भविष्य की महामारी संबंधी तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया
प्रसंग
हाल ही में नीति आयोग द्वारा भविष्य की महामारी की तैयारी पर गठित विशेषज्ञ समूह ने "भविष्य की महामारी संबंधी तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया - कार्रवाई के लिये एक रूपरेखा" शीर्षक से अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी से सीखे गए सबक, वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट प्रबंधन को मज़बूत करने के लिये सिफारिशों पर प्रकाश डाला गया है।
महामारी की तैयारी पर विशेषज्ञ पैनल गठित करने की क्या आवश्यकता थी?
- कोविड-19 के प्रति भारत की प्रतिक्रिया से सबक:
- चूंकि भारत हाल के इतिहास में सबसे खराब स्वास्थ्य संकट कोविड-19 से उबर रहा है, इसलिये यह आवश्यक है कि इससे सबक लिया जाए और भविष्य की महामारियों के लिये तैयारी मज़बूत किया जाए।
- वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य और भविष्य के जोखिम:
- वैश्विक स्तर पर, महामारी विज्ञान निगरानी, जीनोमिक उपकरण, निदान और टीके जैसे विज्ञान आधारित उपाय वायरस से निपटने में महत्त्वपूर्ण थे।
- भारत ने चुनौतियों पर काबू पाने हेतु समग्र सरकारी दृष्टिकोण अपनाया, जो 100-दिवसीय मिशन ढाँचे के अंतर्गत भविष्य की तैयारियों के लिये महत्त्वपूर्ण सीख प्रदान करता है।
- पारिस्थितिकीय परिवर्तन, जूनोटिक खतरों और विकसित हो रहे मानव-पशु गतिशीलता के कारण भविष्य में महामारियाँ अपरिहार्य हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने चेतावनी दी है कि भविष्य में उत्पन्न होने वाले 75% स्वास्थ्य खतरे जूनोटिक हो सकते हैं।
- पिछले दो दशकों में WHO ने H1N1, इबोला, जीका और कोविड-19 सहित सात अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (Public Health Emergencies of International Concern- PHEIC) घोषित किये हैं, जो स्वास्थ्य संकटों की अप्रत्याशितता तथा जटिलता को उजागर करते हैं।
- भारत की तैयारी रणनीति और एक स्वास्थ्य मिशन:
- भारत का वन हेल्थ (OH) मिशन प्रभावी निगरानी, प्रकोप प्रतिक्रिया और अनुसंधान के माध्यम से मानव, पशु तथा पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एकीकृत करता है।
- हालाँकि जैव आतंकवाद, प्रतिरोधी रोगाणुओं और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों के लिये वन हेल्थ दृष्टिकोण से परे रणनीतियों की आवश्यकता है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक सहयोग शामिल हो।
- वैश्विक पहल और भविष्य की तैयारी रूपरेखा:
- वैश्विक स्तर पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन की उच्च जोखिम वाले रोगाणुओं की पहचान, संशोधित अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम तथा महामारी समझौता वार्ता जैसी पहलों में तैयारियों पर जोर दिया गया है।
- देशों को महामारी विज्ञान क्षमता को बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों के तहत दायित्वों को पूरा करने के लिये उभरते खतरों के लिये तैयारी और लचीलेपन (Preparedness and Resilience for Emerging Threats- PRET) जैसे ढाँचे के साथ संरेखित करना होगा।
पिछले दो दशकों में आई महामारियाँ
बीमारी |
मुख्य विशेषताएँ |
सीखे गए सबक |
|
|
|
एवियन फ्लू (H5N1) (2005 से |
|
|
H1N1 महामारी (2009) |
|
|
इबोला प्रकोप (2014-2016, 2018-2021) |
|
|
MERS-CoV (2012 से) |
|
|
ज़ीका वायरस रोग (1950 के दशक से) |
|
|
कोविड-19 से क्या सीख और चुनौतियाँ मिलीं?
- शासन:
- कोविड-19 प्रतिक्रिया ने सरकारी स्तरों और एजेंसियों के बीच प्रभावी सहयोग को उजागर किया, जिसे सशक्त समूहों और राष्ट्रीय कार्य बलों द्वारा सहायता मिली, जिससे त्वरित निर्णय लेने में मदद मिली।
- जैसे-जैसे वायरस के बारे में समझ विकसित हुई, विज्ञान-आधारित साक्ष्य ने सूचित कार्रवाई का समर्थन किया।
- हालाँकि एजेंसियों के बीच स्पष्ट भूमिका और बेहतर समन्वय की आवश्यकता थी। जोखिम संचार में कमी थी, क्योंकि दो-तरफा डेटा साझा करने के लिये कोई कुशल प्रणाली नहीं थी।
- इसके अतिरिक्त, त्वरित प्रतिक्रिया योजना और प्राधिकार का स्पष्ट हस्तांतरण आवश्यक था, ताकि पदानुक्रमिक प्रक्रियाओं में देरी के बिना त्वरित, समयबद्ध कार्रवाई की जा सके।
- कोविड-19 प्रतिक्रिया ने सरकारी स्तरों और एजेंसियों के बीच प्रभावी सहयोग को उजागर किया, जिसे सशक्त समूहों और राष्ट्रीय कार्य बलों द्वारा सहायता मिली, जिससे त्वरित निर्णय लेने में मदद मिली।
- विधान:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (National Disaster Management Act- NDMA), 2005 ने कोविड-19 के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की अनुमति दी, लेकिन एक समर्पित सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम की आवश्यकता है।
- NDMA के प्रावधान आपात स्थितियों में सार्वजनिक स्वास्थ्य और नैदानिक प्रबंधन की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं करते हैं, तथा पुराने महामारी अधिनियम, 1897 में आधुनिक महामारी संबंधी आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से संभालने की गुंजाइश का अभाव है।
- निगरानी और डेटा प्रबंधन:
- नए जूनोटिक वायरस के कारण होने वाले कोविड-19 के लिये वन हेल्थ दृष्टिकोण की आवश्यकता थी, लेकिन विभिन्न स्रोतों से प्राप्त खंडित जानकारी के कारण डेटा संग्रह कठिन था।
- प्रभावी मॉडलिंग और पूर्वानुमान के लिये इस डेटा का विश्लेषण करने हेतु कोई एकीकृत प्रणाली नहीं थी।
- प्रवृत्ति की पहचान और प्रकोप का पूर्वानुमान के लिये सभी स्रोतों से डेटा को एकत्रित करने और उसका विश्लेषण करने के लिये एक एकल राष्ट्रीय डेटा पोर्टल की सिफारिश की गई है।
- नए डिजिटल उपकरणों (आरोग्य सेतु, को-विन) ने संपर्क अनुरेखण और टीकाकरण में सहायता की, लेकिन अस्पताल नेटवर्क के साथ बेहतर एकीकरण की आवश्यकता थी।
- भारतीय SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (INSACOG) जीनोमिक निगरानी नेटवर्क ने नए स्ट्रेन की पहचान की, लेकिन राज्य और निजी प्रयोगशालाओं के साथ मज़बूत संबंधों का अभाव था।
- INSACOG का विस्तार करना तथा प्रारंभिक चेतावनियों के लिये इसे नैदानिक डेटा से जोड़ना महत्त्वपूर्ण है।
- नए जूनोटिक वायरस के कारण होने वाले कोविड-19 के लिये वन हेल्थ दृष्टिकोण की आवश्यकता थी, लेकिन विभिन्न स्रोतों से प्राप्त खंडित जानकारी के कारण डेटा संग्रह कठिन था।
- अनुसंधान एवं विकास, अनुवाद, और उत्पाद विकास:
- महामारी के प्रबंधन में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग महत्त्वपूर्ण था।
- उद्योगों ने अनुसंधान और विनिर्माण में उत्कृष्टता हासिल की, लेकिन बड़े पैमाने पर लागत प्रभावी उत्पादन के लिये भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) जैसे संस्थानों के साथ बेहतर संबंध और मज़बूत आपूर्ति शृंखला की आवश्यकता है।
- महामारी के प्रबंधन में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग महत्त्वपूर्ण था।
- विनियामक सुधार:
- कोविड-19 के दौरान, एक तीव्र नियामक ढाँचा बनाया गया था, लेकिन यह त्वरित आपातकालीन अनुमोदन के लिये पूरी तरह से तैयार नहीं था।
- स्पष्ट दिशा-निर्देश और वैश्विक नियामक मानकों के साथ संरेखण आवश्यक है, विशेष रूप से नई प्रौद्योगिकियों के लिये।
- अन्य देशों द्वारा अनुमोदित उत्पादों के लिये भी सुसंगत अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों की कमी के कारण देरी हुई।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकसित उत्पादों के परीक्षणों को समर्थन देने के लिये नैदानिक परीक्षण स्थलों का एक मज़बूत, विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त नेटवर्क की आवश्यक है।
भविष्य में महामारी के खतरे क्या हैं और तैयारी के लिये रणनीतियाँ क्या हैं?
- उभरते संक्रामक रोगों का बढ़ता जोखिम: ज्ञात और अज्ञात रोगाणुओं, विशेष रूप से जूनोटिक रोगाणुओं (पशुओं, पक्षियों, वन्यजीवों से) के कारण होने वाले रोगों का खतरा निम्नलिखित कारणों से बढ़ गया है:
- अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, व्यापार और पशुपालन में तीव्रता आई।
- बढ़ता मानव जनसंख्या घनत्व।
- मानव और वन्यजीवों के बीच बदलते संबंध।
- जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे पारिस्थितिक परिवर्तन, रोगों के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- WHO वैश्विक प्राथमिकता रोगजनक सूची: WHO, अनुसंधान और विकास (R&D) निवेशों का मार्गदर्शन करने के लिये प्राथमिकता रोगजनकों की वैश्विक सूची को अपडेट कर रहा है, जिसमें टीके, परीक्षण और उपचार पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वर्तमान सूची में शामिल हैं:
- कोविड-19, इबोला, क्रीमियन- कांगो हीमोरेजिक फीवर, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS), सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS), निपाह और अन्य, रोग 'X' के साथ।
- एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु रोगजनकों की एक अलग सूची में 15 परिवार शामिल हैं, जिन्हें अनुसंधान एवं विकास तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के लिये प्राथमिकता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
- सहयोगात्मक निगरानी:
- उभरते रोगाणुओं का समय पर पता लगाना तथा उनके सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना महत्त्वपूर्ण है।
- बेहतर योजना के लिये, निगरानी द्वारा समुदायों और स्वास्थ्य सुविधाओं में रोग के प्रसार, गंभीरता और परिणामों पर नज़र रखी जानी चाहिये।
- रणनीति तैयार करना:
- अंतर-क्षेत्रीय और सीमा-पार सहयोग: सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों, आपदा प्रबंधन एजेंसियों और अन्य क्षेत्रों के बीच बेहतर समन्वय महामारी के खतरों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जोखिम मूल्यांकन और सामुदायिक सहभागिता: संभावित जोखिमों का आकलन करने, प्रकोप के दौरान गलत धारणाओं या अफवाहों को दूर करने तथा सटीक सूचना प्रसार और सामुदायिक सहयोग सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियाँ बनाई जानी चाहिये।
- संसाधन उपलब्धता: यह सुनिश्चित करना कि प्रभावी महामारी प्रतिक्रिया प्रयासों के समर्थन के लिये पर्याप्त धन और संसाधन उपलब्ध हों।
- एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण: जूनोटिक और उभरते संक्रामक रोगों के लिये समन्वित निगरानी और प्रतिक्रिया के लिये एक बहु-खतरा योजना और रणनीति विकसित करना।
रिपोर्ट में क्या सिफारिशें हैं?
- शासन:
- त्वरित प्रतिक्रिया के लिये अधिकार प्राप्त समूह: यह प्रस्ताव है कि महामारी संबंधी तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया (PPER) के लिये सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoS) बनाया जाए, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे तथा सह-अध्यक्षता स्वास्थ्य अधिकारी करेंगे।
- यह समूह शांति काल के दौरान महामारी संबंधी तैयारियों का प्रभावी समन्वय, अनुमोदन और निगरानी सुनिश्चित करेगा।
- शासन संरचनाओं का संस्थागतकरण: मौजूदा शासन संरचनाओं को संस्थागत बनाया जाना चाहिये, जिसमें तैयारी के लिये परिचालन मैनुअल/SOP और नियमित अभ्यास (जैसे, युद्ध कक्ष संचालन) शामिल हों।
- त्वरित प्रतिक्रिया के लिये अधिकार प्राप्त समूह: यह प्रस्ताव है कि महामारी संबंधी तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया (PPER) के लिये सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoS) बनाया जाए, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे तथा सह-अध्यक्षता स्वास्थ्य अधिकारी करेंगे।
- कानून:
- विशिष्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून की आवश्यकता: महामारी रोग अधिनियम (1897) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) जैसे मौजूदा कानून आधुनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- महामारी से परे गैर-संचारी रोगों, आपदाओं और जैव आतंकवाद जैसे मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक नया सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रबंधन अधिनियम (PHEMA) प्रस्तावित किया गया है।
- वैश्विक उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अन्य देशों में व्यापक कानून हैं (जैसे, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम) जो सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रबंधन के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करते हैं, जिसे भारत को भी अपनाना चाहिये।
- विशिष्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून की आवश्यकता: महामारी रोग अधिनियम (1897) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) जैसे मौजूदा कानून आधुनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- वित्त और प्रबंधन:
- महामारी तैयारी निधि: भविष्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों के लिये तैयारी सुनिश्चित करने के लिये एक विशेष महामारी तैयारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया निधि प्रस्तावित है। इस निधि को पहले से ही स्थापित किया जाना चाहिये, ताकि त्वरित कार्रवाई और 100-दिन की प्रतिक्रिया समय की अनुमति मिल सके।
- डेटा प्रबंधन (उत्पादन/साझाकरण/विश्लेषण):
- एकीकृत डेटा प्लेटफॉर्म: सभी डेटा पोर्टलों को एकीकृत करने हेतु एक एकीकृत प्लेटफॉर्म का निर्माण करना, जिससे त्वरित निर्णय लेने के लिये निर्बाध डेटा प्रवाह और विश्लेषण संभव हो सके।
- एकीकृत प्रणाली: डेटा की व्याख्या और प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये एक राष्ट्रीय विश्लेषणात्मक सेल (National Analytical Cell) द्वारा समर्थित एक एकीकृत डेटा प्रबंधन प्रणाली बनाना।
- डेटा संचार:
- समय पर संचार: सही, समय पर डेटा साझाकरण और सार्वजनिक संचार सुनिश्चित करने के लिये एनसीडीसी में एक सशक्त डेटा विश्लेषण और रिपोर्टिंग इकाई की स्थापना करना।
- प्रत्यायोजित शक्तियाँ: सुचारू डेटा संचार की सुविधा के लिये पूर्व-अनुमोदित प्रत्यायोजित शक्तियों का एक मैनुअल विकसित करना।
