भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के मुक्त व्यापार समझौतों का पुनर्मूल्यांकन
- 22 Oct 2024
- 28 min read
यह संपादकीय 21/10/2024 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Welcome rethink on FTAs” पर आधारित है। यह लेख भारत की FTA वार्ता में रणनीतिक ठहराव को उजागर करता है ताकि अपनी सरकारी खरीद नीतियों की रक्षा की जा सके, जिसने घरेलू विनिर्माण और MSE का समर्थन किया है। यह यूरोपीय संघ और यूके के बाज़ारों में उनके कथित आकर्षण के बावजूद सीमित अवसरों को रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त व्यापार समझौता, यूरोपीय संघ, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ, ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS), दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, इंडिया स्टैक मेन्स के लिये:भारत के लिये मुक्त व्यापार समझौतों के लाभ, भारत के FTA से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
भारत का वाणिज्य विभाग मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ता को रोक रहा है, ताकि अपने रुख का पुनर्मूल्यांकन कर सके, विशेष तौर पर सरकारी खरीद नीतियों पर। जबकि विकसित देश FTA में खुली खरीद पहुँच के लिये ज़ोर दे रहे हैं, भारत ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और MSE को समर्थन देने के लिये खरीद का प्रभावी ढंग से उपयोग किया है, जिससे सत्र 2023-24 में ₹82,630.38 करोड़ का लक्ष्य हासिल हुआ है। यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के खरीद बाज़ारों के आकर्षण के बावजूद, ऐतिहासिक डेटा भारतीय निर्यातकों के लिये सीमित अवसरों का सुझाव देते हैं। यह विराम भारत को अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि घरेलू नीतियाँ बरकरार रहें।
भारत के लिये मुक्त व्यापार समझौतों के क्या लाभ हैं?
- उन्नत बाज़ार पहुँच और निर्यात वृद्धि: UAE के साथ भारत का FTA इस लाभ को प्रभावी रूप से प्रदर्शित करता है- व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते के कार्यान्वयन के बाद वित्त वर्ष 2023 में UAE को होने वाला निर्यात 11.8% बढ़कर 31.3 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
- इस समझौते से संयुक्त अरब अमीरात की 97% से अधिक टैरिफ लाइनों में भारतीय वस्तुओं के लिये अधिमानी अभिगम खुल गया है, जिससे विशेष रूप से वस्त्र, रत्न और आभूषण तथा अभियांत्रिकी क्षेत्रों को लाभ होगा।
- इन हालिया सफलताओं ने यूरोपीय संघ और ब्रिटेन जैसे बड़े बाज़ारों के साथ भारत की चल रही वार्ता के लिये एक फ्रेमवर्क तैयार किया है, जहाँ इसी प्रकार के अधिमानी अभिगम से भारत की निर्यात क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
- रणनीतिक निवेश प्रवाह और विनिर्माण वृद्धि: यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ हाल ही में हुआ समझौता इस लाभ का उदाहरण है, जिसमें 15 वर्षों में 100 बिलियन डॉलर के अभूतपूर्व निवेश की प्रतिबद्धता है।
- यह निवेश फोकस भारत की FTA रणनीति में एक नए उपागम का प्रतिनिधित्व करता है, जो व्यापार अभिगम को ठोस निवेश प्रतिबद्धताओं से जोड़ता है। आधुनिक FTA में निवेश अध्याय विशेष रूप से भारत की विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा दे रहे हैं- उदाहरण के लिये UAE-भारत CEPA ने पहले ही कई विनिर्माण निवेशों की सुविधा प्रदान की है, जिसमें 2 बिलियन डॉलर की खाद्य प्रसंस्करण सुविधा भी शामिल है।
- ये निवेश रोज़गार के अवसर का सृजन करने और प्रौद्योगिकी अंतरण के साथ-साथ मेक इन इंडिया के लक्ष्यों में सीधे योगदान करते हैं।
- आपूर्ति शृंखला अनुकूलता और विविधीकरण: महामारी के बाद, FTA भारत को एकल स्रोतों पर निर्भरता कम करने और अनुकूल आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया -भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA) भारत की हरित प्रौद्योगिकी तथा EV विनिर्माण के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों तक सुनिश्चित अभिगम प्रदान करता है।
- यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ चल रही वार्ता वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत की स्थिति को और मज़बूत कर सकती है, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स तथा ऑटोमोटिव घटकों जैसे क्षेत्रों में।
- प्रौद्योगिकी अभिगम और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र: आधुनिक FTA प्रौद्योगिकी अंतरण और नवाचार साझेदारी को सुविधाजनक बना रहे हैं।
- भारत-जापान CEPA उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को लाने में सहायक रहा है, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में।
- हाल ही में हुए EFTA समझौते में, डिजिटल नवाचार और हरित प्रौद्योगिकी जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग के प्रावधान हैं, साथ ही डेटा विशिष्टता को अस्वीकार करके भारत के जेनेरिक फार्मास्युटिकल हितों की रक्षा भी की गई है।
- FTA का यह पहलू तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि भारत वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है।
- सेवा क्षेत्र की वृद्धि और व्यावसायिक गतिशीलता: हालिया FTA भारत के सेवा क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण लाभ दर्शाते हैं।
- भारत-संयुक्त अरब अमीरात-CEPA में व्यावसायिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता और कुशल पेशेवरों के लिये आसान वीज़ा अभिगम के अभूतपूर्व प्रावधान शामिल हैं।
- ऑस्ट्रेलिया ECTA भारतीय शेफ और योग शिक्षकों के लिये कोटा प्रदान करता है, जबकि चल रही यूरोपीय संघ वार्ता IT/ITeS क्षेत्र में अभिगम पर केंद्रित है।
- क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता और गुणवत्ता मानक: FTA भारतीय उद्योग में गुणवत्ता सुधार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा दे रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, पिछले पाँच वर्षों में वस्त्र क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया को निर्यात में औसतन 11.84% की बड़ी वृद्धि देखी गई, जो ऑस्ट्रेलियाई मानकों के अनुरूप गुणवत्ता उन्नयन के कारण संभव हो पाया।
- विभिन्न FTA के तहत दवा निर्यात में भी इसी तरह के सुधार देखने को मिल रहे हैं, जिसमें भारतीय कंपनियाँ वैश्विक गुणवत्ता मानकों को तेज़ी से पूरा कर रही हैं। यह प्रतिस्पर्द्धी दबाव वास्तव में भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये बेहतर रूप से तैयार करने में अहम भूमिका निभा रहा है।
भारत के FTA से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- व्यापार घाटे की चिंताएँ: FTA साझेदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा कार्यान्वयन के बाद लगातार बढ़ता गया है।
- आसियान (ASEAN) के साथ व्यापार घाटा वर्ष 2010 में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जब FTA लागू किया गया था) से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 43.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया।
- भारत-कोरिया CEPA में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखी गई है, जिसमें सत्र 2021-22 में घाटा बढ़कर 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- विश्लेषण से पता चलता है कि भारत के FTA साझेदार प्रायः समझौतों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं- उदाहरण के लिये भारत का FTA उपयोग लगभग 25% के साथ बहुत कम रहता है, जबकि विकसित देशों के लिये उपयोग आमतौर पर 70-80% के बीच रहता है।
- 'रूल्स ऑफ ओरिजिन' से संबंधित मुद्दे: 'रूल्स ऑफ ओरिजिन' का दुरुपयोग एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, विशेष रूप से FTA साझेदारों के माध्यम से चीनी वस्तुओं के पुनः मार्ग निर्धारण के संबंध में।
- वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमा शुल्क विभाग ने FTA के तहत 1,200 करोड़ रुपए के धोखाधड़ी वाले दावों का पता लगाया है।
