भारतीय अर्थव्यवस्था
पर्सपेक्टिव: भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना
- 14 Feb 2025
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय बजट 2025-26, GST, अप्रत्यक्ष कर, पूंजीगत व्यय, लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर, ब्लू इकोनॉमी, PM धन-धान्य कृषि योजना, छह वर्षीय दलहन मिशन, किसान क्रेडिट कार्ड, मखाना बोर्ड, आपूर्ति शृंखला, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स, भारत ट्रेडनेट, अटल टिंकरिंग लैब्स, उद्योग 4.0, राजकोषीय घाटा, PM सूर्य घर, ग्रीन हाइड्रोजन, प्रत्यक्ष कर सुधार, विनिवेश, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, सर्कुलर इकोनॉमी। मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में केंद्रीय बजट की भूमिका। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई प्रावधानों की घोषणा की गई है।
- इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के विकास, रोज़गार सृजन, ग्रामीण उत्थान और औद्योगिक विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके भारत को तकनीकी रूप से उन्नत और समावेशी अर्थव्यवस्था बनाना है।
केंद्रीय बजट 2025-26 के प्रावधान भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे बढ़ावा देंगे?
- उच्च उपभोग के लिये कर सुधार: आयकर छूट को बढ़ाकर ₹12 लाख कर दिया गया, जिससे मध्यम वर्गीय परिवारों पर प्रत्यक्ष कर का बोझ कम हो गया।
- उच्चतम कर स्लैब को संशोधित कर ₹24 लाख कर दिया गया, जिससे उच्च आय समूहों के लिये अधिक प्रयोज्य आय सुनिश्चित हुई।
- खपत बढ़ने से मांग बढ़ेगी, जिससे फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG), रियल एस्टेट और खुदरा जैसे क्षेत्रों को समर्थन मिलेगा।
- उच्च निजी खपत से आर्थिक गतिविधि में तेज़ी आएगी, जिससे GST और अप्रत्यक्ष कर राजस्व में वृद्धि होगी।
- विकास के लिये पूंजीगत व्यय: बुनियादी ढाँचे के लिये ₹11.21 लाख करोड़ आवंटित, सकल घरेलू उत्पाद का 3.1% पूंजी निर्माण के लिये प्रतिबद्ध।
- परिवहन, ऊर्जा और शहरी परियोजनाओं में सार्वजनिक निवेश से मज़बूत गुणक प्रभाव के बढ़ने की संभावना।
- पूंजीगत व्यय से रोज़गार सृजन होता है, तथा निर्माण एवं संबद्ध उद्योगों में श्रम की मांग बढ़ती है।
- बेहतर लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर से दक्षता बढ़ेगी और उद्योगों के लिये उत्पादन लागत कम होगी।
- निवेश आकर्षित करना: डीप टेक फंड ऑफ फंड्स अगली पीढ़ी के स्टार्टअप्स को समर्थन देगा, नवाचार, प्रौद्योगिकी विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देगा।
- बीमा क्षेत्र में FDI को 100% तक बढ़ाने से अधिक विदेशी निवेश आकर्षित होगा, वित्तीय स्थिरता मज़बूत होगी तथा घरेलू पूंजी बाज़ार को बढ़ावा मिलेगा।
- संशोधित उड़ान योजना से क्षेत्रीय संपर्क में सुधार होगा, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, व्यापार में वृद्धि होगी तथा दूरदराज़ और पहाड़ी क्षेत्रों में आर्थिक विकास को समर्थन मिलेगा, जिससे समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- इसके अलावा, बजट में निवेश के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से निजी क्षेत्र को शामिल करने का प्रस्ताव है।
- ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा: सरकार समुद्री मत्स्य पालन और जहाज निर्माण को प्राथमिकता देती है, जिससे तटीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
- ₹25,000 करोड़ के कोष के साथ समुद्री विकास कोष बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे और जहाज़ निर्माण को मज़बूत करेगा।
- तटीय पर्यटन और जलीय कृषि के संभावित विस्तार से संबंधित क्षेत्रों में रोज़गार सृजन हो सकती हैं।
- भारत वैश्विक ब्लू इकोनॉमी की क्षमता का लाभ उठा सकता है जिसका आकार अनुमानतः 24 ट्रिलियन डॉलर है।
- कृषि आधुनिकीकरण: PM धन-धान्य कृषि योजना का लक्ष्य 100 कम कृषि उत्पादकता वाले ज़िलों को कवर करना है, जिससे सिंचाई और फसल-पश्चात भंडारण सुविधाओं में वृद्धि के माध्यम से 1.7 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा।
- किसान क्रेडिट कार्ड के तहत 5 लाख रुपए की ऋण सीमा किसानों के लिये बेहतर वित्तीय सहायता सुनिश्चित करती है।
