भारतीय अर्थव्यवस्था
विकास और संरक्षण में संतुलन
यह एडिटोरियल 31/12/2024 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Ken-Betwa river project: Balancing development with ecological concerns” पर आधारित है।
यह लेख भारत की पहली बड़ी नदी-इंटरलिंकिंग पहल, केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पर प्रकाश डालता है जो 29 वर्षों के बाद इसके लंबे समय से प्रतीक्षित प्रारंभ को रेखांकित करता है तथा विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच इसके कारण उत्पन्न महत्त्वपूर्ण विवाद पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना, विकास, पर्यावरण संरक्षण, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, गति शक्ति, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, PM विश्वकर्मा योजना, ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर, सेमीकॉन इंडिया, नारी शक्ति वंदन अधिनियम- 2023, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, रक्षा क्षेत्र, डिजिटल कृषि मिशन, PM-किसान योजना मेन्स के लिये:भारत की वर्तमान मुख्य विकास प्राथमिकताएँ, विकास आकांक्षाओं से उत्पन्न प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ। |
केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना, जिसका हाल ही में औपचारिक उद्घाटन हुआ, भारत की महत्त्वाकांक्षी नदी-इंटरलिंकिंग परियोजना में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। अपनी अवधारणा के 29 वर्षों के बाद, 16 प्रस्तावित नदी-जोड़ो परियोजनाओं में से अब तक का यह पहला उपक्रम आखिरकार शुरू हो गया है, जिसने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच नाजुक संतुलन को लेकर नये विवाद छेड़ दिये हैं। जैसे-जैसे उत्खननकर्त्ता अपने ब्लेड तैयार करते हैं और इंजीनियर अपने ब्लूप्रिंट खोलते हैं, केन-बेतवा नदी-जोड़ो परियोजना आधुनिक भारत में प्रगति की व्यापक कहानी की जाँच करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण लेंस के रूप में कार्य करती है, जहाँ प्रत्येक विकासात्मक कदम को उसके पारिस्थितिक फूटप्रिंट के विरुद्ध आँका जाना चाहिये।
भारत की वर्तमान मुख्य विकास प्राथमिकताएँ क्या हैं?
- बुनियादी अवसंरचना का विकास: भारत की आर्थिक महत्त्वाकांक्षाएँ उत्पादकता बढ़ाने, व्यापार को सुविधाजनक बनाने और निवेश आकर्षित करने के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना के निर्माण पर केंद्रित हैं।
- एक मज़बूत बुनियादी अवसंरचना न केवल औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि दूरदराज़ के क्षेत्रों को मुख्यधारा की आर्थिक गतिविधियों से जोड़कर क्षेत्रीय असमानताओं को भी समाप्त करती है।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (5 वर्षों में 111 लाख करोड़ रुपए) और गति शक्ति जैसी पहलों का उद्देश्य क्षेत्रों को एकीकृत करना तथा कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
- सत्र 2023-24 में पूंजीगत व्यय आवंटन बढ़ाकर ₹10 लाख करोड़ (GDP का 3.3%) कर दिया गया, जो सरकार के बुनियादी अवसंरचना-केंद्रित विकास मॉडल का संकेत है।
- जलवायु परिवर्तन शमन और नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण: जलवायु परिवर्तन से निपटना भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है क्योंकि इसका लक्ष्य विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता के बीच संतुलन स्थापित करना है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने तथा बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण अनिवार्य है।
- ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (₹19,700 करोड़) और सौर ऊर्जा विस्तार (वर्ष 2023 में 71 गीगावाट की स्थापित क्षमता) इस परिवर्तन को रेखांकित करते हैं।
- अक्तूबर 2024 तक, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादन क्षमता 201.45 गीगावाट है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 46.3% है, साथ ही इसकी पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
- मानव पूंजी विकास: भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिये मानव पूंजी में निवेश आवश्यक है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार से सशक्त, स्वस्थ एवं कुशल कार्यबल सुनिश्चित होता है, जो सतत् विकास के लिये अपरिहार्य है।
- PM ई-विद्या योजना ने कोविड-19 के दौरान बच्चों के लिये डिजिटल शिक्षा का विस्तार किया, जबकि आयुष्मान भारत ने 50 करोड़ से अधिक नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा के साथ कवर किया।
