भूगोल
विविधतापूर्ण भारतीय मानसून
- 03 Jun 2020
- 14 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारतीय मानसून व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रसार के बीच भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने मानसूनी वर्षा का पूर्वानुमान व्यक्त किया है। मानसून अपने निर्धारित समय 1 जून को केरल के तट पर दस्तक दे चुका है। केरल में अच्छी वर्षा हो रही है और देश के अन्य हिस्सों में भी अच्छी वर्षा का अनुमान है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 'दक्षिण-पश्चिम मानसून केरल में पूरी तरह सक्रिय हो गया है।
इससे पूर्व भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) की सक्रियता के कारण मानसून के आगमन में देरी का अनुमान व्यक्त किया था, परंतु एक निज़ी मौसम विज्ञान कंपनी ने अम्फान चक्रवात के प्रभाव का अध्ययन कर मानसून के समय से पूर्व आने का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। तत्पश्चात भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अपने पूर्वानुमान को संशोधित करते हुए 1 जून को मानसून के आगमन का समय निर्धारित किया। इस प्रकार की घटनाएँ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान पर संदेह व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती हैं।
इस आलेख में भारतीय मानसून, उसकी कार्यप्रणाली, भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक, सामान्य मानसून के लाभ तथा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की कार्यप्रणाली पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।
मानसून से तात्पर्य
- ध्यातव्य है कि यह अरबी शब्द मौसिम से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ होता है हवाओं का मिज़ाज।
- शीत ऋतु में हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। उधर, ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ इसके विपरीत दिशा में बहती हैं, जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है।
- चूँकि पूर्व के समय में इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी, इसीलिये इन्हें व्यापारिक हवाएँ या ‘ट्रेड विंड’ भी कहा जाता है।
मानसून की उत्पत्ति
- ग्रीष्म ऋतु में जब हिंद महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है, तो मानसून का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में समुद्र की सतह गरम होने लगती है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुँच जाता है। जबकि इस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुँच चुका होता है।
- ऐसी स्थिति में हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएँ सक्रिय हो जाती हैं। ये हवाएँ एक दूसरे को आपस में काटते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती है। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
- विषुवत रेखा पार करके ये हवाएँ और बादल वर्षा करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है।
- ऐसी स्थिति में हवाएँ समुद्र से सतह की ओर बहना शुरू कर देती हैं। ये हवाएँ समुद्री जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर की ओर उठने लगती है और वर्षा करती हुई आगे बढ़ती हैं।
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुँचने के बाद ये मानसूनी हवाएँ दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं।
- एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात एवं राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में अत्यधिक वर्षा होने लगती है।
मानसून का पूर्वानुमान कैसे?
- वस्तुतः मानसून एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है। कारण यह है कि भारत में विभिन्न किस्म के जलवायु जोन और उप-जोन हैं। हमारे देश में 127 कृषि जलवायु उप-संभाग हैं और 36 संभाग हैं।
- मानसून विभाग द्वारा अप्रैल के मध्य में मानसून को लेकर दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी किया जाता है। इसके बाद फिर मध्यम अवधि और लघु अवधि के पूर्वानुमान जारी किये जाते हैं। हालाँकि पिछले कुछ समय से ‘नाऊ कास्ट’ के माध्यम से मौसम विभाग ने अब कुछ घंटे पहले के मौसम की भविष्यवाणी करना आरंभ कर दिया है।
- ध्यातव्य है कि मौसम विभाग की भविष्यवाणियों में हाल के वर्षों में सुधार देखा गया है। अभी मध्यम अवधि की भविष्यवाणियाँ जो 15 दिन से एक महीने की होती हैं, 70-80 फीसदी तक सटीक निकलती है।
- हालाँकि, लघु अवधि की भविष्यवाणियाँ जो आगामी 24 घंटों के लिये होती हैं करीब 90 फीसदी तक सही होती हैं। अलबत्ता, नाऊ कास्ट की भविष्यवाणियाँ करीब-करीब 99 फीसदी सही निकलती हैं।
मानसून को प्रभावित करने वाले कारक
- अल-नीनो
- वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका के निकट खासकर पेरु तट में यदि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द समुद्र की सतह अचानक गरम होनी शुरू हो जाए तो अल-नीनो की स्थिति बनती है।
- यदि तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो यह मानसून को प्रभावित कर सकती है। इससे मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में हवा के दबाव में कमी आने लगती है। इसका असर यह होता कि विषुवत रेखा के इर्द-गिर्द चलने वाली व्यापारिक हवाएँ कमजोर पड़ने लगती हैं। यही हवाएँ मानसूनी हवाएँ होती हैं जो भारत में वर्षा करती हैं।
ला-नीना
- प्रशांत महासागर में उपरोक्त स्थान पर कभी-कभी समुद्र की सतह ठंडी होने लगती है। ऐसी स्थिति में अल-नीनो के ठीक विपरीत घटना होती है जिसे ला-नीना कहा जाता है।
- ला-नीना बनने से हवा के दबाव में तेजी आती है और व्यापारिक पवनों को रफ्तार मिलती है, जो भारतीय मानसून पर अच्छा प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिये, वर्ष 2009 में मानसून पर अल-नीनो के प्रभाव के कारण कम वर्षा हुई थी, जबकि वर्ष 2010 एवं 2011 में ला-नीना के प्रभाव के कारण अच्छी वर्षा हुई थी।
हिंद महासागर द्विध्रुव
- हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज़्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है। पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मेडेन जुलियन ऑस्किलेशन
- इसकी वजह से मानसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती है। इसके प्रभावस्वरुप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है। यह भारतीय मानसून के संदर्भ में एल-नीनो और ला-नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है।
चक्रवात निर्माण
- चक्रवातों के केंद्र में अति निम्न दाब की स्थिति पाई जाती है जिसकी वजह से इसके आसपास की पवनें तीव्र गति से इसके केंद्र की ओर प्रवाहित होती हैं। जब इस तरह की परिस्थितियाँ सतह के नज़दीक विकसित होती हैं तो मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। अरब सागर में बनने वाले चक्रवात, बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि भारतीय मानसून का प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अरब सागर की ओर होता है।
जेट स्ट्रीम
- जेट स्ट्रीम पृथ्वी के ऊपर तीव्र गति से चलने वाली हवाएँ हैं, ये भारतीय मानसून को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी। स्वतंत्रता के बाद 27 अप्रैल, 1949 को यह विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य बना।
- यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक प्रमुख एजेंसी है।
- इसका प्रमुख कार्य मौसम संबंधी भविष्यवाणी व प्रेक्षण करना तथा भूकंपीय विज्ञान के क्षेत्र में शोध करना है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- IMD के छह प्रमुख क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र हैं, जो क्रमशः चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली में स्थित है।
सामान्य मानसून के संभावित लाभ
- खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
- वर्षा अच्छी होने का सबसे अच्छा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ता है। जहाँ सिंचाई की सुविधा मौजूद नहीं है, वहाँ बारिश होने से अच्छी फसल होने की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त ऐसे क्षेत्र जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं भी, तो ऐसे क्षेत्रों में समय पर अच्छी वर्षा होने से किसानों को नलकूप चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही उनकी उत्पादन लागत में कमी आयेगी। फलत: अच्छे उत्पादन से किसानों को फायदा होगा और खाद्यान्नों की मूल्यवृद्धि भी नियंत्रित रहेगी।
- जल की कमी दूर होगी
- अच्छे मानसून से पीने के पानी की उपलब्धता संबंधी समस्या का भी काफी हद तक समाधान होता है। एक तो नदियों, तालाबों में पर्याप्त मात्रा में पानी जमा हो जाता है। दूसरे, भूजल का भी पुनर्भरण होता है।
- बिजली संकट कम होगा
- मानूसन के चार महीनों में अच्छी वर्षा होने से नदियों, जलाशयों का जलस्तर बढ़ जाता है। इससे बिजली उत्पादन भी अच्छा होता है।
- यदि वर्षा कम हो और जलस्तर कम हो जाए तो बिजली उत्पादन भी प्रभावित होता है।
- गर्मी से राहत
- मानसून की वर्षा जहाँ एक ओर खेती-बाड़ी, जलाशयों, नदियों को पानी से लबालब कर देती हैं, वहीं दूसरी ओर भीषण गर्मी से तप रहे देश को भी गर्मी से राहत प्रदान करती है।
प्रश्न- मानसून से आप क्या समझते हैं? भारतीय मानसून की उत्पत्ति व उसे प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिये।