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भारत के जहाज़ निर्माण उद्योग का सुदृढ़ीकरण

  • 04 Feb 2025
  • 29 min read

यह एडिटोरियल 04/02/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Some wind behind the sails of India’s shipping industry” पर आधारित है। यह लेख मज़बूत GDP वृद्धि और सागरमाला परियोजना में ₹5.8 लाख करोड़ निवेश के बावजूद वैश्विक रैंकिंग में गिरावट और न्यूनतम बेड़े के विस्तार का सामना कर रहे भारत के शिपिंग उद्योग की स्थिरता को दर्शाता है। हालाँकि बजट 2025 में ₹25,000 करोड़ के समुद्री विकास कोष जैसी पहल आशाजनक हैं, फिर भी इस क्षेत्र को फिर से जीवंत करने के लिये और अधिक सुधार आवश्यक हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

शिपिंग उद्योग, सागरमाला कार्यक्रम, प्रमुख बंदरगाह, गति शक्ति पहल, मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, जहाज़ मरम्मत और प्रबंधन (MRO), मेक इन इंडिया, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI)

मेन्स के लिये:

भारत में जहाज़ निर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारत में जहाज़ निर्माण क्षेत्र के विकास में बाधक प्रमुख मुद्दे। 

सागरमाला कार्यक्रम (वर्ष 2035 तक 5.8 लाख करोड़ रूपए) के माध्यम से भारत की मज़बूत GDP वृद्धि और महत्त्वपूर्ण समुद्री निवेश के बावजूद, देश का शिपिंग उद्योग कार्गो हैंडलिंग एवं जहाज़ संख्या में न्यूनतम वृद्धि के साथ स्थिर बना हुआ है। भारतीय बेड़े ने हाल ही में 21 वर्ष की औसत आयु में सुधार किया है, लेकिन जहाज़ स्वामित्व में भारत की वैश्विक रैंकिंग 17वें से 19वें स्थान पर आ गई है। हालाँकि सरकार की हालिया बजट- 2025 घोषणाएँ, जिसमें 25,000 करोड़ रूपए का समुद्री विकास कोष और जहाज़ों के लिये बुनियादी अवसंरचना का दर्जा शामिल है, सकारात्मक कदम हैं, लेकिन भारत को अभी भी अपने शिपिंग क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये कई प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 

भारत में जहाज़ निर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • विषय: वर्ष 2024 में, भारतीय जहाज़ निर्माण उद्योग का मूल्य 1.12 बिलियन डॉलर था, जो कि वर्ष 2022 के 90 मिलियन डॉलर के मूल्यांकन से एक महत्त्वपूर्ण उछाल है। 
    • भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह, 200 से ज़्यादा अन्य बंदरगाह, 30 शिपयार्ड हैं जिनमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र की कंपनियाँ शामिल हैं। प्रमुख शिपयार्ड में शामिल हैं:
      • सार्वजनिक क्षेत्र:
        • कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL)
        • हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL)
        • गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE)
        • मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL)
      • प्राइवेट सेक्टर:
        • L&T शिपबिल्डिंग
        • रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (RNEL)
  • सरकारी पहल और नीति समर्थन
    • जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता नीति (वर्ष 2016-2026) - जहाज़ निर्माण अनुबंधों पर 20% तक की सब्सिडी प्रदान करती है।
    • सागरमाला कार्यक्रम - इसका उद्देश्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, तटीय शिपिंग का विकास और रसद दक्षता को बढ़ाना है।
    • जहाज़ निर्माण में आत्मनिर्भर भारत - विमान वाहक (INS विक्रांत) सहित स्वदेशी युद्धपोत उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
      • भारत को वर्ष 2047 तक पुराने जहाज़ों को प्रतिस्थापित करने के लिये लगभग 700 वाणिज्यिक जहाज़ों (200 समुद्री और 500 तटीय/अंतर्देशीय) की आवश्यकता है।
    • गति शक्ति पहल— जहाज़ निर्माण से संबंधित रसद को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा देना।

