जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन
- 30 Dec 2024
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022, भूजल संदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा क्षरण, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), खतरनाक अपशिष्ट के सीमा पार आवागमन और उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन, परसिस्टेंट कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन, खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन एवं सीमा पार आवागमन) नियम 2016, लैंडफिलिंग। मेन्स के लिये:ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नीतिगत पहल एवं कार्यक्रम, भारत में ई-अपशिष्ट का वर्तमान परिदृश्य, ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ और इसके सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री द्वारा उपलब्ध आँकड़ों से देश भर में इलेक्ट्रॉनिक तथा विद्युत उपकरणों के बढ़ते उपयोग पर प्रकाश पड़ा है।
ई-अपशिष्ट
- इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) से तात्पर्य ऐसे विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से है जो पुराने हो गए हैं या जो कार्यशील नहीं हैं।
- ई-अपशिष्ट में अनेक विषैले रसायन होते हैं जिनमें सीसा, कैडमियम, पारा तथा निकल जैसी धातुएँ शामिल हैं।
भारत में ई-अपशिष्ट की स्थिति क्या है?
- मात्रा में वृद्धि: भारत में पिछले पाँच वर्षों में ई-अपशिष्ट के उत्पादन में 72.54% की वृद्धि (जो वर्ष 2019-20 के 1.01 मिलियन मीट्रिक टन (MT) से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 1.751 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है) देखी गई है।
- प्रतिवर्ष लगभग 57% ई-अपशिष्ट (990,000 मीट्रिक टन के बराबर) अनुपचारित रह जाता है।
- भारत के 65 शहरों से कुल ई-अपशिष्ट का 60% से अधिक उत्पादित होता है जबकि 10 राज्यों की कुल ई-अपशिष्ट में 70% भागीदारी है।
- पुनर्चक्रण अंतराल: वर्ष 2023-24 में केवल 43% ई-अपशिष्ट का पुनर्चक्रण (वर्ष 2019-20 में यह 22% था) किया गया।
- ई-अपशिष्ट के प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्रों का वर्चस्व है तथा इनमें पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का अभाव है।
- वैश्विक संदर्भ: चीन एवं अमेरिका के बाद भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा ई-अपशिष्ट उत्पादक देश है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में विश्व भर में लगभग 53.6 मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ।
ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022:
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से वार्षिक पुनर्चक्रण लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है।.
- EPR प्रमाण-पत्र से पुनर्चक्रित उत्पादों हेतु जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- विस्तारित उत्पाद कवरेज: वित्त वर्ष 2023-24 से इसके तहत 106 विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (EEE) को शामिल किया गया।
- थोक उपभोक्ताओं का एकीकरण: सार्वजनिक संस्थानों एवं कार्यालयों द्वारा पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं/नवीनीकरणकर्त्ताओं के माध्यम से ई-अपशिष्ट का निपटान कराने पर ज़ोर दिया गया।
- पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं और नवीनीकरणकर्त्ताओं को ई-अपशिष्ट के संग्रहण एवं प्रसंस्करण के प्रबंधन का कार्य सौंपा गया।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से वार्षिक पुनर्चक्रण लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है।.
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) द्वितीय संशोधन नियम, 2023: ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के नियम 5 के अंतर्गत, प्रशीतन एवं वातानुकूलन विनिर्माण में सुरक्षित, जवाबदेह तथा धारणीय रेफ्रिजरेंट प्रबंधन सुनिश्चित करने के क्रम में खंड 4 जोड़ा गया।
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024:
- केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, उसके अनुमोदन से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाण-पत्रों के व्यापार हेतु प्लेटफाॅर्म स्थापित कर सकती है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाण-पत्रों के लिये मूल्य सीमा निर्धारण किया जाएगा जो गैर-अनुपालन के क्रम में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का 100% (अधिकतम) एवं 30% (न्यूनतम) होगा।
ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन/अभिसमय कौन-से हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय:
- खतरनाक अपशिष्टों की सीमा पार गतिविधियों एवं उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन (1989)।
- भारत बेसल कन्वेंशन का एक पक्षकार है।
- बामाको कन्वेंशन (1991): इसके तहत अफ्रीका में खतरनाक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट सहित) के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है तथा इस महाद्वीप से ऐसे अपशिष्ट की सीमा पार आवाजाही को नियंत्रित किया गया है।
- पारा पर मिनामाता कन्वेंशन (2013)
- भारत ने वर्ष 2018 में मिनामाता कन्वेंशन की पुष्टि की।
- स्टॉकहोम कन्वेंशन ऑन पर्सिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (POP) (2001)
- भारत ने स्टॉकहोम कन्वेंशन का अनुसमर्थन किया है तथा घरेलू कानूनों के माध्यम से इसके प्रावधानों को क्रियान्वित करने पर ज़ोर दिया है।
- खतरनाक अपशिष्टों की सीमा पार गतिविधियों एवं उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन (1989)।
- राष्ट्रीय:
- ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022: इसके तहत EPR और उचित पुनर्चक्रण पर ज़ोर दिया गया है।
- हानिकारक अपशिष्ट (प्रबंधन और पारगमन गतिविधि) नियम, 2016
- रासायनिक एवं अपशिष्ट प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना: स्टॉकहोम और रॉटरडैम सम्मेलनों के प्रति प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित किया गया है।
भारत में ई-अपशिष्ट निपटान के सामान्य तरीके क्या हैं?
- लैंडफिलिंग: इसके तहत ई-अपशिष्ट को मृदा के अंदर डंप करना शामिल है।
- एक गंभीर चिंता का विषय यह है कि संकटजनक पदार्थों का मृदा और भूजल में रिसकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचने का खतरा है।
- भस्मीकरण (Incineration): उच्च तापमान (900-10,000 डिग्री सेल्सियस) पर ई-अपशिष्ट का नियंत्रित विधि से दहन करने से अपशिष्ट की मात्रा कम हो जाती है और कुछ संकटजनक पदार्थ निष्प्रभावी हो जाते हैं।
- पुनर्चक्रण: मूल्यवान सामग्री (जैसे- धातु, प्लास्टिक) को पुनः प्राप्त करने के लिये ई-अपशिष्ट को नष्ट करना और विषाक्त घटकों का सुरक्षित रूप से विनष्टीकरण करना। यह पारा, कैडमियम और सीसा जैसे संकटजनक पदार्थों को कम करता है, जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं।
- उदाहरण: मुद्रित सर्किट बोर्ड, सी.आर.टी., मोबाइल फोन और तारों का पुनर्चक्रण।
ई-अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे और संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण: ज्वलन और एसिड लीचिंग जैसी संकटजनक विधियों का उपयोग करके अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से विषाक्त धुआँ उत्सर्जित होता है तथा मृदा एवं जल दूषित हो जाता है, जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
- चीन, भारत, पाकिस्तान, वियतनाम और फिलीपींस के अनौपचारिक रीसाइक्लिंग बाज़ार विश्व के 50% से 80% ई-अपशिष्ट का प्रबंधन करते हैं।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लिये बुनियादी ढाँचे, जिसमें अपर्याप्त संग्रहण बिंदु और पुनर्चक्रण सुविधाएँ शामिल हैं, से अनुचित निपटान की समस्या उत्पन्न होती है।
- इसके परिणामस्वरूप ई-अपशिष्ट लैंडफिल में पहुँचता है, जिससे संकटजनक रसायनों से मृदा और जल संदूषित हो जाता है।
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जागरूकता का अभाव: उचित निपटान और पुनर्चक्रण के संबंध में उपभोक्ताओं, व्यवसायों तथा नीति निर्माताओं में जागरूकता का अभाव है।
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उदाहरण के लिये, व्यक्ति अपने ई-अपशिष्ट को नियमित कूड़ेदानों में फेंक सकते हैं या उसे ऐसे दान-संस्थाओं को दान कर सकते हैं जिनके पास ई-अपशिष्ट का उचित रूप से प्रबंधन करने हेतु उचित संसाधन का अभाव है।
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ई-अपशिष्ट के पर्यावरणीय प्रभाव: ई-अपशिष्ट से पर्यावरण को नुकसान होता है क्योंकि विषाक्त पदार्थ (जैसे- सीसा, कैडमियम और पारा) जल, मृदा तथा वायु को दूषित करते हैं, जिससे वन्य जीवन प्रभावित होता है।
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अनुचित निपटान से भूजल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और मृदा क्षरण बढ़ता है।
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किन कार्यनीतियों से भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है?
- अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण: संग्रहण दरों को बढ़ाने के लिये अनौपचारिक अपशिष्ट संचालकों को औपचारिक प्रणालियों में एकीकृत किया जाना चाहिये। सुरक्षित हैंडलिंग तकनीकों पर अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिये, चीन अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों (WEEE) की पुनर्प्राप्ति तथा निपटान के प्रबंधन पर विनियमन के माध्यम से प्रशिक्षण तथा वित्तीय सहायता के साथ अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाता है।
- तकनीकी प्रगति: दक्षता बढ़ाने के लिये उन्नत रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये और बेहतर ई-अपशिष्ट ट्रैकिंग तथा संग्रहण प्रणालियों के लिये AI एवं IoT-आधारित समाधान विकसित करने की आवश्यकता है।
- यूरोपीय संघ के "मरम्मत के अधिकार" नियम के अंतर्गत निर्माताओं के लिये वस्तुओं की मरम्मत के दायित्वों को स्पष्ट किया गया है तथा उपभोक्ताओं को मरम्मत के माध्यम से उत्पाद के जीवनचक्र को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- वैश्विक प्रथाओं से सीख लेना:
- यूरोपीय संघ: कठोर पुनर्चक्रण लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये तथा उत्पादकों के लिये पारिस्थितिकी-डिज़ाइन प्रोत्साहन बढ़ाया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ (EU) द्वारा अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) निर्देश।
- जापान: रीसाइक्लिंग पहलों को प्रभावी ढंग से वित्तपोषित करने और समर्थन देने के लिये राष्ट्रव्यापी ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग शुल्क क्रियान्वित किये जाने की आवश्यकता है।
- जापान घरेलू उपकरण पुनर्चक्रण विधि (HARL) के माध्यम से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) पर ज़ोर देता है।
- यूरोपीय संघ: कठोर पुनर्चक्रण लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये तथा उत्पादकों के लिये पारिस्थितिकी-डिज़ाइन प्रोत्साहन बढ़ाया जाना चाहिये।
- नवीनीकरण और पुनः उपयोग कार्यक्रम: कंपनियों को पुनर्विक्रय के लिये प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक्स का नवीनीकरण करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये, जिससे उनके जीवन चक्र का संवर्द्धन किया जा सके।
- उदाहरण: जर्मनी में उपभोक्ताओं को पुराने उपकरणों की मरम्मत या नवीनीकरण के लिये निर्दिष्ट केंद्रों पर इसे वापस किये जाने की सुविधा उपलब्ध है।
- ई-अपशिष्ट को कम करते हुए वहनीय इलेक्ट्रॉनिक्स को सुलभ बनाने के लिये संगठित सेकेंड-हैंड बाज़ारों का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये।
- जन जागरूकता और शिक्षा: ई-अपशिष्ट के खतरों और उचित निपटान विधियों पर शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों के लिये जन जागरूक अभियान आयोजित करना चाहिये।
- जन संपर्क कार्यक्रमों के लिये गैर सरकारी संगठनों और थिंक टैंकों के साथ सहयोग किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग: रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों में क्षमता निर्माण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) जैसे संगठनों के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इसके प्रभावी प्रबंधन के लिये उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कंप्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस अपशिष्ट की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे विषैले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) |