वनाग्नि और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन
प्रिलिम्स के लिये:बहिरूष्ण कटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय, पाइरोम्स, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, कार्बन उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैसें, कार्बन मार्केट, कार्बन क्रेडिट, CO2। मुख्य परीक्षा के लिये:जलवायु परिवर्तन का वनाग्नि पर प्रभाव, वनाग्नि में क्षेत्रीय भिन्नताएँ, आग प्रबंधन के नीतिगत निहितार्थ, वनाग्नि में मानवीय गतिविधियों की भूमिका |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेंटर फॉर वाइल्डफायर रिसर्च द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2001 के बाद से वनाग्नि से वैश्विक CO2 उत्सर्जन में 60% की वृद्धि हुई है।
- यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका में बोरियल वनों से उत्सर्जन लगभग तीन गुना तक बढ़ गया है तथा जलवायु परिवर्तन को इस वृद्धि के पीछे एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
वनाग्नि क्या है?
- परिचय:
- वनाग्नि (जिसे बुशफायर या वनस्पति आग के रूप में भी जाना जाता है) का आशय प्राकृतिक वातावरण जैसे कि जंगलों, घास के मैदानों या टुंड्रा में पौधों के अनियंत्रित और गैर-निर्धारित तरीके से जलने से है।
- ये आग वायु और स्थलाकृति जैसे पर्यावरणीय कारकों के आधार पर फैलती है। जंगल की आग को बनाए रखने के लिये तीन आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होती है: ईंधन (पौधे), ऑक्सीजन और एक ऊष्मा स्रोत।
- वर्गीकरण:
- सतही आग: इस आग से जंगल के धरातल पर सूखी घास, पत्तियाँ और टहनियाँ जल जाती हैं।
- भूमिगत/ज़ॉम्बी आग: यह वन भूमि के नीचे की कम तीव्रता वाली आग है, जिससे कार्बनिक पदार्थ प्रभावित होते हैं।
- कैनोपी/क्राउन आग: यह आग वायु और शुष्क परिस्थितियों के कारण वृक्षों के कैनोपी में लगती है तथा प्रायः तीव्र होने के कारण इसे नियंत्रित करना कठिन होता है।
- जानबूझकर लगाई गई नियंत्रित आग: इसका आशय पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने के क्रम में वन एजेंसियों द्वारा निर्धारित क्षेत्र में आग लगाना है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- पाइरोम्स और आग की घटनाओं का वैश्विक पैटर्न: इस अध्ययन में मशीन लर्निंग का उपयोग करके वैश्विक वन पारिस्थितिकी क्षेत्रों को 12 अलग-अलग "पाइरोम्स" में वर्गीकृत किया गया है, ये ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जलवायु, वनस्पति और मानवीय गतिविधियों से प्रभावित वनाग्नि में समान पैटर्न प्रदर्शित होता है।
- इन क्षेत्रों को समूहीकृत करने से अग्नि व्यवहार को समझने तथा जलवायु परिवर्तन या भूमि उपयोग के प्रभावों की भविष्यवाणी करने में सहायता मिलती है, जिससे बेहतर अग्नि प्रबंधन एवं जोखिम मूल्यांकन में सहायता मिलती है।
- वनाग्नि से कार्बन उत्सर्जन में भौगोलिक स्तर पर बदलाव: विश्लेषण से यह भी पता चला है कि उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वन क्षेत्रों के अलावा, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बाहर स्थित क्षेत्रों की वनाग्नि से कार्बन उत्सर्जन में काफी वृद्धि हुई है।
- अग्नि की गंभीरता और कार्बन दहन: वैश्विक स्तर पर वनाग्नि से कार्बन दहन की दर में 47% की वृद्धि हुई है तथा अब वन, सवाना और घास के मैदानों की तुलना में उत्सर्जन में अधिक योगदान दे रहे हैं।
- आग की गंभीरता में वृद्धि का संकेत प्रति इकाई जले हुए वन क्षेत्र से मिलता है।
- वनाग्नि और जलवायु परिवर्तन: मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार और गंभीर सूखे की स्थिति उत्पन्न होने से "वनाग्नि" की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- आकाशीय बिजली गिरने की बढ़ती आवृत्ति (विशेष रूप से ऊँचाई वाले क्षेत्रों में) से भी वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
- वन कार्बन स्टॉक अस्थिरता: शीतोष्ण शंकुधारी वन, बोरियल वन, भूमध्यसागरीय वन तथा उपोष्णकटिबंधीय शुष्क एवं आर्द्र चौड़ी पत्ती वाले वनों सहित अनेक प्रकार के वनों में कार्बन स्टॉक, आग की बढ़ती गंभीरता के कारण अस्थिर हो रहे हैं।
- कार्बन लेखांकन पर प्रभाव: वनाग्नि से कार्बन उत्सर्जन में होने वाली वृद्धि से कार्बन लेखांकन में चुनौतियाँ आती हैं।
- उदाहरण के लिये, ऐसा माना जाता है कि कनाडा में वर्ष 2023 में लगी आग से पिछले दशक में उसके जंगलों में जमा हुए कार्बन सिंक की काफी मात्रा समाप्त हो गई।
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS)
- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे औद्योगिक प्रक्रियाओं और विशेष रूप से बिजली संयंत्रों में जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को कम करने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
- CCS का लक्ष्य वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकना है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या को कम किया जा सके।
वनाग्नि से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- पर्यावरणीय प्रभाव: वनाग्नि से जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचने के साथ बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है।
- आग से हानिकारक प्रदूषक जैसे कणीय पदार्थ और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होने के साथ श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- मृदा क्षरण: उच्च तीव्रता वाली आग से मृदा में पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं जिससे मृदा की उर्वरता कम होने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है।
- संसाधन हानि: वन स्थानीय समुदायों के लिये लकड़ी, भोजन और आजीविका जैसे आवश्यक संसाधन (जो आग से नष्ट हो जाते हैं) प्रदान करते हैं।
- कठिन प्रबंधन: जलवायु परिवर्तन से आग की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण प्रभावी प्रबंधन एवं नियंत्रण चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- मानव स्वास्थ्य: वायु प्रदूषण और गर्मी के कारण आग से आस-पास के समुदायों में स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे स्वास्थ्य देखभाल का बोझ बढ़ जाता है।
- आर्थिक क्षति: वनाग्नि से आर्थिक क्षति होती है जिसमें अग्निशमन एवं संपत्ति की क्षति के साथ बचाव प्रयासों की लागत शामिल है।
भारत में वनाग्नि की क्या स्थिति है?
- वनाग्नि का मौसम और घटनाएँ:
- भारत में वनाग्नि का मौसम नवम्बर से जून तक रहता है, जो अप्रैल से मई में चरम पर होता है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के अनुसार, भारत के 35.47% वन आग की दृष्टि से संवेदनशील हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में जोखिम का स्तर अलग-अलग है।
- सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड शामिल हैं।
- हाल की घटनाएँ (2024):
- उत्तराखंड में जनवरी से जून 2024 के बीच 1,309 वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की गईं, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक हैं।
- इसरो के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2024 से बढ़ने वाली आग की घटनाओं का प्रभाव महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा सहित कई क्षेत्रों पर पड़ रहा है।
- सरकारी पहल:
- वनाग्नि हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPFF): वन समुदायों को शामिल करने और वनाग्नि को कम करने के लिये वर्ष 2018 में शुरू की गई।
- वन अग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना (FPM): तकनीकी और वित्तीय सहायता के माध्यम से वनाग्नि प्रबंधन में राज्यों की सहायता के लिये वर्ष 2017 में शुरू की गई थी।
FAO अग्नि प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देश
- जानकारी का एकीकरण:
- दिशा-निर्देश स्वदेशी लोगों और स्थानीय ज्ञान धारकों के विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत करने के महत्व पर बल देते हैं।
- यह दृष्टिकोण अग्नि प्रबंधन निर्णयों को बेहतर बनाता है, वनाग्नि को रोकने, अग्नि प्रकोपों का प्रबंधन करने तथा गंभीर रूप से वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्रों को बहाल करने में मदद करता है।
- लैंगिक समावेशन और विविध अग्नि प्रबंधन संबंधी ज्ञान को भी बढ़ावा दिया जाता है।
आगे की राह:
- प्रबंधन संबंधी रणनीतियाँ: वनों का, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रभावी प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है। वनस्पति पर नज़र रखकर और हस्तक्षेप क्षेत्रों के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करके जोखिम को कम किया जा सकता है।
- उष्णकटिबंधीय रणनीतियाँ: वनों के अधिक खंडीकरण को रोकना तथा गंभीर अग्नि-प्रवण मौसम के दौरान वनाग्नि की घटनाओं को कम करना उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वन संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अग्नि प्रबंधन में बदलाव: जिन क्षेत्रों में आग को दबाने का इतिहास बहुत अधिक है, वहाँ पारिस्थितिकी दृष्टि से लाभकारी अग्नि प्रबंधन पद्धतियों को अपनाने से वनों को कार्बन स्रोतों में बदलने से रोका जा सकता है।
- स्पष्ट रिपोर्टिंग की आवश्यकता: मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से जुड़े वर्तमान कार्बन बजट अनुमानों में अंतराल को भरने के लिये अध्ययन में संयुक्त राष्ट्र से वनाग्नि से होने वाले उत्सर्जन की रिपोर्टिंग में सुधार करने का आग्रह किया गया है।
- कार्बन क्रेडिट जोखिम: कार्बन भंडारण क्षमता के अधिमूल्यांकन से बचने के लिये, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, पुनः वनरोपण और कार्बन क्रेडिट योजनाओं में आग के बढ़ते हुई जोखिम को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: वैश्विक वनाग्नि उत्सर्जन में वृद्धि का जलवायु परिवर्तन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, तथा इन जोखिमों को कम करने के लिये नीतियों को किस प्रकार समायोजित किया जाना चाहिये? |
अधिक पढ़ें: वनाग्नि प्रबंधन पर FAO के दिशा-निर्देश
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
फसल/बायोमास अवशेषों के जलने से उपर्युक्त में से कौन-से वातावरण में उत्सर्जित होते है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |