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सामाजिक न्याय

दासता पर CHRI की रिपोर्ट

  • 01 Aug 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

राष्ट्रमंडल, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल 

मेन्स के लिये:

भारत में दासता की स्थिति एवं मानव तस्करी रोकने हेतु संवैधानिक प्रावधान 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 30 जुलाई को ‘वर्ल्ड डे अगेंस्ट ट्रैफिकिंग’ (World Day Against Trafficking in Persons) के अवसर पर ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) तथा एक अंतर्राष्ट्रीय दासता विरोधी संगठन, वॉक फ्री (Walk Free) द्वारा दासता के संदर्भ में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई।

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु-

  • इस रिपोर्ट में राष्ट्रमंडल देशों द्वारा वर्ष 2018 में बलपूर्वक श्रम, मानव तस्करी, बाल श्रम को समाप्त करने एवं सतत् विकास लक्ष्य (लक्ष्य 8.7) को प्राप्त करने तथा आधुनिक दासता की स्थिति को वर्ष 2030 तक समाप्त करने के लिये किये गए वादों की प्रगति का आकलन किया गया।
    • राष्ट्रमंडल देशों में आधुनिक दासता से ग्रसित विश्व के लगभग 40% लोगों विद्यमान हैं।
    • एक अनुमान के अनुसार, राष्ट्रमंडल देशों में 150 लोगों में से प्रत्येक एक व्यक्ति आधुनिक दासता की स्थिति में रह रहा है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रमंडल देशों द्वारा आधुनिक दासता के उन्मूलन के प्रति  प्रतिबद्धता की दिशा में बहुत कम प्रगति की गई है तथा वर्ष 2030 तक आधुनिक दासता को समाप्त करने वाले कार्यों में भी कमी देखी गई है।
    • राष्ट्रमंडल के ⅓ देश जबरन विवाह कराने के अपराध में संलिप्त है जबकि  23 देश ऐसे भी हैं जो बच्चों के व्यावसायिक यौन शोषण के अपराध में संलिप्त नहीं हैं।
    • सभी राष्ट्रमंडल देश इस अंतराल को पीड़ित सहायता कार्यक्रमों में प्रस्तुत करते  हैं।

भारत की स्थिति: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत द्वारा समन्वय के संदर्भ में सबसे खराब प्रदर्शन किया गया है। वर्तमान दासता की स्थिति से निपटने के लिये भारत के पास कोई राष्ट्रीय समन्वय निकाय (National Coordinating Body) या फिर कोई राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan) नहीं है।
  • भारत में विश्व की बाल वधुओं का कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा मौजूद है।
  • भारत द्वारा एशिया के अन्य सभी राष्ट्रमंडल देशों की तरह, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 2011 के घरेलू कामगारों पर कन्वेंशन या 2014 के ‘फोर्सड लेबर प्रोटोकॉल’ (Forced Labour Protocol) की पुष्टि नहीं की गई है।
    • वर्ष 2014 का  ‘फोर्सड लेबर प्रोटोकॉल’ (Forced Labour Protocol) राज्य सरकारों को इस बात के लिये बाध्य करता है कि वे मुआवज़े सहित, बलात् श्रम से पीड़ितों को सुरक्षा और उचित श्रम प्रदान करने के लिए बाध्य करें।
    • यह प्रोटोकॉल राज्य को एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने एवं जबरन या अनिवार्य श्रम के प्रभावी तथा निरंतर दमन के लिये कार्य योजना तैयार करने के लिये भी बाध्य करता है।

भारत द्वारा इस दिशा में किये गए संवैधानिक प्रावधान:

अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।

अनुच्छेद-23 बलात् श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।

अनुच्छेद-24 कारखानों, आदि में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कार्य करने से प्रतिबंधित करता है।

अनुच्छेद-39 राज्य को श्रमिकों, पुरुषों तथा महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सामर्थ्य को सुरक्षित करने के लिये निर्देशित करता है।  

अनुच्छेद-42 राज्य को निर्देश देता है कि वह काम की उचित और मानवीय स्थितियों को सुरक्षित रखने एवं मातृत्व राहत के लिये प्रावधान करे।

कानूनी प्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) के विभिन्न खंड जैसे 366A, 366B, 370 और 374.
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिये व्यापक उपाय प्रदान करती है जिसमें बच्चों का किसी भी रूप में शारीरिक शोषण, यौन शोषण, दासता या जबरन अंगों के व्यापार सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये तस्करी शामिल है।
  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000, अनैतिक यातायात अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम 1956, बंधुआ मजदूरी (उन्मूलन) अधिनियम 1976, इत्यादि का उद्देश्य दासता के विभिन्न स्वरूपों को समाप्त करना है।

अन्य प्रावधान:

  • भारत द्वारा ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम’ (United Nations Convention on Transnational Organised Crime-UNCTOC) की पुष्टि की गई है यह प्रोटोकॉल विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम से संबंधित है।
  • भारत द्वारा महिलाओं एवं बच्चों की वेश्यावृत्ति के लिये तस्करी रोकने के  लिये भारत द्वारा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) कन्वेंशन की पुष्टि की गई है।
    • महिलाओं एवं बच्चों की मानव तस्करी की रोकथाम, बचाव, वसूली, प्रत्यावर्तन एवं पीड़ितों के पुन: एकीकरण के लिये जून, 2015 में भारत एवं बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग समझौते  पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • मानव तस्करी के अपराध को रोकने के संदर्भ में राज्य सरकारों द्वारा किये गए विभिन्न फैसलों पर विचार-विमर्श करने एवं कार्रवाई करने के लिये वर्ष 2006 में गृह मंत्रालय ( Ministry of Home Affairs -MHA) द्वारा नोडल सेल की स्थापना की गई थी।
  • न्यायिक सम्मेलन: ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित एवं संवेदनशील बनाने के लिये, उच्च न्यायालय स्तर पर मानव तस्करी पर न्यायिक सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं। इन सम्मेलनों का उद्देश्य मानव तस्करी से संबंधित विभिन्न मुद्दों के बारे में न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाना तथा शीघ्र न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित करना है।
  • केंद्र सरकार द्वारा देश भर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता निर्माण में वृद्धि करने एवं उनके माध्यम से जागरूकता उत्पन्न करने के लिये तथा पुलिस अधिकारियों एवं अभियोजकों के लिये ‘मानव तस्करी के उन्मूलन’ विषय पर क्षेत्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर संयुक्त प्रशिक्षण (टीओटी) कार्यशालाएँ आयोजित की गई हैं। 
  • गृह मंत्रालय द्वारा एक व्यापक योजना के तहत प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से भारत में मानव तस्करी के खिलाफ कानून प्रवर्तन प्रतिक्रिया को मज़बूत करने के लिये देश के 270 ज़िलों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग इकाइयों (Anti Human Trafficking Units) की स्थापना के लिये फंड जारी किया गया है।
    • एक एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) का प्राथमिक कार्य कानून प्रवर्तन और पीड़ितों की देखभाल एवं पुनर्वास से संबंधित अन्य एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित करना है।
    • गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में नामित मानव तस्करी विरोधी इकाइयों के नोडल अधिकारियों के साथ समन्वय बैठकें आयोजित की जाती हैं।

आधुनिक दासता:

आधुनिक दासता शोषण की उन स्थितियों को संदर्भित करती है जिसमे कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, जबरदस्ती एवं बलपूर्वक  या धोखे के दुरुपयोग से बच नहीं पाता है। 

राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI)

  • CHRI एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह राष्ट्रमंडल में मानव अधिकारों की व्यावहारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करता  है।
  • राष्ट्रमंडल 54 स्वतंत्र एवं समान संप्रभु राज्यों का एक स्वैच्छिक संघ है।
  • यह विश्व के सबसे पुराने राजनीतिक संगठनों में से एक है। जिसकी जड़ें उन देशों की स्थापना से संबंधित हैं जिन देशों पर ब्रिटिश द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया गया था। 
  • वर्ष 1949 में, राष्ट्रमंडल के अस्तित्व में आने के साथ ही अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप और प्रशांत क्षेत्र के स्वतंत्र देश भी राष्ट्रमंडल के सदस्य बन गए।
  • राष्ट्रमंडल की सदस्यता मुक्त और समान स्वैच्छिक सहयोग पर निर्भर करती है क्योंकि रवांडा और मोज़ाम्बिक ब्रिटिश साम्राज्य का अंग न होने के बावज़ूद भी राष्ट्रमंडल के सदस्य देशों में शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू

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