- भारतीय निर्माताओं ने कहा कि आयात से घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है, क्योंकि चीनी कंपनियाँ FTA मार्ग का दुरुपयोग करके अपने उत्पादों की डंपिंग कर रही हैं।
- यह समस्या विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में गंभीर है।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ: जबकि FTA टैरिफ को कम करते हैं, गैर-टैरिफ बाधाएँ प्रायः बनी रहती हैं और बाज़ार अभिगम को सीमित करती हैं। प्रस्तावित FTA वार्ता के बावज़ूद भारतीय दवा निर्यात को यूरोपीय संघ में महत्त्वपूर्ण विनियामक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि भारतीय फार्मा कंपनियाँ अन्य गंतव्यों की तुलना में यूरोपीय संघ के बाज़ारों के अनुपालन पर 15-20% अधिक व्यय करती हैं।
- इसी प्रकार, भारतीय खाद्य निर्यात को सख्त सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) नियमों का सामना करना पड़ता है।
- पिछले 4 वर्षों में भारत से कुल 3,925 मानव खाद्य निर्यात शिपमेंट को अमेरिकी सीमा शुल्क पर प्रवेश देने से मना कर दिया गया।
- qलोकप्रिय भारतीय मसाला ब्रांड MDH, जो कुछ उत्पादों में कथित संदूषण के लिये जाँच के दायरे में है, ने वर्ष 2021 से अपने अमेरिकी शिपमेंट का औसतन 14.5% अस्वीकार कर दिया है।
- घरेलू उद्योगों पर प्रभाव: FTA का कई घरेलू उद्योगों, विशेषकर लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) तथा कृषि और डेयरी जैसे पारंपरिक क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- FTA साझेदार देशों से कृषि और डेयरी उत्पादों के सस्ते आयात ने स्थानीय किसानों और उत्पादकों पर भारी दबाव डाला है, जिससे उनके लिये प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो गया है।
- वर्ष 2022 में, भारतीय डेयरी किसानों द्वारा उठाई गई चिंताओं के कारण भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया के साथ FTA के लिये वार्ता में विलंब किया, क्योंकि उन्हें ऑस्ट्रेलियाई डेयरी उत्पादों से प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ने का भय था।
- हाल ही में भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने कहा कि भारत के डेयरी क्षेत्र को छोटे किसानों की आजीविका से जुड़ी संवेदनशीलता के कारण किसी भी मुक्त व्यापार समझौते के तहत शुल्क रियायत नहीं मिलेगी।
- इसी प्रकार, भारत का टेक्सटाइल क्षेत्र, जो लाखों लोगों को रोज़गार देता है, बांग्लादेश जैसे देशों से सस्ते टेक्सटाइल आयात के कारण संघर्ष कर रहा है।
- वर्ष 2006 में भारत ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) के तहत बांग्लादेश से रेडीमेड कपड़ों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी थी। इसके कारण चीनी वस्त्रों और धागों से बने परिधानों के आयात में वृद्धि हुई है।
- बांग्लादेश इन कपड़ों को चीन से आयात करता है, अपने कम लागत वाले श्रम का उपयोग करके वस्त्रों का निर्माण करता है और पुनः बिना आयात शुल्क दिये तैयार उत्पादों को भारत को निर्यात करता है।
- भारतीय सेवाओं के लिये बेहतर अभिगम का अभाव: भारत के FTA ने अपने प्रतिस्पर्द्धी सेवा क्षेत्रों, जैसे IT, वित्त और पेशेवर सेवाओं के लिये पारस्परिक बाज़ार अभिगम को पर्याप्त रूप से सुरक्षित नहीं किया है।
- कई FTA साझेदार देश कड़े विनियामक अवरोध लगाते हैं, जिससे भारतीय सेवा प्रदाता समझौतों से पूर्ण लाभ नहीं उठा पाते।
- यह मुद्दा भारत-ASEAN FTA में स्पष्ट हो गया, जहाँ वस्तुओं के व्यापार में वृद्धि हुई, वहीं भारतीय सेवा प्रदाताओं को कई प्रतिबंधों के कारण दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ारों में प्रवेश करने में संघर्ष करना पड़ा।
- ब्रिटेन के साथ भारत की चल रही वार्ता में भी ऐसी ही समस्या सामने आई है, जहाँ भारत सेवाओं और वीज़ा संबंधी मामलों, विशेषकर पेशेवरों के आवागमन के संबंध में उदारीकरण पर बल दे रहा है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार तनाव: FTA में बौद्धिक संपदा अधिकार प्रावधान, विशेष रूप से विकसित भागीदारों के साथ, प्रायः भारत की घरेलू नीतियों के साथ तनाव उत्पन्न करते हैं।
- भारत-यूरोपीय संघ के बीच चल रही FTA वार्ता में दवा पेटेंट संरक्षण को लेकर चुनौतियाँ हैं, यूरोपीय संघ की मांगों के लागू होने पर दवा की लागत बढ़ सकती है।
- ब्रिटेन के साथ वार्ता में भी इसी तरह के मुद्दे मौजूद हैं, जहाँ डेटा विशिष्टता की आवश्यकताएँ भारत के जेनेरिक दवा उद्योग को प्रभावित कर सकती हैं।
- पर्यावरण और श्रम मानक: नए युग के FTA में पर्यावरण और श्रम मानक शामिल किये जा रहे हैं, जो प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकते हैं।
- यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, FTA वरीयताओं के बावजूद 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकती है।
- विकसित देशों के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौतों में श्रम मानक आवश्यकताओं के कारण वस्त्र और चमड़ा जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिये अनुपालन लागत बढ़ सकती है, जिससे उनकी निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
- भू-राजनीतिक चिंताएँ: भारत की रणनीतिक और भू-राजनीतिक चिंताएँ FTA के प्रति उसके दृष्टिकोण को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं, विशेष रूप से चीन के साथ बढ़ते तनाव के संदर्भ में।
- भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) जैसे बड़े क्षेत्रीय समझौतों में शामिल होने को लेकर सतर्क रहा है। वर्ष 2019 में, भारत ने असमान बाज़ार अभिगम और कृषि, डेयरी एवं लघु उद्योग जैसे क्षेत्रों पर संभावित नकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में चिंताओं का हवाला देते हुए RCEP वार्ता से बाहर निकलने का विकल्प चुना।
- इसके अतिरिक्त, भारत को समझौते के अंतर्गत चीन के आर्थिक प्रभुत्व के बारे में आशंका थी, जिससे व्यापार असंतुलन और चीनी वस्तुओं पर निर्भरता बढ़ सकती थी, जिससे भारत की आर्थिक सुरक्षा कमज़ोर हो सकती थी।
भारत अपने राष्ट्रीय हितों की प्रभावी सुरक्षा के लिये FTA पर वार्ता करने हेतु कौन-सी रणनीति अपना सकता है?
- रणनीतिक वार्ता फ्रेमवर्क: क्षेत्र-विशिष्ट प्रभाव मूल्यांकन मॉडल का उपयोग करके डेटा-संचालित वार्ता फ्रेमवर्क विकसित करके।
- घरेलू उद्योग तत्परता स्कोर (उत्पादकता, गुणवत्ता मानकों और प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक के माध्यम से निर्धारित) के आधार पर बाज़ार अभिगम प्रतिबद्धताओं के लिये स्पष्ट सीमाएँ स्थापित कर सकता है।
- रियल टाइम व्यापार प्रवाह की निगरानी करने और प्रभाव परिदृश्यों का पूर्वानुमान करने के लिये एक AI-संचालित व्यापार विश्लेषण प्रणाली बनाए। उदाहरण के लिये, KOSIS (कोरियाई सांख्यिकीय सूचना सेवा) के समान एक प्रणाली लागू करे जो गतिशील प्रभाव आकलन प्रदान करती है।
- तकनीकी विशेषज्ञों, उद्योग प्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों को मिलाकर एक स्थायी बहु-हितधारक वार्ता टीम स्थापित करे।
- मूल प्रमाण-पत्र प्रवर्तन तंत्र के नियम: रियल टाइम सत्यापन के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के साथ मूल प्रमाण-पत्र प्रबंधन प्रणाली के ऑनलाइन प्रमाण-पत्र को प्रभावी करना ।
- संवेदनशील आयात श्रेणियों के लिये अनिवार्य जियो-टैगिंग और डिजिटल ट्रैकिंग लागू करे। संदिग्ध व्यापार पैटर्न को चिह्नित करने के लिये AI-आधारित जोखिम मूल्यांकन प्रणाली तैनात करे। उदाहरण के लिये, सिंगापुर के नेटवर्क ट्रेड प्लेटफॉर्म के समान एक प्रणाली स्थापित करे जो आपूर्ति शृंखलाओं में क्रेडेंशियल्स को ट्रैक करती है।
- मूल्य संवर्द्धन सत्यापन के लिये उन्नत परीक्षण सुविधाओं के साथ प्रमुख बंदरगाहों पर समर्पित RoO प्रवर्तन प्रकोष्ठों का निर्माण करे।
- घरेलू उद्योग तैयारी कार्यक्रम- FTA कार्यान्वयन से पहले क्षेत्र-विशिष्ट प्रतिस्पर्द्धात्मकता वृद्धि कार्यक्रम शुरू करे।
- प्रौद्योगिकी उन्नयन और गुणवत्ता प्रमाणन सहायता के लिये एक समर्पित निधि बनाए। FTA भागीदार देशों के साथ साझेदारी में उद्योग-विशिष्ट प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करे।
