अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत जापान संबंध
- 08 Sep 2022
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यह एडिटोरियल 06/09/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Japan is recasting its national security vision in face of an aggressive China. India must inject strategic content into ties during 2+2 dialogue” लेख पर आधारित है। इसमें भारत एवं जापान के बीच आगामी 2+2 संवाद और दोनों देशों के संबंधों में आगे की राह पर चर्चा की गई है।
भारत और जापान के बीच मित्रता का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसका मूल आध्यात्मिक आत्मीयता और सुदृढ़ सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत संबंधों में निहित रहा है। बौद्ध धर्म के माध्यम से निस्पंदित होकर पहुँची भारतीय संस्कृति का जापानी संस्कृति पर गहन प्रभाव रहा है और यह जापानी लोगों के मन में भारत के प्रति आत्मीयता का एक प्रमुख कारण रहा है।
दोनों देशों का द्विपक्षीय संबंध किसी भी तरह के विवाद—वैचारिक या क्षेत्रीय, से पूरी तरह मुक्त रहा है। भारत-जापान शांति संधि (India -Japan Peace Treaty) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान द्वारा हस्ताक्षरित पहली शांति संधियों में से एक थी।
हालाँकि भारत और जापान के बीच लगभग दो दशकों से रक्षा संबंधी विचारों का आदान-प्रदान होता रहा है और अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) में भागीदार के रूप में दोनों ही देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) को खुला एवं मुक्त बनाए रखने में साझा हित की घोषणा की है, लेकिन उनके बीच द्विपक्षीय सहयोग में अभी भी कमी ही है। हिंद-प्रशांत में अमेरिका-चीन हस्तक्षेप ने दोनों पक्षों को अपने वांछित रणनीतिक उद्देश्यों को लागू करने से अवरुद्ध रखा है।
जापान के साथ भारत के संबंधों की वर्तमान स्थिति
- रक्षा संबंध: भारत-जापान रक्षा और सुरक्षा साझेदारी गुज़रते वर्षों में क्रमशः ‘धर्म गार्जियन’ (Dharma Guardian) और ‘मालाबार’ (Malabar) सहित द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अभ्यासों से विकसित हुई है। मिलन (MILAN) अभ्यास में पहली बार जापान की भागीदारी भी स्वागतयोग्य कदम है।
- जापान और भारत के बीच त्रि-सेवा विनिमयों को संस्थागत रूप दिया गया है और इस प्रकार एक ‘त्रय’ (triad) पूर्ण हुआ है। दोनों देशों के तटरक्षकों के बीच वर्ष 2006 से ही नियमित वार्षिक विनिमय होता रहा है। इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच ‘जापान और भारत विजन 2025- विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक भागीदारी’ (Japan and India Vision 2025 Special Strategic and Global Partnership) भी स्थापित है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र तथा विश्व की शांति एवं समृद्धि के लिये मिलकर कार्य करने का ध्येय रखता है।
- आर्थिक संबंध: एक मित्र के रूप में जापान पर भरोसे की परीक्षा वर्ष 1991 में हुई थी जब जापान उन कुछ प्रमुख देशों में शामिल था जिन्होंने भारत को भुगतान संतुलन संकट से बाहर निकलने में मदद की थी।
- हाल के वर्षों में जापान और भारत के बीच आर्थिक संबंधों का लगातार विस्तार हुआ है और उनमें मजबूतीआई है। दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा में वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 में जापान भारत का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
- इसके साथ ही, जापान से भारत में प्रत्यक्ष निवेश की वृद्धि हुई है और वित्त वर्ष 2020 में जापान भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक था।
- स्वास्थ्य देखभाल: भारत के ‘आयुष्मान भारत कार्यक्रम’ और जापान के ‘AHWIN’ कार्यक्रम के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के बीच समानता और ताल-मेल को देखते हुए दोनों पक्षों ने ‘आयुष्मान भारत’ के लिये AHWIN के आख्यान के निर्माण हेतु परियोजनाओं की पहचान करने के लिये एक-दूसरे के साथ परामर्श किया ा।
- निवेश और ODA: पिछले कुछ दशकों से भारत जापान की आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance- ODA) ऋण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है। दिल्ली मेट्रो ODA के उपयोग के माध्यम से जापानी सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
- भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना को ‘आर्थिक भागीदारी के लिये विशेष शर्त’ (Special Terms for Economic Partnership- STEP) के तहत जापान इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन एजेंसी द्वारा प्रदत्त सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
- इसके अलावा, जापान और भारत ने जापान की शिंकानसेन प्रणाली (Shinkansen System) को भारत में लाते हुए एक हाई-स्पीड रेलवे के निर्माण के लिये प्रतिबद्धता जताई है।
- भारत जापान परमाणु समझौता 2016 भारत को दक्षिण भारत में छह परमाणु रिएक्टर बनाने में मदद करेगा, जिससे वर्ष 2032 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता दस गुना तक बढ़ जाएगी।
भारत-जापान संबंधों को सुदृढ़ करने की राह की प्रमुख बाधाएँ
- चीन का बढ़ता प्रभुत्व: चीन भारत और जापान के उदय को रोकने के प्रयास करने से कभी पीछे नहीं रहता। इस क्रम में न केवल उसने दोनों देशों पर सैन्य दबाव बढ़ाया है बल्कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की में उनकी स्थायी सदस्यता के दावे का विरोध करता रहा है।
- चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता का प्रभाव: चीनी-अमेरिकी प्रतिद्वंद्विता की तीव्रता हिंद-प्रशांत की क्षेत्रीय सुरक्षा में अव्यवस्था उत्पन्न करती है।
- इस क्षेत्र का सैन्यीकरण हो रहा है और यहाँ हथियारों की होड़ भी आकार ले रही है। विवादित जल क्षेत्र में सैन्य अभ्यास और युद्धाभ्यास आयोजित हो रहे हैं जो अंततः इस क्षेत्र के लिये, विशेष रूप से भारत और जापान जैसे देशों के लिये, शांति और समृद्धि को प्रभावित कर रहे हैं।
- जापान के घरेलू मुद्दे: जापान अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा रणनीतियों के संशोधन को लेकर एक व्यापक घरेलू विमर्श की स्थिति से गुज़र रहा है। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे पर हमले ने इस बहस को प्रबल किया था।
वोस्तोक 2022 (Vostok 2022)
- परिचय: वोस्तोक 2022 एक बहुपक्षीय रणनीतिक और कमान अभ्यास है, जो रूसी सुदूर-पूर्व (Russian Far East) और जापान सागर (Sea of Japan) में सात फायरिंग रेंज में आयोजित होगा। इसमें 50,000 से अधिक सैन्यबल और 5,000 से अधिक हथियार इकाइयाँ भाग ले रही हैं।
- इसमें कई पूर्व सोवियत देशों, चीन, भारत, लाओस, मंगोलिया, निकारागुआ और सीरिया के सैनिक शामिल होंगे।
- जापान की आपत्ति: जापान ने दक्षिणी कुरील द्वीपसमूह (जिस पर जापान और रूस दोनों अपना दावा करते हैं) के निकटवर्ती क्षेत्र में रूस द्वारा इस युद्धाभ्यास की योजना पर आपत्ति जताई है।
- भारत का रुख: भारत ने इस युद्धाभ्यास में अपने युद्धपोतों को भेजने से परहेज किया है और उसने जापान की संवेदनशीलता को आहत करने से बचने के लिये वोस्तोक-2022 के समुद्री घटक से दूर रहने का फैसला किया है।
- हालाँकि भारत ने एक संतुलित रुख बनाए रखते हुए भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट की एक टुकड़ी को सैन्य अभ्यास के लिये भेजा है।
आगे की राह
- हिंद-प्रशांत में किसी भी आधिपत्य पर अंकुश: भारत और जापान को अपनी सैन्य रणनीति को रूपांतरित करने और हिंद-प्रशांत में किसी आधिपत्य (अमेरिका या चीन के द्वारा) के उदय को रोकने के लिये साझा हित पर आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
- डिजिटल सशक्तीकरण के लिये परस्पर सहयोग करना: डिजिटल रूपांतरण के लिये संयुक्त परियोजनाओं को बढ़ावा देकर डिजिटल अवसंरचना को उन्नत करने की दृष्टि से भारत और जापान 5G, Open RAN, टेलीकॉम नेटवर्क सिक्यूरिटी, सबमेरीन केबल सिस्टम एवं क्वांटम कम्युनिकेशन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना सहयोग के लिये हाथ मिला सकते हैं।
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को सुदृढ़ करना: भारत ने हमेशा से दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के साथ अपनी संलग्नता के केंद्र में ‘हिंद-प्रशांत’ को रखा है। समसामयिक चुनौतियों का प्रभावी समाधान पाने के लिये भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- जापान ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और ‘गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना हेतु साझेदारी’ (Partnership for Quality Infrastructure) के बीच तालमेल के माध्यम से दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने वाली रणनीतिक कनेक्टिविटी का समर्थन करने में भी सहयोग करने की इच्छा रखता है।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये ज्ञान विनिमय: भारत आपदा जोखिम प्रवण क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों और उपायों को विकसित करने में जापान के आपदा प्रबंधन अनुभव से भारत लाभान्वित हो सकता है।
- बहुध्रुवीय एशिया की ओर: अपने एशियाई रणनीतिक परिदृश्य को नया रूप देकर भारत और जापान में विश्व शक्तियों के रूप में अपने उदय को उत्प्रेरित करने और एक खुले एवं सुरक्षित हिंद-प्रशांत की ओर आगे बढ़ने की क्षमता है।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘हालाँकि भारत और जापान हिंद-प्रशांत को खुला एवं मुक्त रखने में साझा हित रखते हैं, लेकिन उनके द्विपक्षीय सहयोग में अभी भी कमी है।’’ टिप्पणी कीजिये।