- अंततः, ग्रामीण आय में वृद्धि से ग्रामीण उपभोग में वृद्धि होगी, जिसका लघु व्यवसायों और खुदरा क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- इसके अतिरिक्त, छह वर्षीय दलहन मिशन से आयात निर्भरता कम होगी, जिससे घरेलू कृषि आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: किसान क्रेडिट कार्ड के तहत 5 लाख रुपए की ऋण सीमा किसानों के लिये बेहतर वित्तीय सहायता सुनिश्चित करती है।
- अंततः, उच्च ग्रामीण आय से ग्रामीण उपभोग में वृद्धि होगी (जो निजी उपभोग का 60% है), जिसका लघु व्यवसायों और खुदरा क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन को बढ़ाने तथा ग्रामीण रोज़गार और आय को बढ़ाने के लिये बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना की जाएगी।
- फलों और सब्जियों के लिये व्यापक कार्यक्रम, जिससे कुशल आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा मिलेगा और किसानों के लिये बेहतर बाज़ार उपस्थिति सुनिश्चित होगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।
- MSME और विनिर्माण के लिये समर्थन: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन से मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा, जिससे सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ेगी।
- स्टार्टअप्स के लिये 10,000 करोड़ रुपए के फंड ऑफ फंड्स से नवाचार, रोज़गार सृजन और औद्योगिक विविधीकरण में सुधार होगा।
- 10 लाख सूक्ष्म उद्यमों के लिये 5 लाख रुपए की ऋण सुविधा से वित्त तक पहुँच बढ़ेगी।
- औद्योगिक कॉरिडोर में निवेश से MSME को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत किया जाएगा, जिससे निर्यात क्षमता में सुधार होगा।
- शहरी विकास को बढ़ावा: 'विकास केंद्र के रूप में शहर', 'रचनात्मक पुनर्विकास', तथा 'जल एवं स्वच्छता' के लिये 1 लाख करोड़ रुपए का शहरी चुनौती कोष स्थापित किया गया है , ताकि शहरी बुनियादी ढाँचे को उन्नत किया जा सके तथा सतत् शहरी विस्तार सुनिश्चित किया जा सके।
- संवहनीय आवासन और शासन सुधारों से रियल एस्टेट में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी।
- परिवहन और स्वच्छता निवेश से शहरी उत्पादकता में सुधार आएगा, जिससे प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि होगी।
- निर्यात संवर्द्धन और वैश्विक व्यापार एकीकरण: निर्यात संवर्द्धन मिशन से नीतियों में समन्वय स्थापित होगा, जिससे भारत की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार होगा।
- 2023-24 के बजट में सात दरों को हटाने के बाद, बजट में सात और टैरिफ दरों को समाप्त कर दिया गया है।
- भारतट्रेडनेट से व्यापार दस्तावेज़ीकरण सुव्यवस्थित होगा, जिससे निर्यात प्रसंस्करण में प्रक्रियागत बाधाएँ कम होंगी।
- मानव पूंजी में निवेश: स्कूली छात्रों में डिजिटल और नवाचार कौशल बढ़ाने के लिये 50,000 अटल टिंकरिंग लैब स्थापित किये जाएँगे।
- भारत के स्वास्थ्य सेवा कार्यबल में सुधार के लिये चिकित्सा शिक्षा में 10,000 अतिरिक्त सीटों का विस्तार किया जाएगा।
- एआई-संचालित कौशल पहल कार्यबल क्षमताओं को उद्योग 4.0 आवश्यकताओं के साथ संरेखित करती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला एवं विनियामक अनिश्चितताएँ: कच्चे माल की आपूर्ति में व्यवधान, बढ़ती लागत और रसद संबंधी बाधाएँ विनिर्माण और निर्यात को प्रभावित करती हैं, जिससे आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, विनियामक जटिलताएँ, नौकरशाही संबंधी देरी और बुनियादी ढाँचे के अभाव से निवेश, उद्यमिता और औद्योगिक विस्तार के लिये बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
- राजकोषीय घाटा प्रबंधन: राजकोषीय घाटा GDP के 4.4% पर अनुमानित है, इसलिये व्यय को युक्तिसंगत बनाना की आवश्यकता है। सरकार की 14.82 लाख करोड़ रुपए की बाज़ार उधारी से ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, जिससे संभावित रूप से निजी निवेश में कमी आ सकती है।
- उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय के बावजूद, उच्च उधार लागत और बाह्य अनिश्चितताओं के कारण निजी क्षेत्र का निवेश मंद बना हुआ है।
- रोज़गार और कौशल मुद्दे: वर्ष 2016 से वर्ष 2023 की अवधि में 170 मिलियन रोज़गार का सर्जन हुआ किंतु उद्योग 4.0 के लिये ए.आई., स्वचालन और रोबोटिक्स विशेषज्ञता की आवश्यकता है।
- शहरी रोज़गार के समक्ष संरचनात्मक चुनौतियाँ विद्यमान हैं, क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद में शहरी हिस्सेदारी वर्ष 2000 से वर्ष 2020 तक 52 से 55% के बीच स्थिर रही है।
- श्रम आपूर्ति और बाज़ार मांग के बीच असंतुलन को दूर करने के क्रम में तत्काल कौशल और प्रशिक्षण सुधार की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन और स्थिरता अंतराल: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के बावजूद, जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे हेतु बजटीय आवंटन अपर्याप्त बना हुआ है।
- इसके अतिरिक्त, कार्बन कैप्चर और धारणीय कृषि परियोजनाओं में नीतिगत प्रोत्साहन का अभाव है, जिससे हरित परिवर्तन के प्रयास शिथिल हो रहे हैं।
- MSME प्रतिस्पर्द्धात्मकता: निर्यात में MSME का 45% योगदान है लेकिन वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में प्रौद्योगिकी एकीकरण का अभाव है।
- सरकारी योजनाएँ ऋण पर केंद्रित हैं लेकिन डिजिटल परिवर्तन और बाज़ार संपर्क अभी भी अविकसित बना हुआ है।
- ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्मों को सीमित रूप से अपनाने से MSME के लिये वैश्विक विस्तार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
आगे की राह
- विनियामक सुधारों के लिये उच्च स्तरीय समिति: इससे गैर-वित्तीय क्षेत्र का विनियमन सुव्यवस्थित होने के साथ नौकरशाही बाधाओं और अनुपालन लागत में कमी आएगी।
- प्रमाणन, लाइसेंस और अनुमति को सरल बनाने से व्यापार करने में आसानी होगी, निवेश आकर्षित होगा तथा अधिक व्यापार-अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिलने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- विकास के साथ राजकोषीय विवेक: उच्च जीएसटी अनुपालन एवं प्रत्यक्ष कर सुधारों के माध्यम से राजस्व संग्रहण में सुधार किया जाना चाहिये।
- नवीन निवेश (2025-30) में ₹10 लाख करोड़ के विनिवेश और परिसंपत्ति मुद्रीकरण लक्ष्य को तीव्रता से पूरा किया जाना चाहिए।
- बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक-निजी भागीदारी से राजकोषीय दबाव कम होने के साथ दक्षता में सुधार होगा।
- निजी निवेश को प्रोत्साहित करना: सरकार को निजी पूंजी निर्माण में सुधार करने के लिये लक्षित ऋण गारंटी प्रदान करनी चाहिये।
- निवेश प्रोत्साहनों को इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों पर केंद्रित किया जाना चाहिये।
- अनुकूल निवेश पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करके भारत उक्त क्षेत्रों में दक्षिण कोरिया, जापान आदि देशों से निवेशकों को आकर्षित कर सकता है।
- रोज़गार और कौशल सुधार: शिक्षा कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ जोड़ने से प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में रोज़गार क्षमता में सुधार होगा।
- शहरी रोज़गार कार्यक्रमों में किराये के आवास संबंधी सुधार और श्रम गतिशीलता हेतु परिवहन सब्सिडी शामिल होनी चाहिये।
- AI, स्वचालन और धारणीय ऊर्जा से संबंधित रोज़गार को प्रोत्साहित करने से भारत का कार्यबल भविष्य के लिये तैयार हो सकेगा।
- सतत् विकास और जलवायु वित्त: सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से ग्रीन फाइनेंस को बढ़ावा देकर जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं को वित्तपोषित किया जा सकता है।
- कार्बन ट्रेडिंग प्रोत्साहन और सर्कुलर अर्थव्यवस्था मॉडल को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- प्रभावी जलवायु अनुकूलन उपायों के लिये मज़बूत राज्य-स्तरीय सहयोग आवश्यक है।
- वैश्विक व्यापार के लिये MSME को मज़बूत बनाना: डिजिटल परिवर्तन कार्यक्रमों के माध्यम से MSME को ई-कॉमर्स और निर्यात प्लेटफार्मों के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी और लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे में निवेश से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में MSME की भागीदारी में सुधार होगा।
- एकल विंडो अनुमोदन सहित बेहतर व्यापार सुविधा उपायों से निर्यात दक्षता में वृद्धि होगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) |