इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करके किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (UPSC GS-3 Mains, 2020)

    20 Jan, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका में बताएँ कि खाद्य प्रसंस्करण क्या है और किसानों की आय बढ़ाने में इसकी क्या उपयोगिता है?
    • इस क्षेत्र में उपस्थित कठिनाइयों एवं संभावनाओं को रेखांकित करें।
    • किसानों की आय बढ़ाने में खाद्य प्रसंस्करण की भूमिका बताएँ।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    खाद्य प्रसंस्करण में आमतौर पर खाद्य पदार्थों को तैयार करना, खाद्य उत्पाद का परिवर्तन, संरक्षण और पैकेजिंग तकनीक शामिल है। एक कृषि अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत को खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों (FPI) के संदर्भ में प्राकृतिक लाभ मिल सकता है। कृषि-उत्पादों की मांग में वृद्धि के साथ ही किसान को भुगतान की जाने वाली राशि में भी वृद्धि होगी, जिससे स्वाभाविक रूप से उनकी आय बढ़ेगी।

    भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के क्षेत्र में चुनौतियाँ:

    • आपूर्ति पक्ष की चुनौतियाँ: ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर खेती करने के परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादकता कम होती है, इस कारण किसानों का उत्पादन अधिशेष बेहद कम होता है।
    • मांग पक्ष की कठिनाइयाँ: प्रसंस्कृत भोजन की मांग मुख्य रूप से भारत के शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। ग्रामीण क्षेत्र में अब भी अनाजों के मामले में आत्मनिर्भरता है या प्रसंस्कृत भोजन की उपयोगिता कम है।
    • बुनियादी ढाँचागत असुविधाएँ: कच्चे माल की उपलब्धता की कमी, मौसम की अस्थिरता और आपूर्ति शृंखला की कमी भी एक प्रमुख समस्या है। इसके अलावा सभी मौसमों में उपयोग की जा सकने वाली सड़कें और कनेक्टिविटी की कमी भी आपूर्ति को अनियमित बना देती है। अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण 30% से अधिक उपज खेतों में ही बर्बाद हो जाती है।
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में अनौपचारिकरण: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में मुख्यत: असंगठित क्षेत्र की मौजूदगी है, जो सभी उत्पाद श्रेणियों का लगभग 75% है। इस प्रकार मौजूदा उत्पादन प्रणाली में अक्षमता का एक कारण यह भी है। ये कारक खाद्य प्रसंस्करण और इसके निर्यात में बाधा डालते हैं।
    • नियामक पर्यावरण की कमी: विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के अधिकार क्षेत्र में कई कानून हैं, जो खाद्य सुरक्षा और पैकेजिंग को नियंत्रित करते हैं। कानून और प्रशासनिक देरी के कारण खाद्य सुरक्षा विनिर्देशों और दिशा-निर्देशों में विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (एसपीएस) उपाय: विकसित देशों द्वारा लागू कड़े (एसपीएस) उपाय प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात को भी प्रभावित करते हैं।

    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में संभावनाएँ

    • रोज़गार सृजन क्षेत्र: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (एफपीआई) का महत्त्व इसलिये अधिक है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के दो स्तंभों, यानी कृषि और उद्योग के बीच अंतर्संबंधों को बढ़ावा देता है। इसलिये यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
    • पोषण सुरक्षा: विटामिन और खनिजों के साथ फोर्टिफाइड होने की वजह से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जनसंख्या के अलग-अलग वर्गों में पोषण संबंधी अंतर को कम कर सकते हैं।
    • व्यापार को बढ़ावा एवं विदेशी मुद्रा का स्रोत: यह विदेशी मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। उदाहरण के लिये मध्य-पूर्वी देशों में भारतीय बासमती चावल की बहुत मांग है।
    • खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश: प्रसंस्करण खाद्य पदार्थ की सेल्फ लाइफ को बढ़ाता है और इस प्रकार से आपूर्ति को बनाए रखता है जिससे खाद्य-मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जाता है। उदाहरण के तौर पर फ्रोज़न सफल मटर पूरे वर्ष उपलब्ध होता है।

    खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और किसानों की आय के मध्य सह-संबंध

    • हाई यील्ड वैराइटी (HYV): भारतीय कृषि वर्तमान में अनाज उन्मुख उत्पादन पर हावी है, लेकिन किसानों की आय बागवानी, डेयरी आदि जैसे भोजन की उच्च उपज किस्मों (HYV) की तरफ कदम बढ़ाने से ही बढ़ेगी।
    • कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग: भारत में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है, जिससे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ की मांग को भी बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा भारत दुनिया में खाद्यान्न के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, लेकिन इसके उत्पादन के 10% से भी कम भाग का प्रसंस्करण होता है। इसे देखते हुए प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ की मांग में बढ़ोतरी की गुंजाइश है, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।
    • ग्रामीण बेरोज़गारी पर अंकुश: एफपीआई कृषि और उद्योग को जोड़ता है, यह भारतीय कृषि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाली प्रच्छन्न बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने में मदद करेगा। खाद्य प्रसंस्करण एक श्रम प्रधान उद्योग होने के नाते स्थानीय रोज़गार का अवसर प्रदान करेगा और इस प्रकार लोगों के प्रवासन जैसे मुद्दों को दूर करेगा।

    निष्कर्ष

    खाद्य प्रसंस्करण, अतिरिक्त उत्पादन का कुशलतापूर्वक उपयोग करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त होती है, साथ ही किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार खाद्य प्रसंस्करण उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था में खाद्य आपूर्ति शृंखला का एक अभिन्न अंग बन गया है। भारत को एक कृषि प्रधान देश होने के नाते खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में अपनी क्षमता का लाभ उठाना चाहिये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2