- निगरानी:
- निगरानी नेटवर्क को मज़बूत करना: वर्तमान निगरानी प्रणाली को बढ़ाना, वास्तविक समय अलर्ट के लिये केंद्र, राज्य और ज़िला स्तर पर निर्बाध समन्वय सुनिश्चित करना।
- एकीकृत प्रणालियाँ: सीमाओं और बंदरगाहों पर जैव सुरक्षा सहित सार्वजनिक/निजी क्षेत्रों में निगरानी प्रणालियों को जोड़ने के लिये एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण विकसित करना।
- जीनोमिक निगरानी: रोगज़नक़ उत्परिवर्तनों की निगरानी और सीमापार रोगज़नक़ों की आवाजाही पर नज़र रखने के लिये जीनोम अनुक्रमण और वन्यजीव निगरानी को मज़बूत करना।
- आपातकालीन परिचालन केंद्र (EOC): त्वरित निर्णय लेने के लिये डेटा प्रवाह को एकीकृत करते हुए ज़िला स्तर पर EOC का एक नेटवर्क स्थापित करना।
- चमगादड़ और पशु निगरानी: वन हेल्थ दृष्टिकोण को शामिल करते हुए, जूनोटिक रोगों के स्रोत के रूप में चमगादड़ प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करना।
- पूर्वानुमान एवं मॉडलिंग:
- पूर्वानुमान मॉडल का निर्माण: संचरण गतिशीलता पर पूर्वानुमान मॉडल बनाने के लिये विश्वसनीय भारतीय डेटा का उपयोग करके महामारी विज्ञान पूर्वानुमान और मॉडलिंग के लिये एक मज़बूत नेटवर्क स्थापित करना ।
- AI और उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग प्रयासों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना।
- महामारी विज्ञान पूर्वानुमान नेटवर्क: सार्वजनिक, निजी और शैक्षणिक क्षेत्रों में गणितीय मॉडलिंग और साझेदारी सहित महामारी विज्ञान पूर्वानुमान के लिये उत्कृष्टता केंद्र बनाना।
- डेटा एकीकरण: रुझानों के मॉडलिंग और प्रकोप की पूर्वानुमान के लिये निगरानी डेटा (क्लीनिकल, जीनोमिक, सीवेज) का उपयोग करना, जिसमें ICMR और IIT जैसे संस्थानों की सक्रिय भागीदारी हो।
- राष्ट्रीय जैव सुरक्षा एवं जैव सुरक्षा नेटवर्क:
- एकीकृत दृष्टिकोण: मानव, पशु और पौधों को प्रभावित करने वाले रोगाणुओं से निपटने के लिये एक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा तथा जैव सुरक्षा नेटवर्क विकसित करना एवं वन हेल्थ दृष्टिकोण अपनाना।
- अनुसंधान एवं विकास: उभरते खतरों पर त्वरित प्रतिक्रिया के लिये जैव सुरक्षा नियंत्रण सुविधाएँ (BSL-2, BSL-3, BSL-4 और नैदानिक प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित करना।
- अनुसंधान एवं नवाचार:
- जूनोटिक महामारियों पर ध्यान केंद्रित करना: अनुसंधान और नवाचार, विशेष रूप से वैक्सीन तथा नैदानिक विकास में, महामारियों से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- उच्च जोखिम नवाचार निधि: निदान, चिकित्सा, टीके और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान एवं विकास को समर्थन देने के लिये एक समर्पित निधि की स्थापना करना, जिसमें प्राथमिकता वाले रोगजनकों पर जोर दिया जाएगा।
- निदान और चिकित्सा:
- नैदानिक विकास: आयातित अभिकर्मकों पर निर्भरता जैसी चुनौतियों का समाधान करते हुए स्वदेशी नैदानिक किट विकसित करना।
- चिकित्सीय विकास: प्राथमिकता वाले रोगाणुओं के लिये औषधि विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु चिकित्सीय विज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन शुरू किया जाएगा, जिसमें अनुमोदित औषधियों के पुनः उपयोग और नवीन यौगिकों की पहचान पर जोर दिया जाएगा।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): अनुसंधान एवं विकास प्रक्रिया में निजी क्षेत्रों और स्टार्टअप्स को शामिल करना, जिससे आवश्यक दवाओं तथा टीकों के लिये त्वरित प्रतिक्रिया और विकास सुनिश्चित हो सके।
- विनियामक सुधार:
- त्वरित अनुमोदन: टीकों, निदान और चिकित्सा के त्वरित अनुमोदन के लिये एक सामंजस्यपूर्ण नियामक प्रणाली विकसित करना साथ ही त्वरित निर्णय लेने हेतु एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण का गठन करना।
- क्लिनिकल परीक्षणों को मज़बूत करना: दवा और टीका विकास में तेज़ी लाने के लिये एक मज़बूत क्लिनिकल परीक्षण नेटवर्क और अनुकूली कार्यप्रणाली स्थापित करना।
- लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएँ:
- नवाचार एवं वैक्सीन विज्ञान:
- मानव और पशु स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को एकीकृत करते हुए, उभरते रोगाणुओं के लिये टीकों के अनुसंधान, विकास और विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने के लिये एक नवाचार तथा वैक्सीन विज्ञान एवं विकास संस्थान की स्थापना करना।
- नवाचार एवं वैक्सीन विज्ञान:
- सामुदायिक भागीदारी और निजी क्षेत्र के साथ सहभागिता:
- जोखिम संचार और सामुदायिक सहभागिता (RCCE): महामारी के दौरान प्रभावी योजना और नियंत्रण रणनीतियों के लिये सक्रिय सामुदायिक सहभागिता तथा जोखिम संचार की आवश्यकता होती है।
- निजी क्षेत्र की भूमिका: निजी प्रयोगशालाओं और अस्पतालों को, निगरानी से लेकर महामारी के बाद की निगरानी तक, महामारी के सभी चरणों में शामिल किया जाना चाहिये।
- महामारी-पूर्व: निगरानी और योजना के लिये निजी क्षेत्र के अस्पतालों और प्रयोगशालाओं के साथ साझेदारी स्थापित करना।
- महामारी: परीक्षण, जीनोम अनुक्रमण और स्वास्थ्य देखभाल सहायता प्रदान करने में निजी क्षेत्र को शामिल करना।
- महामारी के बाद: म्यूटेशन, वेरिएंट और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों (जैसे, लंबे समय तक कोविड) की निगरानी करना।
- संचार:
- जोखिम संचार इकाई: राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control- NCDC) में एक समर्पित इकाई, जिसका नेतृत्व एक वरिष्ठ अधिकारी करेगा, को अद्यतन जानकारी संभालनी चाहिये तथा समुदाय सहित सभी हितधारकों के साथ प्रभावी संचार सुनिश्चित करना चाहिये।
- इन्फोडेमिक प्रबंधन: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और व्यवहार विज्ञान विशेषज्ञों जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी के माध्यम से गलत सूचना के प्रबंधन तथा जनता को शिक्षित करने के लिये रणनीति विकसित करना।
- सहयोग और साझेदारी:
- सफलता के लिये सहयोग: महामारी के दौरान वैज्ञानिक सफलताओं के लिये शिक्षाविदों, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच साझेदारी महत्त्वपूर्ण थी।
- पूर्व-सहमत प्रोटोकॉल: भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों में प्रतिक्रियाओं में तेज़ी लाने के लिये डेटा, ज्ञान साझाकरण और सहयोगी वित्तपोषण हेतु समझौता ज्ञापन (Memorandums of Understanding- MoU), प्रोटोकॉल और समझौते स्थापित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ: सूचना साझा करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और टीकों और चिकित्सा पद्धतियों के लिये वैश्विक विनियामक अनुमोदन सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना।
- सहयोग को संस्थागत बनाना: भविष्य की महामारियों के लिये तैयार प्रणालियों के निर्माण के लिये गैर-संकट अवधि के दौरान सहयोगात्मक शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना।
भविष्य की महामारियों की तैयारी के लिये 100-दिवसीय मिशन रूपरेखा क्या है?
