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वनाग्नि प्रबंधन पर FAO के दिशा-निर्देश

  • 06 Aug 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य और कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021

मेन्स के लिये:

वन संसाधनों का महत्त्व और वनाग्नि को प्रबंधित करने के उपाय।

स्रोत: खाद्य और कृषि संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) ने अद्यतन "एकीकृत अग्नि प्रबंधन स्वैच्छिक दिशा-निर्देश: सिद्धांत और रणनीतिक कार्यवाहियाँ" जारी कीं।

  • यह दो दशक पहले प्रकाशित दिशा-निर्देशों का एक संग्रह है तथा इसमें वर्तमान जलवायु संकट से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये नई विषय-वस्तु को शामिल किया गया है।

नए FAO के अग्नि प्रबंधन दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • ज्ञान का एकीकरण:
    • नए दिशा-निर्देश स्वदेशी लोगों और स्थानीय ज्ञान धारकों के विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत करने के महत्त्व पर बल देते हैं।
    • यह दृष्टिकोण अग्नि प्रबंधन निर्णयों को बेहतर बनाता है, वनाग्नि को रोकने, अग्नि प्रकोपों ​​का प्रबंधन करने तथा गंभीर रूप से जलने से प्रभावित क्षेत्रों को बहाल करने में मदद करता है।
    • लिंग समावेशन और विविध अग्नि प्रबंधन ज्ञान को भी बढ़ावा दिया गया है।
  • प्रभाव और अपनाना:
    • लगभग 20 वर्ष पहले मूल दिशा-निर्देश जारी होने के बाद से, कई देशों ने उनके आधार पर सार्वजनिक नीतियाँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित किये हैं।
    • अद्यतन दिशा-निर्देशों को विश्व स्तर पर व्यापक रूप से अपनाए जाने की उम्मीद है।

नोट:

  • FAO और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme- UNEP) ने मई 2023 में 8वें अंतरराष्ट्रीय वाइल्डलैंड फायर सम्मेलन में ग्लोबल फायर मैनेजमेंट हब (फायर हब) की स्थापना की।
  • इसे कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, पुर्तगाल, कोरिया गणराज्य और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों का समर्थन प्राप्त है।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक अग्नि प्रबंधन समुदाय को एकजुट करना तथा एकीकृत अग्नि प्रबंधन रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय क्षमताओं को बढ़ाना है।

वनाग्नि क्या है?

