भी लगभग 3 करोड़ 30 लाख बच्चे ऐसे हैं, जो वर्ष 2022 में खसरा का टीका (खुराक) लेने से चूक गए।
- वर्तमान में खसरे के टीके की पहली खुराक की वैश्विक कवरेज दर 83% और दूसरी खुराक की कवरेज दर मात्र 74% है, जिससे विश्व में बहुत अधिक संख्या में इसके प्रसार में योगदान हुआ है।
- समुदायों को संक्रमण से बचाने के लिये खसरा के टीके की 2 खुराक के द्वारा 95% या उससे अधिक का कवरेज आवश्यक है।
- यह संख्या टीकाकरण द्वारा बचाए गए कुल जीवन का 60% है और भविष्य में होने वाली मृत्यु को रोकने में टीका संभवतः शीर्ष योगदानकर्त्ता बना रहेगा।
- वर्ष 1974 के बाद से बचाए गए अनुमानित 15 करोड़ 40 लाख लोगों में से अनुमानित 9 करोड़ 40 लाख लोगों को खसरा का टीका लगाया गया था।
- DPT वैक्सीन के लिये कवरेज:
- EPI के शुरू होने से पूर्व, विश्व स्तर पर 5% से कम शिशुओं की नियमित टीकाकरण तक पहुँच थी।
- आज कुल 84% शिशुओं को डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (Diphtheria, Tetanus and Pertussis - DTP) से टीके की 3 खुराक के साथ सुरक्षित किया जाता है।
- DTP मनुष्यों में तीन संक्रामक रोगों (डिप्थीरिया, पर्टुसिस या काली खांँसी और टेटनस) से बचाने के लिये दिये गए संयुक्त टीकों के एक वर्ग को संदर्भित करता है।
- शिशु मृत्यु में कमी:
- डिप्थीरिया, हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप B, हेपेटाइटिस B, जापानी एन्सेफलाइटिस, खसरा, मेनिनजाइटिस A, पर्टुसिस, न्यूमोकोकल रोग, पोलियो, रोटावायरस, रूबेला, टेटनस, तपेदिक और पीत ज्वर जैसी 14 बीमारियों से वाली शिशु मृत्यु में 40% की कमी।
- विगत 50 वर्षों में अफ्रीकी क्षेत्र में शिशु 50% से अधिक की कमी आई है।
- रोग का उन्मूलन और रोकथाम:
- वर्ष 1988 के बाद से वाइल्ड पोलियोवायरस के मामलों में 99% से अधिक की कमी आई है। वाइल्ड पोलियोवायरस के 3 उपभेदों (टाइप-1, टाइप-2 और टाइप-3) में से, वाइल्ड पोलियोवायरस टाइप-2 का उन्मूलन वर्ष 1999 में कर दिया गया था तथा वाइल्ड पोलियोवायरस टाइप-3 का उन्मूलन वर्ष 2020 में कर दिया गया।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया था।
- मलेरिया और सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ टीके इन बीमारियों की रोकथाम में अत्यधिक प्रभावी रहे हैं।
- संपूर्ण स्वास्थ्य में लाभ:
- टीकाकरण के माध्यम से बचाए गए प्रत्येक जीवन के लिये औसतन 66 वर्षों तक पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त हुआ।
- पाँच दशकों में कुल 10.2 बिलियन पूर्ण स्वास्थ्य वर्ष प्राप्त हुए।
भारत में टीकाकरण की स्थिति क्या है?
- परिचय:
- भारत का टीकाकरण कार्यक्रम, UPI (यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम), दुनिया के सबसे व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है।
- UIP के तहत भारत में वार्षिक 30 मिलियन से अधिक गर्भवती महिलाओं तथा 27 मिलियन बच्चों का टीकाकरण किया जाता है।
- एक बच्चे को पूरी तरह से प्रतिरक्षित माना जाता है यदि उसे जीवन के पहले वर्ष के भीतर राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार सभी आवश्यक टीके लगा दिये जाते हैं।
- स्थिति:
- भारत को 2014 में पोलियो मुक्त प्रमाणित किया गया था और 2015 में मातृ एवं शिशुओं से संबंधित टेटनस को समाप्त कर दिया गया था।
- देश भर में नए टीके उपलब्ध कराए गए हैं, जैसे रोटावायरस वैक्सीन (RVV), न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (PCV), और खसरा-रूबेला।
- UNICEF के अनुसार, भारत में केवल 65% बच्चों का उनके जीवन के प्रथम वर्ष के दौरान पूर्ण टीकाकरण होता है।
- इसके अलावा, नवीनतम WUENIC (WHO-UNICEF एस्टीमेट्स नेशनल इम्यूनाइज़ेशन कवरेज) अनुमानों के अनुसार, भारत ने 2021 में 2.7 मिलियन से 2022 में शून्य-खुराक (ZD) बच्चों की संख्या को सफलतापूर्वक घटाकर 1.1 मिलियन कर दिया है, जिसमें जीवन रक्षक टीकाकरण वाले अतिरिक्त 1.6 मिलियन बच्चों को शामिल किया गया है।
- शून्य-खुराक उन बच्चों को संदर्भित करती है जो कोई नियमित टीकाकरण प्राप्त करने में विफल रहे।
- ZD के 63% बच्चे पाँच राज्यों बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं।
- मिशन इंद्रधनुष (MI) को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW) द्वारा 2014 में UIP के तहत सभी गैर-टीकाकृत और आंशिक रूप से टीकाकृत बच्चों का टीकाकरण करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या में कमी लाने के लिये तीव्र मिशन इंद्रधनुष (IMI) शुरू किया गया है।
- अन्य सहायक उपाय:
- चुनौतियाँ:
- पहुँच की कमीः
- 2022 में विश्व में 14.3 मिलियन शिशुओं DPT का पहला टीका नहीं लगा, जो वैश्विक स्तर पर टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की कमी की ओर इशारा करता है।
- 20.5 मिलियन बच्चों में से लगभग 60% बच्चे, जिन्हें या तो टीका नहीं लगाया गया है या पूरी खुराक नहीं मिली है, भारत सहित 10 देशों में निवास करते हैं।
- संक्रामक रोगों से मृत्यु:
- यह बाल मृत्युदर और रुग्णता की वृद्धि में योगदान देता है।
- लगभग दस लाख बच्चों की अपनी पाँच वर्ष की आयु सीमा को प्राप्त करने से पूर्व ही मृत्यु हो जाती है।
- स्तनपान, टीकाकरण और उपचार तक पहुँच ऐसे कुछ कार्य हैं जो इनमें से कई मौतों से बचने में सहायता कर सकते हैं।
- पूर्ण कवरेज लक्ष्य अभी भी प्राप्त करना बाकी है: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5, 2019-21 के अनुसार, देश में टीकाकरण का पूर्ण कवरेज 76.1% है।
- इसका मतलब है कि हर चार में से एक बच्चा आवश्यक टीकों से वंचित है।
- पहुँच की कमीः
यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम वर्ष 1978 में शुरू किया गया था। वर्ष 1985 में जब इसका दायरा शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़ा, तो इसका नाम बदलकर सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम कर दिया गया।
- वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के बाद से, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) हमेशा इसका एक अभिन्न अंग रहा है।
- परिचय:
- UIP के तहत, 12 वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण मुफ्त प्रदान किया जाता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर 9 बीमारियों के विरुद्ध: डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक का गंभीर रूप, हेपेटाइटिस B और हेमोफिलस इंफ्लूएज़ा टाइप B के कारण होने वाला मेनिन्जाइटिस तथा निमोनिया।
- उप-राष्ट्रीय स्तर पर 3 बीमारियों के विरुद्ध: रोटावायरस डायरिया, न्यूमोकोकल निमोनिया और जापानी इंसेफेलाइटिस।
- UIP के तहत, 12 वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण मुफ्त प्रदान किया जाता है।
टीकाकरण से संबंधित प्रमुख वैश्विक पहल क्या हैं?