जहाज़ निर्माण क्षेत्र में निवेश भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • आर्थिक विकास और वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी का विस्तार: जहाज़ निर्माण में निवेश से विनिर्माण को बढ़ावा मिलने, रोज़गार सृजन और इस्पात एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सहायक उद्योगों को सशक्त करने के माध्यम से गुणक प्रभाव अर्थात् पूरे अर्थव्यवस्था में कई अन्य लाभ उत्पन्न हो सकते हैं।
    • भारत के बढ़ते वैश्विक व्यापार के साथ, एक सुदृढ़ घरेलू जहाज़ निर्माण क्षेत्र विदेशी निर्भरता को कम कर सकता है और निर्यात बढ़ा सकता है।
    • भारत का जहाज़ निर्माण उद्योग 90 मिलियन डॉलर (वर्ष 2022) से बढ़कर 1.12 बिलियन डॉलर (वर्ष 2024) हो गया तथा वर्ष 2033 तक 8 बिलियन डॉलर (60% CAGR) होने का अनुमान है।
  • सामरिक और रक्षा तैयारी: एक सुदृढ़ जहाज़ निर्माण क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो युद्धपोतों, पनडुब्बियों और गश्ती जहाज़ों के निर्माण में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है। 
    • स्वदेशी जहाज़ निर्माण को सुदृढ़ करना आत्मनिर्भर भारत के साथ संरेखित है, जिससे विदेशी निर्भरता कम होगी और समुद्री सीमाओं को अधिक प्रभावी ढंग से सुरक्षित किया जा सकेगा।
    • प्रोजेक्ट 75 के अंतर्गत छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों (कलवरी श्रेणी) का निर्माण स्वदेशी रूप से (मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड, मुंबई में) किया गया है।
  • तटीय और ब्लू इकॉनमी विकास को समर्थन: जहाज़ निर्माण भारत की ब्लू इकॉनमी का एक अभिन्न अंग है, जिसमें मात्स्यिकी, बंदरगाह विकास और समुद्री पर्यटन शामिल हैं। 
    • एक सुदृढ़ जहाज़ निर्माण उद्योग अंतर्देशीय और तटीय शिपिंग को बढ़ाता है, रसद लागत को कम करता है और सड़क व रेल नेटवर्क पर भीड़भाड़ को कम करता है। 
      • इसके अतिरिक्त, यह भारत को खनिजों और हाइड्रोकार्बन के लिये गहन सागरीय अन्वेषण में सहायता प्रदान कर सकता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा में सुधार होगा।
    • ब्लू इकॉनमी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 4% का योगदान देती है। सागरमाला कार्यक्रम का लक्ष्य बंदरगाह आधारित विकास, तटीय आर्थिक क्षेत्र और जलमार्ग विस्तार है।
  • नवीकरणीय और हरित शिपिंग को सुदृढ़ करना: नेट ज़ीरो 2070 लक्ष्यों के साथ, भारत को एक संधारणीय जहाज़ निर्माण क्षेत्र की आवश्यकता है जो न्यूनतम उत्सर्जन, ईंधन-कुशल जहाज़ों का उत्पादन करता हो। 
    • हरित हाइड्रोजन चालित और इलेक्ट्रिक जहाज़ों में निवेश से भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के मानदंडों का अनुपालन करने में मदद मिलेगी। 
    • ग्रीन शिपयार्ड विकसित करने से वैश्विक संधारणीय नौ-परिवहन में भारत की स्थिति भी मज़बूत होगी।
      • कोचीन शिपयार्ड ने भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के अनुरूप, वर्ष 2024 में भारत की पहली हाइड्रोजन ईंधन चालित नौका लॉन्च की।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की भूमिका को बढ़ाना: एक सुदृढ़ जहाज़ निर्माण क्षेत्र वैश्विक समुद्री आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति को मज़बूत करता है, जिससे यह जहाज़ निर्माण, मरम्मत और पट्टे के लिये एक पसंदीदा गंतव्य बन गया है। 
    • इससे पूर्वी एशियाई देशों पर निर्भरता कम हो जाएगी और यह वैश्विक आपूर्ति शृंखला विविधीकरण के रुझान के अनुरूप हो जाएगा। 
    • भारत समुद्री विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भी आकर्षित कर सकता है।

