वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 | 06 Aug 2024

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, यूरोपीय संघ, डिजिटलीकरण, सकल घरेलू उत्पाद, गिनी सूचकांक, मुद्रास्फीति, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, हरित हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष 

मेन्स के लिये:

वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024, वैश्विक आर्थिक प्रभाव, भारतीय अर्थव्यवस्था और मिडिल इनकम ट्रैप

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट "वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024: मिडिल इनकम ट्रैप" में आगामी दशकों में उच्च आय का दर्जा हासिल करने में भारत समेत 100 से अधिक देशों के समक्ष आने वाली महत्त्वपूर्ण चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।

वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • मिडिल इनकम ट्रैप:
    • भारत तथा चीन उन 100 देशों में शामिल हैं, जो "मिडिल इनकम ट्रैप" में फँसने के जोखिम में हैं, जहाँ देश मध्यम आय से उच्च आय की स्थिति में पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं।
      • भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो अनुकूल जनसांख्यिकी और डिजिटलीकरण में प्रगति से लाभान्वित है, लेकिन अतीत की तुलना में मुश्किल बाह्य वातावरण का सामना कर रहा है।
      • भारत के वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य में एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो अलग-अलग क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र आर्थिक प्रदर्शन को बढ़ावा देता है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 के बाद से केवल 34 मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ ही उच्च आय वाली स्थिति में पहुँच पाई हैं, जो प्रायः यूरोपीय संघ के एकीकरण या तेल भंडार जैसी विशेष परिस्थितियों का परिणाम  है।
    • मध्यम आय वाले देशों को भौतिक पूंजी पर घटते प्रतिलाभ (Diminishing Return) के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास को बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • कम आय वाले देशों को भौतिक पूंजी के निर्माण और भारत जैसे बुनियादी शिक्षा में सुधार से लाभ होता है, जहाँ वर्ष 1980 के दशक में पूंजी गहनता महत्त्वपूर्ण थी, जिसमें मध्यम आय वाले देशों को आगे निवेश करने पर घटते प्रतिलाभ (Diminishing Return) का सामना करना पड़ता है।
      • हालाँकि विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये केवल बचत और निवेश दरों में वृद्धि करना पर्याप्त नहीं है; इन देशों को भौतिक पूंजी से परे कारकों को भी संबोधित करने की आवश्यकता है।
        • अपेक्षाकृत उच्च पूंजीगत निधि (High Capital Endowments) होने के बावज़ूद मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ उत्पादकता संबंधी मुद्दों से जूझती हैं, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि मात्र भौतिक पूंजी अग्रिम विकास के लिये मुख्य बाधा नहीं है।
    • विश्व बैंक कई मध्यम आय वाले देशों की आलोचना करता है क्योंकि वे पुरानी आर्थिक रणनीतियाँ अपना रहे हैं, जो मुख्य रूप से निवेश बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
  • वैश्विक आर्थिक प्रभाव:
    • मध्यम आय वाले देशों में छह अरब से अधिक लोग रहते हैं, जो वैश्विक जनसंख्या के 75% भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 40% से अधिक उत्पन्न करते हैं।
      • उच्च आय का दर्जा प्राप्त करने में इन देशों की सफलता या विफलता वैश्विक आर्थिक समृद्धि को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगी।
  • प्रति व्यक्ति आय असमानता:
    • भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन अगर मौज़ूदा रुझान जारी रहे तो इसकी प्रति व्यक्ति आय को अमेरिकी आय के स्तर के एक चौथाई तक पहुँचने में 75 वर्ष लगेंगे
      • चीन को प्रति व्यक्ति अमेरिकी आय के एक चौथाई तक पहुँचने में 10 वर्ष, इंडोनेशिया को लगभग 70 वर्ष और भारत को 75 वर्ष लगेंगे।
  • चुनौतियाँ और जोखिम:
    • मध्यम आय वाले देशों को महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें बढ़ती उम्र की आबादी, बढ़ता कर्ज, भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक संघर्ष और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ शामिल हैं। 
      • यदि ये देश मौज़ूदा रुझानों के साथ चलते रहे तो सदी के मध्य तक इनके सामाजिक रूप से समृद्धि प्राप्त न कर पाने का जोखिम बना रहेगा।
  • रणनीतिक सिफारिशें:
    • 3i रणनीति: रिपोर्ट ने देशों को उच्च आय की स्थिति तक पहुँचने के लिये तीन-चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश की:
      • 1i चरण: निम्न आय वाले देशों के लिये निवेश पर ध्यान केंद्रित करना।
      • 2i चरण: निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये विदेशी प्रौद्योगिकियों का निवेश और अंतः प्रवाह।
      • 3i चरण: उच्च-मध्यम आय वाले देशों के लिये निवेश, अंतः प्रवाह और नवाचार।
    • रिपोर्ट में दक्षिण कोरिया का उदाहरण देते हुए यह प्रदर्शित किया गया है कि वर्ष 1960 में 1,200 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय से प्रारंभ होकर दक्षिण कोरिया क्रमिक रूप से 3i रणनीति को अपनाकर वर्ष 2023 तक 33,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • नीतिगत सिफारिशें:
    • भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो अलग-अलग क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र आर्थिक प्रदर्शन को बढ़ावा देता है।
    • परिचर्चाओं (जैसे, विनिर्माण बनाम सेवाएँ) के बजाय क्षैतिज नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • प्रौद्योगिकी एवं नवाचार को सक्षम करने के लिये शिक्षा और कौशल में सुधार पर ज़ोर देना।
    • ज्ञान हस्तांतरण को बढ़ाने के लिये विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच संबंधों को मज़बूत करना
    • भारत डिजिटलीकरण में अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड के साथ प्रौद्योगिकी संबंधी तैयारियों में सक्षम है। हालाँकि इन तकनीकों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और उनका उपयोग करने के लिये फर्मों में अधिक गतिशीलता की आवश्यकता है।
    • रिपोर्ट भारत में सूक्ष्म उद्यमों की व्यापकता पर प्रकाश डालती है और यह सुझाव देती है कि लघु फर्मों के पक्ष में नीतियों के कारण उत्पादक फर्मों के विकास में बाधाएँ मौज़ूद हैं।

मिडिल इनकम ट्रैप क्या है?

  • मिडिल इनकम ट्रैप से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति से है, जहाँ कोई देश मध्यम आय की स्थिति तक पहुँचने के बाद, उच्च आय की स्थिति में पहुँचने के लिये संघर्ष करता है।
    • सामान्यतः यह तब होता है जब तीव्र विकास की प्रारंभिक अवधि के पश्चात् आर्थिक विकास भी धीमा हो जाता है और देश उच्च आय के स्तर पर पहुँचे बिना मध्यम आय के स्तर पर ही अटक जाता है।
  • विश्व बैंक के अनुसार, मिडिल इनकम ट्रैप से तात्पर्य आर्थिक स्थिरता से है, जिसका सामना देश तब करते हैं, जब उनकी प्रति व्यक्ति GDP संयुक्त राज्य अमेरिका के स्तर का लगभग 10% या वर्तमान में लगभग 8,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाती है।
  • कम आय वाले देशों में प्रायः न्यूनतम मज़दूरी, सस्ता श्रम और बुनियादी तकनीक की सुदृढ़ता जैसे कारकों के कारण संक्रमण के दौरान मध्यम आय के स्तर पर तीव्र वृद्धि होती है।
    • मध्यम आय के चरण में, देशों को प्रारंभिक विकास चालकों का समापन, संस्थागत कमज़ोरियों, आय असमानता और नवाचार की कमी के कारण स्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।
  • वर्तमान स्थिति: वर्ष 2023 के अंत तक 108 देशों को मध्यम आय के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिनकी प्रति व्यक्ति GDP 1,136 अमेरिकी डॉलर से 13,845 अमेरिकी डॉलर के बीच थी।
    • ये देश वैश्विक आबादी के 75% भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैश्विक GDP का 40% से अधिक उत्पादन करते हैं, जो 60% से अधिक कार्बन उत्सर्जन में योगदान करते हैं।
    • वर्ष 2006 तक विश्व बैंक ने भारत को निम्न आय वाले राष्ट्र के रूप में श्रेणीबद्ध किया था। वर्ष 2007 में भारत निम्न-मध्यम आय समूह में परिवर्तित हो गया और तब से उसी श्रेणी में बना हुआ है।
      • अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत की वृद्धि निम्न-मध्यम आय स्तरों पर मंद रही है, प्रति व्यक्ति आय 1,000 अमेरिकी डॉलर से 3,800 अमेरिकी डॉलर के बीच स्थिर रही है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत की वृद्धि मुख्य रूप से शीर्ष 100 मिलियन लोगों द्वारा संचालित की गई है साथ ही यह चेतावनी भी दी कि यह मॉडल चिरस्थायी नहीं हो सकता है।

आय की स्थिति सुधारने हेतु भारत को किन चुनौतियों पर काबू पाना होगा?

  • आय असमानता: भारत पिछले दो दशकों से लगभग 35 के गिनी सूचकांक के साथ उच्च स्तर की खपत असमानता से जूझ रहा है। यह असमानता व्यापक-आधारित आर्थिक विकास को सीमित करती है और समावेशी विकास में बाधा डालती है।
    • हालाँकि भारत ने वर्ष 2011 और 2019 के बीच गरीबी उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद गरीबी उन्मूलन की गति धीमी हो गई है। यह गहरी आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिये चल रहे संघर्षों को इंगित करता है।
  • विकास और मुद्रास्फीति को संतुलित करना: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उच्च ब्याज दरें मांग को कम कर सकती हैं और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती हैं। भारत को मुद्रास्फीति के दबावों के साथ विकास को संतुलित करने के लिये मौद्रिक नीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
    • मुद्रास्फीति को बढ़ाए बिना विकास को बनाए रखने के लिये रणनीतिक राजकोषीय प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रति व्यक्ति आय: भारत की प्रति व्यक्ति आय 4,256 अमेरिकी डॉलर की ऊपरी-मध्यम आय सीमा से काफी नीचे है। उच्च आय की स्थिति प्राप्त करने के लिये आने वाले वर्षों में प्रति व्यक्ति आय में पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता होगी।
    • यद्यपि भारत द्वारा वित्त वर्ष 31 तक 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक उपलब्धि प्राप्त कर लेने की उम्मीद है, लेकिन इस लक्ष्य को प्राप्त करने तथा उच्च-मध्यम आय की स्थिति में आने के लिये उसे 6.7% की औसत वार्षिक वृद्धि दर बनाए रखनी होगी।
  • श्रम बल भागीदारी: रोज़गार संकेतकों में सुधार के बावजूद, रोज़गार गुणवत्ता, वास्तविक मज़दूरी वृद्धि और श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी के विषय में चिंताएँ बनी हुई हैं।
    • ये मुद्दे समग्र आर्थिक उत्पादकता और विकास की समावेशिता को प्रभावित करते हैं।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि भारत को बढ़ते कार्यबल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वर्ष 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख गैर-कृषि रोज़गार सृजन की आवश्यकता है।
  • आर्थिक विविधीकरण: यद्यपि खनन, विनिर्माण, निर्माण और सेवाएँ विकास के प्रमुख चालक हैं, फिर भी भारत को किसी एक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिये निरंतर विविधीकरण सुनिश्चित करना चाहिये।
    • भारत का लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 31 तक विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 20% से अधिक का योगदान दे। इस वृद्धि को बनाए रखना वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने, मूल्य शृंखलाओं को बढ़ाने और हरित बदलावों का समर्थन करने पर निर्भर करेगा।
  • पर्यावरण और जलवायु लचीलापन: वर्ष 2047 तक उच्च आय की स्थिति प्राप्त करने की भारत की आकांक्षा को वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
    • जलवायु लचीलेपन के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करना एक जटिल चुनौती है जिसके लिये हरित प्रौद्योगिकियों और सतत् प्रथाओं में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है।
    • देश को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी विकास रणनीति जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीली हो तथा साथ ही लोगों को व्यापक लाभ भी प्रदान करे।

भारत की आय स्थिति में सुधार के समर्थक कारक क्या हैं?

  • ग्लोबल  ऑफशोरिंग: भारत में सेवाओं की आउटसोर्सिंग में वृद्धि, जिसमें सॉफ्टवेयर विकास, ग्राहक सेवा और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग शामिल है।
    • वर्क-फ्रॉम-होम और वर्क-फ्रॉम-इंडिया मॉडलों की स्वीकृति से आउटसोर्स नौकरियों में रोज़गार की संख्या वर्ष 2030 तक दोगुनी होकर 11 मिलियन से अधिक हो सकती है, क्योंकि आउटसोर्सिंग पर वैश्विक व्यय वर्ष 2030 तक सालाना 180 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर लगभग 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने की उम्मीद है।
  • डिजिटलीकरण: भारत का आधार कार्यक्रम और इंडियास्टैक (डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना) डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे वित्तीय समावेशन तथा ऋण तक पहुँच में वृद्धि हो रही है।
    • अगले दशक में भारत का ऋण-GDP अनुपात 57% से बढ़कर 100% हो सकता है और उपभोक्ता व्यय 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना होकर 4.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें गैर-किराना खुदरा क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि होगी।
  • ऊर्जा परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा जैसे बायोगैस, इथेनॉल, ग्रीन हाइड्रोजन, पवन, सौर और जलविद्युत में महत्त्वपूर्ण निवेश।
    • दैनिक ऊर्जा खपत में 60% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे आयातित ऊर्जा पर निर्भरता कम होगी और जीवन स्तर में सुधार होगा।
    • ऊर्जा परिवर्तन से इलेक्ट्रिक समाधानों की नई मांग उत्पन्न होती है, जिससे निवेश में वृद्धि होती है तथा निवेश, रोज़गार और आय का एक अच्छा चक्र बनता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र: कॉर्पोरेट कर में कटौती, निवेश प्रोत्साहन और बुनियादी ढाँचे पर व्यय पूंजी निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • अनुमान है कि वर्ष 2031 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 15.6% से बढ़कर 21% हो जाएगा, जिससे भारत का निर्यात बाज़ार हिस्सा संभवतः दोगुना हो जाएगा।
    • भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर, नियामक बाधाओं को कम करके, बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके और कारोबारी माहौल में सुधार करके वैश्विक निवेशकों के लिये अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना जारी रख रहा है।
    • भारत की 14 उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाओं में उत्पादन, रोज़गार को बढ़ावा देने, विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ाने और अगले पाँच वर्षों में आर्थिक विकास में योगदान करने की क्षमता है, जिससे देश में विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने की क्षमता है।
  • सेवा क्षेत्र: वित्त वर्ष 2025 और 2031 के बीच सेवा क्षेत्र में 6.9% की वृद्धि होने की उम्मीद है। सेवाएँ भारत की वृद्धि का प्रमुख चालक बनी रहेंगी।
  • आर्थिक आकार: वर्ष 2031 तक सकल घरेलू उत्पाद को 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना कर 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक करने की संभावना।
    • अनुमान है कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज प्रति वर्ष 11% की दर से बढ़ेगा तथा वर्ष 2030 तक इसका बाज़ार आकार 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
    • अनुमान है कि वर्ष 2031 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा।
    • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार भारत की वर्तमान प्रति व्यक्ति GDP लगभग 2,850 अमेरिकी डॉलर है, जो इसे निम्न-मध्यम आय वर्ग में रखती है। हालाँकि CRISIL की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2031 तक भारत की प्रति व्यक्ति GDP 4,500 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगी।
  • उपभोग और आय वितरण:
    • आय के बढ़ते स्तर से समग्र उपभोग में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 
    • प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और आर्थिक विकास से घरेलू उपभोग को बढ़ावा मिलेगा।
    • गैर-किराना खुदरा, अवकाश और घरेलू सामानों में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ, उपभोक्ता व्यय वर्ष 2022 में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से दोगुना होकर दशक के अंत तक 4.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

मिडिल इनकम ट्रैप से बचने के लिये भारत को क्या रणनीति अपनानी चाहिये?

  • आय असमानता को संबोधित करना: धन का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिये नीतियों को लागू करना। इसमें प्रगतिशील कराधान, सामाजिक व्यय में वृद्धि और निम्न-आय वर्गों के लिये लक्षित सब्सिडी शामिल हो सकती है।
    • विभिन्न आय समूहों और क्षेत्रों के बीच असमानता को कम करने के लिये सामाजिक सुरक्षा संजाल और सहायता प्रणालियों को सुदृढ़ करना।
  • र्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देना: पारंपरिक क्षेत्रों से परे अर्थव्यवस्था में विविधता लाने पर ध्यान देना। प्रौद्योगिकी, नवकरणीय ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण जैसे उभरते उद्योगों में निवेश करना।
    • आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहित करना ताकि कुछ क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता को रोका जा सके और आर्थिक लाभ को अधिक समान रूप से विसरित किया जा सके।
  • उत्पादकता और नवाचार को बढ़ावा देना: अनुसंधान एवं विकास में निवेश के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देना और उत्पादकता बढ़ाने के लिये तकनीक-संचालित उद्योगों का समर्थन करना।
    • आधुनिक अर्थव्यवस्था की माँगों को पूरा करने के लिये शिक्षा और कौशल में सुधार पर ध्यान देना। व्यावसायिक प्रशिक्षण और उच्च शिक्षा पर ज़ोर देना।
  • स्थानीय विनिर्माण और उत्पादन का समर्थन करना: PLI योजनाओं जैसी नीतियों के माध्यम से स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करना। इससे आवश्यक वस्तुओं को अधिक किफ़ायती और प्रतिस्पर्द्धी बनाने में सहायता मिल सकती है।
    • कम लागत वाले लेकिन संभावित राज्यों में विनिर्माण को बढ़ावा देकर स्थानीय कौशल और संसाधनों का लाभ उठाना। यह दृष्टिकोण क्षेत्रीय असमानताओं और बेरोज़गारी को भी संबोधित कर सकता है।
  • समावेशी विकास को बढ़ावा देना: यह सुनिश्चित करना कि भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन एवं वितरण को प्राथमिकता दी जाए, ताकि वे आबादी के सभी वर्गों के लिये किफ़ायती हों।
    • ऐसी नीतियों को लागू करना, जिनसे रोज़गार के अवसर उत्पन्न हों और विभिन्न क्षेत्रों एवं समुदायों के जीवन स्तर में सुधार हो।
  • आर्थिक संस्थानों और शासन को मज़बूत करना: भ्रष्टाचार को कम करने और संसाधनों के उपयोग को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित करने के लिये आर्थिक संस्थानों की दक्षता और पारदर्शिता में सुधार करना
    • विनियमन को सुव्यवस्थित करने, व्यवसाय को आसान बनाने और निवेश आकर्षित करने के लिये संरचनात्मक सुधार करना।
  • सतत् विकास पर ध्यान देना: आर्थिक विकास संबंधी रणनीतियों को पर्यावरणीय चिरस्थायी लक्ष्यों के साथ संरेखित करना। हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करना और यह सुनिश्चित करना कि विकास का पर्यावरणीय स्वास्थ्य से समझौता न हो।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और कमज़ोर क्षेत्रों में लचीलापन बनाने के लिये रणनीतियाँ विकसित करना।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना: कम सेवा वाले क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों और व्यक्तियों के लिये ऋण तथा वित्तीय सेवाओं तक पहुँच में सुधार करके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना।
    • वित्तीय समावेशन को बढ़ाने और वित्तीय लेनदेन की दक्षता में सुधार करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना।

विश्व बैंक

  • विश्व बैंक की स्थापना वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर में संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के साथ पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतरराष्ट्रीय बैंक (International Bank for Reconstruction and Development- IBRD) के रूप में की गई थी।
  • IBRD बाद में विश्व बैंक बन गया। विश्व बैंक समूह पाँच संस्थाओं की एक वैश्विक साझेदारी है जो विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि बनाने के लिये स्थायी समाधान हेतु काम कर रही है। 
  • विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों में से एक है और भारत सहित 189 देश इसके सदस्य हैं।
  • विश्व बैंक की पाँच विकास संस्थाएँ: अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD), अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA), अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC), बहुपक्षीय गारंटी एजेंसी (MIGA), इंटरनेशनल और निवेश विवाद निपटान केंद्र (ICSID)।
    • भारत ICSID का सदस्य नहीं है, लेकिन विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिये विश्व बैंक (मुख्य रूप से IBRD और IDA के माध्यम से) से धन प्राप्त कर रहा है। भारत  IBRD, IDA  और IFCके संस्थापक सदस्यों में से एक है।
  • प्रमुख रिपोर्टें: ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (प्रकाशन बंद ), मानव पूंजी सूचकांक, विश्व विकास रिपोर्ट और वैश्विक आर्थिक संभावना (GEP) रिपोर्ट

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कई मध्यम आय वाले देशों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पुरानी आर्थिक रणनीतियों पर विश्व बैंक द्वारा की गई आलोचना का मूल्यांकन कीजिये। मध्यम आय के जाल से बचने के लिये भारत को कौन-सी वैकल्पिक रणनीति अपनानी चाहिये? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले ‘आई. एफ. सी. मसाला बॉन्ड (IFC Masala Bonds)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन), जो इन बॉन्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है। 
  2. ये रुपया अंकित मूल्य वाले बॉन्ड (Rupee-Denominated Bonds) हैं और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रक के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न: ‘व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक (Ease of Doing Business Index)’ में भारत की रैंकिंग समाचार-पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016)

(a) आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

उत्तर: (c)