- तैयारी:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रबंधन अधिनियम: महामारी की तैयारी के लिये कानूनी ढाँचा स्थापित करना।
- महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया पर EGoS: रणनीतिक योजना और प्रतिक्रिया के लिये सशक्त समूह बनाना।
- उच्च जोखिम नवाचार निधि: महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया पर केंद्रित अनुसंधान एवं विकास के लिये धन आवंटित करना।
- मजबूत निगरानी प्रणाली: जीनोमिक, महामारी विज्ञान, नैदानिक और अस्पताल डेटा को एकीकृत करने वाला एक जुड़ा हुआ नेटवर्क विकसित करना।
- एकीकृत डेटा प्रबंधन: डेटा संग्रहण और विश्लेषण के लिये केंद्रीकृत प्रणाली।
- पूर्वानुमान और मॉडलिंग: महामारी के रुझान का पूर्वानुमान और संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना।
- प्राथमिकता रोगजनक अनुसंधान: शीघ्र हस्तक्षेप के लिये प्रमुख रोगजनकों पर ध्यान केंद्रित करना।
- स्ट्रेन लक्षण वर्णन: अच्छी तरह से लक्षण वर्णन और अनुक्रमित स्ट्रेन का भंडार बनाए रखना।
- निदान और टीके: प्राथमिकता वाले रोगाणुओं के लिये निदान और टीके के प्रोटोटाइप विकसित करना।
- पूर्व-अनुमोदित SOP: त्वरित विनियामक अनुमोदन, डेटा संचार और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के लिये मानक प्रक्रियाएँ निर्धारित करना।
- 100 दिन प्रतिक्रिया:
- संक्रमण और रोगज़नक ट्रैकिंग: लक्षित प्रतिक्रिया के लिये रोगज़नकों की शीघ्र पहचान।
- संवेदनशील निदान: निदान और पैमाने पर विनिर्माण का विकास करना।
- वैक्सीन विकास: विशिष्ट रोगाणुओं के अनुरूप वैक्सीन/टीके विकसित करना।
- चिकित्सा/औषधि: उभरती बीमारियों के लिये उपचार विकसित करना।
- प्रारंभिक पूर्वानुमान: रोग की प्रवृत्तियों की भविष्यवाणी करना और हॉट स्पॉट्स में प्रोटोकॉल लागू करना।
- त्वरित प्रतिक्रिया दल: पहले दिन से ही टीमें तैनात करना।
- सतत् डेटा विश्लेषण: अनुसंधान और स्वास्थ्य प्रणालियों का मार्गदर्शन करने के लिये डेटा की निगरानी और विश्लेषण करना।
- स्ट्रेन साझा करना: संगठनों में विशिष्ट स्ट्रेन और नमूनों को साझा करना।
- त्वरित विनियामक अनुमोदन: प्रतिउपायों के तीव्र अनुमोदन के लिये विनियामक प्रक्रियाओं को सुसंगत बनाना।
- आउटपुट और प्रभाव:
- बड़े पैमाने पर तैनाती: यह सुनिश्चित करना कि बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया के लिये प्रतिउपाय उपलब्ध हों।
- सतत् निगरानी: हॉटस्पॉट में रोग के प्रबंधन के लिये महामारी विज्ञान, नैदानिक और जीनोमिक डेटा का निरंतर संग्रह।
- त्वरित प्रतिक्रिया: मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) का पालन करते हुए प्रतिक्रिया टीमों द्वारा तत्काल कार्रवाई।
- नियमित संचार: निरंतर जोखिम संचार और सामुदायिक सहभागिता।
- कुशल रोग प्रबंधन: न्यूनतम संक्रमण के साथ रोगों की रोकथाम, उपचार और प्रबंधन।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. कोविड-19 विश्व महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. कोविड-19 महामारी ने विश्वभर में अभूतपूर्व तबाही उत्पन्न की है। तथापि इस संकट पर विजय पाने के लिये प्रौद्योगिकीय प्रगति का लाभ स्वेच्छा से लिया जा रहा है। इस महामारी के प्रबंधन के सहायतार्थ प्रौद्योगिकी की खोज कैसे की गई, उसका एक विवरण दीजिये। (2020) |