- टीकाकरण एजेंडा 2030
- विश्व टीकाकरण सप्ताह
- टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (EPI):
- इसकी स्थापना वर्ष 1974 में विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा की गई थी।
- EPI का मूल लक्ष्य सभी बच्चों को डिप्थीरिया, खसरा, पर्टुसिस, पोलियो, टेटनस, तपेदिक और चेचक, एकमात्र मानव रोग जो अब तक समाप्त हो चुका था, के खिलाफ टीकाकरण करना था।
- इसमें 13 बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण के लिये सार्वभौमिक सिफारिशें और अन्य 17 बीमारियों के लिये संदर्भ-विशिष्ट सिफारिशें शामिल हैं, जो बच्चों से आगे किशोरों एवं वयस्कों तक टीकाकरण की पहुँच का विस्तार करती हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में स्वास्थ्य देखभाल के लिये टीकाकरण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। साथ ही, आबादी का सार्वभौमिक टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए उपायों पर भी चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ‘भारत सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016) (a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का प्रतिरक्षण उत्तर: (a) प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. क्या महिला स्वयं सहायता समूहों के माइक्रोफाइनेंसिंग के माध्यम से लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है? उदाहरण सहित समझाइये। (2021) |
हिमालय में हिमानी झीलों का विस्तार
प्रीलिम्स के लिये:हिमनद झील के फटने से बाढ़, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र नदी, भारतीय हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, हिमस्खलन मेन्स के लिये:हिमालय में हिमानी झीलों के विस्तार के लिये ज़िम्मेदार कारक, GLOF और जोखिम को कम करने के उपाय, महत्त्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा उपग्रह निगरानी डेटा ने हिमालयी क्षेत्र में वर्ष 1984 और 2023 के बीच हिमनद झीलों में एक बड़ा विस्तार दिखाया है, जिसने निचले क्षेत्रों के लिये एक संकट जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी है।
हिमालय के ग्लेशियरों के विस्तार पर ISRO की क्या राय है?
- मुख्य निष्कर्ष:
- 2016-17 के दौरान चिह्नित की गई 10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 झीलों में से 676 हिमनद झीलों का 1984 से उल्लेखनीय रूप से विस्तार हुआ है।
- इनमें से 130 झीलें भारत में स्थित हैं, जिनमें क्रमशः 65, 7 और 58 झीलें सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में स्थित हैं।
- इन झीलों में से 601 झीलें (89%) दोगुने से अधिक तक विस्तारित हुई हैं, जिनमे से 10 झीलें 1.5 से 2 गुना और 65 झीलें 1.5 गुना तक बढ़ी हैं।
- उन्नयन-आधारित विश्लेषण से पता चलता है कि 314 झीलें 4,000 से 5,000 मीटर की सीमा में स्थित हैं और 296 झीलें 5,000 मीटर की ऊँचाई से ऊपर हैं।
- भारत के हिमाचल प्रदेश में 4,068 मीटर की ऊँचाई पर स्थित घेपांग घाटी ग्लेशियर झील (सिंधु नदी बेसिन) में दीर्घकालिक परिवर्तन से पता चलता है कि 1989 और 2022 के बीच इसके आकार में 178% की वृद्धि, 36.49 से 101.30 हेक्टेयर, हुई है।
- 2016-17 के दौरान चिह्नित की गई 10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 झीलों में से 676 हिमनद झीलों का 1984 से उल्लेखनीय रूप से विस्तार हुआ है।
- हिमालय में हिमानी झीलों के प्रकार और संख्या:
- हिमोढ़ -निर्मित (307): इनका निर्माण तब होता है जब पिघले हुए ग्लेशियरों द्वारा छोड़े गये चट्टानों और मलबे (moraine) के ढेर घाटियों को अवरुद्ध कर देते हैं तथा पिघली हुई बर्फ के मार्ग को अवरुद्ध कर प्राकृतिक बाँध का निर्माण करते हैं।
- हिम-निर्मित (8): इनका निर्माण तब होता है जब ग्लेशियर स्वयं एक बाँध के रूप में कार्य करता है, जिससे पिघले जल का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
- क्षरण निर्मित (265): ऐसी हिमानी झीलें ग्लेशियरों द्वारा बनाये गये गड्ढों मेंअवस्थित होती हैं।
- अन्य ग्लेशियर झीलें: (96)
हिमालय में हिमानी झीलों के विस्तार के क्या कारण हैं?