- भारत की साक्षरता दर बढ़कर 77.7% हो गई है और वर्ष 2018 में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 32 से घटकर वर्ष 2020 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 28 हो गई है।
- वित्तीय समावेशन और डिजिटल अर्थव्यवस्था का विस्तार: डिजिटल और वित्तीय समावेशन पर भारत का ज़ोर वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाना तथा सामाजिक-आर्थिक उत्थान में तीव्रता लाना है।
- डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने से ग्रामीण और शहरी आबादी सशक्त होगी, निर्बाध आर्थिक भागीदारी संभव होगी तथा समान विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- वर्ष 2024 में, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) द्वारा लगभग 172 बिलियन लेनदेन संसाधित किये गए, जो वर्ष 2023 के 118 बिलियन से 46% की वृद्धि को दर्शाता है, जिससे वित्तीय लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा मिला है।
- जन धन योजना ने 53 करोड़ बैंकिंग सुविधा से वंचित व्यक्तियों को वित्तीय प्रणाली में शामिल किया है, जिससे गरीबी उन्मूलन और समान विकास को बढ़ावा मिला है।
- रोज़गार सृजन और ग्रामीण सशक्तीकरण: भारत की जनसांख्यिकीय चुनौतियों का समाधान करने और ग्रामीण समृद्धि सुनिश्चित करने के लिये स्थायी रोज़गार सृजन आवश्यक है।
- कौशल संवर्द्धन और औद्योगिक विकास के लिये लक्षित कार्यक्रम बेरोज़गारी को कम करने तथा ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- PM विश्वकर्मा योजना (₹13,000 करोड़) पारंपरिक कारीगरों की आजीविका को बढ़ा रही है, जबकि मनरेगा ग्रामीण रोज़गार सुरक्षा संजाल के रूप में जारी है।
- ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जो सत्र 2018-19 में 19.7% से बढ़कर सत्र 2020-21 में 27.7% हो गई है, जो उपायों के प्रभाव को दर्शाती है।
- प्रौद्योगिकीय नवाचार और उद्योग 4.0: प्रौद्योगिकी वैश्विक आर्थिक अग्रणी बनने की भारत की रणनीति का आधार है, जो आर्थिक विविधीकरण को सक्षम बनाती है, दक्षता को बढ़ाती है और उच्च मूल्य वाली नौकरियों का सृजन करती है।
- अग्रणी पहल का उद्देश्य भारत को उन्नत विनिर्माण और नवाचार के केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
- सेमीकॉन इंडिया (76,000 करोड़ रुपए) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर केंद्र बनाना है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो।
- वित्त वर्ष 2023 में IT और BPM उद्योगों की संप्राप्ति 245 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से वर्ष 2035 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में 967 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुड़ने की उम्मीद है।
- सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता: समावेशी समाज को बढ़ावा देना भारत के लिये एक प्रमुख विकास प्राथमिकता है, जिसमें सीमांत समूहों के लिये समान अवसरों पर ज़ोर दिया जाता है और प्रणालीगत असमानताओं को दूर किया जाता है।
- कानूनी सुधार और लक्षित योजनाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि आर्थिक विकास सामाजिक उत्थान में परिवर्तित हो।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम- 2023 का लक्ष्य संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का 33% प्रतिनिधित्व है, और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ने बाल लैंगिक अनुपात में सुधार किया है।
- SC/ST छात्रवृत्ति और EWS आरक्षण नीति से वंचित समूहों का उत्थान हो रहा है।
- रक्षा आधुनिकीकरण और सामरिक स्वायत्तता: भारत की रक्षा क्षमताओं को दृढ़ करना और रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना राष्ट्रीय सुरक्षा एवं वैश्विक सामरिक स्वायत्तता के लिये आवश्यक है।
- स्वदेशी विनिर्माण में निवेश से आयात पर निर्भरता कम होगी और तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
- वित्त वर्ष 2024 में रक्षा क्षेत्र के लिये बजट 13% आवंटित किया गया, मेक इन इंडिया के तहत स्वदेशी आयुध उत्पादन पर ज़ोर दिया गया।
- वित्त वर्ष 2022-23 में 16,000 करोड़ रुपए मूल्य के रक्षा उपकरणों का निर्यात, आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की प्रगति को रेखांकित करता है।
- शहरी विकास और स्मार्ट सिटी मिशन: शहरी स्थानों को समुत्थानशील, कुशल और संधारणीय पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तित करना भारत की विकास रणनीति का केंद्रबिंदु है।
- स्मार्ट शहरों का उद्देश्य शहरी चुनौतियों का समाधान करने तथा नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये प्रौद्योगिकी एवं नवाचार का उपयोग करना है।
- जुलाई, 2024 तक मिशन के अंतर्गत 100 शहरों ने 7,188 परियोजनाएँ सफलतापूर्वक पूरी कर ली हैं, जो कुल परियोजनाओं का 90% है, जिससे शहरी क्षेत्रों में डिजिटल और भौतिक बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा मिल रहा है।
- कृषि आधुनिकीकरण: संवहनीय कृषि प्रथाओं और तकनीकी नवाचार के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाना खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने तथा किसानों की आय को दोगुनी करने के लिये आवश्यक है।
- बाज़ार सुधार और वित्तीय सहायता ग्रामीण विकास को बढ़ावा दे रहे हैं।
- डिजिटल कृषि मिशन और राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) ने किसानों के लिये बाज़ार संपर्क में सुधार किया है।
- स्वस्थ मांग और गैर-बासमती चावल पर प्रतिबंध हटने के कारण देश का कृषि निर्यात सत्र 2024-25 में 50 बिलियन डॉलर को पार करने की उम्मीद है, और PM-किसान योजना ने शुरुआत से ही किसानों को 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष लाभ प्रदान किया है।
- औद्योगिक विकास और विनिर्माण को बढ़ावा: भारत खुद को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने और रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिये औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दे रहा है।
- मेक इन इंडिया और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी नीतियों का उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना तथा आयात पर निर्भरता कम करते हुए आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश हुआ है। भारत सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 17-18% से बढ़ाकर 25% करने का आकांक्षी है।
- पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत विकास: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध परिदृश्य पर्यटन आधारित आर्थिक विकास के लिये अपार संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
- विरासत संरक्षण और पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयासों का उद्देश्य सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
- प्रसाद योजना और देखो अपना देश पहल का उद्देश्य धरोहर स्थलों को पुनर्जीवित करना है।
- वर्ष 2023 में कुल विदेशी पर्यटक आगमन (FTA) 9.52 मिलियन रहा, जिसने विदेशी मुद्रा आय और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
विकास आकांक्षाओं से उत्पन्न होने वाली प्रमुख पर्यावरणीय चिंताएँ क्या हैं?
- निर्वनीकरण और आवास की क्षति: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और बुनियादी अवसंरचना के विकास से भारत के पारिस्थितिक संतुलन पर असर पड़ रहा है।
- राजमार्गों, खनन और शहरी परियोजनाओं के लिये वनों की कटाई से न केवल वन्यजीव विस्थापित हुए हैं, बल्कि कार्बन पृथक्करण और भूजल पुनर्भरण जैसी पारिस्थितिकी सेवाएँ भी बाधित हुई हैं।
- छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य वन जैसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाएँ विकास और संरक्षण के बीच चल रहे संघर्ष का उदाहरण हैं।
- FAO के अनुसार, भारत में वर्ष 2015 और वर्ष 2020 के बीच निर्वनीकरण की दर 668 हेक्टेयर प्रति वर्ष थी, जबकि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी प्रजातियाँ आवास अतिक्रमण के कारण गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।
- औद्योगीकरण से वायु प्रदूषण: भारत का औद्योगिक विकास स्वच्छ वायु की कीमत पर हुआ है, कारखानों, बिजली संयंत्रों और वाहनों से बढ़ते उत्सर्जन के कारण गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हो रहा है।
- प्रदूषण मानदंडों के कड़े प्रवर्तन का अभाव तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता इस समस्या को और भी बढ़ा देती है।
- वर्ष 2023 में, विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत (IQAir रिपोर्ट) के थे। दिल्ली और कानपुर जैसे शहर लगातार विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं, जहाँ PM2.5 का स्तर WHO के मानकों से कहीं अधिक है।
- जल तनाव और अत्यधिक निष्कर्षण: कृषि और उद्योग के लिये भूजल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण जल स्तर में चिंताजनक कमी आई है, जिससे भारत के जल संसाधनों की स्थिरता को खतरा उत्पन्न हो गया है।
- निम्नस्तरीय सिंचाई पद्धतियाँ एवं अत्यधिक जल-प्रधान फसल पद्धतियाँ, विशेष रूप से पहले से ही शुष्क क्षेत्रों में समस्या को और भी बढ़ा देती हैं।
- देश में सिंचाई का उपयोग करने वाले किसानों में से 70-80% भूजल पर निर्भर हैं, तथा पंजाब और हरियाणा में भूजल स्तर गंभीर स्तर पर है।
- NITI आयोग के अनुसार, 600 मिलियन भारतीय अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2022 में भारत की 605 नदियों में से आधे से अधिक प्रदूषित पाई गईं।
- भूमि क्षरण और मृदा अपरदन: वनों की कटाई और शोषणकारी कृषि पद्धतियों से प्रेरित असंवहनीय भूमि उपयोग के कारण व्यापक स्तर पर मृदा अपरदन एवं मरुस्थलीकरण हो रहा है।
- इससे कृषि उत्पादकता कम हो जाती है और कृषि अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भर देश में खाद्य सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- भारत में भूमि क्षरण एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है, तथा लगभग 30% भूमि पहले से ही इससे प्रभावित है।
- लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षरित हुई है, तथा वर्ष 2004 और 2019 के दौरान इसमें 3 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।
- समुद्री प्रदूषण और तटीय क्षरण: महासागरों में अनियंत्रित औद्योगिक और शहरी अपशिष्ट निपटान ने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जबकि अनियंत्रित तटीय विकास ने क्षरण को तीव्र कर दिया है।
- ये मुद्दे न केवल जैवविविधता के लिये खतरा हैं, बल्कि तटीय समुदायों की आजीविका को भी हानि पहुँचाते हैं।
- भारत 9.3 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन के साथ प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में विश्व स्तर पर अग्रणी है।
- एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि भारत प्रत्येक वर्ष 5.8 मिलियन टन ईंधन का दहन करता है और 3.5 मिलियन टन पर्यावरण में मुक्त करता है।
- राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR) के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत की 33.6% तटरेखा का क्षरण हो रहा है, 26.9% में वृद्धि हो रही है, तथा 39.5% स्थिर बनी हुई है।
- जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ: विकासात्मक गतिविधियों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ा दिया है, जिससे जलवायु परिवर्तन और अधिक गंभीर हो गया है तथा चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ गई है।
- इन व्यवधानों का गंभीर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी पर।
- वर्ष 2023 में भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 6.1% बढ़ गया, जो वैश्विक कुल उत्सर्जन का 8% है।
- भारत में वर्ष 2023 में 92 दिनों में से 85 दिन चरम मौसमी घटनाएँ हुईं, जिनमें बाढ़, चक्रवात और हीट वेव्स शामिल हैं।
- शहरी अपशिष्ट प्रबंधन संकट: भारत में शहरीकरण की गति इतनी तीव्र हो गई है कि अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा के प्रबंधन के लिये आवश्यक बुनियादी अवसंरचना का विकास नहीं हो पा रहा है, जिससे पर्यावरण क्षरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहे हैं।
- अपशिष्ट पृथक्करण एवं पुनर्चक्रण तंत्र की अपर्याप्तता के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई है।
- भारत में प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 70% ही एकत्रित किया जाता है तथा 12 मिलियन टन अपशिष्ट को संसाधित किया जाता है।
- दिल्ली में गाज़ीपुर लैंडफिल, जिसमें वर्ष 2023 में आग लग गई थी, इस संकट की गंभीरता का उदाहरण है।
- आर्द्रभूमि और प्राकृतिक कार्बन सिंक का नुकसान: कार्बन अवशोषण और जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण एवं क्षरण चिंताजनक है।
- शहरी क्षेत्रों और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के अनियमित विस्तार के परिणामस्वरूप उनमें तेज़ी से गिरावट आई है।
- वेटलैंड्स इंटरनेशनल (WI) के एक अध्ययन से पता चलता है कि पिछले 30 वर्षों में भारत में प्रत्येक 5 में से लगभग 2 वेटलैंड्स/अर्द्रभुमियों ने अपना प्राकृतिक अस्तित्व खो दिया है।
- संधारणीय पर्यटन प्रथाओं का अभाव: नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों में अनियमित पर्यटन के कारण अपशिष्ट संचय, जैवविविधता का ह्रास और पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण हुआ है।
- पहाड़ी क्षेत्र और तटीय क्षेत्र विशेष रूप से अति-पर्यटन के प्रति संवेदनशील हैं।
- लद्दाख जैसे स्थानों पर वर्ष 2015 से 2023 के दौरान पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट प्रबंधन संकट और जल की कमी हुई।
- उदाहरण के लिये, गोवा राज्य में पिछले तीन दशकों में मैंग्रोव क्षेत्रों में भारी गिरावट देखी गई है।
भारत पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ विकासात्मक आकांक्षाओं में संतुलन किस प्रकार स्थापित कर सकता है?
- निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था के लिये नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन: ऊर्जा की मांग को पूरा करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण आवश्यक है।
- भारत को व्यवधान संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये ग्रिड-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को एकीकृत करना होगा तथा ग्रामीण विद्युतीकरण के लिये अपतटीय पवन और विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा में निवेश करना होगा।
- नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) जैसे नीतिगत फ्रेमवर्क को मज़बूत करना और हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रोत्साहित करना ऊर्जा स्वतंत्रता एवं संवहनीयता को सुरक्षित कर सकता है।
- संधारणीय शहरीकरण और जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना: भारत को शहरी नियोजन मॉडल अपनाना चाहिये जिसमें हरित बुनियादी अवसंरचना, ऊर्जा-कुशल भवन और शून्य-अपशिष्ट नीतियाँ शामिल हों।
- शहरी विस्तार में मिश्रित भूमि उपयोग, उर्ध्वाधर हरित स्थान और जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना को मानक बनना होगा।
- स्मार्ट सिटी मिशन जैसी पहलों को संधारणीय शहरी जल निकासी प्रणालियों, शहरी वानिकी और नवीकरणीय ऊर्जा चालित सार्वजनिक परिवहन के साथ एकीकृत करने से शहरी पारिस्थितिक तनाव को कम किया जा सकता है।
- वन संरक्षण और समुदाय-संचालित वनरोपण: विकास और वन संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिये, भारत को प्रतिपूरक वनरोपण कानूनों के सख्त प्रवर्तन तथा पारिस्थितिकी प्रतिसंतुलन की बेहतर निगरानी की आवश्यकता है।
- समुदाय आधारित वनरोपण परियोजनाएँ और कृषि वानिकी को बढ़ावा देने से आजीविका एवं जैवविविधता को एक साथ बढ़ावा मिल सकता है।
- राष्ट्रीय वन नीति जैसी नीतियों में उन्नत उपग्रह-आधारित वन आवरण निगरानी को एकीकृत किया जाना चाहिये तथा जैव विविधता की रक्षा के लिये पारिस्थितिकी-संवेदनशील पर्यटन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- उन्नत पर्यावरणीय शासन और हरित वित्तपोषण: सभी चरणों में सार्वजनिक परामर्श, स्वतंत्र विशेषज्ञ पैनल और सख्त निगरानी प्रणालियों को शामिल करने के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को सुदृढ़ करने से परियोजना से संबंधित पारिस्थितिक क्षरण को कम किया जा सकता है।
- भारत को हरित वित्तपोषण की अपनी क्षमता का दोहन करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह उभरते बाज़ारों में ग्रीन बॉण्ड जारी करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है जो नवीकरणीय ऊर्जा पार्क जैसी परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
- TCS और इंफोसिस वार्षिक संवहनीयता रिपोर्ट के साथ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
- एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन: भारत को समान जल वितरण सुनिश्चित करने के लिये वर्षा जल संचयन, अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण और जलभृत पुनर्भरण को मिलाकर एकीकृत जल प्रबंधन अपनाना चाहिये।
- सब्सिडी के माध्यम से ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई के उपयोग को प्रोत्साहित करने से जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में अत्यधिक दोहन को कम किया जा सकता है।
- जलग्रहण विकास की गति को तेज़ करना तथा पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील तरीके से नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाएँ, कृषि और औद्योगिक जल आवश्यकताओं में संतुलन स्थापित कर सकती हैं।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और सतत् उपभोग: संसाधन निष्कर्षण और अपशिष्ट उत्पादन को न्यूनतम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था फ्रेमवर्क का निर्माण आवश्यक है।
- उद्योगों को बंद-लूप उत्पादन प्रणाली अपनाने तथा उपभोक्ताओं को संवहनीय वस्तुओं की ओर स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहित करने से पर्यावरणीय दबाव कम हो सकता है।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन, तथा जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट से बड़े पैमाने पर खाद बनाने को एकीकृत करने वाली नीतियाँ प्रणालीगत परिवर्तन के लिये आवश्यक हैं।
- परिवहन का विद्युतीकरण और हरित गतिशीलता: परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों, हाइड्रोजन ईंधन-सेल वाहनों और जैव-CNG बसों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- EV विनिर्माण, बैटरी रीसाइक्लिंग और चार्जिंग बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करने से स्वच्छ ऊर्जा आधारित गतिशीलता के अंगीकरण में तेज़ी आएगी।
- हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण जैसी नीतियों को भीड़-भाड़ मूल्य निर्धारण और वाहन कबाड़ प्रोत्साहन के लिये शहर-स्तरीय पहलों के साथ पूरक होना चाहिये।
- समुत्थानशील खाद्य प्रणालियों के लिये जलवायु-स्मार्ट कृषि: परिशुद्ध कृषि, संरक्षित जुताई और एकीकृत कीट प्रबंधन के माध्यम से जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना संधारणीय उत्पादकता की कुंजी है।
- फसल बीमा, कृषि वानिकी और अनुकूल बीज किस्मों का विस्तार करके जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा चालित शीत भंडारण और आपूर्ति शृंखलाओं को प्रोत्साहित करने से फसल-उपरांत होने वाली हानियों को कम किया जा सकता है तथा कृषि संवहनीयता को बढ़ाया जा सकता है।
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण और ब्लू इकॉनमी: भारत को अति मत्स्यन, मैंग्रोव वनों की कटाई और समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने वाली नीतियों के माध्यम से समुद्री संरक्षण को सुदृढ़ करना चाहिये।
- संवहनीय मात्स्यिकी पद्धतियाँ, पारिस्थितिकी पर्यटन और नवीकरणीय अपतटीय ऊर्जा पारिस्थितिकी क्षरण के बिना ब्लू इकॉनमी का दोहन कर सकती हैं।
- असुरक्षित पारिस्थितिकी तंत्रों को अनियमित औद्योगिक विकास से बचाने के लिये तटीय विनियमन क्षेत्रों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
- व्यवहार परिवर्तन और ज़मीनी स्तर पर संवहनीयता: ऊर्जा संरक्षण, अपशिष्ट पृथक्करण और संवहनीय उपभोग पर जन जागरूकता अभियान को बढ़ावा देना स्थायी प्रभाव के लिये आवश्यक है।
- स्कूलों और स्थानीय शासन निकायों में पर्यावरण-साक्षरता कार्यक्रम संवहनीयता की संस्कृति को विकसित कर सकते हैं।
- विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा के अंगीकरण के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG) जैसी समुदाय-आधारित पहलों का लाभ उठाने से ज़मीनी स्तर के प्रयासों को सशक्त बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष:
केन-बेतवा नदी जोड़ो जैसी परियोजनाओं के उदाहरण के रूप में भारत की विकास आकांक्षाओं को आर्थिक प्रगति को पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ संतुलित किया जाना चाहिये। नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन, संधारणीय शहरीकरण का अंगीकरण और पर्यावरणीय शासन को बढ़ावा देना पारिस्थितिकी और विकास के बीच सामंजस्य स्थापित करने की कुंजी है। भारत का भविष्य का विकास यह सुनिश्चित करने पर निर्भर करता है कि पारिस्थितिकी अखंडता को इसके महत्त्वाकांक्षी विकास लक्ष्यों के साथ संरक्षित किया जाए, जो SDG 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता), SDG 7 (किफायती और स्वच्छ ऊर्जा), SDG 11 (संधारणीय शहर और समुदाय), और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) के साथ संरेखित हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “आर्थिक विकास से प्रायः संसाधनों की खपत बढ़ती है और पर्यावरण का क्षरण होता है।” भारत आर्थिक विकास की अपनी कोशिशों को सतत् विकास की ज़रूरत के साथ किस प्रकार संरेखित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं ? (2017) प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |