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शासन व्यवस्था
संविधान का अनुच्छेद 299: सरकारी अनुबंध
प्रिलिम्स के लिये:संविधान का अनुच्छेद 299, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, सरकारी अनुबंध मेन्स के लिये:सार्वजनिक निधि की सुरक्षा में अनुच्छेद 299 की भूमिका, सरकारी अनुबंधों के संबंध में अनुच्छेद 299 के प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति के नाम पर किये गए सरकारी अनुबंधों के कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट किया।
- ग्लॉक एशिया-पैसिफिक लिमिटेड और केंद्र से संबंधित एक मामले में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि भारत के राष्ट्रपति के नाम पर किये गए अनुबंध वैधानिक विधि से प्रतिरक्षा प्रदान नहीं कर सकते हैं।
- यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 299 की व्याख्या और सरकारी अनुबंधों के लिये इसके निहितार्थ पर प्रकाश डालता है।
सरकारी अनुबंध:
- परिचय:
- सरकारी अनुबंध सरकार द्वारा निर्माण, प्रबंधन, रखरखाव, मरम्मत, जनशक्ति आपूर्ति, आईटी से संबंधित परियोजनाओं आदि जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये किये गए अनुबंध हैं।
- सरकारी अनुबंधों में एक पार्टी के रूप में केंद्र सरकार या राज्य सरकार या एक सरकारी निकाय और दूसरी पार्टी के रूप में एक निजी व्यक्ति या संस्था शामिल होती है।
- सरकारी अनुबंधों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 299 द्वारा निर्धारित कुछ औपचारिकताओं और सुरक्षा नियमों का अनुपालन करना होता है।
- सरकारी अनुबंध सार्वजनिक जाँच और जवाबदेही के अधीन हैं और निष्पक्षता, पारदर्शिता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं गैर-भेदभाव के सिद्धांतों द्वारा शासित हैं।
- सरकारी अनुबंधों के लिये आवश्यकताएँ:
- अनुबंध को राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा व्यक्त किया जाना चाहिये।
- इसे लिखित रूप में निष्पादित किया जाना चाहिये।
- अनुबंधों का निष्पादन व्यक्तियों और राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित या अधिकृत तरीके से किया जाना चाहिये।
संविधान का अनुच्छेद 299:
- परिचय:
- संविधान का अनुच्छेद 299 भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से किये गए अनुबंधों के प्रकार और स्वरूप से संबंधित है।
- उत्पत्ति:
- स्वतंत्रता-पूर्व की अवधि में भी सरकार अनुबंध करती रही।
- 1947 के क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट ने अनुच्छेद 299 को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट ने निर्दिष्ट किया कि क्राउन द्वारा किये गए अनुबंध के लिये न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
- उद्देश्य:
- अनुच्छेद 299 संघ या राज्य की कार्यकारी शक्ति के प्रयोग में किये गए अनुबंधों को अभिव्यक्त और निष्पादित करने के तरीके को दर्शाता है।
- इसका उद्देश्य सार्वजनिक निधि की सुरक्षा और अनधिकृत या अवैध अनुबंधों को रोकने के लिये एक विशिष्ट प्रक्रिया स्थापित करना है।
- अभिव्यक्ति और निष्पादन:
- अनुच्छेद 299 (1) के अनुसार, अनुबंधों को लिखित रूप में व्यक्त किया जाना चाहिये और उनकी ओर से राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विधिवत अधिकृत व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रपति/राज्यपाल की प्रतिरक्षा:
- जबकि अनुच्छेद 299 (2) कहता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को अनुबंधों के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, यह अनुबंध के कानूनी प्रावधानों से सरकार को प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है।
- भारत में सरकार (संघ या राज्यों) पर उसके अधिकारियों द्वारा किये गए अपकृत्यों (नागरिक गलतियों) के लिये मुकदमा चलाया जा सकता है।
- जबकि अनुच्छेद 299 (2) कहता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को अनुबंधों के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, यह अनुबंध के कानूनी प्रावधानों से सरकार को प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- मामले की पृष्ठभूमि:
- ग्लॉक एशिया-पैसिफिक लिमिटेड (Glock Asia-Pacific Limited) ने निविदा संबंधी विवाद में मध्यस्थ की नियुक्ति के संबंध में केंद्र के खिलाफ एक आवेदन दायर किया था।
- सरकार ने एक निविदा शर्त का हवाला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी जिसमें कानून मंत्रालय के एक अधिकारी को मध्यस्थ के रूप में कार्य करने की आवश्यकता थी।
- ग्लॉक एशिया-पैसिफिक लिमिटेड (Glock Asia-Pacific Limited) ने निविदा संबंधी विवाद में मध्यस्थ की नियुक्ति के संबंध में केंद्र के खिलाफ एक आवेदन दायर किया था।
- न्यायालय की विवेचना:
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता खंड एक सरकारी अधिकारी को मध्यस्थ के रूप में विवाद को हल करने की अनुमति देता है जो मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 12 (5) के साथ विरोधाभासी है।
- अनुच्छेद 299 की प्रासंगिकता:
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 299 संविदात्मक दायित्व को शासित करने वाले मौलिक कानूनों का समाधान नहीं करता है बल्कि यह केवल सरकार पर संविदात्मक दायित्व के साथ बाध्यता की औपचारिकताओं से संबंधित है।
अनुच्छेद 299 से संबंधित अन्य निर्णय:
- बिहार राज्य बनाम मजीद (1954):
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक सरकारी अनुबंध को भारतीय अनुबंध अधिनियम की आवश्यकताओं, जैसे कि प्रस्ताव, स्वीकृति और विचार के अलावा अनुच्छेद 299 के प्रावधानों का पालन करना होगा।
- केंद्र या राज्य सरकार का संविदात्मक दायित्व संविदा के सामान्य कानून के अधीन किसी भी व्यक्ति के समान है, जो अनुच्छेद 299 द्वारा विहित औपचारिकताओं के अधीन है।
- श्रीमती अलीकुट्टी पॉल बनाम केरल राज्य और अन्य (1995):
- कार्यकारी अभियंता ने एक पुल निर्माण अनुबंध के लिये एक टेंडर को स्वीकार कर लिया, लेकिन राज्यपाल के नाम पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण यह नहीं कहा जा सकता कि अनुबंध संविधान के अनुच्छेद 299 के तहत वैध है।
- यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 299 के औचित्य और दायरे की व्याख्या करता है तथा इस बात पर ज़ोर देता है कि इसके प्रावधान अनधिकृत अनुबंधों के खिलाफ सरकार की सुरक्षा के लिये बनाए गए हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल
प्रिलिम्स के लिये:सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल, ICAO, UNCCC, पेरिस समझौता, शुद्ध-शून्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, CORSIA मेन्स के लिये:सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल, इसका महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने वर्ष 2050 के लक्ष्य के साथ सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (Sustainable Aviation Fuel- SAF) के लिये वैश्विक जनादेश पर आपत्ति व्यक्त की है और कहा है कि यह "बहुत जल्दी (Too Early)" है।
- दक्षिण कोरिया में 41वीं अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने अंतर्राष्ट्रीय विमानन के लिये UNCCC पेरिस समझौते के समर्थन में वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के दीर्घकालिक वैश्विक आकांक्षात्मक लक्ष्य ( Long-Term Global Aspirational Goal- LTAG) को अपनाया।
SAF जनादेश पर भारत का रुख:
- भारत का मानना है कि प्रत्येक देश को अपनी राष्ट्रीय योजनाओं के अनुसार रणनीति विकसित करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- भारत ने विमानन क्षेत्र में यात्रियों की बढ़ती आकांक्षाओं को पूरा करने जैसे अन्य प्राथमिकताओं को संबोधित करते हुए अपने कार्बन नेट-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में ICAO से समर्थन मांगा है।
- LTAG की विचारधारा के साथ संरेखित करने के लिये वॉल्यूमेट्रिक शासनादेश लागू करने से पहले SAF उत्पादन, प्रमाणन और उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
- भारत वर्ष 2027 से ICAO की कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) और LTAG में भाग लेने का इरादा रखता है।
सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल:
- परिचय:
- इसे बायो-जेट फ्यूल भी कहा जाता है, इसका उत्पादन राष्ट्रीय स्तर पर विकसित तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है जिसमें खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधों के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
- ASTM इंटरनेशनल द्वारा ASTM D4054 प्रमाणीकरण के लिये आवश्यक मानकों को पूरा करने हेतु संस्थानों द्वारा उत्पादित इस ईंधन के नमूनों का संयुक्त राष्ट्र फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लीयरिंग हाउस में उच्च परीक्षण किया जा रहा है।
- ASTM प्रमाणन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी उत्पाद या सामग्री का परीक्षण तथा प्रासंगिक ASTM मानकों के खिलाफ मूल्यांकन किया जाता है। ASTM इंटरनेशनल उत्पादों और प्रक्रियाओं के लिये तकनीकी मानक विकसित करता है।
- ASTM मानकों का उपयोग उद्योग, सरकारों और अन्य संगठनों द्वारा उत्पादों तथा प्रक्रियाओं में गुणवत्ता, सुरक्षा एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है।
- उत्पादन के स्रोत:
- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) ने गैर-खाद्य और खाद्य तेलों के साथ-साथ कुकिंग ऑयल जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके ईंधन बनाया है।
- उन्होंने इसके लिये पाम स्टीयरिन, सैपियम ऑयल, पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट्स, शैवाल तेल, करंजा और जेट्रोफा सहित विभिन्न स्रोतों का उपयोग किया।
- भारत में SAF स्केलिंग का महत्त्व:
- भारत में SAF के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, वायु गुणवत्ता में सुधार, ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।
- यह विमानन उद्योग को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान हेतु किये जा रहे वैश्विक प्रयासों में मदद कर सकता है।
- विमानन के लिये जैव ईंधन को सामान्य जेट ईंधन के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है जो वायु प्रदूषण को कम करके भारत के शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।
SAF संबंधी चुनौतियाँ:
- उच्च लागत:
- SAF के लिये उत्पादन प्रक्रियाएँ (जैसे बायोमास या अपशिष्ट तेलों को ईंधन में बदलना) वर्तमान में अधिक महँगी हैं। इस लागत अंतर से एयरलाइंस के लिये SAF उत्पादन में निवेश करना और विशेष रूप से विमानन उद्योग की लाभांश-संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए उपयोग करना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- सीमित संसाधन उपलब्धता:
- SAF की पर्याप्त और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु विमानन उद्योग को एक सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है। हालाँकि मौजूदा बुनियादी ढाँचा अच्छी तरह से विकसित नहीं है, जो SAF उत्पादन को बढ़ाने और बाज़ार में इसकी उपलब्धता में बाधा डालता है।
- फीडस्टॉक की उपलब्धता:
- SAF का उत्पादन स्थायी फीडस्टॉक्स की उपलब्धता पर निर्भर करता है, जैसे कि कृषि अवशेष, शैवाल और अपशिष्ट तेल इत्यादि।
- हालाँकि इन फीडस्टॉक्स की सीमित उपलब्धता है तथा खाद्य एवं कृषि जैसे अन्य उद्योगों के साथ संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा है। खाद्य सुरक्षा और अन्य आवश्यक ज़रूरतों को सुनिश्चित करते हुए स्थायी फीडस्टॉक्स की मांग को संतुलित बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- प्रमाणन प्रक्रिया:
- SAF के संबंध में सख्त गुणवत्ता और स्थायी मानदंड हैं जो प्रमाणन प्रक्रिया को अधिक जटिल और दीर्घकालिक बना सकते हैं।
- विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों की कमी प्रमाणन प्रक्रिया को और जटिल बनाती है।
भारत की जलवायु प्रतिबद्धताएँ और वैश्विक प्रयास:
- भारत की नेट-ज़ीरो/शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धता:
- भारत ने वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने और वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को 45% से कम करने का संकल्प लिया है।
- इसके अतिरिक्त भारत ने विकसित देशों से जल्द-से-जल्द 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त प्रदान करने का आग्रह किया है क्योंकि इन महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भारत को विकसित देशों के समर्थन और संसाधनों की आवश्यकता है।
- अप्रैल 2023 में यूरोपीय संघ यूरोप में एयरलाइनों के लिये बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करने हेतु एक समझौते पर पहुँचा है जिसमें SAF के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता थी।
- यह समझौता अनिवार्य है क्योंकि यूरोपीय संघ के हवाई अड्डों पर वर्ष 2025 तक ईंधन की आपूर्ति का 2% SAF होगा जो वर्ष 2030 में 6%, वर्ष 2035 में 20% और वर्ष 2050 में 70% तक पहुँच जाएगा।
- अप्रैल 2023 में यूरोपीय संघ यूरोप में एयरलाइनों के लिये बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करने हेतु एक समझौते पर पहुँचा है जिसमें SAF के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता थी।
- भारतीय पहल:
- वैश्विक प्रयास:
- कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA)
- इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर
- सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट और SAF उत्पादन प्रोत्साहन
अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन:
- ICAO संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नौवहन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी।
- अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में आमतौर पर 'शिकागो कन्वेंशन' के रूप में हस्ताक्षर किये गए थे।
- इसने हवाई मार्ग से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले मूल सिद्धांतों की स्थापना की, और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्त्व किया।
- इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना और विकास को बढ़ावा देना है ताकि वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के सुरक्षित एवं व्यवस्थित विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
- भारत इसके 193 सदस्यों में शामिल है।
- इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।
आगे की राह
- वैश्विक SAF जनादेश पर भारत का रुख जलवायु परिवर्तन से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, साथ ही इसकी राष्ट्रीय योजनाओं और विशेष परिस्थितियों पर भी विचार करता है।
- भारत विमानन क्षेत्र में अन्य प्राथमिकताओं के साथ स्थिरता लक्ष्यों को संतुलित करने में ICAO से समर्थन चाहता है। जैसे-जैसे विश्व विमानन को कार्बन मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, हवाई यात्रा के लिये एक स्थायी भविष्य प्राप्त करने हेतु साझा आधार तलाशना और साथ मिलकर काम करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- एयरलाइंस, ईंधन उत्पादकों और अनुसंधान संस्थानों सहित हितधारकों के बीच सहयोग से अधिक एकीकृत एवं कुशल SAF आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
- SAF उत्पादन के लिये नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करने हेतु अनुसंधान में निवेश, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट एवं कृषि अपशिष्ट, फीडस्टॉक उपलब्धता बढ़ाने और अन्य उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को कम करने में मदद कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
वैश्विक दासता सूचकांक 2023
प्रिलिम्स के लिये:आधुनिक दासता, G20 राष्ट्र, आतंकवाद, 1976 का बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम, संविधान का अनुच्छेद 23 मेन्स के लिये:वैश्विक दासता सूचकांक 2023 के प्रमुख तथ्य, आधुनिक दासता के संबंध में भारत का रुख |
चर्चा में क्यों?
वॉक फ्री फाउंडेशन की एक नई रिपोर्ट- 'वैश्विक दासता सूचकांक (The Global Slavery Index) 2023’, वैश्विक स्तर पर आधुनिक दासता के बढ़ते प्रचलन पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी स्थितियों में रहने वाले लोगों की संख्या 50 मिलियन तक पहुँच गई है जिसमें पिछले पाँच वर्षों में 25% की व्यापक वृद्धि देखी गई है।
- रिपोर्ट उस महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है जो G20 देशों ने अपनी व्यापार गतिविधियों और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से इस संकट को बढ़ाने में निभाई है।
- भारत, चीन, रूस, इंडोनेशिया, तुर्किये और अमेरिका उन शीर्ष G20 देशों में शामिल हैं जहाँ सबसे अधिक संख्या में बंधुआ मज़दूर हैं।
आधुनिक दासता:
- आधुनिक दासता में शोषण के विभिन्न रूप शामिल हैं, जिनमें जबरन श्रम, जबरन विवाह, ऋण बंधन, व्यावसायिक यौन शोषण, मानव तस्करी, गुलामी जैसी प्रथाएँ और बच्चों की बिक्री एवं शोषण शामिल हैं।
- आधुनिक दासता के परिणाम व्यक्तियों, समुदायों और समाज के लिये विनाशकारी हैं।
- यह मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है, मानवीय गरिमा को कम करती है और सामाजिक एकजुटता को नष्ट करती है।
- यह आर्थिक विकास को भी बाधित करती है, असमानता को बनाए रखती है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। यह संघर्ष, आतंकवाद एवं संगठित अपराध को बढ़ावा देकर वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता के लिये खतरा पैदा करती है।
वैश्विक दासता सूचकांक 2023 की प्रमुख उपलब्धियाँ:
- प्रमुख बिंदु:
- वैश्विक दासता सूचकांक 2023 के अनुसार, अनुमानित 50 मिलियन लोग वर्ष 2021 में किसी भी दिन आधुनिक गुलामी/दासता के शिकार थे। वर्ष 2016 के बाद इस संख्या में 10 मिलियन लोगों की वृद्धि हुई है।
- इसका मतलब है कि विश्व में प्रत्येक 160 में से एक व्यक्ति आधुनिक दासता का शिकार है।
- यह प्रति 1,000 लोगों पर आधुनिक दासता के अनुमानित प्रसार के आधार पर 160 देशों की रैंकिंग करता है।
- अधिकतम प्रसार वाले देश उत्तर कोरिया (104.6), इरिट्रिया (93) तथा मॉरिटानिया (79) हैं जहाँ आधुनिक दासता व्यापक और प्राय: राज्य प्रायोजित है।
- सबसे कम प्रचलन वाले देश आइसलैंड (0.6), आयरलैंड (0.8) तथा न्यूज़ीलैंड (0.9) हैं जहाँ मज़बूत शासन और आधुनिक दासता के लिये प्रभावी प्रतिक्रियाएँ स्पष्ट हैं।
- आधुनिक दासता में एशिया और प्रशांत के लोगों की संख्या सबसे अधिक है (29.3 मिलियन)।
- भारत में 8 की व्यापकता है। (प्रति हज़ार लोगों पर आधुनिक दासता में रहने वाली जनसंख्या का अनुमानित अनुपात)।
- वैश्विक दासता सूचकांक 2023 के अनुसार, अनुमानित 50 मिलियन लोग वर्ष 2021 में किसी भी दिन आधुनिक गुलामी/दासता के शिकार थे। वर्ष 2016 के बाद इस संख्या में 10 मिलियन लोगों की वृद्धि हुई है।
- योगदान देने वाले कारक:
- रिपोर्ट प्रमुख कारकों के रूप में जलवायु परिवर्तन, सशस्त्र संघर्ष, कमज़ोर शासन और कोविड-19 महामारी जैसी स्वास्थ्य आपात स्थितियों की पहचान करती है जिन्होंने आधुनिक दासता में वृद्धि में योगदान दिया है।
- मुख्यत: कमज़ोर श्रमिक सुरक्षा वाले देशों से 468 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उत्पादों के आयात के कारण आधुनिक दासता में जीवन जी रहे लोगों में से आधी संख्या G20 देशों से है जिससे श्रमिकों की स्थिति खराब हो रही है।
- रिपोर्ट प्रमुख कारकों के रूप में जलवायु परिवर्तन, सशस्त्र संघर्ष, कमज़ोर शासन और कोविड-19 महामारी जैसी स्वास्थ्य आपात स्थितियों की पहचान करती है जिन्होंने आधुनिक दासता में वृद्धि में योगदान दिया है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की भूमिका:
- जटिल और अपारदर्शी वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ जबरन मज़दूरी से जुड़ी हुई हैं जिनमें कच्चे माल की प्राप्ति, निर्माण, पैकेजिंग और परिवहन शामिल हैं।
- रिपोर्ट उच्च जोखिम वाले उत्पादों जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, ताड़ का तेल और सौर पैनलों के आयात के साथ जबरन मज़दूरी, मानव तस्करी तथा बाल श्रम पर भी प्रकाश डालती है।
- इससे पता चलता है कि G20 देश जो कि सामूहिक रूप से प्रत्येक वर्ष अरबों डॉलर के कपड़ा और परिधान की वस्तुओं का आयात करते है, उसके उत्पादन में जबरन मज़दूरी का उपयोग किये जाने की संभावना है।
- मूल्यांकन पद्धति:
- राजनीतिक अस्थिरता, असमानता, बुनियादी ज़रूरतों की कमी, आपराधिक न्याय तंत्र, आंतरिक संघर्ष और विस्थापन जैसे कारकों ने एक राष्ट्र की आधुनिक गुलामी की भेद्यता को परिभाषित किया है।
- सूचकांक 2022 अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), वॉक फ्री और अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) द्वारा जारी डेटा का उपयोग करता है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि कैसे "आधुनिक गुलामी सादे लिबास में छिपी हुई है"।
- केस स्टडी: कपड़ा उद्योग:
- रिपोर्ट में कपड़ा उद्योग को जबरन मज़दूरी में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में रेखांकित किया गया है। यह जबरन और अवैतनिक काम, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा जोखिम, कम मज़दूरी, लाभ की कमी तथा ऋण बंधन की स्थितियों का वर्णन करता है।
- तमिलनाडु में सुमंगली योजना को कताई मिलों में महिलाओं और लड़कियों की शोषणकारी स्थितियों के उदाहरण के रूप में उल्लेखित किया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रयास और चुनौतियाँ:
- वर्ष 2030 तक आधुनिक गुलामी, जबरन मज़दूरी और मानव तस्करी को समाप्त करने के लक्ष्य को अपनाने के बावजूद रिपोर्ट में आधुनिक दासता में रहने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि तथा सरकारी कार्यवाही में प्रगति की कमी पर प्रकाश डाला गया है।
- रिपोर्ट 10 मिलियन लोगों की वृद्धि को जटिल संकटों के लिये ज़िम्मेदार ठहराती है, जिसमें सशस्त्र संघर्ष, पर्यावरणीय गिरावट, लोकतंत्र पर हमले, महिलाओं के अधिकारों का वैश्विक रोलबैक और कोविड-19 महामारी के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव शामिल हैं।
- वर्ष 2030 तक आधुनिक गुलामी, जबरन मज़दूरी और मानव तस्करी को समाप्त करने के लक्ष्य को अपनाने के बावजूद रिपोर्ट में आधुनिक दासता में रहने वाले लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि तथा सरकारी कार्यवाही में प्रगति की कमी पर प्रकाश डाला गया है।
- सिफारिश:
- वैश्विक दासता सूचकांक सरकारों और व्यवसायों को आधुनिक दासता से जुड़ी वस्तुओं तथा सेवाओं को आयात करने से रोकने के लिये मज़बूत उपायों और कानूनों को लागू करने की सिफारिश करता है।
- रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन स्थिरता योजनाओं में दासता-विरोधी उपायों को शामिल करने, बच्चों को शिक्षा प्रदान करने, बाल विवाह से संबंधित नियमों को कड़ा करने और मूल्य शृंखलाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने का भी सुझाव देती है।
आधुनिक दासता से संबंधित भारत का रुख:
- विधायी ढाँचा:
- भारत ने बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 (संविदा और प्रवासी श्रमिकों को शामिल करने हेतु 1985 में अधिनियम में संशोधन किया गया था) में बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिये केंद्रीय योजना सहित आधुनिक दासता से निपटने हेतु विधायी उपाय किये हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया है कि संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत न्यूनतम मज़दूरी भुगतान "जबरन श्रम" के समान है।
- चुनौतियाँ:
- देश में आधुनिक गुलामी के प्रभावी उन्मूलन में बाधा डालने वाले अधिनियमों के कार्यान्वयन की कमी, भ्रष्टाचार, कानूनी खामियाँ और राजनीति जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- उदाहरण के लिये ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में स्वदेशी समुदाय और मछली पकड़ने तथा कृषि में लगे लोग ऋण बंधन, मानव तस्करी एवं बड़े पैमाने पर विस्थापन के शिकार हुए हैं।
- देश में आधुनिक गुलामी के प्रभावी उन्मूलन में बाधा डालने वाले अधिनियमों के कार्यान्वयन की कमी, भ्रष्टाचार, कानूनी खामियाँ और राजनीति जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- समय की आवश्यकता:
- बहु आयामी दृष्टिकोण:
- सरकार को ऐसे कानून बनाने और लागू करने की आवश्यकता है जो सभी प्रकार की आधुनिक दासता को अपराध मानते हों एवं पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करते हों।
- व्यवसायों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनकी संचालन और आपूर्ति शृंखलाएँ बलात् श्रम और मानव तस्करी से मुक्त हों।
- नागरिक समाज को जागरूकता बढ़ाने, बदलाव को प्रोत्साहित करने और प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
- व्यक्तियों को इस मुद्दे पर स्वयं को शिक्षित/जागरूक करना चाहिये, उन्हें उन फर्मों से पारदर्शिता की मांग करनी चाहिये जिनके साथ वे व्यापार करते हैं या जिनमें निवेश करते हैं, साथ ही आधुनिक दासता के किसी भी संदिग्ध उदाहरण की सूचना देनी चाहिये।
- बंधुआ मज़दूरी पर सर्वेक्षण:
- आधुनिक दासता की स्थितियों में फँसे लोगों की पहचान करने और उनकी गणना करने की भी आवश्यकता है। भारत में बंधुआ मज़दूरी पर आखिरी राष्ट्रीय सर्वेक्षण 1990 के दशक के मध्य में किया गया था।
- बहु आयामी दृष्टिकोण:
नोट: वाक फ्री अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समूह है जो हमारे जीवन से आधुनिक दासता के सभी रूपों के उन्मूलन पर केंद्रित है।
स्रोत: द हिंदू
कृषि
भारत में मानसून 2023 से पहले खाद्य आपूर्ति की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण-पश्चिम मानसून, खाद्य मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मेन्स के लिये:भारत की खाद्य आपूर्ति पर मानसून के मौसम का प्रभाव, मुद्रास्फीति को प्रभावित करने में खाद्य आपूर्ति की भूमिका, खाद्य आपूर्ति से संबंधित जोखिमों की निगरानी और प्रबंधन में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
आगामी मानसून के मौसम को ध्यान में रखते हुए भारत में खाद्य आपूर्ति की स्थिति पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। हालाँकि वर्तमान में खाद्य आपूर्ति में कमी की समस्या नहीं है लेकिन मानसूनी वर्षा का स्थानिक और अस्थायी वितरण इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम (जून-सितंबर) के दौरान सामान्य वर्षा का अनुमान लगाया है।
- खाद्य आपूर्ति पर मानसून के प्रभावों का भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
खाद्य आपूर्ति की वर्तमान स्थिति:
- गेहूँ के स्टॉक की स्थिति संतोषजनक:
- वर्ष 2023 में मार्च और अप्रैल की शुरुआत में बिना मौसम वर्षा तथा तेज़ हवाओं के कारण खड़ी गेहूँ की फसल प्रभावित हुई है।
