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भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • 19 Sep 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, हिंद महासागर द्विध्रुवीय, मानसून अवसाद।

मेन्स के लिये:

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अनुसंधान से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग, मानसून में विचलन/अस्थिरता को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप लंबी शुष्क अवधि और भारी बारिश की अल्प अवधि दोनों होती है।

  • वर्ष 2022 में वर्ष 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी चरम घटनाएँ देखी गई हैं। बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएँ बढ़ गई है।

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:

  • विपरीत वर्षा प्रतिरूप:
    • मानसून प्रणालियों के मार्ग में बदलाव देखा गया है जैसे कि कम दबाव और गर्त अपनी स्थिति के दक्षिण की तरफ स्थांतरित होने तथा फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएँ हो रही हैं।
      • मानसून गर्त मूल रूप से एक कम दबाव प्रणाली को संदर्भित करता है जो गर्मियों में उत्तरी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी को प्रभावित करता है। इसमें अपेक्षाकृत बड़ा क्षेत्र शामिल है एवं बंद आइसोबार का व्यास 1000 किमी जितना चौड़ा हो सकता है।
    • मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में वर्ष 2022 में अधिक बारिश दर्ज की गई, इसके विपरीत पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में वर्षा नहीं हुई।
    • अगस्त 2022 में भी बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून गर्त बने और पूरे मध्य भारत को प्रभावित किया।
    • जबकि प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अद्वितीय होती है, वर्ष 2022 में वर्षा में एक बड़ी क्षेत्रीय और अस्थायी परिवर्तनशीलता रही है।
  • कारण:
    • तीव्र ला नीना स्थितियों का बना रहना, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य रूप से गर्म होना, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD), अधिकांश मानसून गर्तों की दक्षिण की ओर गति और हिमालयी क्षेत्र में प्री-मॉनसून हीटिंग तथा ग्लेशियरों का पिघलना।
      • IOD को दो क्षेत्रों के बीच समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है - पहला, अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में पश्चिमी ध्रुव और दूसरा इंडोनेशिया के दक्षिण में तथा पूर्वी हिंद महासागर में पूर्वी ध्रुव।
      • IOD ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है, और इस क्षेत्र में वर्षा परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है।
  • प्रभाव:
    • खरीफ फसलें:
      • मानसून प्रणाली के मार्ग में बदलाव के प्रमुख प्रभावों में से एक खरीफ फसलों, विशेष रूप से चावल उत्पादन पर देखा जा सकता है। वे इस अवधि के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50% से अधिक का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।
      • खरीफ उत्पादन में गिरावट से चावल की कीमतें उच्च स्तर पर पहुँच सकती हैं।
      • बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, जो देश के कुल चावल उत्पादन का एक- तिहाई हिस्सा उत्पादित करते हैं, में जुलाई और अगस्त में सक्रिय मानसून के बावजूद अत्यधिक कमी रही है।
    • अनाज की गुणवत्ता:
      • यह असमान वर्षा वितरण अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है तथा साथ ही पोषण मूल्य भी बदल सकता है।
        • 'भारत में जलवायु परिवर्तन, मानसून और चावल की पैदावार' नामक एक अध्ययन के अनुसार, बहुत अधिक तापमान (> 35 डिग्री सेल्सियस) ऊष्मा को प्रेरित करता है जो पौधों की शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है जिससे बौनापन, उर्वरता में कमी, गैर-व्यवहार्य पराग और अनाज की गुणवत्ता कम हो जाती है।
    • खाद्य सुरक्षा:
      • 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान भारत में मानसून की वर्षा कम बार लेकिन अधिक तीव्र हो गई।
      • वैज्ञानिकों और खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि बेहतर वर्षा से फसल बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
      • हालाँकि भारत के करोड़ों चावल उत्पादक और उपभोक्ता इन अभूतपूर्व परिवर्तनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं जो खाद्य सुरक्षा पर भी चिंताएँ बढ़ा रहे हैं।

आगे की राह

  • विश्वसनीयता और स्थिरता प्राप्त करने के लिये भारत को मानसून पूर्वानुमान की बेहतर भविष्यवाणी में अधिक संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता है।
  • गर्म होती जलवायु के साथ वायुमंडल में अधिक नमी होगी, जिससे भारी वर्षा होगी, परिणामस्वरूप, भविष्य में मानसून की अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि होगी। देश को इस बदलाव के लिये तैयार रहने की ज़रूरत है।
  • इस प्रकार भारत के जलवायु पैटर्न को सुरक्षित और स्थिर बनाने के लिये हमें न केवल घरेलू मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना) बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन) पर भी प्रभावी तथा समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक साझा भविष्य के साथ एक साझा विश्व में रहते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):  

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित ‘इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • इंडियन ओशन डाइपोल (IOD) उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर (जैसे अल नीनो उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में है) में वायुमंडलीय महासागर युग्मित घटना है, जो समुद्र-सतह तापमान (SST) में अंतर की विशेषता है।
  • 'सकारात्मक IOD' पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में सामान्य समुद्री सतह के तापमान से कम उष्ण और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में सामान्य समुद्री सतह के तापमान से अधिक उष्ण होने से संबंधित है।
  • विपरीत घटना को 'नकारात्मक IOD' कहा जाता है और पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में सामान्य SST की तुलना में गर्म तथा पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में सामान्य SST की तुलना में ठंडा होता है।
  • इसे भारतीय नीना के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान का अनियमित दोलन है जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से की तुलना में वैकल्पिक रूप से गर्म और ठंडा हो जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

मेन्स:

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)

प्रश्न. मानसून एशिया में रहने वाली संसार की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण में सफल मानसून जलवायु को क्या अभिलक्षण अनुदेशित किये जा सकते हैं? (2017)

प्रश्न. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है। चर्चा कीजिये। (2015)

स्रोत: द हिंदू

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