सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ
प्रिलिम्स के लिये:भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 145(3), अनुच्छेद 143। मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ। |
चर्चा में क्यों?
भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने आश्वासन दिया कि सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष भर में कम से कम एक संविधान पीठ कार्य करेगी।
सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ:
- परिचय:
- संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ होती है जिसमें पाँच या उससे अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- हालाँकि इन पीठों का गठन नियमित तौर पर नहीं होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अधिकांश मामलों की सुनवाई और निर्णय दो न्यायाधीशों (जिन्हें डिवीजन बेंच कहा जाता है) और कभी-कभी तीन सदस्यों की पीठ द्वारा किया जाता है।
- संवैधानिक पीठ गठन हेतु अपरिहार्य परिस्थितियाँ:
- अनुच्छेद 145(3):
- अनुच्छेद 145(3) में प्रावधान है कि "इस संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले के निर्णयन के उद्देश्य से शामिल होने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होगी”।
- अनुच्छेद 143:
- जब राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत कानून के तहत सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मांगता है।
- प्रावधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति के पास सर्वोच्च न्यायालय में प्रश्नों को संबोधित करने की शक्ति है, जिसे वह लोक कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय, इन संदर्भ में राष्ट्रपति को सलाह देता है। हालाँकि, शीर्ष न्यायालय द्वारा इस तरह की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है, न ही यह 'सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून' है।
- परस्पर विरोधी निर्णयन:
- जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या तीन से अधिक जजों की पीठ ने कानून के एक ही बिंदु पर परस्पर विरोधी निर्णय दिये हों, तो एक बड़ी पीठ द्वारा कानून की निश्चित समझ और व्याख्या की आवश्यकता होती है।
- अतः संविधान पीठों को जब उपर्युक्त शर्तें मौजूद होती हैं तो तदर्थ आधार पर स्थापित किया जाता है और।
- जब सर्वोच्च न्यायालय के दो या तीन से अधिक जजों की पीठ ने कानून के एक ही बिंदु पर परस्पर विरोधी निर्णय दिये हों, तो एक बड़ी पीठ द्वारा कानून की निश्चित समझ और व्याख्या की आवश्यकता होती है।
- अनुच्छेद 145(3):
CJI द्वारा स्थायी संवैधानिक पीठ की मांग करने के प्रमुख कारण:
- वर्तमान में संविधान पीठों की स्थापना तदर्थ आधार पर (विशेष उद्देश्य) के रूप में की जाती है विशेषकर जब इनकी आवश्यकता होती है।
- इसका उद्देश्य न्यायाधीशों को उन मामलों की पहचान करने, सुनने और राहत प्रदान करने में मदद करना है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है और सर्वोच्च न्यायालय रजिस्ट्री की लंबी-चौड़ी प्रक्रियाओं के कारण न्यायाधीशों के समक्ष सुनवाई के लिये अपने मामलों को सूचीबद्ध करने में देरी से बचने के लिये वादियों और वकीलों की मदद करना है।
- यह इसलिये भी ज़रूरी है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले वर्ष 2017 के स्तर 55,000 से बढ़कर वर्तमान में 71, 000 से अधिक हो गई है।
- यह इसके बावजूद है कि अगस्त 2019 में न्यायालय की स्वीकृत न्यायिक शक्ति को बढ़ाकर 34 न्यायाधीशों तक कर दिया गया था।
आगे की राह
- जब तक संवैधानिक बेंच के फैसले स्पष्ट उदाहरण स्थापित नहीं करते हैं और बड़ी संख्या में मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई के बिना लिखित आदेशों के माध्यम से खारिज कर दिया जाता है तो संवैधानिक बेंच के क्षेत्राधिकार के दीर्घकालिक लाभ सीमित हो सकते हैं।
प्रश्न. हमने ब्रिटिश मॉडल के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को अपनाया, लेकिन हमारा मॉडल उस मॉडल से कैसे अलग है?(2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: c व्याख्या:
प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017) |