भूगोल
दक्षिण-पश्चिम मानसून
- 17 Jun 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:चक्रवात यास, अंतः ऊष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र मेन्स के लिये:समय पूर्व मानसून का कारण और प्रभाव, दक्षिण-पश्चिम मानसून और इसे प्रभावित करने वाले कारक |
चर्चा में क्यों?
निर्धारित समय से दो दिन देरी से केरल तट पर पहुँचने के बाद दक्षिण पश्चिम मानसून दक्षिण प्रायद्वीपीय और मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में जल्दी पहुँच गया है।
प्रमुख बिंदु:
कारण:
- मई माह में बंगाल की खाड़ी में विकसित चक्रवात यास ने अंडमान सागर के ऊपर महत्त्वपूर्ण दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों को लाने में मदद की।
- नियमानुसार दक्षिण अंडमान समुद्र पर अपने आगमन के लगभग दस दिन बाद मानसून सबसे पहले केरल में दस्तक देता है।
- केरल में देरी से प्रवेश के बाद इसकी गति में वृद्धि मुख्य रूप से अरब सागर से तेज़ पश्चिमी पवनों और बंगाल की उत्तरी खाड़ी के ऊपर एक कम दबाव प्रणाली के गठन के कारण हुई, जो वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार पर स्थित है।
- महाराष्ट्र और केरल के बीच बनी एक अपतटीय द्रोणिका ने मानसून को कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात में जल्दी पहुँचने में मदद की है।
आगे की स्थिति:
- उत्तर-पश्चिम भारत में मानसून तभी सक्रिय होता है जब मानसून की धाराएँ या तो अरब सागर से या बंगाल की खाड़ी से इस क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। चूँकि इस घटना के जल्द घटित होने की संभावना नहीं है, अतः मानसून की प्रगति धीमी रहेगी।
- साथ ही मध्य अक्षांश की पश्चिमी पवनों की एक धारा उत्तर पश्चिमी भारत की ओर प्रवाहित हो रही है, जो आने वाले दिनों में मानसून की प्रगति में बाधा उत्पन्न करेगी।
समय पूर्व मानसून और वर्षा की मात्रा:
- किसी क्षेत्र में मानसून के आगमन के दौरान प्राप्त वर्षा की मात्रा या मानसून की प्रगति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
- उदाहरण के लिये मानसून ने वर्ष 2014 में 42 दिन और वर्ष 2015 में 22 दिन में पूरे देश को कवर किया। इतनी अलग श्रेणियों के साथ भी भारत में दोनों वर्षों के दौरान कम वर्षा दर्ज की गई।
ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसलों पर प्रभाव:
- मध्य और उत्तरी भारत में मानसून के जल्दी आने से किसानों को धान, कपास, सोयाबीन और दलहन जैसी ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसलों की बुवाई में तेज़ी लाने में मदद मिलेगी और फसल की पैदावार भी बढ़ सकती है।
जलवायु परिवर्तन के संकेत:
- देश के विभिन्न हिस्सों में प्रत्येक वर्ष मानसून की शुरुआत समय से पहले या देर से हो सकती है। मानसून की जटिलता को देखते हुए इन बदलावों को आमतौर पर सामान्य माना जाता है।
- हालाँकि जलवायु विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के संकेत के रूप में चार महीनों (जून-सितंबर) के दौरान कम समय के भीतर एक क्षेत्र में तीव्र वर्षा या लंबे समय तक शुष्क मौसम को चरम मौसमी घटनाओं को जोड़ा है।
भारत में मानसून:
संदर्भ:
- भारत की जलवायु को 'मानसून' प्रकार के रूप में वर्णित किया गया है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
- भारत के कुल 4 मौसमी भागों में से मानसून 2 भागों में व्याप्त है, अर्थात्:
- दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम - दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त वर्षा मौसमी है, जो जून और सितंबर के मध्य होती है।
- मानसून का निवर्तन- अक्तूबर और नवंबर माह को मानसून की वापसी या मानसून का निवर्तन के लिये जाना जाता है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून के गठन को प्रभावित करने वाले कारक:
- भूमि और जल के अलग-अलग तापमान के कारण भारत के भूभाग पर कम दाब बनता है जबकि आसपास की समुद्री सतह पर तुलनात्मक रूप से उच्च दाब का विकास होता है।
- ग्रीष्म ऋतु में गंगा के मैदान के ऊपर अंतः ऊष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) की स्थिति में बदलाव (यह विषुवत वृत्त पर स्थित एक निम्नदाब वाला क्षेत्र है। इसे कभी -कभी मानसूनी गर्त भी कहते हैं)।
- हिंद महासागर के ऊपर लगभग 20° दक्षिणी अक्षांश पर अर्थात् मेडागास्कर के पूर्व में उच्च दबाव वाले क्षेत्र की उपस्थिति पाई जाती है। इस उच्च दबाव वाले क्षेत्र की तीव्रता और स्थिति भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
- तिब्बत का पठार ग्रीष्मकाल के दौरान तीव्र रूप से गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवन की प्रबल ऊर्ध्वाधर धाराएँ पैदा होती हैं और तिब्बत के पठार की सतह पर निम्न दाब का निर्माण होता है।
- पश्चिमी जेट धारा का हिमालय के उत्तर की ओर विस्थापित होना और गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम की उपस्थिति भी भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
- अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO): आमतौर पर जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च दबाव का क्षेत्र बनता होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिंद महासागर में निम्न दबाव का विकास होता है। लेकिन कुछ वर्षों में दबाव की स्थिति में उलटफेर होता है और पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में दबाव कम होता है। दबाव की स्थिति में यह आवधिक परिवर्तन SO के रूप में जाना जाता है।