भूगोल
आर्कटिक समुद्री बर्फ का भारतीय मानसून पर प्रभाव
- 17 Sep 2024
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प्रिलिम्स के लिये:भारत का मानसून पैटर्न , पश्चिमी विक्षोभ , आर्कटिक सागर की बर्फ पिघलना , एल नीनो और ला नीना मेन्स के लिये:भारत के लिये मानसून का महत्त्व, भारतीय मानसून पर आर्कटिक समुद्री बर्फ का प्रभाव, भारत के लिये बदलते मानसून पैटर्न के निहितार्थ। |
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में हुए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक समुद्री बर्फ के स्तर में गिरावट भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) को प्रभावित कर रही है, जिससे परिवर्तनशीलता और अप्रत्याशितता बढ़ रही है।
- इसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भारत के राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) और दक्षिण कोरिया के कोरिया ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान के शोधकर्त्ताशामिल थे।
- एक अन्य अध्ययन में इस मानसून सीज़न में उत्तर-पश्चिमी भारत में हुई महत्त्वपूर्ण बारिश की अधिकता का श्रेय जलवायु संकट से प्रेरित दीर्घकालिक परिदृश्य को दिया गया है।
आर्कटिक समुद्री बर्फ भारतीय मानसून को किस प्रकार प्रभावित करती है?
- मध्य आर्कटिक सागर की बर्फ में कमी: आर्कटिक सागर (आर्कटिक महासागर और उसके आस-पास के समुद्री बर्फ आवरण) में कमी के कारण पश्चिमी और प्रायद्वीपीय भारत में वर्षा में कमी आती है, जबकि मध्य और उत्तरी भारत में वर्षा में वृद्धि होती है।
- ऐसा महासागर से वायुमंडल में ऊष्मा स्थानांतरण में वृद्धि के कारण होता है, जिससे रॉस्बी तरंगें मज़बूत होती हैं, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को बदल देती हैं।
- बढ़ी हुई रॉस्बी तरंगें उत्तर-पश्चिम भारत पर उच्च दबाव और भूमध्य सागर पर निम्न दबाव उत्पन्न करती हैं , जिससे उपोष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट उत्तर की ओर स्थानांतरित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी और प्रायद्वीपीय भारत में अधिक वर्षा होती है।
- बेरेंट्स-कारा सागर क्षेत्र की समुद्री बर्फ में कमी: बेरेंट्स-कारा सागर में समुद्री बर्फ की कमी के कारण दक्षिण-पश्चिम चीन पर उच्च दाब और सकारात्मक आर्कटिक दोलन होता है , जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है।
- समुद्री बर्फ के कम होने से सागर गर्म होता है, जिससे उत्तर-पश्चिमी यूरोप में साफ आसमान देखने को मिलते है।
- यह व्यवधान उपोष्णकटिबंधीय एशिया और भारत में ऊपरी वायुमंडलीय स्थितियों को प्रभावित करता है , जिसके परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर भारत में अधिक वर्षा होती है, जबकि मध्य तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में कम वर्षा होती है।
- जलवायु परिवर्तन की भूमिका: गर्म होते अरब सागर और आस-पास के जल निकायों की आर्द्रता के कारण मौसम का प्रारूप और अस्थिर हो जाता है, जिससे मानसूनी वर्षा में परिवर्तनशीलता बढ़ जाती है।
उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिशेष वर्षा से संबंधित अध्ययन के निष्कर्ष क्या हैं?
- अरब सागर की आर्द्रता में वृद्धि: अरब सागर की आर्द्रता में वृद्धि के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में मानसून अधिक आर्द्र रहता है। उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों में यह प्रवृत्ति जारी रहने की आशा है ।
- पवन प्रतिरूपों में परिवर्तन: इस क्षेत्र में वर्षा में वृद्धि से पवन प्रतिरूपों में परिवर्तन से संबद्ध है। अरब सागर क्षेत्र में तेज़ पवनें एवं उत्तरी भारत क्षेत्र में पवनों की मंद गति उत्तर-पश्चिमी भारत में आर्द्रता को अवरुद्ध कर लेती है ।
- इन पवनों के कारण अरब सागर से होने वाला वाष्पीकरण भी क्षेत्र में वर्षा में वृद्धि का कारण बनता है।
- दाब प्रवणता में बदलाव: वायु प्रतिरूपों में परिवर्तन दाब प्रवणता में बदलाव के कारण होता है।
- मस्कारेने द्वीप समूह (हिंद महासागर) के आस-पास बढ़े हुए दाब और भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में घटते दाब से उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है।
- पूर्व-पश्चिम दाब प्रवणता में वृद्धि: पूर्वी प्रशांत क्षेत्र पर उच्च दाब से प्रभावित पूर्व-पश्चिम दाब प्रवणता में वृद्धि, इन पवनों को और भी गति प्रदान करती है। इससे मानसून में और भी अधिक आर्द्रता बढ़ जाती है।
‘रॉस्बी’ तरंग
- ये बड़े पैमाने की वायुमंडलीय तरंगें हैं, जिन्हें ग्रहीय तरंगें भी कहा जाता है , जो मुख्य रूप से पृथ्वी के वायुमंडल के मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होती हैं।
- वे पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली उच्च ऊँचाई वाली वायु धाराओं के साथ जेट धाराओं के रूप में बनते हैं और इनका घुमावदार पैटर्न होता है जो उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में मौसम को प्रभावित करता है।
- ये तरंगें वहाँ सर्वाधिक प्रबल होती हैं जहाँ भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान में बहुत अधिक अंतर होता है ।
- वे वैश्विक मौसम पैटर्न को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा तापमान चरम सीमा और वर्षा के स्तर को प्रभावित करता है।
- रॉस्बी तरंगें वैश्विक ताप वितरण को संतुलित करने में मदद करती हैं, ध्रुवीय क्षेत्रों को अधिक ठंडा होने से तथा भूमध्यरेखीय क्षेत्रों को अधिक गर्म होने से रोकती हैं।
भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) क्या है?
- भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) एक प्रमुख जलवायु घटना है जो तब होती है जब हिंद महासागर से ग्रहण कर वायु भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती है ।
- यह भारतीय उपमहाद्वीप में जुलाई से सितंबर तक होता है तथा अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त में होती है।
- ISMR को प्रभावित करने वाले कारक: ISMR भारतीय, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के सतह के तापमान के साथ-साथ मध्य अक्षांशों पर प्रवाहित बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय तरंग, सर्कम-ग्लोबल टेलीकनेक्शन (CGT) से प्रभावित होती है ।
- गठन:
- सूर्य का प्रकाश मध्य एशियाई और भारतीय भू-भाग को आस-पास के महासागर की तुलना में अधिक तेज़ी से गर्म करता है, जिससे एक निम्न-दाब पट्टी विकसित होती है जिसे अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) के रूप में जाना जाता है।
- दक्षिण-पूर्व से प्रवाहित होने वाली व्यापारिक पवनें कोरिओलिस बल के कारण भारतीय भू-भाग की ओर मुड़ जाती हैं।
- ये पवनें भूमध्य रेखा को पार कर अरब सागर से आर्द्रता ग्रहण कर भारत में वर्षा करती हैं।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून दो शाखाओं में विभाजित हो जाता है। एक शाखा पश्चिमी तट (अरब सागर शाखा) में वर्षा करती है तथा दूसरी शाखा से भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर भागों (बंगाल की खाड़ी शाखा) में वर्षा होती है।
- ये शाखाएँ पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मिलती हैं।
- भारत में शीतकालीन मानसून वर्षा: पूर्वोत्तर मानसून सर्दियों के दौरान लौटता हुआ मानसून है (साइबेरियाई और तिब्बती पठारों पर बनने वाले उच्च दाब सेल्स के कारण)।
- यह वर्षा अक्तूबर से दिसंबर के दौरान होती है।
भारत के लिये मानसून का क्या महत्त्व है?
- कृषि के लिये उपयोगी: मानसून भारतीय कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है। 61% किसान वर्षा पर निर्भर हैं, एक अच्छी तरह से वितरित मानसून भारत की 55% वर्षा-आधारित फसलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और कृषि उत्पादकता तथा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
- जल संसाधन प्रबंधन: भारत में वार्षिक वर्षा 70-90% भाग मानसून ऋतु (जून से सितंबर) के दौरान प्राप्त होता है, जो नदियों, झीलों और भूजल के पुनः जल भराव के लिये आवश्यक है।
- यह अवधि सिंचाई, पेयजल और जलविद्युत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आर्थिक प्रभाव: अच्छा मानसून ग्रामीण आय और उपभोक्ता मांग को बढ़ाता है , जबकि खराब मानसून खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का कारण बन सकता है तथा समग्र अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, जिससे मौद्रिक नीति तथा सरकारी व्यय प्रभावित हो सकता है।
- पारिस्थितिकी संतुलन: मानसून भारत के विविध पारिस्थितिकी तंत्रों का समर्थन करता है, जिससे जैवविविधता, वन्यजीव प्रवास और आवास स्वास्थ्य प्रभावित होता है। मानसून के पैटर्न में बदलाव से वनस्पति तथा जीव बाधित हो सकते हैं।
- जलवायु विनियमन: भारतीय मानसून वैश्विक जलवायु विनियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वायुमंडलीय पैटर्न को प्रभावित करता है और एल नीनो व ला नीना जैसी घटनाओं के साथ अंतःक्रिया करता है।
आर्कटिक महासागर:
- यह विश्व का सबसे छोटा महासागर है, जो लगभग उत्तरी ध्रुव पर केंद्रित है।
- इसकी सीमा कनाडा, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका से लगती है।
- प्रमुख समुद्र: इसमें बैरेंट्स, कारा, लाप्टेव, पूर्वी साइबेरियाई और ब्यूफोर्ट सागर शामिल हैं।
- हिम आवरण: मुख्य रूप से समुद्री बर्फ से ढका हुआ, जो मौसम के अनुसार पिघलता और जमता रहता है।
- जलवायु परिवर्तन: तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण हिम-आवरण में गिरावट हुई है, जिससे नए शिपिंग मार्ग (जैसे- उत्तरी समुद्री मार्ग) विकसित हुए हैं जिससे संसाधनों तक पहुँच बढ़ गई है।
- संसाधन: अनुमानतः विश्व के 13% तेल और 30% प्राकृतिक गैस भंडार यहीं मौजूद हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत में कृषि उत्पादकता पर मानसून के बदलते प्रारूप के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। ये परिवर्तन खाद्य संरक्षा और ग्रामीण आजीविका को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सQ. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्भूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है? चर्चा कीजिये। (2015) |