जैव विविधता और पर्यावरण
हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाएँ
- 30 Aug 2021
- 5 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलविद्युत परियोजनाएँ मेन्स के लिये:हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा है कि ऊपरी गंगा क्षेत्र में किसी भी नई जलविद्युत परियोजना की अनुमति नहीं दी जाएगी और लोगों को स्वीकृत पर्यावरण नियमों का पालन करना होगा ताकि वर्ष के दौरान हर समय नदी में न्यूनतम प्रवाह निर्धारित कर इसके स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सके।
प्रमुख बिंदु
- संदर्भ:
- उत्तराखंड में सात परियोजनाओं को मुख्य रूप से इस आधार पर निर्माण पूरा करने की अनुमति दी गई है क्योंकि उनका 50% से अधिक कार्य पूर्ण है।
- ये सात परियोजनाएँ इस प्रकार हैं:
- टिहरी चरण 2: भागीरथी नदी पर 1000 मेगावाट
- तपोवन विष्णुगढ़ : धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट
- विष्णुगढ़ पीपलकोटी : अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट
- सिंगोली भटवारी : मंदाकिनी नदी पर 99 मेगावाट
- फटा भुयांग: मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट
- मध्यमहेश्वर : मध्यमहेश्वर गंगा पर 15 मेगावाट
- कालीगंगा 2: कालीगंगा नदी पर 6 मेगावाट
- मुद्दे:
- कार्यकर्त्ताओं ने इस बात पर चिंता जताई है कि दो परियोजनाओं- सिंगोली भटवारी और फटा भुयांग, जो विशेष रूप से केदारनाथ त्रासदी (2013) से जुड़ी थीं, को अनुमति दी गई है।
- फरवरी 2021 की बाढ़ में क्षतिग्रस्त विष्णुगढ़ परियोजना को भी प्रगति की अनुमति दी गई है, जबकि लापरवाही के कारण 200 से अधिक लोगों की मौत हुई क्योंकि वहाँ आपदा चेतावनी प्रणाली नहीं थी।
- जलविद्युत परियोजनाएँ, बाँध और निर्माण गतिविधियाँ नाजुक हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं, जिससे वे आपदाओं के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं।
- हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं की चुनौतियांँ:
- स्थिरता में कमी:
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान है।
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्पन्न होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को और अधिक बढ़ा देती है।
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान है।
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन ने मौसम के अनिश्चित पैटर्न को बढ़ा दिया है जैसे बर्फबारी और वर्षा में वृद्धि।
- बर्फ का थर्मल प्रोफाइल बढ़ रहा है, जिसका अर्थ है कि बर्फ का तापमान जो -6 से -20 डिग्री सेल्सियस तक होता था, अब यह घटकर -2 डिग्री सेल्सियस हो गया है, जिससे इस तापमान पर यह पिघलने के लियेअतिसंवेदनशील हो जाता है।
- आपदाओं की बारंबारता में बढ़ोतरी:
- बादलों के फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है तथा तीव्र वर्षा और हिमस्खलन के साथ इस क्षेत्र के निवासियों के जीवन और आजीविका के नुकसान का जोखिम बढ़ गया है।
- की गई पहल:
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है। इसका उद्देश्य हिमालय के ग्लेशियरों, पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण को बनाए रखने तथा उनकी सुरक्षा के उपायों को सुनिश्चित करना है।
- स्थिरता में कमी:
आगे की राह
- यह अनुशंसा की जाती है कि हिमालयी क्षेत्र में 2,200 मीटर की ऊँचाई से अधिक पर जलविद्युत विकास नहीं होना चाहिये।
- जनसंख्या वृद्धि और आवश्यक औद्योगिक एवं बुनियादी ढाँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए सरकार को जलविद्युत के विकास के लिये गंभीरता से विचार करना चाहिये ताकि अधिक पारिस्थितिकी तरीके से अर्थव्यवस्था का सतत् विकास सुनिश्चित किया जा सके।