  • परिचय:
    • इसे झाड़ी, वनस्पति या वनाग्नि के नाम से भी जाना जाता है,  वनाग्नि प्राकृतिक स्थानों जैसे कि वन, घास के मैदान, झाड़-झंखाड़ वाले क्षेत्र या टुंड्रा प्रदेश में पौधों को अनियंत्रित तथा गैर-निर्धारित तरीके से जलाना है।
    • वनाग्नि प्राकृतिक ईंधन का उपयोग करती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे- हवा और स्थलाकृति आदि) के आधार पर इसका प्रसार होता है।
  • वर्गीकरण:   
    • भू-सतह की अग्नि: मुख्य रूप से यह भूमि पर लगने वाली आग है, जिसमें पत्तियाँ, टहनियाँ और सूखी घास जैसे सतही कूड़े जलते हैं।
    • भूमिगत अग्नि/ज़ॉम्बी अग्नि: यह कम तीव्रता वाली आग है, जो सतह के नीचे कार्बनिक पदार्थों को जलाती है। यह धीरे-धीरे भूमिगत रूप से फैलती है, जिससे इसकी पहचान करना और इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है, और यह महीनों तक जलती रह सकती है।
    • वृक्ष छत्र या शिखर अग्नि: यह पेड़ों के ऊपरी आवरण अथवा छत्र के माध्यम से फैलती है,  वनाग्नि की यह घटना प्रायः शुष्क परिस्थितियों में तेज़ हवाओं के कारण होती है, जो बहुत तीव्र होती है और इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।
    • नियंत्रित व उद्देश्यपूर्ण अग्नि: इसे निर्धारित अग्नि के रूप में भी जाना जाता है,यह ईंधन के भार को कम करने, वनाग्नि के जोखिमों को कम करने और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य संतुलन को बढ़ावा देने के लिये वन प्रबंधन एजेंसियों द्वारा जानबूझकर लगाई जाती है। इसे विशिष्ट परिस्थितियों में सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से निष्पादित किया जाता है।
  • कारण:
    • मानव गतिविधियाँ: कई वनाग्नि की घटनाएँ मानवीय गतिविधियों जैसे फेंकी गई सिगरेट, कैम्प-फायर, अपशिष्ट को जलाना और इसी तरह की अन्य गतिविधियों के कारण होती हैं।
      • बढ़ते शहरीकरण और वन क्षेत्रों में मानव उपस्थिति आकस्मिक वनाग्नि के जोखिम को बढ़ाती है।
      • शिकारी और अवैध तस्कर वन अधिकारियों का ध्यान भटकाने या अपनी गतिविधियों के सबूत मिटाने के लिये वनों में आग लगाते हैं।
    • मौसम की स्थिति: विशेष रूप से दक्षिण भारत में ग्रीष्म की शुरुआत में बहुत गर्म और शुष्क मौसम, अग्नि के द्रुत प्रसार के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ बनाता है। उच्च तापमान, कम आर्द्रता और शांत हवाएँ आग के जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • शुष्कता: दक्षिण भारत में सामान्य से अधिक तापमान, साफ आसमान और वर्षा की कमी के कारण शुष्कता बढ़ती है, वनस्पति सूख जाती है और आग लगने व तेज़ी से इसके फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
    • शुष्क बायोमास की पूर्व उपलब्धता: गर्मी के मौसम से पूर्व ही सामान्य से अधिक तापमान के कारण वनों में शुष्क बायोमास का शीघ्रता से निर्माण होता है, जिसमें चीड़ के वनों की ज्वलनशील पत्तियाँ शामिल हैं और इनसे आग लगने का जोखिम व तीव्रता बढ़ जाती है।

भारत में वनाग्नि की घटनाएँ 

  • वनाग्नि का मौसम:
    • भारत में वनाग्नि का मौसम नवंबर से जून तक रहता है, जिसमें ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में फरवरी से ही चरम वनाग्नि के अनुकूल परिस्थितियाँ बनने लगती हैं। अप्रैल और मई आमतौर पर वनाग्नि के सबसे संवेदनशील महीने होते हैं।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण की वन सूची रिपोर्ट के आधार पर, भारत में 54.40% वन कभी-कभी वनाग्नि की चपेट में आते हैं, 7.49% मध्यम रूप से बार-बार वनाग्नि की चपेट में आते हैं और 2.40% उच्च घटना स्तर पर हैं।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR)- 2021 के अनुसार, 35.47% वन क्षेत्र को वनाग्नि की आशंका वाले क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • क्षेत्र:
    • शुष्क पर्णपाती वनों में भीषण आग लगती है, जबकि सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार और पर्वतीय समशीतोष्ण वनों में आग लगने की आशंका कम होती है। 
    • सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड शामिल हैं।
  • वर्तमान परिदृश्य (वर्ष 2024):
    • उत्तराखंड के वन विभाग ने बताया है कि जनवरी से जून 2024 के बीच उत्तराखंड के वनों में आग लगने की 1,309 घटनाताएँ हुई हैं, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 241 और वर्ष 2023 की पूरी अवधि में कुल 733 थी।
    • FSI के आँकड़ों के अनुसार, वनाग्नि की सर्वाधिक घटनाएँ मिज़ोरम (3,738), मणिपुर (1,702), असम (1,652), मेघालय (1,252) और महाराष्ट्र (1,215) में दर्ज की गई हैं।
    • ISRO के उपग्रह डेटा से पता चलता है कि मार्च 2024 के प्रारंभ में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे महाराष्ट्र में कोंकण बेल्ट, दक्षिण-तटीय गुजरात, दक्षिणी राजस्थान, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश, ओडिशा के तटीय व आंतरिक क्षेत्र तथा उससे सटे झारखंड जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत में भी हाल ही में वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।
  • सरकारी पहल:
    • वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्य-योजना (NAPFF): यह योजना वन सीमांत समुदायों को सूचित कर, उन्हें सशक्त बनाकर तथा राज्य वन विभागों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करके वनाग्नि को कम करने के लिये वर्ष 2018 में शुरू की गई।
    • वन अग्नि निवारण एवं प्रबंधन योजना (FPM): वर्ष 2017 में शुरू की गई, यह एकमात्र सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है जो वन अग्नि के प्रबंधन में राज्यों की सहायता करने के लिये समर्पित है।

