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संसद टीवी संवाद


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पश्चिम एशिया में सहयोग बढ़ाना

  • 29 Oct 2021
  • 15 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और इज़रायल ने अपने विदेश मंत्रियों की पहली बैठक आयोजित की। यह महत्त्वपूर्ण बैठक भारत के केंद्रीय विदेश मंत्री की इज़रायल यात्रा के दौरान हुई।

प्रमुख बिंदु

  • नया क्वाड: इस मीटिंग को मीडिया पश्चिमी क्वाड के रूप में संबोधित कर रहा है क्योंकि यह पश्चिम एशियाई भू-राजनीति में बदलाव और मध्य-पूर्व में एक और क्वाड जैसे समूह के गठन की मज़बूत अभिव्यक्ति है।
    • यह गठबंधन अभी तक संस्थागत नहीं है लेकिन नवंबर 2021 के लिये इन चार देशों की एक बैठक की योजना बनाई गई है।
  • महत्त्वपूर्ण मुद्दे: पश्चिम एशियाई क्षेत्र में आमतौर पर बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ आर्थिक विकास, व्यापार, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, समुद्री सुरक्षा इस संगठन के महत्त्वपूर्ण मुद्दे है।
  • अब्राहम समझौता: सितंबर, 2020 में अमेरिका द्वारा मध्यस्थता किये जाने पर इज़रायल, यूएई और बहरीन ने अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे बाद में इज़रायल और कई अरब एवं खाड़ी देशों के बीच संबंध सामान्य हो गए।
  • भारत की पश्चिम एशियाई नीतियाँ: अब तक भारत की पश्चिम एशियाई नीतियों ने बड़े पैमाने पर अपने द्विपक्षीय संबंधों को एक-दूसरे से अलग रखने पर ज़ोर दिया है।
    • यूएई और इज़रायल को एक साथ लाने और उनका विलय करने की दिशा में यह पहला कदम है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल के साथ भारत के संबंध:
  • भारत-अमेरिका: भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध एक "वैश्विक रणनीतिक साझेदारी" के रूप में विकसित हुए हैं, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों लो लेकर हितों के बढ़ते अभिसरण पर आधारित है।
    • अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और वर्ष 2020-21 के दौरान इसने भारत में एफडीआई के दूसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में मॉरीशस का स्थान ले लिया है।
  • भारत-यूएई: संयुक्त अरब अमीरात वर्तमान में भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने औपचारिक रूप से भारत-यूएई सीईपीए (CEPA) पर बातचीत शुरू की।
    • यूएई भारत के लिये आठवाँ सबसे बड़ा निवेशक है।
    • भारत के बुनियादी ढाँचे को विकसित करने और भारत व अरब की खाड़ी के बीच आर्थिक गलियारे को विकसित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात द्वारा काफी निवेश किया जा रहा है।
    • संयुक्त अरब अमीरात में भारत का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय भी है और उसने संयुक्त अरब अमीरात के आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है।
  • भारत-इज़रायल: भारत का इज़रायल के साथ लंबे समय से गहरा संबंध है, जिसकी शुरुआत रक्षा क्षेत्र से हुई है और अब इसमें प्रौद्योगिकी, निवेश व व्यापार शामिल है।
    • दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ।
    • भारत एशिया में इज़रायल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। हीरों का व्यापार द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 40% है।
    • इसके अलावा इज़रायल अब लगभग दो दशकों से भारत के शीर्ष चार हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है (सैन्य निर्यात हर साल लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का है)।
  • भारत और अन्य पश्चिम एशियाई देश: द्विपक्षीय स्तर पर भारत के पश्चिम एशियाई देशों के साथ उत्कृष्ट संबंध हैं।
    • यह उन बहुत कम देशों में से है जिनके ईरान के साथ अच्छे संबंध हैं, जबकि इस नए क्वॉड के अन्य तीन देशों के संबंध ईरान के साथ सामान्य नहीं हैं।
    • यद्यपि संयुक्त अरब अमीरात इस संबंध में कुछ पहल कर रहा है फिर भी संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) या ईरानी परमाणु समझौते के पुनरुद्धार से संबंधित कुछ गंभीर समस्याएँ हैं।

नए क्वाड में सहयोग के क्षेत्र:

  • कनेक्टिविटी: भारत संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ एक कनेक्टिविटी कॉरिडोर का निर्माण कर रहा है जो भारत से अरब प्रायद्वीप में अरब की खाड़ी तक इज़रायल, जॉर्डन और वहाँ से यूरोपीय संघ तक जाता है।
    • यदि यह गलियारा पूरा हो जाता है तो भारत कंटेनर को ले जाने की लागत में उल्लेखनीय रूप से कटौती करने में सक्षम होगा (उदाहरण के लिये मुंबई से ग्रीस तक 40% से अधिक)।
    • यह संपर्क अभी तक जान-बूझकर विकसित नहीं किया गया था, क्योंकि पश्चिम एशिया के कुछ देशों इराक, सीरिया, लेबनान, ईरान और अफगानिस्तान  में अस्थिरता बढ़ रही है।
    • भारत को इस क्षेत्र में एक वैकल्पिक और अधिक स्थिर आर्थिक गलियारे की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी: वर्तमान युग में सभी देश प्रौद्योगिकी के महत्त्व को समझते हैं।
    • इज़रायल को पहले से ही एक स्टार्टअप राष्ट्र कहा जाता है। भारत अपने आप में एक व्यापक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर रहा है।
    • यूएई भी यह मानता है कि विश्व अर्थव्यवस्था का भविष्य सिर्फ हाइड्रोकार्बन, तेल और गैस के इर्द-गिर्द नहीं है। इसे प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी काम करने की ज़रूरत है।
    • संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने भारत व इज़रायल में नई तकनीकों में बड़े पैमाने पर निवेश करना शुरू कर दिया है।
    • इन सभी साझेदारियों के लिये राजनीतिक आधार अब्राहम समझौते द्वारा स्थापित किया गया था जिससे संयुक्त अरब अमीरात और इज़रायल एक साथ काम कर सकेंगे।

संबंधित मुद्दे:

  • इज़रायल के लिये चुनौतियाँ: जहाँ तक ​​शांति की स्थापना और अरब-इज़रायल समस्या के समाधान का संबंध है, अब्राहम समझौता एक बड़ी सफलता है।
    • हालाँकि इस क्षेत्र के अन्य राज्य अभी भी इज़रायल के साथ मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने के अनिच्छुक हैं।
    • साथ ही ज़मीनी स्तर पर इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष अभी भी चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र है।
  • अरब दुनिया के आंतरिक संघर्ष:
    • ईरान-सऊदी: इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे के अलावा ईरान और सऊदी अरब के बीच शिया-सुन्नी संघर्ष भी चल रहा है जो इराक, सीरिया, लेबनान और यमन में भी जारी है।
    • सोमालिया: मोगादिशु (सोमालिया की राजधानी) में राज्य प्रणाली के ध्वस्त होने के कारण सोमालिया तट को लेकर भारत के सामने कई अप्रिय मुद्दे हैं।
    • यमन: यमन में लाल सागर, बाब-अल-मंडेब और अदन की खाड़ी में दो समूहों (शिया और सुन्नी) के बीच अंतर्राष्ट्रीय युद्ध की संभावना है जो समुद्री सुरक्षा के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय होगा।
      • इसी कारण यूएई, इज़रायल और अमेरिका के बीच सहयोग वास्तव में महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • देशों का संभावित विभाजन: अरब दुनिया में आंतरिक संघर्ष संभवतः भारत के महत्त्वपूर्ण साझेदारों जैसे ईरान को पूर्व से दूसरे समूह में विभाजित कर देगा।
      • यह स्थिति दो समूहों के निर्माण की दिशा में अग्रसर कर सकती है, जिसमें एक ओर चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान और तुर्की हैं, जबकि भारत, इज़रायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के दूसरी तरफ जाने की संभावना है।
    • मध्य-पूर्व में चीन की विस्तारवादी नीति: भारत को चीन की उपस्थिति पर भी ध्यान देना चाहिये जो इस क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहा है।
    • ईरान: ईरान अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के रूप में चीन पर निर्भर है। मार्च 2021 में चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये तेल की स्थिर आपूर्ति के बदले 25 वर्षों में ईरान में $ 400 बिलियन का निवेश करने पर भी सहमति व्यक्त की।
      • ईरान के साथ चीन सुरक्षा और सैन्य साझेदारी भी कर रहा है।
      • ईरान में बढ़ते चीनी कदमों का न केवल ईरान के साथ बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ भी भारत के संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
    • इज़रायल: चीन द्वारा इज़रायल के हाइफा बंदरगाह का विस्तार किया गया है; चीन ने हाइफा में डेढ़ अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है।
      • चीन अशदोद बंदरगाह भी बना रहा है जो भूमध्य सागर में इज़रायल का एकमात्र बंदरगाह है।
      • भारत और चीन दोनो के रणनीतिक सहयोगियों का चीन के प्रति झुकाव होना दोनों देशों के लिये चिंता का विषय है।
    • संयुक्त अरब अमीरात: साथ ही यूएई उन पहले देशों में से एक था, जिन्हें अपनी 5G परियोजना के लिये हुआवेई (एक चीनी बहुराष्ट्रीय कंपनी) की सहायता मिली थी।

Middle-East

आगे की राह

  • अवसर का लाभ उठाना: नया क्वाड सभी संबंधित देशों के लिये फायदे का सौदा है। जहाँ तक पश्चिम एशिया का संबंध है, भारत को अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की ज़रूरत है।
    • यह भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि इस क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक रूप से अस्थिरता बढ़ रही है।
    • भारत को इस क्षेत्र में बहुत सावधानी से आगे बढ़ना चाहिये जो बारूदी सुरंगों से भरा है, क्योंकि इस क्षेत्र पर भारत के मौलिक हित- ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, श्रमिक, व्यापार, निवेश और समुद्री सुरक्षा निहित हैं।
  • पश्चिम एशिया में अन्य भागीदारों को आश्वस्त करना: दो देशों- ईरान और मिस्र को विशेष रूप से आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि यह नई व्यवस्था उन पर लक्षित नहीं है।
    • उत्तर-दक्षिण गलियारा (चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के रास्ते) और बंदर अब्बास बंदरगाह (उज़्बेकिस्तान के रास्ते से मध्य एशिया तक) अब अफगानिस्तान में तालिबान शासन और चीन के एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की संभावना के कारण दबाव में है।
    • भारत को ईरान को आश्वस्त करना चाहिये कि वह अभी भी गलियारे के निर्माण में रुचि रखता है।
    • भारत के लिये अफगानिस्तान के वर्तमान संदर्भ में ईरान महत्त्वपूर्ण है। भारत को इस क्षेत्र में कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों तरह की चुनौतियों से निपटना होगा।
    • भारत को मिस्र को भी आश्वस्त करने की आवश्यकता है क्योंकि कई मायनों में कनेक्टिविटी कॉरिडोर और समुद्री सुरक्षा के कुछ तत्त्व स्वेज नहर, लाल सागर और उस क्षेत्र में मिस्र के प्रभुत्व का उल्लंघन करेंगे।
    • इस गठबंधन में सभी चार देशों के साथ मिस्र के मैत्रीपूर्ण संबंध हैं लेकिन उसे आश्वस्त किया जाना चाहिये कि वह आर्थिक या राजनीतिक रूप से प्रभावित नहीं होगा।
  • चारों देशों के बीच आपसी सहयोग: चारों देशों को यह देखने की ज़रूरत है कि उनके हित कहाँ मिलते हैं; स्वास्थ्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचा, समुद्री सुरक्षा आदि।
    • कुछ अमेरिकी कंपनियों को चीन में अपनी उपस्थिति कम करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है। कंपनियाँ भारत को एक संभावित स्टेशन के रूप में देख रही हैं जहाँ नए कारखानों और कार्यबल को स्थानांतरित किया जा सकता है।
    • भारत कार्यबल की आपूर्ति के लिये स्थिरता का एक प्रमुख स्रोत प्रदान कर सकता है।
    • भारत से कार्यबल, संयुक्त अरब अमीरात से पूंजी और अमेरिका तथा इज़रायल से प्रौद्योगिकी व कुशल जनशक्ति को उत्पादक पहलुओं के तालमेल के लिये एक साथ रखा जा सकता है।

निष्कर्ष:

ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ चारों देश आगे सहयोग कर सकते हैं, प्रौद्योगिकी और कनेक्टिविटी उनमें से महत्त्वपूर्ण हैं।

पश्चिम एशियाई क्षेत्र की जटिलताओं से निपटने में काफी चुनौतियाँ हैं। भारत के लिये उनमें से प्रत्येक के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने हेतु प्रतिद्वंद्वी देशों को कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से संतुलित करना आवश्यक है।

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