- ग्लोबल वार्मिंग: हिमालय में तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियरों का पिघलन बढ़ रहा है। यह पिघला हुआ जल मौज़ूदा हिमनद झीलों में समा जाता है, जिससे झीलों का आकार बढ़ जाता है।
- ग्लेशियरों का पिघलना: ग्लेशियर पिघलने से न केवल झीलों का जलस्तर बढ़ता है बल्कि भूमि सतहें भी रिक्त हो जाती हैं। इन रिक्त स्थानों में नई हिमनदी झीलों के निर्माण होता है।
- कमज़ोर हिमोढ़: ग्लेशियर, चट्टान और मलबे से प्राकृतिक बाँध का निर्माण करते हैं, जिन्हें हिमोढ़ (मोरेन) कहा जाता है।
- जैसे-जैसे ग्लेशियर सिकुड़ते हैं, ये हिमोढ़ कमज़ोर हो जाते हैं तथा इनके ढहने की आशंका अधिक हो जाती है। हिमोढ़ के अचानक ढहने से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GOLF) शुरू हो सकता है, जो एक विनाशकारी घटना है जहाँ बड़ी मात्रा में जल नीचे की ओर प्रवाहित होता है।
- वर्षा में वृद्धि: क्षेत्र में वर्षा में वृद्धि तथा हिमपात के कारण वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन, हिमानी झीलों में अधिक जल आपूर्ति करके उनके विस्तार में वृद्धि कर सकता है।
- तुषार भूमि (पर्माफ्रॉस्ट) पिघलना: पर्माफ्रॉस्ट, वह मृदा है जो साल भर जमी रहती है, तथा जल निकासी में प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती है।
- बढ़ते तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट पिघल कर गड्ढे में परिवर्तित हो जाता है, जिसमें पिघला हुआ जल एकत्रित होकर हिमनद झीलों के विस्तार में वृद्धि करता है।
- मानवीय गतिविधियाँ: बुनियादी ढाँचे का विकास, जैसे कि सड़कें और जलविद्युत परियोजनाएँ, हिमानी झीलों के प्राकृतिक जल निकासी पैटर्न को परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे उनका विस्तार हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, खनन और वनों की कटाई जैसी गतिविधियाँ अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन को तीव्र करके हिमनद झील के विस्तार में योगदान कर सकती हैं।
भारत में GLOF के हालिया मामले:
- जून 2013 में उत्तराखंड में असामान्य मात्रा में वर्षा हुई थी, जिससे चोराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया और मंदाकिनी नदी में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई।
- अगस्त 2014 में लद्दाख के ‘ग्या’ गाँव में हिमानी झील के फटने से आई बाढ़ ने तबाही मचाई।
- फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में तीव्र वर्षा के कारण अचानक बाढ़ जैसी स्थिति देखी गई, जिसके बारे में अनुमान है कि यह GLOFs के कारण हुई थी।
- अक्तूबर 2023 में राज्य के उत्तर-पश्चिम में 17,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक हिमनद झील, साउथ लोनाक झील, लगातार वर्षा के परिणामस्वरूप टूट गई।
आगे की राह
- जलवायु परिवर्तन शमन: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके हिमनद के पिघलने और हिम के खिसकने के मूल कारण को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।
- इसमें नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये नीतियों को लागू करने जैसे उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने के वैश्विक प्रयास शामिल हैं।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: जोखिमपूर्ण स्थिति में निवास करने वाले समुदायों को समय पर अलर्ट करने के लिये हिमनद झीलों, मौसम पूर्वानुमान और संचार नेटवर्क की निगरानी के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना एवं उसे कार्यान्वित करना।
- इंजीनियरिंग उपाय: हिमनद झीलों को स्थिर और प्रबंधित करने के लिये इंजीनियरिंग उपायों को लागू करने से GLOFs के जोखिम को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- इसमें जलस्तर को नियंत्रित करने और जल के अनियंत्रित बहाव को रोकने के लिये स्पिलवे, जल निकासी चैनल तथा बाँध जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल हो सकता है।
- प्राकृतिक बुनियादी ढाँचा: आर्द्रभूमि और जंगलों जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल एवं संरक्षित करने से जल प्रवाह को विनियमित करने में सहयता मिल सकती है। ये प्राकृतिक बुनियादी ढाँचे के समाधान आवास संरक्षण तथा कार्बन पृथक्करण जैसे अतिरिक्त लाभ भी प्रदान कर सकते हैं।
- सामुदायिक सहभागिता और क्षमता निर्माण: प्रभावी हिमनदी झील प्रबंधन के लिये जोखिम मूल्यांकन, योजना और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों को शामिल करना आवश्यक है।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया एवं निकासी प्रक्रियाओं में प्रशिक्षण सहित आपदा संबंधी तैयारियों के लिये क्षमताएँ विकसित करना, समुदायों को GLOF और अन्य खतरों से बेहतर ढंग से निपटने में सहायता कर सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: हिमालय में कई हिमनद झीलों की सीमा पार प्रकृति को देखते हुए, प्रभावी प्रबंधन और जोखिम में कमी के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।
- ग्लेशियर से पोषित नदी घाटियों को साझा करने वाले देशों के बीच सहयोगात्मक प्रयास सामान्य चुनौतियों से निपटने के लिये सूचना साझा करने, संयुक्त रूप से निगरानी करने और समन्वित कार्रवाई करने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. हिमालय क्षेत्र में हिमानी झीलों के विस्तार के क्या कारण हैं और इसके निहितार्थ तथा शमन रणनीतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत (नवीन मोड़दार पर्वत) के साक्ष्य कहे जा सकते हैं? (a) केवल 1 और 2. उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. बाँधों की विफलता हमेशा प्रलयकारी होती है, विशेष रूप से नीचे की ओर, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान होता है। बाँधों की विफलता के विभिन्न कारणों का विश्लेषण कीजिये। बड़े बाँधों की विफलताओं के दो उदाहरण दीजिये। (2023) प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइए। (2013) |
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशासनिक स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये केंद्र की याचिका खारिज़ की
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, स्पेक्ट्रम, दूरसंचार अधिनियम, 2023, राष्ट्रपति संदर्भ, अनुच्छेद 143, केंद्रीय जाँच ब्यूरो मेन्स के लिये:दूरसंचार अधिनियम, 2023, सरकारी नीतियाँ तथा हस्तक्षेप, सूचना प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लिये गए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस दुर्लभ प्राकृतिक स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिये खुली और पारदर्शी नीलामी के सिद्धांत की पुष्टि करते हुए, स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन की अनुमति देने की केंद्र की याचिका पर विचार करने से मना कर दिया है।
- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम में रेडियो फ्रीक्वेंसी की एक शृंखला शामिल होती है, जिसका उपयोग वायरलेस उपकरणों द्वारा संचार के लिये किया जाता है, जिसमें कॉल करना और सोशल मीडिया तक पहुँच शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की अर्ज़ी क्यों खारिज़ की?
- रजिस्ट्रार ने स्पष्टीकरण के लिये आवेदन को गलत पाया, रजिस्ट्रार ने सर्वोच्च न्यायालय नियम, 2013 के आदेश XV नियम 5 को लागू किया, जो किसी याचिका को प्राप्त करने से इनकार करने की अनुमति देता है यदि इसमें उचित कारण नहीं है, तुच्छ है या निंदनीय मामला है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि निजी खिलाड़ियों को स्पेक्ट्रम आवंटन खुली और पारदर्शी नीलामी के माध्यम से होना चाहिये, जैसा कि 12 वर्ष पूर्व ऐतिहासिक 2जी स्पेक्ट्रम मामले के संदर्भ में फैसला लिया गया, जिसे अक्सर "2जी स्पेक्ट्रम घोटाला" के रूप में जाना जाता हैI
- स्पेक्ट्रम आवंटन एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है और "प्रशासनिक आवंटन" की अनुमति देने से एयरवेव वितरण हेतु ऑपरेटरों का चयन करने का समग्र प्रभार सरकार के पास होगा, यह कदम निष्पक्षता तथा पारदर्शिता के सिद्धांतों के विपरीत माना जाता है।
स्पेक्ट्रम आवंटन के संबंध में कानूनी ढाँचा क्या है?
- दूरसंचार अधिनियम, 2023:
- यह सरकार को अधिनियम की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध संस्थाओं के लिये नीलामी के अलावा प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से दूरसंचार के लिये स्पेक्ट्रम आवंटित करने का अधिकार देता है।
- इन संगठनों में कानून प्रवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के साथ-साथ भारती एयरटेल समर्थित वनवेब तथा स्पेसएक्स शामिल हैं, जो उपग्रह-आधारित वैश्विक मोबाइल व्यक्तिगत संचार प्रदान करते हैं।
- सरकार स्पेक्ट्रम का वह हिस्सा भी सौंप सकती है जो पहले से ही एक या एक से अधिक अतिरिक्त संस्थाओं को सौंपा जा चुका है, जिन्हें द्वितीयक असाइनमेंट के रूप में जाना जाता है और यहाँ तक कि उन कार्यों को समाप्त भी कर सकती है जहाँ स्पेक्ट्रम या उसका एक हिस्सा अपर्याप्त कारणों से कम उपयोग में रह गया है।
- यह सरकार को अधिनियम की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध संस्थाओं के लिये नीलामी के अलावा प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से दूरसंचार के लिये स्पेक्ट्रम आवंटित करने का अधिकार देता है।
2G स्पेक्ट्रम घोटाला क्या है?
- 2G स्पेक्ट्रम घोटाला:
- 2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला वर्ष 2008 में हुआ था, तब सरकार ने कथित तौर पर विशिष्ट निजी दूरसंचार ऑपरेटरों को पहले आओ-पहले पाओ के आधार (FCFS) पर 122 लाइसेंस बेचे थे।
- वर्ष 2009 में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को उन दावों की जाँच करने का निर्देश दिया कि लाइसेंसों के आवंटन में अनियमितताएँ थीं, जिसके बाद CBI ने दूरसंचार विभाग (DoT) के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की।
- वर्ष 2011 में CBI आरोप लगाया था कि आवंटन प्रक्रिया में विसंगतियों के कारण सरकारी अधिकोष को 30,984 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसलाः
- फरवरी 2012 में उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए 122 दूरसंचार लाइसेंसों को रद्द कर दिया, जिन्हें FCFS के आधार पर आवंटित किया गया था, कि इस विधि का दुरुपयोग होने की संभावना थी।
- न्यायालय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये स्पेक्ट्रम जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिये नीलामी की "गैर-भेदभावपूर्ण पद्धति" अपनाई जानी चाहिये।
- फरवरी 2012 में उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए 122 दूरसंचार लाइसेंसों को रद्द कर दिया, जिन्हें FCFS के आधार पर आवंटित किया गया था, कि इस विधि का दुरुपयोग होने की संभावना थी।
- केंद्र की वर्तमान याचिका:
- उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक 2G स्पेक्ट्रम घोटाले के फैसले के एक दशक से भी अधिक समय बाद, केंद्र सरकार ने स्पेक्ट्रम के एक "निश्चित वर्ग" को प्रतिस्पर्धी नीलामी के बजाय प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से आवंटित करने के लिये एक आवेदन दायर किया है।
- केंद्र ने बताया है कि स्पेक्ट्रम का आवंटन न केवल वाणिज्यिक दूरसंचार सेवाओं के लिये बल्कि सुरक्षा, सुरक्षा एवं आपदा प्रबंधन जैसे सार्वजनिक हित के कार्यों के निर्वहन के लिये भी आवश्यक है।
- सरकार ने तर्क दिया है कि आपूर्ति या अंतरिक्ष संचार की तुलना में मांग कम होने पर प्रशासनिक आवंटन की आवश्यकता होती है, जहाँ स्पेक्ट्रम को कई अभिकर्त्ताओं द्वारा साझा करने के लिये यह अधिक बेहतर होगा।
स्पेक्ट्रम क्या है?
- स्पेक्ट्रम वह रेडियो फ्रीक्वेंसी है जिसका उपयोग वायरलेस सिग्नल के लिये किया जाता है, जिससे उपयोगकर्ता कॉल तथा सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं।
- स्पेक्ट्रम विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का हिस्सा है, जिसमें वह आवृत्तियाँ भी सम्मिलित हैं जिनका लोग दैनिक रूप से उपयोग करते हैं।
- स्पेक्ट्रम को तीन बैंड में विभाजित किया जा सकता है: निम्न (2G, 3G एवं 4G सेवाओं सहित मोबाइल संचार के लिये उपयोग किया जाता है), मध्य (4G LTE सेवाओं और कुछ 5G परिनियोजन के लिये उपयोग किया जाता है), तथा उच्च-बैंड (मुख्य रूप से 5G एवं उससे आगे की सेवाओं लिये उपयोग किया जाता है), प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएँ हैं जो विभिन्न प्रकार के संचार के लिये आवश्यक हैं।
प्राकृतिक संसाधन आवंटन के संबंध में 2012 का राष्ट्रपति का निर्देश क्या था?
