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शासन व्यवस्था

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • 24 Apr 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 को लागू करके ऑक्सीजन ले जाने वाले वाहनों के मुक्त अंतर-राज्य संचालन का आदेश दिया।

  • इससे पूर्व विभिन्न सरकारी अधिकारियों ने मार्च 2020 में देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) के प्रकोप से निपटने के लिये इस अधिनियम के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया था।

प्रमुख बिंदु

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के विषय में:

  • इस अधिनियम को वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा आपदाओं के कुशल प्रबंधन और इससे जुड़े अन्य मामलों के लिये पारित किया गया था। हालाँकि यह जनवरी 2006 में लागू हुआ।

उद्देश्य:

  • आपदा प्रबंधन में शमन रणनीति तैयार करना, क्षमता निर्माण करना आदि शामिल है।
    • इस अधिनियम की धारा 2 (d) में "आपदा" को परिभाषित किया गया है, जिसके अंतर्गत आपदा का अर्थ प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न किसी भी क्षेत्र में "तबाही, दुर्घटना, आपदा या गंभीर घटना" से है।

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ:

  • नोडल एजेंसी:
    • यह अधिनियम गृह मंत्रालय को समग्र राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन को संचालित करने के लिये नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है।
  • संस्थागत संरचना: यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तरों पर संस्थानों की एक व्यवस्थित संरचना बनाए रखता है।
  • राष्ट्रीय स्तर की महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ:
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण:
      • यह आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये नीतियाँ, योजनाएँ तथा दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह एक शीर्ष निकाय है।
    • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति:
      • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 8 के अंतर्गत राष्ट्रीय प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया गया है।
      • इस समिति को आपदा प्रबंधन हेतु समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने तथा राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान:
      • यह संस्थान प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षण और क्षमता विकास कार्यक्रमों को संचालित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल:
      • यह आपदाओं के समय विशेषीकृत कार्यवाही करने में सक्षम एक प्रशिक्षित पेशेवर यूनिट है।

राज्य और ज़िला स्तरीय संस्थाएँ:

  • इस अधिनियम में राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों को भी राष्ट्रीय योजनाओं को लागू करने और स्थानीय योजनाओं को तैयार करने के लिये ज़िम्मेदारी दी गई है।
    • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
    • ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

वित्त:

  • इस अधिनियम में आपातकालीन प्रतिक्रिया, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (National Disaster Response Fund) और राज्य तथा ज़िला स्तर पर भी इसी तरह की निधि सृजन के लिये वित्तीय तंत्र  का प्रावधान किया गया है।

नागरिक और आपराधिक दायित्व:

  • इस अधिनियम के अनेक अनुभागों के उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान किया गया है।
  • आपदा के समय जारी आदेशों का पालन करने से इनकार करने वाले व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 51 के अंतर्गत एक वर्ष तक के कारावास या जुर्माना या दोनों सज़ा एक साथ हो सकती है और यदि इस आदेश के अनुपालन से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उत्तरदायी व्यक्ति को दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है।

चुनौतियाँ:

  • आपदा प्रवण क्षेत्र घोषित न होना:
    • इस अधिनियम में आपदा प्रवण क्षेत्र (Disaster Prone Zone) की घोषणा के प्रावधान का अभाव है।
    • विश्व के लगभग सभी आपदा संबंधी विधानों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर आपदा प्रवण क्षेत्रों का मानचित्रण किया है।
    • राज्य से तब तक सक्रिय भूमिका निभाने की उम्मीद नहीं की जा सकती जब तक कि एक क्षेत्र को आपदा प्रवण क्षेत्र घोषित नहीं किया जाता। इस तरह का वर्गीकरण नुकसान की सीमा को भी निर्धारित करने में मदद करता है।
  • आपदाओं के समय प्रगतिशील व्यवहार की उपेक्षा:
    • यह अधिनियम प्रत्येक आपदा को एक आकस्मिक घटना के रूप में चित्रित करता है और इस बात को नज़रअंदाज करता है कि आपदाएँ प्रकृति में प्रगतिशील हो सकती हैं।
      • भारत में वर्ष 2006 में 3,500 से अधिक लोग डेंगू (Dengue) से प्रभावित थे, भारत में इसके प्रकोप का एक इतिहास था, फिर भी इस तरह की प्रक्रिया को रोकने के लिये कोई प्रभावी तंत्र नहीं बनाया गया है।
      • देश में तपेदिक (TB) से प्रत्येक वर्ष हज़ारों लोग मर जाते हैं, फिर भी इस बीमारी को आकस्मिक घटना नहीं होने के कारण वर्ष 2005 के आपदा अधिनियम में शामिल नहीं किया गया।
  • परस्पर संबद्ध कार्य:
    • यह अधिनियम अनेक राष्ट्रीय स्तर के निकायों की स्थापना का ज़िक्र करता है, जिनके कार्य परस्पर संबद्ध हैं। अतः इन निकायों के बीच समन्वय स्थापित करना बोझिल कार्य हो जाता है।
    • इस अधिनियम में स्थानीय प्राधिकारियों, जिनकी आपदा के समय पहली प्रतिक्रिया के रूप में मूल्यवान भूमिका होती है, का बमुश्किल उल्लेख मिलता है। इन प्राधिकारियों का मार्गदर्शन करने के लिये कोई ठोस प्रावधान नहीं है, इनका केवल आवश्यक उपाय करने हेतु एक मामूली संदर्भ दिया गया है।
  • प्रक्रियात्मक विलंब और अपर्याप्त प्रौद्योगिकी:
    • इसके अतिरिक्त भारत में आपदा प्रबंधन योजना को विलंबित प्रतिक्रिया, योजनाओं और नीतियों के अनुचित कार्यान्वयन तथा प्रक्रियात्मक अंतराल ने प्रभावित किया है।
    • बड़े पैमाने पर होने वाली क्षति के सटीक पूर्वानुमान और माप के लिये अपर्याप्त तकनीकी क्षमता।

आगे की राह

  • समग्र रूप से देखा जाए तो आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने निस्संदेह आपदाओं से निपटने की दिशा में सरकारी कार्यों की योजना में एक बड़ा अंतर ला दिया है, लेकिन जब तक इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं किया जाता है, तब तक कागज़ पर विस्तृत योजनाएँ बनाने मात्र से उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती है।
  • एक सुरक्षित भारत के निर्माण में नागरिक समाज, निजी उद्यम और गैर-सरकारी संगठन (NGO) भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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