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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तपेदिक (TB-Tuberculosis ) उन्मूलन के लिये मॉस्को घोषणा पत्र

  • 20 Nov 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तपेदिक के उन्मूलन के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक रूस के मास्को शहर में हुई। इसमें 2030 तक टीबी उन्मूलन का वैश्विक लक्ष्य रखा गया है। यह संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों-2030 के तीसरे लक्ष्य (SDG-3) की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा, जिसमें सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही HIV-टीबी दोहरे संक्रमण से होने वाली मौतों को 2020 तक रोके जाने की प्रतिबद्धता भी ज़ाहिर की गई है। 

तपेदिक (TB) क्या है?/

इस रोग को ‘क्षय रोग’ या ‘राजयक्ष्मा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस’ नामक बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रामक एवं घातक रोग है। सामान्य तौर पर यह केवल फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है, परंतु यह मानव-शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित कर सकती है। 

भारत के लिये चिंता का विषय- 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ग्लोबल टीबी रिपोर्ट-2016 के अनुसार वर्ष-2016 में विश्व में टीबी के लगभग 1 करोड़ नए मामले आए, जिनमें से 64% मामले सिर्फ सात देशों से संबंधित हैं। उनमें से शीर्ष पर भारत है। अन्य देशों में पाकिस्तान, नाईजीरिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं। भारत के लिये सबसे चिंतनीय पहलू मल्टी ड्रग रेज़िस्टेंट टीबी के मामलों में लगातार हो रही वृद्धि है। एक अन्य चिंताजनक तथ्य यह है कि टीबी के कारण मरने वाले लोगों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो पहले से ही HIV-संक्रमण से पीड़ित हैं। इस प्रकार मल्टी ड्रग रेज़िस्टेंट टीबी और HIV-टीबी दोहरा संक्रमण भारत के समक्ष बड़ी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ हैं। 

 

भारत की प्रतिबद्धता–

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने मास्को में ‘सतत् विकास के युग में तपेदिक को समाप्त करने के बारे में पहले डब्ल्यूएचओ वैश्विक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 2025 तक तपेदिक समाप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। भारत में तपेदिक उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के 4 स्तम्भ हैं, जो तपेदिक नियंत्रण के लिये प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिन्हें “पता लगाना, इलाज, रचना और रोकथाम” नाम दिया गया है।  

और पढ़ें: ‘क्षय रोग’ के मामले में भारत की स्थिति का आकलन

भारत में तपेदिक नियंत्रण की प्रमुख चुनौतियाँ-

  • पहली चुनौती तपेदिक से पीड़ित उन लोगों तक पहुँचना है जिन तक अभी पहुंचा नहीं जा सका है।
  • यह सुनिश्चित करना कि आबादी के संवेदनशील हिस्से जैसे आदिवासियों, शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों तक पहुँचा जाए। सभी मरीजों का शुरुआती निदान और उन्हें सही तथा संपूर्ण इलाज उपलब्ध कराना महत्त्वपूर्ण है।  
  • इन चुनौतियों में त्वरित सूक्ष्मतम परीक्षणों के साथ मुफ्त निदान, सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाली दवाओं और परहेज के साथ मुफ्त इलाज, मरीजों को वित्तीय और पोषण संबंधी सहायता, ऑनलाइन तपेदिक अधिसूचना प्रणाली, मोबाइल प्रोद्योगिकी आधारित निगरानी प्रणाली, निजी क्षेत्र के बेहतर जुड़ाव के लिये इंटरफेज एजेंसियाँ, पारदर्शी सेवा खरीद योजनाओं के लिये नीति, मज़बूत सामुदायिक जुड़ाव, संचार अभियान, तपेदिक के इलाज के लिये दवाएँ खाने वाले सभी लोगों के बारे में सूचना एकत्र करने के लिये नियंत्रण प्रणाली आदि शामिल है।

प्रयास तथा संभावनाएँ-

  • जिन इलाकों में सामाजिक और भौगोलिक दृष्टि से पहुँचना कठिन है वहां मरीजों तक पहुँचने के लिये सरकार ने कुछ चुने हुए इलाकों में तपेदिक के मामले पता लगाने का सक्रिय अभियान शुरू किया है।
  • शहरी स्वास्थ्य मिशन के ज़रिये शहरी मलिन इलाकों में तपेदिक के मामलों का पता लगाने के प्रयास किये जाएंगे।
  • इसमें सूचना प्रौद्योगिकी  का भी इस्तेमाल करते हुए प्रत्येक टीबी रोगी का विवरण निक्षय वेब पोर्टल पर अंकित किया जा रहा है।
  • भारत दुनिया में तपेदिक की दवाओं का प्रमुख निर्माता है। विश्व बाज़ार में इनका करीब 80 प्रतिशत हिस्सा भारत में निर्मित होता है। हम देश या विदेश में मरीजों को सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता की दवाएँ देते हैं। भारत को विश्व के साथ मिलकर तपेदिक के मरीजों के लिये जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के बारे में गंभीरता से विचार-विमर्श करना चाहिये।
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