- हालाँकि उपज का नुकसान उतना गंभीर नहीं था जितना कि शुरू में आशंका थी।
- सरकारी एजेंसियों ने पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करते हुए चालू विपणन सीज़न के दौरान लगभग 26.2 मिलियन टन गेहूँ की खरीद की है।
- हालाँकि गेहूँ के भंडार में कमी देखी जा रही है लेकिन सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये गेहूँ और चावल का पर्याप्त संयुक्त भंडार है।
- वर्ष 2023 में मार्च और अप्रैल की शुरुआत में बिना मौसम वर्षा तथा तेज़ हवाओं के कारण खड़ी गेहूँ की फसल प्रभावित हुई है।
- दुग्ध आपूर्ति में राहत:
- फरवरी-मार्च 2023 में दूध की अभूतपूर्व कमी देखी गई जिस कारण कीमतें बढ़ गईं।
- हालाँकि तुलनात्मक रूप से हल्की गर्मी और अनुकूल प्री-मानसून बारिश के कारण स्थिति में सुधार हुआ है।
- हरे चारे की निरंतर आपूर्ति और उच्च दूध की कीमतों ने किसानों की आपूर्ति प्रतिक्रिया को गति दी है।
- फरवरी-मार्च 2023 में दूध की अभूतपूर्व कमी देखी गई जिस कारण कीमतें बढ़ गईं।
- चीनी उत्पादन का अनुमान:
- चालू वर्ष (अक्तूबर-सितंबर 2023) के लिये चीनी का भंडार 5.7 मिलियन टन होने का अनुमान है।
- भंडार का यह स्तर 2.5 महीनों की घरेलू आवश्यकता को पूरा कर सकता है जिसमें त्योहारी सीज़न की मांग भी शामिल है।
- प्रमुख चिंता का विषय गन्ने पर मानसून का प्रभाव है। गन्ना उत्पादन हेतु अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है।
- आगामी वर्ष में चीनी का उत्पादन सामान्य मानसून पर निर्भर है।
- खाद्य तेल और दालें:
वर्ष 2022-23 में भारत के कृषि क्षेत्र की वैश्विक स्थिति:
- दुग्ध उत्पादन:
- भारत विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक के रूप में अग्रणी है।
- गेहूँ उत्पादन:
- चीन के बाद भारत वैश्विक स्तर पर गेहूँ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- चावल उत्पादन:
- भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और निर्यात में नंबर एक पर है।
- चीनी उत्पादन:
- भारत चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में उभरा है, जबकि दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है।
- दलहन उत्पादन:
- भारत विश्व स्तर पर दलहन के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में है।
खाद्य आपूर्ति RBI की मौद्रिक नीति को कैसे प्रभावित करती है?
- खाद्य आपूर्ति और मुद्रास्फीति:
- खाद्य आपूर्ति खाद्य वस्तुओं की कीमतों को प्रभावित करती है, जो मुद्रास्फीति को मापने के लिये उपयोग किये जाने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में योगदान करती है।
- उच्च खाद्य मुद्रास्फीति सीधे हेडलाइन मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है, जो अर्थव्यवस्था में समग्र मूल्य परिवर्तनों को दर्शाती है।
- उच्च खाद्य मुद्रास्फीति उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम कर सकती है, जिससे अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो सकती है और आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है।
- पेय पदार्थों जैसे खाद्य पदार्थों पर निर्भर उद्योगों को उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के दौरान उत्पादन लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
- उच्च खाद्य मुद्रास्फीति सामाजिक और राजनीतिक अशांति पैदा कर सकती है, खासकर गरीबों में जो अपनी आय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आहार पर खर्च करते हैं।
- खाद्य आपूर्ति और मौद्रिक नीति:
- मौद्रिक नीति में मूल्य स्थिरता, विकास और वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिये मुद्रा तथा ऋण आपूर्ति को विनियमित करना शामिल है।
- रेपो दर में परिवर्तन कुल मांग और आपूर्ति को प्रभावित करता है, जो मुद्रास्फीति एवं विकास को प्रभावित करता है।
- रेपो दर को समायोजित करते समय केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति, विकास, राजकोषीय नीति, वैश्विक परिस्थितियों और वित्तीय स्थिरता जैसे विभिन्न कारकों पर विचार करता है।
- मुद्रास्फीति और विकास पर इसके प्रभाव के कारण केंद्रीय बैंक द्वारा खाद्य आपूर्ति की गहनता से निगरानी की जाती है।
- केंद्रीय बैंक हेडलाइन मुद्रास्फीति और कोर मुद्रास्फीति (खाद्य एवं ईंधन जैसी अस्थिर वस्तुओं को छोड़कर) दोनों पर खाद्य आपूर्ति के संकट का प्रभाव का आकलन करता है।
- अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में खाद्य मुद्रास्फीति के बने रहने का भी ध्यान में रखा जाता है।
- खाद्य आपूर्ति को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियाँ, जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices- MSP), खरीद, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) और बफर स्टॉक पर केंद्रीय बैंक द्वारा विचार किया जाता है।
- अपने आकलन के आधार पर केंद्रीय बैंक +/- 2% के टॉलरेंस बैंड के साथ 4% के अपने मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु रेपो दर को समायोजित कर सकता है।
खाद्य सुरक्षा से संबंधित सरकारी पहलें:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) 2013
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- तिलहन, दलहन, ताड़ के तेल और मक्का पर एकीकृत योजनाएँ (ISOPOM)
- eNAM Portal.
- कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के साथ मूल्य सब्सिडी के स्थान पर भारत में सब्सिडी परिदृश्य किस प्रकार बदल सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
विश्व स्वास्थ्य सभा का 76वाँ सत्र
प्रिलिम्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व स्वास्थ्य सभा, G20, आयुष्मान भारत मेन्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य सभा में भारत की भागीदारी, विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यप्रणाली, चिकित्सा पर्यटन में भारत का योगदान और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में 21 से 30 मई, 2023 तक 76वीं वार्षिक विश्व स्वास्थ्य सभा का आयोजन किया गया।
- वर्ष 2023 की थीम है- "WHO at 75: Saving lives, driving health for all."
- 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की भागीदारी ने वैश्विक स्वास्थ्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर किया।
- चीन और पाकिस्तान के विरोध के कारण ताइवान को WHO की बैठक से बाहर कर दिया गया था।
विश्व स्वास्थ्य सभा:
- परिचय:
- विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA), WHO की निर्णय लेने वाली संस्था है, जिसमें WHO के सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडलों ने भाग लिया।
- यह वार्षिक रूप से WHO के मुख्यालय, जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित की जाती है।
- WHA के कार्य:
- संगठन की नीतियों पर निर्णय लेना।
- WHO के महानिदेशक की नियुक्ति।
- वित्तीय नीतियों का प्रशासन।
- प्रस्तावित कार्यक्रम हेतु बजट की समीक्षा और अनुमोदन।
प्रमुख बिंदु:
- स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये वैश्विक योजना:
- स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये एक वैश्विक कार्ययोजना विकसित करने हेतु मसौदा प्रस्ताव स्वीकार किया गया।
- इस योजना पर वर्ष 2026 में 79वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में विचार किया जाएगा।
- स्थानीय लोगों के साथ परामर्श और उनकी स्वतंत्र, पूर्व एवं सूचित सहमति पर ज़ोर देना।
- गरीबी, हिंसा, भेदभाव और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच जैसी चुनौतियों का समाधान करना।
- प्रजनन, मातृ और किशोर स्वास्थ्य, कमज़ोर स्थितियों पर ध्यान देना।
- सदस्यों से स्थानीय लोगों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पहचान करने के लिये नैतिक डेटा एकत्र करने का आग्रह करना।
- स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार लाना।
- स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये एक वैश्विक कार्ययोजना विकसित करने हेतु मसौदा प्रस्ताव स्वीकार किया गया।
- ड्राउनिंग से होने वाली मौतों की रोकथाम के लिये वैश्विक गठबंधन:
- 76वीं WHA बैठक के दौरान डूबने से होने वाली मौतों की रोकथाम के लिये वैश्विक गठबंधन (Global Alliance for Drowning Prevention) की स्थापना की गई।
- वर्ष 2029 तक डूबने/ड्राउनिंग से जुड़ी वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- WHO कार्रवाई का समन्वय करेगा और ड्राउनिंग पर एक वैश्विक स्थिति रिपोर्ट तैयार करेगा।
- ड्राउनिंग से होने वाली मौतों की 90% से अधिक घटनाएँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं।
- ड्राउनिंग से होने वाली मौतों के आधिकारिक वैश्विक अनुमान को काफी कम करके आँका जा सकता है क्योंकि इसमें बाढ़ से संबंधित जलवायु घटनाओं और जल परिवहन के दौरान होने वाली घटनाओं में डूबने वालों के आँकड़ों को शामिल नहीं किया जाता है।
- रसायन, अपशिष्ट और प्रदूषण पर मसौदा संकल्प:
- 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के दौरान रसायन, अपशिष्ट और प्रदूषण प्रभाव पर मसौदा प्रस्ताव स्वीकार किया गया।
- WHO ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के साथ अंतःस्रावी विघटनकारी रसायन रिपोर्ट को अद्यतन करने का आग्रह किया।
- रासायनिक जोखिम और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर सीमित डेटा को लेकर प्रकाश डाला गया है।
- यह प्रारूप कैडमियम, सीसा, पारा आदि जैसे खतरनाक रसायनों हेतु नियामक ढाँचे, बायोमाॅनीटरिंग और जोखिम पहचान हेतु प्रोत्साहित करता है।
- इसमी खराब रासायनिक अपशिष्ट प्रबंधन और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों पर चिंता व्यक्त की गई है।
- मानव स्वास्थ्य के निहितार्थ और डेटा अंतराल पर WHO रिपोर्ट हेतु अनुरोध किया गया है।
- लिंग, आयु, विकलांगता और हानिकारक पदार्थों पर डेटा संग्रह को महत्त्व प्रदान करना।
- WHO कार्यक्रम बजट:
- WHO के सदस्य देशों ने वर्ष 2024-2025 हेतु 6.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट पर सहमति व्यक्त की, जिसमें निर्धारित योगदान में 20% की वृद्धि शामिल है।
- पिछले कुछ वर्षों में मूल्यांकन किये गए योगदानों में गिरावट आई है, जो WHO के वित्तपोषण के एक-चौथाई से भी कम हेतु ज़िम्मेदार है।
- शीर्ष योगदानकर्त्ताओं में जर्मनी, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय आयोग शामिल हैं।
- स्वैच्छिक योगदान पर WHO की निर्भरता शासन संबंधी चिंताओं को उजागर करती है और निरंतर तकनीकी सहयोग एवं लक्ष्य प्राप्ति की दिशा को प्रभावित करती है।
- वर्ष 2023 तक सभी के स्वास्थ्य में सुधार हेतु प्रभावी तकनीकी सहयोग प्रदान करने और ट्रिपल बिलियन लक्ष्य को प्राप्त करने की WHO की क्षमता में बाधा डालने वाले कारकों पर प्रकाश डाला गया।
नोट:
ट्रिपल बिलियन लक्ष्य: ट्रिपल बिलियन लक्ष्य सरल और सुगम है। WHO का लक्ष्य वर्ष 2023 तक निम्नलिखित की प्राप्ति है:
- 1 अरब से अधिक लोगों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से लाभान्वित करना।
- 1 अरब से अधिक लोगों को स्वास्थ्य आपात स्थितियों से बेहतर ढंग से सुरक्षित करना
- 1 अरब से अधिक लोगों को बेहतर स्वास्थ्य और खुशहाली प्रदान करना।
- पुनः पूर्ति तंत्र:
- सदस्य राज्यों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के लिये वित्त के अनुकूल विकल्प प्रदान करने हेतु एक नए पुनः पूर्ति तंत्र को स्वीकार किया।
- वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन का अधिकांश वित्त विशिष्ट स्वैच्छिक योगदान से आता है जिससे आवश्यकतानुसार वित्त को स्थानांतरित किया जा सकता है।
- पुनः पूर्ति तंत्र का उद्देश्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधार खंड के गैर-वित्तीय हिस्से को कवर करने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये स्वैच्छिक योगदान बढ़ाना है।
WHO वित्तपोषण:
- निर्धारित मूल्यांकन:
- इसकी गणना किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में की जाती है
- WHO के कुल बजट में 20% से कम हिस्सेदारी
- इसे विश्व स्वास्थ्य सभा में प्रत्येक दो वर्ष में अनुमोदित किया जाता है
- स्वैच्छिक योगदान:
- संगठन के वित्तीयन के तीन-चौथाई से अधिक के लिये खाता
- सदस्य राज्यों और अन्य भागीदारों द्वारा
- आगे लचीलेपन के आधार पर वर्गीकरण:
- मूल स्वैच्छिक योगदान (CVC):
- यह पूर्णत: बिना शर्त और लचीलेपन के सभी स्वैच्छिक योगदानों का 4.1% प्रतिनिधित्व करता है।
- विषयगत और रणनीतिक भागीदारी निधि:
- आंशिक रूप से लचीला, वर्ष 2020-2021 में सभी स्वैच्छिक योगदान के 7.9% का प्रतिनिधित्व करता है।
- निर्दिष्ट स्वैच्छिक योगदान:
- सभी स्वैच्छिक योगदानों के 88% का प्रतिनिधित्व करने वाले विशिष्ट कार्यक्रम संबंधी क्षेत्रों और/या भौगोलिक स्थानों के लिये कड़ाई से निर्धारित।
- मूल स्वैच्छिक योगदान (CVC):
- महामारी प्रतिक्रिया अनुदान:
- WHO महामारी सहित वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों की प्रतिक्रिया पर विभिन्न स्रोतों से अतिरिक्त वित्तपोषण प्राप्त करता है।
- कोविड-19 एकजुटता प्रतिक्रिया कोष की स्थापना कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों से योगदान प्राप्त करने के लिये की गई थी।
- भारत की भागीदारी:
- इसने वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों के सहयोग और लचीलेपन के महत्त्व पर बल दिया।
- भारत ने 100 से अधिक देशों को 300 मिलियन COVID-19 वैक्सीन वितरण में योगदान दिया।
- योग और आयुर्वेद जैसी पारंपरिक प्रणालियों के महत्त्व पर बल दिया।
- WHO ने भारत में पारंपरिक चिकित्सा के लिये वैश्विक केंद्र की स्थापना का जिक्र किया।
- G20 थीम 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' का समर्थन किया।
- स्वास्थ्य सेवा और आयुष्मान भारत योजना में भारत की उपलब्धियों को साझा किया।
- WHO के निम्न और मध्यम आय वाले सदस्य देशों का समर्थन करने की इच्छा व्यक्त की।
- मेडिकल वैल्यू ट्रैवल और क्षय रोग उन्मूलन के प्रति प्रतिबद्धता में भारत के योगदान पर प्रकाश डाला।
- विश्व स्तर पर आयुष उपचार को बढ़ावा देने के लिये 'हील बाय इंडिया' पहल पर बल दिया।
- सभी के लिये समावेशी विकास और स्वास्थ्य सेवा के महत्त्व पर बल दिया।