अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारतीय राजनय की महत्त्वाकांक्षाएँ और यथार्थता
- 20 Sep 2024
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यह संपादकीय 17/09/2024 को बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित "India's foreign policy dilemma: Balancing global ambitions & domestic needs" पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विकासशील राष्ट्र के रूप में वर्गीकृत भारत, 3.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होने के बावजूद आय असमानताओं का सामना कर रहा है, जो वैश्विक स्तर पर पांचवें स्थान पर है। जबकि यह सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था और विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश के रूप में महत्त्वपूर्ण क्षमता रखता है। भारत को वैश्विक शासन में अपनी भूमिका बढ़ाते हुए घरेलू कल्याण में सुधार की चुनौतियों का सामना करना होगा।
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) , विश्व बैंक , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) , मानव विकास सूचकांक , ब्रिक्स , 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता , मेक इन इंडिया , डिजिटल इंडिया , क्वाड , I2U2 , हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF) , भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) , थर्ड वाइस् ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, COP28 , ग्रीन क्रेडिट पहल , विशेष आहरण अधिकार , अग्नि-4 , चंद्रयान-3 मिशन , सार्क मेन्स के लिये:राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में भारतीय विदेश नीति का महत्त्व |
विश्व के सबसे बड़ा लोकतंत्र और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत वैश्विक प्रमुखता की तलाश में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलताओं से जूझते हुए भारत के सामने महत्त्वाकांक्षी वैश्विक आकांक्षाओं और स्वदेशी आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने की चुनौती है, जो उसकी विदेश नीति कार्यनीति का केंद्रीय संशय है।
भारत स्वयं को एक प्रमुख वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना चाहता है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक स्थायी सदस्यता की आकांक्षा रखता है और अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से निपटने के लिये ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करना है। यद्यपि, भारत को महत्त्वपूर्ण स्वदेशी बाधाओं का भी सामना करना पड़ रहा है, जिसमें प्रति व्यक्ति कम आय और विकास संबंधी प्राथमिकताएँ शामिल हैं जिनके लिये पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होती है।
भारत की वैश्विक महत्त्वाकांक्षाएँ क्या हैं?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता: भारत वैश्विक सुरक्षा मामलों पर अधिक प्रभाव डालने और अंतर्राष्ट्रीय संकटों से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करना चाहता है ।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक और सामरिक प्रभाव : भारत चीन के बढ़ते प्रभुत्व को संतुलित करने के लिये, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने आर्थिक और सामरिक प्रभाव का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच नेतृत्व: विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करना एक प्राथमिकता है, जिससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित किया जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान : भारत का लक्ष्य जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और खाद्य सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सक्रिय भूमिका निभाना है तथा सामूहिक वैश्विक प्रयासों में योगदान देना है।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में प्रतिनिधित्व : भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों को प्रतिबिंबित करने के लिये विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी संस्थाओं में अधिक प्रतिनिधित्व और निर्णयन की शक्ति की वकालत करता है।
- सैन्य और तकनीकी उन्नयन: सैन्य क्षमताओं और तकनीकी कौशल का विकास करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से एशिया में चीन के प्रति प्रतिबल के रूप में अपनी स्थिति बनाने के लिये।
- सॉफ्ट पावर का संवर्द्धन: भारत अपनी सांस्कृतिक सामरिक नीति को सुदृढ़ करना चाहता है और वैश्विक प्रभाव प्राप्त करने के लिये अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संवर्द्धित करते हुए अपनी लोकतांत्रिक साख का लाभ उठाना चाहता है।
भारत की वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- आर्थिक बाधाएँ :
- 2,500 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ, भारत में आय संबंधी असमानताएँ काफी अधिक हैं, जो व्यापक निर्धनता और असमानता की वास्तविकताओं को अस्पष्ट कर देती हैं।
- वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में भारत का योगदान केवल 3.6% है, जो अमेरिका (26.3%), यूरोपीय संघ (17.3%) और चीन (16.9%) की तुलना में कम है, जिससे विश्व मंच पर इसका प्रभाव सीमित हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत के पड़ोसी देशों में चीन का भारी निवेश भारत के क्षेत्रीय संबंधों को काफी प्रभावित कर रहा है। जैसे-जैसे ये देश बुनियादी ढाँचे और आर्थिक साझेदारी के माध्यम से चीन के साथ सबंधों को सुदृढ़ करते हैं, भारत के पारंपरिक प्रभाव को चुनौती मिलती है।
- मानव विकास सूचकांक में 193 देशों में से इसका स्थान 134वां है, जो निम्न मानव विकास स्तर को प्रदर्शित करता है।
- घरेलू विकास प्राथमिकताएँ :
- भारत को निर्धनता उन्मूलन, रोज़गार सृजन और सामाजिक संकेतकों में सुधार जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देना होगा, जिनके लिये पर्याप्त संसाधनों और ध्यान की आवश्यकता है।
- घरेलू प्राथमिकताओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के बीच संसाधनों को संतुलित करने की आवश्यकता है, जिससे विदेश नीति कार्यान्वयन जटिल हो जाता है।
- सीमित वैश्विक आर्थिक प्रभाव :
- पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत का सापेक्ष आर्थिक भार मामूली बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक आर्थिक नियमों और संस्थाओं को प्रभावित करने में चुनौतियाँ आती हैं।
- क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ :
- पाकिस्तान के साथ जारी तनाव तथा चीन के साथ अनसुलझे सीमा विवाद वैश्विक भागीदारी से ध्यान भटका रहे हैं और संसाधनों को दूर कर रहे हैं।
- बांग्लादेश और म्याँमार जैसे पड़ोसी देशों में अस्थिरता से सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ बढ़ गई हैं, जिनसे भारत को निपटना होगा।
- उदाहरण के लिये, बांग्लादेश में हाल ही में हुए शासन परिवर्तन के सुरक्षा से संबंधित दूरगामी परिणाम होंगे।
- चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा :
- चीन की अत्यधिक व्यापक आर्थिक और सैन्य क्षमताएँ तथा दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव, एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं।
- भारत को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन के साथ सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा में संतुलन बनाये रखना होगा।
- सीमित हार्ड पावर प्रक्षेपण क्षमताएँ :
- यद्यपि भारत ने सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयास शुरू कर दिये हैं, फिर भी वह उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी और बल प्रक्षेपण क्षमताओं के मामले में अन्य प्रमुख शक्तियों से पीछे है।
- विभिन्न सामरिक साझेदारियों में संतुलन:
- भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता से समझौता किये बिना भू-राजनीतिक तनावों से निपटते हुए, अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय देशों सहित विविध साझेदारों के साथ संबंधों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना होगा।
- उदाहरण के लिये, पश्चिमी देश भारत पर यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर मतदान करने के लिये दबाव डाल रहे हैं।
भारत की वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता:
- भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिये आम सहमति बनाने हेतु G-20 की अध्यक्षता तथा ब्रिक्स जैसे मंचों में अपनी सहभागिता का लाभ उठा रहा है।
- नवंबर 2023 में 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता के दौरान, अमेरिका ने भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अपने समर्थन की पुष्टि की, जिसे हाल ही में भारत, जापान और जर्मनी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिये अपने "दीर्घकालिक समर्थन" के रूप में दोहराया गया।
- आर्थिक सुधार और पहल :
- भारत ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने और विकास को प्रोत्साहित करने के लिये आर्थिक उदारीकरण नीतियों को कार्यान्वित किया है।
- " मेक इन इंडिया " जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देना है।
- डिजिटल इंडिया जैसी पहल डिजिटल परिवर्तन और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण के लिये, भूटान, फ्राँस, मॉरीशस, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश यूपीआई भुगतान स्वीकार करते हैं।
- राजनयिक संपर्क :
- भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर काम करते हुए "बहु-संरेखण" की नीति अपनाता है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने कोविड-19 के दौरान वैक्सीन कूटनीति (वैक्सीन मैत्रेयी) के माध्यम से देशों की सहायता की है और ऑपरेशन सद्भाव जैसे अभियानों के माध्यम से चक्रवात प्रभावित वियतनाम, लाओस और म्याँमार को और ऑपरेशन दोस्त - तुर्किये और सीरिया भूकंप राहत के लिये सहायता प्रदान की गई है।
- क्वाड (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ) और I2U2 (अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल के साथ) जैसे "लघु-संपार्श्विक" मंचों में सक्रिय भागीदारी सामरिक सहयोग के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।
- विश्वभर में भारतीय प्रवासी समुदायों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने से भारत की वैश्विक उपस्थिति बढ़ेगी।
- भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ मिलकर काम करते हुए "बहु-संरेखण" की नीति अपनाता है।
- क्षेत्रीय प्रभाव संवर्द्धन:
- मई 2022 में शुरू किये गए हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF) में भारत एक संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल हुआ, जिससे इसकी क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी बढ़ेगी।
- सितंबर 2023 में घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) का उद्देश्य क्षेत्र में भारत की संयोजकता और व्यापार को प्रोत्साहित करना है।
- " नेबरहुड फर्स्ट" नीति का उद्देश्य विकास सहायता और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के माध्यम से निकटतम पड़ोसियों के साथ संबंधों में सुधार करना है।
- "एक्ट ईस्ट " नीति का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक और सामरिक संबंधों को सुदृढ़ करना है, इसी प्रकार लुक वेस्ट पॉलिसी भारत द्वारा पश्चिम एशियाई देशों (जिन्हें पहले नज़रअंदाज़ किया गया था) के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये अंगीकृत सामरिक नीति है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में नेतृत्व:
- भारत ने अगस्त 2024 में थर्ड वाइस् ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी की, जिसमें जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित विभिन्न विकासात्मक प्राथमिकताओं पर बल दिया गया, साथ ही विकासशील देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
- G-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने अफ्रीकी संघ को G-20 का स्थायी सदस्य बनाने के लिये सफलतापूर्वक प्रयास किया।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान:
- दिसंबर 2023 में COP28 में, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की और ग्रीन क्रेडिट पहल शुरू की है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरूआत से वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा को अंगीकृत करने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त होगा।
- भारत ने विश्वभर के 150 से अधिक देशों को " मेड-इन-इंडिया " कोविड-19 वैक्सीन की आपूर्ति के लिये " वैक्सीन मैत्री " पहल शुरू की है।
- इसके अतिरिक्त भारत ने सितंबर 2023 में खाद्य सुरक्षा और संवहनीय कृषि पर G-20 घोषणापत्र में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में प्रतिनिधित्व:
- भारत विश्व बैंक और IMF में सुधारों की वकालत करता रहा है तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये मतदान अधिकार बढ़ाने पर बल देता रहा है।
- भारत के बढ़ते आर्थिक भार के कारण इसका IMF विशेष आहरण अधिकार कोटा 2.44% से बढ़कर 2.75% हो गया है, जिससे यह 8 वां सबसे बड़ा कोटा धारक देश बन गया है।
- सैन्य एवं तकनीकी प्रगति:
- हाल ही में भारत ने अग्नि-4 अंतरमहाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया, जिससे उसकी सामरिक प्रतिरोधक क्षमता में और वृद्धि हुई।
- रक्षा मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023-2024 में भारत का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपये तक पहुँच गया, जो विगत् वित्त वर्ष की तुलना में 32.5% की वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
- भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने उन्नत अंतरिक्ष क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए अगस्त 2023 में चंद्रयान-3 मिशन को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारा।
- भारत को आईटी सेवाओं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के केंद्र के रूप में बढ़ावा देने से इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि होगी।
- भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना , विशेषकर UPI, को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो गई है तथा कई देश इसे अंगीकृत करने पर विचार कर रहे हैं।
- सॉफ्ट पावर संवर्द्धन:
- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस वैश्विक राजनय और सहयोग के लिये एक मंच के रूप में विकसित हो गया है, जिससे भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विश्व के समक्ष प्रदर्शित करने और उसका प्रचार करने का अवसर मिला है।
- देश का फिल्म उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है तथा भारतीय सिनेमा को प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया जाता है।
आगे की राह क्या होना चाहिये?
- घरेलू नींव का सुदृढ़ीकरण:
- आय असमानताओं को संबोधित करते हुए जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा देने वाली नीतियों को प्राथमिकता दें। इसमें मानव विकास को बढ़ाने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे में निवेश करना शामिल है।
- कौशल विकास कार्यक्रमों और लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) को सहायता प्रदान करके, विशेष रूप से युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने पर ध्यान केंद्रित करना।
- सुनम्य साझेदारी के साथ सामरिक स्वायत्तता:
- समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी को सुदृढ़ करते हुए सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना तथा यह सुनिश्चित करना कि भारत के हितों की रक्षा हो।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये समर्थन गठबंधन बनाने के लिये राजनय प्रयास जारी रखना तथा अपने पक्ष को सुदृढ़ करने के लिये G-20 और ब्रिक्स मंचों का उपयोग करना।
- विकसित और विकासशील देशों के बीच की अंतराल को कम करने के लिये भारत की विशिष्ट स्थिति का लाभ उठाना तथा समावेशी संवाद को बढ़ावा देना।
- राजनय क्षमता का संवर्द्धन :
- वैश्विक चुनौतियों और अवसरों का बेहतर ढंग से समाधान करने के लिये राजनयिक दल का विस्तार और उनकी वृत्ति दक्षता में वृद्धि।
- भारत की बौद्धिक भागीदारी को बढ़ाने के लिये शैक्षिक विनिमय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- आर्थिक एवं सामरिक पहल:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार और सुरक्षा साझेदारी का विस्तार करना, चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये IPEF जैसे क्षेत्रीय ढाँचे में भागीदारी को बढ़ाना।
- वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नेतृत्व को सुदृढ़ करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास के लिये निधियन में वृद्धि करना।
- उदाहरण के लिये, हाल ही में भारत ने सिंगापुर के साथ अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र साझेदारी पर हस्ताक्षर किये हैं।
- सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक राजनय को प्रोत्साहन:
- अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और सिस्टर सिटी पहल जैसी पहलों के माध्यम से सांस्कृतिक राजनय को प्रोत्साहन देना तथा भारतीय कला और सिनेमा का वैश्विक प्रदर्शन, सद्भावना और मान्यता को बढ़ावा देना।
- भारतीय प्रवासियों का उपयोग करके सॉफ्ट पॉवर बढ़ाया जाएगा तथा मेज़बान देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करते हुए सांस्कृतिक राजदूत के रूप में कार्य किया जाएगा।
- वैश्विक चुनौतियों का समाधान:
- सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई के प्रति प्रतिबद्धताओं को संवर्द्धित करके भारत को नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकृत करने और जलवायु समुत्थानशीलता जैसे पर्यावरणीय पहलों में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत आतंकवाद के मुद्दे को संबोधित करने में भी सक्रिय रहा है।
- वैश्विक स्वास्थ्य साझेदारी को सुदृढ़ करने और अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत की भूमिका को बढ़ाने के लिये वैक्सीन मैत्री जैसी पहलों को अग्रेषित किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय संबंधों का सुदृढ़ीकरण:
- विकास सहायता और सहयोगी परियोजनाओं के माध्यम से स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये नेबरहुड फर्स्ट नीति को निरंतर परिष्कृत किया जा सकता है।
- सार्क जैसे क्षेत्रीय मंचों को पुनर्जीवित करते हुए संयोजकता और व्यापार संबंधों को बढ़ाने के लिये दक्षिण एशियाई सहयोग हेतु नए तंत्रों का अन्वेषण किया जा सकता है।
- एक व्यापक क्षेत्रीय सामरिक नीति के निर्माण हेतु व्यापार, सुरक्षा और सांस्कृतिक विनिमय को बढ़ाकर पश्चिम एशियाई देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार:
- उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये अधिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार का समर्थन किया जा सकता है जो भारत के बढ़ते आर्थिक महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
निष्कर्ष
वैश्विक शक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा चुनौतियों और अवसरों से युक्त है, जिसमें स्वदेशी विकास को अंतर्राष्ट्रीय आकांक्षाओं के साथ संतुलित करना शामिल है। जबकि इसकी बढ़ती आर्थिक क्षमता और जनसांख्यिकीय लाभ इसे वैश्विक स्तर पर अच्छी स्थिति में रखते हैं, जो निर्धनता और असमानता जैसे मुद्दे पर निरंतर ध्यान देने की मांग करते हैं।
क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं, चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा और स्वायत्तता से समझौता किये बिना विविध सामरिक साझेदारी को प्रबंधित करने की आवश्यकता के कारण संतुलन स्थापित करना जटिल है। जैसा कि भारत आर्थिक सुधारों, राजनय विस्तार और सैन्य आधुनिकीकरण को आगे बढ़ा रहा है, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाएँ महत्त्वपूर्ण घरेलू मुद्दों पर हावी न हों।
भारत को जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता से जूझना पड़ रहा है, इसलिये उसे सामरिक प्रयासों को बढ़ाना चाहिये और विविध हितधारकों को शामिल करना चाहिये। G20 और SCO जैसे प्रमुख शिखर सम्मेलनों की मेज़बानी क्षेत्रीय अस्थिरता को संबोधित करते हुए अपने प्रभाव को व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान करती है। अपनी बाज़ार क्षमता और नवाचार का लाभ उठाकर, भारत अपनी वैश्विक भूमिका को सुदृढ़ कर सकता है एवं घरेलू स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है, जो अंततः भविष्य की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न स्वदेशी विकासात्मक प्राथमिकताओं के साथ अपनी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं को संतुलित करने में भारत के समक्ष प्रस्तुत होने वाली चुनौतियों का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015) |