- केंद्र सरकार राष्ट्रपति के निर्देश का 2012 के फैसले के संबंध में संविधान पीठ की टिप्पणियों का हवाला देती है।
- संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय, निर्धारित नीलामी पद्धति स्पेक्ट्रम के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक संसाधनों के हस्तांतरण के लिये "संवैधानिक आदेश" नहीं है।
- इसमें कहा गया है कि निर्णय में "शायद" शब्द से ज्ञात होता है कि स्पेक्ट्रम नीलामी का विचार सभी प्राकृतिक संसाधनों के लिये एक व्यापक सिद्धांत के रूप में नहीं था तथा अन्य तरीकों पर भी विचार किया जा सकता है।
- हालाँकि पीठ ने सावधान किया कि स्पेक्ट्रम का आवंटन 2G मामले में घोषित कानून के अनुसार केवल नीलामी के माध्यम से किया जाना चाहिये।
राष्ट्रपति के संदर्भ में
- यह भारतीय संविधान में एक प्रक्रिया है, जो राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के उन मामलों पर सलाह देने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध करने की अनुमति देती है, जिन्हें राष्ट्रपति ने सार्वजनिक महत्त्व का माना हो।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के किसी भी मामले को उसकी राय के लिये सर्वोच्च न्यायालय में भेजने का अधिकार देता है।
- यह उन मुद्दों के संबंध में किया जा सकता है जो उत्पन्न हुए हैं या उत्पन्न होने की संभावना है, और सार्वजनिक महत्त्व के हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय इस संदर्भ में उठाए गए किसी भी प्रश्न का उत्तर देने से इनकार कर सकता है, और इस मुद्दे पर न्यायालय द्वारा पहले ही निर्णय नहीं लिया गया हो।
वैश्विक स्तर पर स्पेक्ट्रम आवंटन के तरीके क्या हैं?
- न्यूज़ीलैंड: वर्ष 1989 में स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये नीलामी का उपयोग शुरू किया गया, जो एक ऐसी पद्धति है जिसे उभरते बाज़ारों सहित कई अन्य देशों द्वारा अपनाया गया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: 1980 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका ने लॉटरी के माध्यम से सेलुलर लाइसेंस आवंटित करने का प्रयोग किया, जिसने सट्टा आवेदकों को आकर्षित किया और इसके परिणामस्वरूप सरकार को अत्यधिक आर्थिक नुकसान हुआ।
- लॉटरी पद्धति, जिसे शुरू में प्रशासनिक प्रक्रिया की तुलना में तेज़ और किफायती माना जाता था, में कमियाँ होती हैं।
- यह सट्टेबाज़ी के प्रति संवेदनशील होता है और लाइसेंसधारियों की तकनीकी क्षमता का विश्वसनीयता से आकलन नहीं कर सकता है।
- वर्ष 1993 में अमेरिका ने नए मोबाइल संचार लाइसेंस देने के लिये नीलामी की शुरुआत की।
- इस परिवर्तन का वैश्विक रूप से प्रभाव पड़ा, जिससे विश्वभर में रेडियो स्पेक्ट्रम की बिक्री 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई।
- लॉटरी पद्धति, जिसे शुरू में प्रशासनिक प्रक्रिया की तुलना में तेज़ और किफायती माना जाता था, में कमियाँ होती हैं।
- कनाडा और यूरोपीय संघ: ये क्षेत्र अक्सर एक प्रशासनिक प्रक्रिया का उपयोग करते हैं, जिसे "सौंदर्य प्रतियोगिता (Beauty Contest)" के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ मानदंड सरकार द्वारा निर्धारित किये जाते हैं और प्रस्तावों का मूल्यांकन एक विशेषज्ञ समिति द्वारा किया जाता है।
- यह विधि सरकारी योजनाओं और उद्देश्यों के साथ निर्णयों को संरेखित करते हुए लचीलापन एवं सरकारी नियंत्रण प्रदान करती है। हालाँकि, इसमें समय लगता है, लेकिन यह सरकारी प्राथमिकताओं का पालन सुनिश्चित करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह निर्णय संसाधन आवंटन में निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों को कैसे कायम रखता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. दृश्य प्रकाश संचार (VLC) तकनीकी के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं ? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये : (a) केवल 1,2 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न. पृथ्वी के वायुमंडल में आयनमंडल कहलाने वाली परत रेडियो संचार को सुसाध्य बनाती है। क्यों? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |