मानव का विकास और प्रवास
स्रोत: द हिंदू
वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि होमो सेपियंस का विकास अफ्रीका में हुआ और तत्पश्चात् विश्व के अन्य भागों में उनका स्थान परिवर्तन हुआ। इन प्रवासों के मार्ग और काल अभी भी वैज्ञानिकों के लिये चर्चा का विषय हैं।
- कोस्टल डिस्पर्शन सिद्धांत के अनुसार मानव का समुद्रतटीय रेखाओं के अनुदिश प्रवास हुआ किंतु इसमें सिद्ध पुरातात्त्विक साक्ष्य का अभाव है।
मानव विकास
- मानव का विकास वह विकासीय प्रक्रम है जिसके कारण शारीरिक रूप से आधुनिक मानव का उद्भव हुआ, जिसकी शुरुआत प्राइमेट्स- विशेष रूप से होमो वंश के इतिहास से हुई और जिसके परिणामस्वरूप होमो सेपियंस का उद्भव होमिनिड वंश, ग्रेट एप की एक अलग प्रजाति के रूप में हुआ।
मानव विकास के चरण:
- ड्रायोपिथेकस
- रामापिथेकस
- ऑस्ट्रेलोपिथेकस
- होमो
- होमो हैबिलिस
- होमो इरेक्टस
- होमो सेपियंस
- होमो सेपियंस निएंडरथेलेंसिस
- होमो सेपियंस सेपियंस
मानव प्रवास का मार्ग क्या है?
पृष्ठभूमि:
- आनुवंशिक अध्ययनों से मानव विकास और प्रवासन प्रतिरूप के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए. उत्परिवर्तन का विश्लेषण करके, वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि हज़ारों वर्षों में होमो सेपियंस का विकास अफ्रीका में हुआ और तत्पश्चात् विश्व के अन्य भागों में उनका प्रवासन हुआ।
- यद्यपि वैज्ञानिक आउट ऑफ अफ्रीका सिद्धांत पर व्यापक सहमति व्यक्त करते हैं किंतु प्रवास के काल और मार्ग को लेकर उनमें मतभेद है।
मानव विस्तार के दो सिद्धांत:
- कोस्टल डिस्पर्सन सिद्धांत: किये गए अध्ययनों के अनुसार मनुष्य ने ऊष्ण जलवायु, प्रचुर भोजन और उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों की सहायता से तटों के अनुदिश प्रवास किया।
- वर्ष 2005 में 260 ओरंग असली (Orang Asli) व्यक्तियों (मलेशिया की जनजाति) के माइटोकॉन्ड्रियल डी.एन.ए. का उपयोग कर किये गए शोध के अनुसार लगभग 65,000 वर्ष पूर्व तेज़ी से तटीय प्रवास हुआ था, जिसमें हिंद महासागर के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया में प्रवास हुआ।
- वर्ष 2020 में किये गए एक अध्ययन में जापान में 2,700 वर्ष प्राचीन डी.एन.ए. में ताइवानी जनजातियों के साथ आनुवंशिक समानताएँ पाई गईं।
- अंडमान द्वीप समूह के अधिवास भी तटीय प्रवास से संबंधित हैं।
- सिद्धांत की चुनौतियाँ:
- भारत के पुरातात्त्विक साक्ष्य इस सिद्धांत के विपरीत है। अंतर्देशीय पुरापाषाण स्थल के साक्ष्य मौजूद हैं और कोस्टल डिस्पर्शन सिद्धांत के विपरीत संपूर्ण हिंद महासागर तटरेखा के अनुदिश प्रवास करने के कोई पुरातात्त्विक साक्ष्य नहीं हैं।
अंतर्देशीय विस्तार मॉडल: अंतर्देशीय विस्तार मॉडल के अनुसार प्रारंभिक मानव तटीय मार्गों के स्थान पर आंतरिक स्थलीय मार्गों से प्रवास करते थे।
- सौराष्ट्र प्रायद्वीप अध्ययन:
- हालिया शोध में गुजरात के भादर और अजी नदी द्रोणियों में मध्य पुरापाषाण काल के औजारों का विश्लेषण किया गया।
- सापेक्ष काल निर्धारण विधियों का उपयोग करने पर पाया गया कि ये औजार 56,000-48,000 वर्ष पुराने हैं, जिनसे अंतर्देशीय प्रवास के संकेत मिलते हैं।
- मध्य पुरापाषाण काल के औजारों में उन्नत फ्लेकिंग तकनीक का पता चला, जो उत्तर पुरापाषाण काल के तीक्ष्ण फलक औजारों से भिन्न था।
- अध्ययनों के अनुसार मध्य पुरापाषाण काल के दौरान सौराष्ट्र कच्छ, मकरान और पश्चिमी घाट से जुड़ा हुआ था, जो दर्शाता है कि यह क्षेत्र तट से दूर था।
- इसके अतिरिक्त समुद्री संसाधनों पर निर्भरता (जैसे- मछली, शंख) का कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिससे अंतर्देशीय प्रवास की पुष्टि होती है।
निष्कर्ष
- अध्ययन में नवीन डेटा प्रस्तुत किये गए हैं, लेकिन सटीक तिथि निर्धारण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है। साक्ष्य संपूर्ण रूप से तटीय प्रवास सिद्धांतों के विपरीत हैं लेकिन जलमग्न स्थलों और अदिनांकित क्षेत्रों के कारण गहन स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।
- अध्ययन में सौराष्ट्र में व्यापक विस्तार पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें तटीय, आंतरिक और अंतर्देशीय क्षेत्र शामिल हैं तथा जिससे बहुआयामी प्रवासन प्रतिरूप के संकेत मिलते हैं।
- अंतर्देशीय बनाम तटीय प्रवास प्रतिरूप के इस विस्तृत विश्लेषण में निरंतर नया डेटा जोड़ा जा रहा है जो आनुवंशिक और पुरातात्त्विक निष्कर्षों को एकीकृत करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. शब्द ‘डेनिसोवन (Denisovan)’ कभी-कभी समाचार माध्यमों में किस संदर्भ में आता है? (2019) (a) एक प्रकार के डायनासोर का जीवाश्म उत्तर: (b) |
आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड, 2024
स्रोत: डाउन टू अर्थ
राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) द्वारा वर्ष 2024 के आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड शीर्षक से हाल ही में जारी रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि आर्कटिक, जो कभी एक प्रमुख कार्बन सिंक था, अब जलवायु-प्रेरित ऊष्मा के कारण कार्बन का स्रोत बन रहा है।
नोट: NOAA, अमेरिका की एक संघीय एजेंसी है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय परिवर्तनों को समझना और पूर्वानुमान लगाना, तटीय एवं सागरीय संसाधनों का प्रबंधन करना तथा सूचित निर्णय लेने में सहायता करना है।
- आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड, जो वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष जारी किया जाता है, ऐतिहासिक अभिलेखों की तुलना में आर्कटिक की वर्तमान स्थिति पर विश्वसनीय और संक्षिप्त पर्यावरणीय जानकारी प्रदान करता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- आर्कटिक तापन में तेज़ी: आर्कटिक तेज़ी से गर्म हो रहा है। वर्ष 1900 में रिकॉर्ड शुरूआत से वर्ष 2024 दूसरा सबसे गर्म वर्ष होगा।
- वर्ष 2024 की आर्कटिक की ग्रीष्म ऋतु रिकॉर्ड स्तर पर तीसरी सबसे गर्म ग्रीष्म ऋतु होंगी, जिसमें अलास्का और कनाडा जैसे क्षेत्र अत्यधिक गर्म लहरों का सामना करेंगे।
- आर्कटिक टुंड्रा एक कार्बन स्रोत: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से आर्कटिक टुंड्रा कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में परिवर्तित हो रहा है।
- पर्माफ्रॉस्ट के विघटन से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जिससे वैश्विक तापन में तीव्रता आती है।
- वनाग्नि की आवृत्ति एवं तीव्रता बढ़ रही है, जिससे अधिक कार्बन उत्सर्जित हो रहा है तथा वनाग्नि का समय बढ़ रहा है।
- समुद्री हिम में कमी: पिछले दशकों में समुद्री हिम के विस्तार और सघनता में अत्यधिक कमी आई है। समुद्री हिम के मौसम की अवधि कम होने से समुद्र की सतह अधिक उद्भासित रहती है, जो अधिक ऊष्मा का अवशोषण करती है और ताप में वृद्धि होती है।
- आर्कटिक ग्लेशियर और ग्रीनलैंड हिम आवरण केपिघलने से इनका जल महासागरों में पहुँच रहा है, जिससे विश्व के समुद्र-स्तर में वृद्धि हो रही है।
- निहितार्थ: आर्कटिक में परिवर्तन होने से वैश्विक चुनौतियों जैसे तटीय बाढ़, चरम मौसम की घटनाओं और वनाग्नि का जोखिम बढ़ता है।
- आर्कटिक की कार्बन भंडारण की घटती क्षमता, आगामी खतरों को कम करने हेतु ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तत्काल कम करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण रेनडियर या कारिबू की संख्या में कमी आ रही है, जिससे भोजन और सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये उन पर निर्भर रहने वाले स्वदेशी समुदाय प्रभावित हो रहे हैं।
आर्कटिक क्या है?
- परिचय: आर्कटिक पृथ्वी का सबसे उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र है। इसमें आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र एवं अलास्का (अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस व स्वीडन के कुछ भाग शामिल हैं।
- आर्कटिक की विशेषता इसकी शीतल जलवायु है, जहाँ तापमान प्रायः अत्यधिक निम्न हो जाता है।
- भू-राजनीतिक महत्त्व: आर्कटिक क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें तेल, प्राकृतिक गैस और खनिज शामिल हैं, जो इन संसाधनों पर नियंत्रण के लिये महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय रुचि एवं प्रतिस्पर्द्धा को आकर्षित करता है।
- आर्कटिक क्षेत्र में भारत की रुचि: भारत ने वर्ष 1920 में स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर करके आर्कटिक क्षेत्र में सहभागिता की शुरुआत की।
- भारत ने वर्ष 2007 में अपना आर्कटिक अनुसंधान कार्यक्रम आरंभ किया तथा आर्कटिक महासागर में अपना पहला वैज्ञानिक अभियान आरंभ किया एवं 2008 में नॉर्वे के स्वालबार्ड द्वीपसमूह में हिमाद्रि अनुसंधान केंद्र की स्थापना की।
- भारत को वर्ष 2013 से आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- वर्ष 2022 में भारत सरकार ने जलवायु अनुसंधान में संलग्न होने के उद्देश्य से आर्कटिक नीति की घोषणा की। राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र इसके कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी होगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. 'मीथेन हाइड्रेट' के निक्षेपों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है/हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
डिज़ीज़ एक्स
स्रोत: द हिंदू
दिसंबर 2024 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में होने वाले प्रकोप के कारण 400 से अधिक लोगों की मृत्यु की संभावना है, जिससे डिज़ीज़ एक्स के बारे में चिंताएँ बढ़ेंगी।
डिज़ीज़ एक्स का परिचय:
- परिभाषा: विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2018 में एक अज्ञात रोगज़नक के लिये एक काल्पनिक शब्द जो वैश्विक महामारी को ट्रिगर करने में सक्षम है, जो उभरते रोगों को रोकने की तैयारी की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- उत्पत्ति: वर्ष 2014-2016 पश्चिम अफ्रीकी इबोला महामारी के बाद उभरा।
- स्रोत: वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी, कवक या प्रियन से उत्पन्न हो सकते हैं। वर्ष 1940 से अब तक 300 से अधिक उभरती बीमारियाँ उभरी हैं, जिसमें 70% जूनोटिक बीमारियाँ शामिल हैं।
- जोखिम कारक: उच्च जैवविविधता वाले क्षेत्र, कमज़ोर स्वास्थ्य सेवा (जैसे, कांगो बेसिन), वैश्विक संपर्क, जूनोटिक स्पिलओवर, वनोन्मूलन, कृषि, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, जैव आतंकवाद, प्रयोगशाला दुर्घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन भविष्यवाणियों को जटिल बनाते हैं।
शमन:
- त्वरित पहचान और प्रतिक्रिया के लिये मज़बूत निगरानी, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियाँ और CEPI जैसे प्लेटफॉर्म महत्त्वपूर्ण हैं।
- वैश्विक सहयोग, संसाधनों तक समान पहुँच, तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की रोगज़नक़ सूची, महामारी संधि और नागोया प्रोटोकॉल जैसे ढाँचे तैयारी के लिये आवश्यक हैं।
DRC:
- DRC अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा देश और विश्व का 11वाँ सबसे बड़ा देश है ।
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मैंगनीज़ संदूषण से कैंसर की संभावना
स्रोत: डाउन टू अर्थ
हाल ही में हुए एक अध्ययन में बिहार के गंगा के मैदानी क्षेत्रों में बढ़ते कैंसर के मामलों के लिये भूजल में मैंगनीज़ (Mn) संदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया गया। ब्लड सेंपल्स (औसत: 199 µg/L; उच्चतम: लीवर कैंसर के मरीज़ में 6,022 µg/L) और घरेलू हैंडपंप के जल में Mn का बढ़ा हुआ स्तर देखा गया है।
- अध्ययन में बिहार के 1,146 कैंसर रोगियों की जाँच की गई, जिसमें कार्सिनोमा सामान्य (84.8%) था।
घरेलू जल के सेंपल्स का मैंगनीज़ संदूषण के लिये परमाणु अवशोषण स्पेक्ट्रोफोटोमीटर का उपयोग करके परीक्षण किया गया है।
मैंगनीज़:
- यह पृथ्वी पर पाँचवीं सबसे प्रचुर धातु है, जो ऑक्साइड, कार्बोनेट और सिलिकेट के रूप में प्राकृतिक रूप से विद्यमान है।
- यह शरीर में होमियोस्टेसिस को बनाए रखने के लिये अल्प मात्रा में महत्त्वपूर्ण है, किंतु अधिक मात्रा में विषाक्त हो जाता है।
- WHO के अनुसार पीने योग्य जल में मैंगनीज़ की अनुशंसित सीमा 400 µg/L है।
संदूषण के स्रोत:
- प्रमुख स्रोतों में भूगर्भीय अवसाद (अवसादी/आग्नेय चट्टानों से) और औद्योगिक प्रदूषण जैसे मानवजनित कारक शामिल हैं। भूजल संदूषण का एक प्राथमिक माध्यम है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- मैंगनीज़ के उच्च स्तर के निरंतर संपर्क में रहने से विषाक्तता उत्पन्न होती है, जिससे कमज़ोरी, भद्दापन, भावनात्मक अस्थिरता, गतिशीलता में कमी और उन्नत अवस्था में कैंसर जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।
प्रभावित क्षेत्र:
- भारत: बिहार का गंगा का मैदान, पश्चिम बंगाल (मुर्शिदाबाद, 24 परगना), कर्नाटक (तुमकुर)।
- वैश्विक: नाइज़ीरिया, बांग्लादेश, चीन, जापान और ग्रीस ।
और पढ़ें: भारत में भूजल प्रदूषण
गुकेश ने FIDE विश्व शतरंज चैंपियनशिप, 2024 का खिताब जीता
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में, डी. गुकेश सिंगापुर में आयोजित FIDE विश्व शतरंज चैंपियनशिप,2024 में चीन के डिंग लिरेन (2023 विश्व शतरंज चैंपियन) को हराकर 18 वर्ष की उम्र में सबसे कम उम्र के शतरंज विश्व चैंपियन बने ।
डी. गुकेश:
- गुकेश, विश्व चैम्पियनशिप के सबसे युवा हैं, वे इतिहास में तीसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर और 2750 FIDE रेटिंग हासिल करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी भी हैं ।
- उल्लेखनीय बात यह है कि वह रूसी गैरी कास्पारोव से चार वर्ष छोटे हैं, जब उन्होंने वर्ष 1985 में अनातोली कार्पोव से यह खिताब जीता था।
- गुकेश, FIDE विश्व शतरंज चैम्पियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय ग्रैंडमास्टर हैं, उनसे पहले विश्वनाथन आनंद थे, जिनके पास वर्ष 2000-2002 एवं वर्ष 2007-2013 तक यह खिताब था, उसके बाद मैग्नस कार्लसन ने वर्ष 2013 में यह खिताब जीता था।
FIDE विश्व शतरंज चैम्पियनशिप:
- FIDE सभी अंतर्राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताओं का संचालन करता है और इसे वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा वैश्विक खेल संगठन के रूप में मान्यता दी गई थी।
- वर्ष 1924 में पेरिस में स्थापित और लुसाने में मुख्यालय वाला FIDE अब सबसे बड़े राष्ट्रीय शतरंज संघों में से एक है, जिसके 201 देश संबद्ध सदस्य हैं।
और पढ़ें: भारत में शतरंज की बढ़ती लोकप्रियता
भारत-मोरक्को रक्षा उद्योग
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में, मोरक्को के रबात में आयोजित भारत-मोरक्को रक्षा उद्योग संगोष्ठी में रक्षा सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें मोरक्को ने अपने देश में भारतीय कंपनियों के लिये लाभदायक, नौकरशाही से पूर्णतः मुक्त परिवेश का प्रस्ताव किया।
- हालिया आँकड़ों के अनुसार, भारत का कुल रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपए था जिसके वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 21,083 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
- मोरक्को जैसे वैश्विक साझेदारों के साथ रक्षा सहयोग से तकनीकी प्रगति, वर्द्धित निवेश और वैश्विक सहयोग के माध्यम से उत्पादन क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
- टाटा समूह द्वारा मोरक्को में भारत का पहला रक्षा विनिर्माण संयंत्र स्थापित करना "मेक इन इंडिया" पहल को रेखांकित करता है, जो विशेष रूप से WhAP 8x8 ग्राउंड कॉम्बैट व्हीकल जैसी उन्नत प्रणालियों में भारत की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाता है।
- मोरक्को के निवेशक-अनुकूल परिवेश और 90 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों के व्यापक नेटवर्क से भारतीय रक्षा निर्यात के लिये विशेष रूप से अफ्रीका एवं यूरोप में नए बाज़ार स्थापित होंगे।
मोरक्को:
- इसकी सीमा अल्जीरिया (पूर्व), पश्चिमी सहारा (दक्षिण), अटलांटिक महासागर (पश्चिम), और भूमध्य सागर (उत्तर) से लगती है तथा जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे स्पेन से अलग करता है।
- भारत का मोरक्को से निर्यात 83.9 मिलियन अमरीकी डॉलर और आयात 162 मिलियन अमरीकी डॉलर है।