- जैसे प्रमुख औद्योगिक क्लस्टरों में मुख्यतः जापान-भारत विनिर्माण संस्थान स्थापित करना। निर्यात हेतु तैयार फर्मों के लिये रेटिंग प्रणाली विकसित करना और रेटिंग के आधार पर लक्षित सहायता प्रदान करना।
- सेवा व्यापार संवर्द्धन: FTA साझेदारों के बीच सेवा क्षेत्रों में गैर-टैरिफ बाधाओं का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करे।
- प्राथमिकता के आधार पर व्यावसायिक योग्यताओं के लिये पारस्परिक मान्यता समझौते स्थापित करे।
- सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार अभिगम संबंधी मुद्दों की रिपोर्ट करने के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करे। उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ के व्यापार अवरोध रिपोर्टिंग तंत्र के समान एक प्रणाली लागू करे। बाज़ार-विशिष्ट रणनीतियों के साथ समर्पित सेवा निर्यात संवर्द्धन परिषदों की स्थापना करे।
- MSME एकीकरण रणनीति: FTA-विशिष्ट सलाहकार सेवाओं के साथ सभी प्रमुख औद्योगिक समूहों में MSME निर्यात सुविधा केंद्र स्थापित करे।
- FTA भागीदार देशों में MSME को संभावित खरीदारों से जोड़ने के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाए। अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन और अनुपालन के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करे।
- प्रत्येक FTA बाज़ार के लिये लक्षित हस्तक्षेप के साथ "MSME ग्लोबल कनेक्ट" कार्यक्रम शुरू करे। प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों के साथ MSME निर्यातकों के लिये विशेष ऋण योजनाएँ विकसित करे।
- डिजिटल व्यापार अवसंरचना: निर्बाध डिजिटल व्यापार के लिये FTA भागीदारों के साथ सुरक्षित डेटा विनिमय प्रोटोकॉल विकसित करे। इंडिया स्टैक को बढ़ावा देने वाले FTA नेटवर्क में स्वीकार्य मानकीकृत डिजिटल प्रलेखन तंत्र का गठन करे।
- साझेदार देशों के साथ UPI प्रणाली का उपयोग करके सीमा पार डिजिटल भुगतान स्थापित करे।
- सीमा पार डिजिटल व्यापार के लिये समर्पित साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क स्थापित करे।
- मूल्य शृंखला एकीकरण कार्यक्रम: रणनीतिक मूल्य शृंखलाओं का अभिनिर्धारण करे, जहाँ भारत बड़ी भूमिका निभा सकता है और लक्षित हस्तक्षेप विकसित कर सकता है।
- FTA साझेदार मूल्य शृंखलाओं के साथ गहन एकीकरण के लिये विशेष औद्योगिक पार्क बनाए। FTA साझेदारों की प्रमुख कंपनियों के साथ आपूर्तिकर्त्ता विकास कार्यक्रम स्थापित करे।
- मूल्य शृंखला आवश्यकताओं के अनुरूप क्षेत्र-विशिष्ट कौशल विकास पहल शुरू करे।
- समीक्षा एवं पुनर्वार्ता तंत्र: प्रत्येक FTA के लिये स्पष्ट निष्पादन मीट्रिक्स के साथ नियमित समीक्षा तंत्र को लागू करे।
- आयात वृद्धि संकेतकों के आधार पर सुरक्षा उपायों के लिये ट्रिगर तंत्र स्थापित करे। निरंतर संवाद के लिये प्रत्येक FTA भागीदार के साथ एक स्थायी संयुक्त कार्य समूह बनाए। उभरते मुद्दों और चिंताओं के निवारण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल विकसित करे।
निष्कर्ष:
FTA वार्ता में भारत का रणनीतिक ठहराव घरेलू विनिर्माण और MSE की सुरक्षा करते हुए सरकारी खरीद नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता को उजागर करता है। गहन मूल्यांकन को प्राथमिकता देकर और मौजूदा चुनौतियों का समाधान करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि भविष्य के व्यापार समझौते न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दें बल्कि राष्ट्रीय हितों के साथ भी संरेखित हों। एक संतुलित दृष्टिकोण भारत को अपने महत्त्वपूर्ण उद्योगों की सुरक्षा करते हुए FTA का लाभों उठाने में सक्षम बनाएगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के उसके आर्थिक विकास और व्यापार संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये तथा उनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. निरपेक्ष तथा प्रति व्यत्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि — (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न 2. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) |