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प्रश्न :
पश्चिमी विक्षोभ की क्रियाविधि को स्पष्ट कीजिये। साथ ही भारत के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिये।
12 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोणः
• पश्चिमी विक्षोभ की क्रियाविधि समझाएं।
• इसकी प्रासंगिकता के बारे में बताएँ।
‘पश्चिमी विक्षोभ’ एक मौसमी परिघटना है जो पछुआ पवन के ऊपरी वायु परिसंरचरण क्षेत्र में विकसित एक निम्न वायुदाब का क्षेत्र या गर्त है, जो हवा के तापमान, दाब एवं वायु संचार प्रणाली में परिवर्तन लाकर वर्षण की दशा उत्पन्न करता है।
ये हवाएं राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में तीव्र गति से बहती हैं। ये उप-हिमालयी पट्टी के आस-पास पूर्व की ओर मुड़ जाती हैं और सीधे अरुणाचल प्रदेश तक पहुंच जाती हैं। जिससे गंगा के मैदानी इलाकों में हल्की वर्षा और हिमालयी पट्टी में हिमवर्षा होती है।
क्रियाविधि:
इसकी उत्पत्ति भूमध्यसागरीय क्षेत्र में सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण ध्रुवीय वायुराशि का दक्षिण की ओर खिसकने एवं इसके उष्ण कटिबंधीय वायुराशि से समागम के परिणामस्वरूप, ध्रुवीय वाताग्र के सहारे शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के जनन से होती है। ये चक्रवात पछुआ जेट स्ट्रीम के सहारे पश्चिमी एशिया से गुज़रते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करते हैं। भारत में पहुँचकर ये चक्रवात संरोधावस्था को प्राप्त हो जाते हैं जिससे गर्म वायुराशि ऊपर की ओर विस्थापित हो जाती है तथा धरातल पर ठंडी पवनों का प्रसार हो जाता है।
यद्यपि भारतीय उपमहाद्वीप में इसकी उपस्थिति पछुआ पवन के प्रभाव में सालभर होती है, तथापि शीतकाल में जनवरी तथा फरवरी महीने में पछुआ पवन के दक्षिण की ओर अवतलन से इसके विकास की आदर्श दशा होती है।
प्रासंगिकता :
- ये विक्षोभ चक्रवातीय वर्षा लाते हैं जो भारत के शीतकालीन फसलों यथा गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि के लिये लाभकारी होता है।
- ये हिमालय के ऊपरी क्षेत्र में हिमपात हेतु उत्तरदायी हैं जो भारत के सदाबहार नदियों की सततता एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
- यह पश्चिमी तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में रबी फसल की उत्पादन व उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक है।
- यह शीतकाल में वर्षा लाकर भौम जल स्तर को ऊपर लाने एवं जल संचयन को बढ़ावा देता है।
- यह प्रवासी पक्षियों के लिये अनुकूल दशा प्रदान करता है।
- यह संपूर्ण पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की उत्पादकता पोषण स्तर में वृद्धि लाता है।
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