आगे की राह - सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं के आधार पर वनाग्नि पर NDMA की सिफारिशें

  • अग्निशमन जोखिम: केवल अग्निशमन पर निर्भर रहने से ईंधन का भार बढ़ता है और इससे अनियंत्रित रूप से आगजनी की घटनाएँ हो सकती हैं।
  • निर्धारित दहन: अग्नि के विस्तार को रोकने के लिये सावधानीपूर्वक प्रबंधन किया जाना चाहिये; जैविक वन सामग्री का उपयोग करने पर विचार करना चाहिये।
  • सामुदायिक सहभागिता: वन प्रबंधन और आजीविका हेतु स्थानीय समुदायों को शामिल करना, स्वामित्व को बढ़ाना तथा आगजनी के जोखिम को कम करना।
  • सीमापार प्रबंधन: वनाग्नि राजनीतिक सीमाओं से बंधी नहीं है; प्रबंधन को सीमाओं के पार समन्वित किया जाना चाहिये।
  • जोखिम संचार: आगजनी के दौरान सटीक जानकारी सुनिश्चित करने के लिये धुआँ/प्रदूषण के स्तर सहित मानकीकृत स्पष्ट चेतावनियाँ विकसित करना।
  • शहरी-वन इंटरफेस: शहरी-वन क्षेत्रों में आग के खतरों को कम करने के लिये भवन संहिताओं को लागू करना और निर्माण सामग्री का प्रबंधन करना।
  • वाणिज्यिक क्षेत्र: सुनिश्चित करना कि वन क्षेत्रों में व्यवसाय और सेवाएँ अग्नि सुरक्षा सावधानियों का पालन करें तथा प्रज्वलन स्रोतों को सीमित करें।
  • स्थानीय प्रत्युत्तरदाताओं को प्रशिक्षित करना: स्थानीय समुदायों को प्रथम प्रत्युत्तरदाताओं के रूप में प्रशिक्षित और सुसज्जित करना; स्वयंसेवी अग्निशामकों हेतु पारिश्रमिक पर विचार करना।
  • विशेष बल: सुदूर क्षेत्रों में आग से निपटने के लिये स्मोकजंपर्स के समान विशेष सैनिकों को प्रशिक्षित करना।
  • पुनर्प्राप्ति प्रयास: पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर ध्यान केंद्रित करना और मोनोकल्चर से बचना; मूल पौधों के लिये बीज बैंक बनाए रखना।
  • उपयोगिता प्रबंधन: आग से संबंधित दुर्घटनाओं को कम करने के लिये उपयोगिताओं को भूमिगत रखना या आगजनी की स्थिति से पूर्व उनका रखरखाव करना।
  • अग्निशमन योजनाएँ: जलवायु, भूभाग, वनस्पति और जल की उपलब्धता के आधार पर कार्य योजनाएँ तैयार करना; सूखे के उपायों को शामिल करना।
  • जैव अर्थव्यवस्था विकास: आजीविका का समर्थन करने और आगजनी को नियंत्रित करने के लिये  सामुदायिक भागीदारी के साथ कार्यात्मक मूल्य शृंखलाएँ बनाना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  भारत में वनाग्नि की घटनाओं और गंभीरता में मानवीय गतिविधियों तथा जलवायु कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। वनाग्नि की घटनाओं और उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये : (2019)

  1. कार्बन मोनोआक्साइड 
  2. मीथेन 
  3. ओज़ोन 
  4. सल्फर डाइऑक्साइड 

उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में उत्सर्जित होते हैं?   

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d) 

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