भारत में जहाज़ निर्माण क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • प्रतिस्पर्द्धी जहाज़ निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: भारत का जहाज़ निर्माण उद्योग लंबी निर्माण समयसीमा और असंगत गुणवत्ता मानकों से ग्रस्त है, जिससे भारत द्वारा निर्मित जहाज़ वैश्विक बाज़ार में कम प्रतिस्पर्द्धी बन जाते हैं। 
    • चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के विपरीत, भारत में निकटस्थ शिपयार्ड, कलपुर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं तथा उन्नत अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं वाले एक अच्छी तरह से एकीकृत समुद्री क्लस्टर का अभाव है।
    • इसके अतिरिक्त, प्रशासनिक बाधाओं के कारण परियोजना निष्पादन में विलंब से प्रतिस्पर्द्धात्मकता और कम हो जाती है।
    • वैश्विक जहाज़ निर्माण में भारत मात्र 0.06% हिस्सेदारी के साथ 20वें स्थान पर है, जबकि अकेले चीन की हिस्सेदारी 50% से अधिक है।
      • भारतीय शिपयार्डों का वार्षिक जहाज़ निर्माण उत्पादन केवल 0.072 मिलियन GT है, जिसे मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV) वर्ष 2030 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वर्ष 2030 तक 0.33 मिलियन GT तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • उच्च पूंजी लागत और वित्तपोषण का अभाव: जहाज़ निर्माण एक पूंजी-प्रधान उद्योग है, जिसमें शिपयार्ड, मशीनरी और कुशल श्रम में महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है। 
    • भारतीय जहाज़ निर्माता कंपनियों को कम लागत पर वित्तपोषण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जबकि उनके वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों को मज़बूत सरकारी समर्थित वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। 
      • दीर्घकालिक जहाज़ निर्माण ऋण सुविधाओं तथा समर्पित समुद्री वित्तपोषण संस्थान का अभाव भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता को और कमज़ोर करता है।
    • चीन अपने घरेलू जहाज़ निर्माण उद्योग को भारी सब्सिडी देता है, जबकि विदेशी प्रतिस्पर्द्धियों पर प्रतिबंध लगाता है, जिससे गैर-चीनी जहाज़ निर्माताओं की बाज़ार पहुँच सीमित हो जाती है, जबकि भारतीय शिपयार्ड महंगे वाणिज्यिक बैंक ऋणों पर निर्भर रहते हैं।
  • आयातित कच्चे माल और घटकों पर भारी निर्भरता: भारत के जहाज़ निर्माता समुद्री ग्रेड स्टील, नेविगेशन सिस्टम और प्रणोदन उपकरण जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भर हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च लागत एवं आपूर्ति शृंखला कमज़ोरियाँ उत्पन्न होती हैं। 
    • मेक इन इंडिया के बावजूद जहाज़ निर्माण घटकों का घरेलू विनिर्माण अपर्याप्त बना हुआ है।
    • गिरावट के बावजूद भी भारत ने वर्ष 2023 में 479.60 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के जहाज़ों, नावों और फ्लोटिंग अवसंरचनाओं का आयात किया।
  • बुनियादी अवसंरचना की बाधाएँ और आधुनिक शिपयार्डों का अभाव: भारत के शिपयार्ड वैश्विक अग्रणी देशों की तुलना में छोटे और कम स्वचालित हैं, जिसके कारण उत्पादन लागत अधिक है तथा निर्माण समय भी अधिक लगता है। 
    • कई सरकारी शिपयार्ड पुरानी मशीनरी और अपर्याप्त ड्राई डॉक्स के साथ काम करते हैं, जिससे बड़े जहाज़ निर्माण की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। 
      • इसके अलावा, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ और निम्नस्तरीय रसद व्यवस्था के कारण जहाज़ निर्माण आपूर्ति शृंखला में अकुशलताएँ बढ़ जाती हैं।
    • कोचीन शिपयार्ड का सबसे बड़ा ड्राई डॉक 310 मीटर का है, जबकि चीन का शंघाई वैगाओकियाओ शिपयार्ड विश्व का सबसे बड़ा ड्राई डॉक है, जहाँ बड़े जहाज़ बनाए जा सकते हैं।
  • जहाज़ निर्माण के लिये सुदृढ़ घरेलू बाज़ार का अभाव: चीन के विपरीत, जहाँ नए जहाज़ों की घरेलू मांग बहुत अधिक है, भारत की शिपिंग कंपनियाँ भारतीय शिपयार्डों से नए जहाज़ मंगवाने के बजाय अन्य विदेशी जहाज़ खरीदना पसंद करती हैं।
    • इसका कारण उच्च लागत, डिलीवरी की लंबी अवधि तथा भारत में निर्मित जहाज़ों के लिये वित्तपोषण विकल्पों का अभाव है। 
    • मज़बूत घरेलू ऑर्डर बुक के बिना, भारतीय शिपयार्ड उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने के लिये संघर्ष करते हैं।
  • कमज़ोर मरम्मत और रखरखाव इकोसिस्टम: यद्यपि भारत में व्यापारी नौसेना और रक्षा बेड़े में वृद्धि हो रही है, इसकी जहाज़ मरम्मत और प्रबंधन (MRO) क्षमताएँ अविकसित बनी हुई हैं।
    • वैश्विक जहाज़ मरम्मत बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम है। कई भारतीय जहाज़ मालिक लागत और गुणवत्ता संबंधी चिंताओं के कारण मरम्मत के लिये भारतीय शिपयार्ड के बजाय सिंगापुर, चीन या UAE को जहाज़ भेजना पसंद करते हैं।
    • अत्याधुनिक ड्राई डॉक और मरम्मत संबंधी बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण भारत की आकर्षक जहाज़ मरम्मत बाज़ार पर प्रभावी होने की क्षमता सीमित हो गई है।

भारत अपने जहाज़ निर्माण क्षेत्र के विकास में तीव्रता लाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • जहाज़ निर्माण घटकों के घरेलू विनिर्माण को सुदृढ़ करना: आयातित समुद्री-ग्रेड स्टील, प्रणोदन प्रणाली और नेविगेशन उपकरण पर निर्भरता को कम करना, भारतीय निर्मित जहाज़ों को लागत-प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • प्रमुख जहाज़ निर्माण घटकों को शामिल करने के लिये उन्नत विनिर्माण के लिये उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार किया जा सकता है, जिससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। 
    • इसके अतिरिक्त, मेक इन इंडिया को सागरमाला कार्यक्रम के साथ जोड़कर बंदरगाहों के निकट समर्पित समुद्री औद्योगिक क्षेत्र बनाए जा सकते हैं। 
      • संरचित तरीके से स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिये चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) भी शुरू किया जा सकता है।
  • समर्पित जहाज़ निर्माण वित्त की स्थापना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत एक समर्पित जहाज़ निर्माण और समुद्री वित्तपोषण संस्थान कम ब्याज दर पर ऋण, निर्यात ऋण एवं जहाज़ पट्टे के विकल्प प्रदान कर सकता है। 
    • संरचित वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिये इसे राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) से जोड़ा जा सकता है।
    • जहाज़ निर्माण निर्यात संवर्द्धन कोष, रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराकर भारतीय शिपयार्डों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में भी मदद कर सकता है।
  • मौजूदा शिपयार्ड अवसंरचना का पुनरुद्धार और विस्तार: उद्यम और सेवा केंद्रों का विकास (DESH) विधेयक- 2022 को पारित करने में तीव्रता लाने की आवश्यकता है, जिसका लाभ समुद्री SEZ बनाने के लिये उठाया जा सकता है, जिससे जहाज़ निर्माताओं को विश्व स्तरीय रसद, प्रौद्योगिकी और कर लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
    • कोचीन शिपयार्ड, मझगाँव डॉक और हिंदुस्तान शिपयार्ड जैसे मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्डों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत आधुनिक बनाया जाना चाहिये, जिससे वैश्विक विशेषज्ञता एवं निवेश को आमंत्रित किया जा सके।
    • इसके अलावा, भारत को रंगराजन आयोग की सिफारिश के अनुसार जहाज़ों को बुनियादी अवसंरचना की सूची में वर्गीकृत करने की आवश्यकता है।
  • भारत में निर्मित जहाज़ों के लिये सतत् घरेलू मांग का सृजन: भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) और बंदरगाह मंत्रालय को एक भारतीय खरीद नीति अपनानी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची के अनुरूप, भविष्य में सभी सरकारी और रक्षा जहाज़ के ऑर्डर भारतीय शिपयार्डों को ही दिये जाएं।
    • इसके अतिरिक्त, PM गति शक्ति पहल को जहाज़ निर्माण के साथ जोड़ने से मालवाहक जहाज़ों, यात्री नौकाओं और तटीय परिवहन जहाज़ों की मांग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और हरित नौवहन के साथ जहाज़ निर्माण को एकीकृत करना: भारत के नेट जीरो लक्ष्य- 2070 के साथ संरेखित करने के लिये, जहाज़ निर्माण क्षेत्र को शून्य उत्सर्जन, हरित हाइड्रोजन-संचालित और इलेक्ट्रिक जहाज़ों में विकसित होना चाहिये। 
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को हाइड्रोजन-संचालित जहाज़ों एवं ईंधन संबंधी बुनियादी अवसंरचना विकसित करने के लिये जहाज़ निर्माण के साथ एकीकृत किया जा सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, बैटरी भंडारण और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी हेतु PLI योजनाओं को विद्युत चालित अंतर्देशीय एवं तटीय जहाज़ों को बढ़ावा देने के लिये बढ़ाया जा सकता है, जिससे डीज़ल चालित जहाज़ों पर निर्भरता कम हो जाएगी।
  • अनुसंधान, नवाचार और कौशल विकास के लिये समुद्री क्लस्टर: उच्च स्तरीय अनुसंधान एवं विकास तथा उद्योग-अकादमिक सहयोग की कमी ने उन्नत जहाज़ निर्माण प्रौद्योगिकियों में भारत के नवाचार को धीमा कर दिया है। 
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न- 2030 के तहत एक राष्ट्रीय समुद्री नवाचार केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये, जो स्टार्टअप्स, रक्षा अनुसंधान एवं विकास और निजी जहाज़ निर्माणकर्त्ताओं को स्मार्ट जहाज़ों, AI-आधारित नेविगेशन मॉड्यूलर जहाज़ डिज़ाइन पर सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
    • जहाज़ निर्माण प्रशिक्षण संस्थानों के साथ कौशल भारत कार्यक्रम को एकीकृत करने से उद्योग के लिये कुशल श्रमिकों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है।
  • निजी शिपयार्डों के लिये वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन: वर्तमान में केवल कुछ ही सरकारी शिपयार्डों को प्रमुख रक्षा और वाणिज्यिक जहाज़ के ऑर्डर प्राप्त होते हैं, जिससे निजी भागीदारों का कम उपयोग हो पाता है। 
    • जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता नीति (SFAS) को वर्ष 2026 से आगे तक विस्तारित करने तथा इसकी अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाने से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है। 
    • नये शिपयार्डों की स्थापना और मौजूदा शिपयार्डों के उन्नयन के लिये प्रारंभिक पूंजी सब्सिडी प्रदान करने हेतु व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना को भी बढ़ाया जा सकता है।
  • वैश्विक जहाज़ निर्माण आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति को मज़बूत करना: भारत को जहाज़ों और समुद्री उपकरणों के लिये निर्यात केंद्र बनने के लिये ASEAN और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) का लाभ उठाना चाहिये।
    • हुंडई, मित्सुबिशी और Daewoo जैसी अग्रणी वैश्विक जहाज़ निर्माण कंपनियों के साथ सह-उत्पादन समझौते स्थापित करने से भारत को उन्नत जहाज़ निर्माण प्रौद्योगिकी हासिल करने में मदद मिल सकती है। 
  • प्रशासन संबंधी विलंब को कम करना और व्यापार में सुगमता बढ़ाना: भारत में जहाज़ निर्माण अनुमोदन प्रक्रिया जटिल है, जिसमें कई मंत्रालय और नियामक निकाय शामिल हैं। 
    • जहाज़ निर्माण अनुमोदन के लिये एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली स्थापित करने से विलंब कम हो सकता है, कर संरचना सरल हो सकती है, और लाइसेंसिंग सुचारू हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, राज्यों में कर प्रोत्साहनों में सामंजस्य स्थापित करने से निवेश आकर्षित होगा तथा नीतिगत असंगतियों को रोका जा सकेगा जो निजी भागीदारी को हतोत्साहित करती हैं।

निष्कर्ष: 

भारत के जहाज़ निर्माण क्षेत्र में आर्थिक विकास, समुद्री सुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति शृंखला एकीकरण के लिये अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन उच्च पूंजी लागत, पुरानी बुनियादी अवसंरचना एवं आयात पर भारी निर्भरता जैसी संरचनात्मक चुनौतियाँ प्रगति में बाधा डालती हैं। हालाँकि समुद्री विकास कोष और जहाज़ों के लिये बुनियादी अवसंरचना की स्थिति जैसी पहल सकारात्मक कदम हैं, फिर भी दृढ़ नीतिगत हस्तक्षेप, घरेलू विनिर्माण प्रोत्साहन और वित्तपोषण सहायता आवश्यक बने हुए हैं। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. अपनी रणनीतिक स्थिति और बढ़ते व्यापार के बावजूद, भारत का शिपिंग क्षेत्र अविकसित बना हुआ है, जिससे इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो रही है। प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और इसके पुनरुद्धार के लिये नीतिगत उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (सिम्पोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2017) 

  1. प्रारंभी (इनॉगुरल) IONS भारत में 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में हुआ था।
  2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों (स्टेट्स) की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाना चाहता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ [इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC)]' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2015)

  1. इसकी स्थापना अत्यंत हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. दक्षिण पूर्व एशिया ने भू-रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में समय और स्थान के साथ वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। निम्नलिखित में से कौन-सा इस वैश्विक परिप्रेक्ष्य के लिये सबसे अधिक ठोस व्याख्या है? (2011)

(a) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह सबसे सक्रिय युद्ध क्षेत्र था
(b) इसका चीन और भारत जैसी एशियाई शक्तियों के बीच स्थित होना
(c) शीत युद्ध काल के दौरान यह महाशक्तियों के बीच टकराव का क्षेत्र था
(d) प्रशांत और हिंद महासागर के बीच इसका स्थान और इसका उत्कृष्ट समुद्री स्थिति 

उत्तर: (d)

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