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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये मीथेन शमन

  • 17 Oct 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मीथेन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन

मेन्स के लिये:

मीथेन उत्सर्जन- प्रभाव, कृषि और मीथेन उत्सर्जन, मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित करने हेतु पहलें

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) एवं UNEP द्वारा गठित जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन द्वारा संयुक्त रूप से जारी "जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जित होने वाले मीथेन को कम करने की अनिवार्यता (The Imperative of Cutting Methane from Fossil Fuels)" नामक एक नई रिपोर्ट  में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने के महत्त्व पर बल दिया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • मीथेन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग:
    • ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये मीथेन उत्सर्जन में कमी लाना आवश्यक है।
      • मीथेन एक अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, औद्योगिक क्रांति के बाद से  वैश्विक स्तर पर कुल ग्लोबल वार्मिंग के लगभग 30% के लिये यह एकल रूप से ज़िम्मेदार है।
    • ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने वाले प्रयासों से वर्ष 2050 तक लगभग 0.1°C तापमान वृद्धि को ही नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मीथेन उत्सर्जन का वर्तमान परिदृश्य:
    • विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 580 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जित होता है।
      • इस उत्सर्जन में मानवीय गतिविधियों का योगदान 60% है।
      • वर्ष 2022 में केवल जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से लगभग 120 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जित  हुआ।
    • उत्सर्जन की वर्तमान गति एवं तीव्रता को देखते हुए वर्ष 2020 और 2030 के बीच मानवजनित मीथेन उत्सर्जन में 13% तक की वृद्धि हो सकती है।

  • लक्षित रूप से मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता:
    • जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी कटौती के बावजूद, मीथेन उत्सर्जन की समस्या का समाधान नहीं करने से वर्ष 2050 तक वैश्विक तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो सकती है।
    • डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों के साथ ही हमें मीथेन उत्सर्जन में लक्षित रूप से कमी लाने का प्रयास करना चाहिये।
      • मौजूदा प्रौद्योगिकियों के उपयोग से वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन जनित 80 मिलियन टन से अधिक वार्षिक मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सकता है।
      • अनुमान है कि इस तरह के समाधान लागत प्रभावी होंगे।
    • नेट ज़ीरो परिदृश्य में तेल और गैस क्षेत्र में सभी मीथेन कटौती उपायों के लिये वर्ष 2030 तक लगभग 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है।
      • ऊर्जा क्षेत्र से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये नियमित वेंटिंग व फ्लेरिंग को खत्म करने और लीक की मरम्मत करने जैसी कार्रवाइयाँ आवश्यक हैं तथा इसके लिये संगठनों ने उचित नियामक ढाँचे का आह्वान किया है।
    • अधिकांश उपायों को उद्योग द्वारा ही वित्त पोषित किया जाना चाहिये, लेकिन कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों को कुछ हस्तक्षेपों के लिये पूंजी तक पहुँच बनाने में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिन्हें रियायती वित्तपोषण के बिना लागू नहीं किया जा सकता है।
  • आर्थिक एवं स्वास्थ्य लाभ:
    • मीथेन ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन प्रदूषण का प्राथमिक कारण है और इसके शमन प्रयासों से "वर्ष 2050 तक लगभग 10 लाख असामयिक मौतों को रोकने में मदद मिलेगी।
    • मीथेन शमन लक्ष्यों को प्राप्त करने से गेहूँ, चावल, सोया और मक्का (मकई) की 95 मिलियन टन फसल के नुकसान को रोका जा सकेगा।
      • ये बचत वर्ष 2021 में अफ्रीका में उत्पादित गेहूँ, चावल, सोया और मक्का की मात्रा के लगभग 60% के बराबर है।
    • फसलों, श्रम एवं वानिकी के ऐसे नुकसान से बचने से "वर्ष 2020 और 2050 के दौरान कुल प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ 260 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगा"।
  • विनियामक ढाँचे:
    • प्रभावी मीथेन शमन के लिये उचित नियामक ढाँचे महत्त्वपूर्ण हैं।

मीथेन: 

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी:
    • यह वर्ष 1974 में पेरिस, फ्राँस में स्थापित एक स्वायत्त अंतर सरकारी संगठन है।
    • यह मुख्य रूप से अपनी ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण शामिल हैं।
    • मिशन: अपने सदस्य देशों और अन्य देशों के लिये विश्वसनीय, सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करना।
    • प्रमुख रिपोर्ट: विश्व ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट, विश्व ऊर्जा निवेश रिपोर्ट, और भारत ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट
    • भारत वर्ष 2017 में IEA में शामिल हुआ।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:
    • UNEP एक अग्रणी वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जिसकी स्थापना 5 जून, 1972 को हुई थी।
    • यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये आधिकारिक वकालत करता है।
    • प्रमुख रिपोर्ट्स: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, अनुकूलन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इन हेल्दी प्लेनेट।
    • प्रमुख अभियान: बीट पॉल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।
    • मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।
    • UNEP अपने 193 सदस्य देशों को सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने का समर्थन करता है।
    • भारत UNEP का सदस्य है।
  • UNEP-संयोजित जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन (Convened Climate and Clean Air Coalition- CCAC)
    • यह सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, व्यवसायों, वैज्ञानिक संस्थानों और नागरिक-समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक वैश्विक साझेदारी है जो अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (SLCP) को कम करने के लिये कार्य कर रही है, जिनका जलवायु परिवर्तन तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • भारत वर्ष 2019 से CCAC का भागीदार रहा है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।  
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं। 
  3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

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