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संसद टीवी संवाद


कृषि

संसद टीवी विशेष: डिजिटल कृषि मिशन

  • 18 Sep 2024
  • 24 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल कृषि मिशन, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI), डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण, एग्रीस्टैक, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली, मृदा प्रोफाइल मानचित्रण, आधार, डिजिटल फसल सर्वेक्षण, पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना, 2024-25,  सूखे, बाढ़, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य, खाद्य सुरक्षा, कृषि शिक्षा, सतत् पशुधन स्वास्थ्य, कृषि विज्ञान केंद्र, स्वयं सहायता समूह, केंद्रीय बजट 2024-25, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, कृषि-मौसम विज्ञान इकाइयाँ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार, परिशुद्ध कृषि, उर्वरकों, कीटनाशकों, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, PM-किसान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मौसम पूर्वानुमान उपकरण, भारतनेट परियोजना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान

मेन्स के लिये:

कृषि क्षेत्र के डिजिटलीकरण और किसानों के लिये ई-प्रौद्योगिकी का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

2 सितंबर, 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2,817 करोड़ रुपए के बजट के साथ डिजिटल कृषि मिशन को मंज़ूरी दी, जिसमें 1,940 करोड़ रुपए की केंद्र सरकार की हिस्सेदारी भी शामिल है।

डिजिटल कृषि मिशन क्या है?

  • परिचय: डिजिटल कृषि "सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technologies- ICT) तथा डेटा पारिस्थितिकी तंत्र है, जो सभी के लिये सुरक्षित, पौष्टिक एवं किफायती भोजन प्रदान करते हुए खेती को लाभदायक व टिकाऊ बनाने हेतु समय पर लक्षित जानकारी और सेवाओं के विकास एवं वितरण का समर्थन करता है।"
    • डिजिटल कृषि मिशन को विभिन्न डिजिटल कृषि पहलों को समर्थन देने के लिये एक व्यापक योजना के रूप में तैयार किया गया है।
    • इनमें डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) का निर्माण, डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (Digital General Crop Estimation Survey- DGCES) का कार्यान्वयन तथा केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों द्वारा IT पहलों को समर्थन देना शामिल है।
  • मिशन घटक: मिशन को विभिन्न डिजिटल कृषि पहलों का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह दो मुख्य स्तंभों अर्थात् एग्रीस्टैक एवं कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (Krishi Decision Support System- K-DSS) पर आधारित है।
  • एग्रीस्टैक: किसानों की पहचान
    • किसानों की रजिस्ट्री: किसानों को आधार के समान एक डिजिटल पहचान (‘किसान ID’) दी जाएगी, जिसे भूमि के रिकॉर्ड, पशुधन के स्वामित्व, बोई गई फसलों, जनसांख्यिकीय विवरण, पारिवारिक विवरण, योजनाओं और प्राप्त लाभों आदि से गतिशील रूप से जोड़ा जाएगा। मिशन का लक्ष्य वित्त वर्ष 2026-27 में चरणों में 11 करोड़ किसानों के लिये डिजिटल ID बनाना है।
    • भू-संदर्भित ग्राम मानचित्र: यह डिजिटल मानचित्र प्रदान करता है, जो भौगोलिक जानकारी को भौतिक भूमि अभिलेखों से जोड़ता है तथा सटीक भूमि प्रबंधन एवं योजना बनाने में सहायता करता है।
    • बोई गई फसल की रजिस्ट्री: मोबाइल आधारित डिजिटल सर्वेक्षणों के माध्यम से किसानों द्वारा बोई गई फसलों का विवरण दर्ज करती है, जिससे फसल संबंधी आँकड़ों की सटीकता में सुधार होता है।
    • पायलट प्रोजेक्ट: एग्रीस्टैक के लिये पायलट प्रोजेक्ट छह राज्यों- उत्तर प्रदेश (फर्रुखाबाद), गुजरात (गांधीनगर), महाराष्ट्र (बीड), हरियाणा (यमुनानगर), पंजाब (फतेहगढ़ साहिब) और तमिलनाडु (विरुधुनगर) में संचालित किये गए हैं।
    • बोई गई फसल की रजिस्ट्री: बोई गई फसल की रजिस्ट्री किसानों द्वारा बोई गई फसलों का विवरण प्रदान करेगी। प्रत्येक फसल सीज़न में डिजिटल फसल सर्वेक्षण, मोबाइल-आधारित ग्राउंड सर्वेक्षण के माध्यम से जानकारी दर्ज की जाएगी।
    • डिजिटल फसल सर्वेक्षण: डिजिटल फसल सर्वेक्षण दो वर्षों में देश भर में शुरू किया जाएगा, जिसमें वित्त वर्ष 2024-25 में 400 ज़िले और वित्त वर्ष 2025-26 तक सभी ज़िले शामिल होंगे।
    • पूंजी निवेश के लिये राज्यों को विशेष सहायता योजना: पिछले महीने, पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना, 2024-25 के तहत किसानों की रजिस्ट्री बनाने के लिये राज्यों को प्रोत्साहन हेतु 5,000 करोड़ रुपए निर्धारित किये गए थे। यह राशि डिजिटल कृषि मिशन के लिये किये गए बजटीय आवंटन से अलग है।
  • कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (DSS)
    • एक व्यापक भू-स्थानिक प्रणाली बनाने के लिये फसलों, मिट्टी, मौसम और जल संसाधनों की जानकारी के साथ रिमोट सेंसिंग डेटा को एकीकृत करता है।
    • फसल मानचित्र निर्माण, सूखे और बाढ़ की निगरानी ​​तथा उपज मूल्यांकन में सहायता एवं  सटीक फसल बीमा दावों व संसाधन प्रबंधन में सहायता।
  • मृदा प्रोफाइल मानचित्रण
    • इसमें लगभग 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के लिये 1:10,000 पैमाने पर विस्तृत मृदा प्रोफाइल मानचित्रों की परिकल्पना की गई है।
    • 29 मिलियन हेक्टेयर के लिये मृदा प्रोफाइल सूची पहले ही पूरी हो चुकी है, जिससे मृदा स्वास्थ्य और कृषि पद्धतियों के लिये मूल्यवान डेटा उपलब्ध हो गया है।
  • डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES)
    • इसका उद्देश्य वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन किये गए फसल-कटिंग प्रयोगों के माध्यम से फसल उपज अनुमान की सटीकता को बढ़ाना है।
    • कृषि उत्पादन अनुमानों में सुधार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) खरीद, फसल बीमा, और ऋण-लिंक्ड फसल ऋण जैसी सरकारी योजनाओं को अधिक कुशल एवं पारदर्शी बनाना।
    • सूत्रों के अनुसार, DGCES वैज्ञानिक रूप से तैयार फसल कटाई प्रयोगों के आधार पर उपज अनुमान प्रदान करेगा, जो कृषि उत्पादन का सटीक अनुमान लगाने में उपयोगी होगा।
  • सरकार द्वारा घोषित अन्य योजनाएँ:
    • डिजिटल कृषि मिशन के साथ-साथ मंत्रिमंडल ने 14,235.30 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय वाली छह अतिरिक्त योजनाओं को मंज़ूरी दी। इनमें शामिल हैं:
      • वर्ष 2047 तक खाद्य सुरक्षा और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने के लिये फसल विज्ञान हेतु 3,979 करोड़ रुपए।
      • कृषि शिक्षा, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान को मज़बूत करने के लिये 2,291 करोड़ रुपए
      • सतत् पशुधन स्वास्थ्य एवं उत्पादन के लिये 1,702 करोड़ रुपए
      • बागवानी के सतत् विकास के लिये 1,129.30 करोड़ रुपए।
      • कृषि विज्ञान केंद्र को सुदृढ़ करने के लिये 1,202 करोड़ रुपए।
      • प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिये 1,115 करोड़ रुपए।

कृषि क्षेत्र के डिजिटलीकरण के लिये पहलें 

  • नमो ड्रोन दीदी योजना: यह योजना मार्च 2024 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य किसानों को किराये की सेवाएँ देने के लिये 15,000 चयनित महिला स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group- SHG) को ड्रोन प्रदान करना है।
    • कार्यान्वयन अवधि वर्ष 2023-24 से 2025-26 तक।
    • केंद्रीय बजट 2024-25 के तहत इस पहल के लिये 500 करोड़ रुपए निर्धारित किये गए हैं।
  • एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP): UFSP राष्ट्रीय कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर विभिन्न सार्वजनिक और निजी IT प्रणालियों के बीच निर्बाध अंतर-संचालन सुनिश्चित करने के लिये कोर बुनियादी ढाँचे, डेटा, अनुप्रयोगों और उपकरणों को एकीकृत करता है।
  • ज़िला कृषि-मौसम विज्ञान इकाइयाँ: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department- IMD) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से 2018 में 199 ज़िला कृषि-मौसम विज्ञान इकाइयाँ स्थापित कीं।
    • इसका उद्देश्य IMD से प्राप्त मौसम संबंधी आँकड़ों का उपयोग करके उप-ज़िला स्तर पर कृषि संबंधी परामर्श तैयार करना और प्रसारित करना था।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: देश के सभी किसानों को तीन वर्ष के अंतराल पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान किया जाता है ताकि किसान मृदा परीक्षण मूल्यों के आधार पर पोषक तत्वों की अनुशंसित खुराक का प्रयोग कर सकें, जिससे उन्हें बेहतर और टिकाऊ मृदा स्वास्थ्य तथा उर्वरता, कम लागत एवं अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
  • एमकिसान पोर्टल: इसका उद्देश्य मोबाइल प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना है, ताकि वे अपनी पसंद के अनुसार टेक्स्ट या वॉयस संदेश के माध्यम से सूचना और सलाह प्राप्त कर सकें तथा इंटरनेट कनेक्शन के बिना भी विभिन्न डेटाबेस तक पहुँच बना सकें।
  • किसान कॉल सेंटर: टोल-फ्री टेलीफोन लाइनों के माध्यम से किसानों को कृषि से संबंधित जानकारी प्रदान करता है।
  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK): यद्यपि ये केंद्र पूर्णतः डिजिटल नहीं हैं फिर भी ये कृषि विस्तार सेवाओं के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग तेज़ी से कर रहे हैं।

डिजिटल कृषि मिशन के क्या लाभ हैं?

  • बेहतर फसल उपज और उत्पादकता: रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System- GIS) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) जैसी डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ किसानों को अपनी प्रथाओं को अनुकूलित करने में मदद कर सकती हैं, जिससे उपज में वृद्धि हो सकती है।
    • उदाहरण: ICAR-IARI (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) का पूसा कृषि एक कृषि नवाचार केंद्र है, जो अपनी विश्व स्तरीय तकनीक, गहन क्षेत्र ज्ञान और परिवर्तनकारी प्रभाव के लिये जाना जाता है।
  • किसानों के लिये बेहतर निर्णय लेने की क्षमता: समय पर और सटीक जानकारी तक पहुँच से किसानों को रोपण, कटाई एवं फसल प्रबंधन के बारे में बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (eNAM) मंच पूरे भारत में 1,000 से अधिक मंडियों को जोड़ता है, जो 2023 तक 1.7 करोड़ से अधिक किसानों को मूल्य की जानकारी और बाज़ार के रुझान प्रदान करता है।
  • कुशल संसाधन प्रबंधन: परिशुद्ध कृषि तकनीकें जल, उर्वरकों और कीटनाशकों का इष्टतम उपयोग संभव बनाती हैं।
    • ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) और रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियाँ इनपुट को अनुकूलित करने में मदद करती हैं, जिससे बेहतर फसल पैदावार और कुशल कृषि पद्धतियाँ प्राप्त होती हैं।
  • बेहतर आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: डिजिटल प्लेटफॉर्म किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के बीच बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे फसल-उपरांत हानि कम होती है।
  • वित्तीय समावेशन: डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ किसानों के लिये ऋण, बीमा और अन्य वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच सक्षम बनाती हैं।
  • फसल बीमा: डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) जैसी फसल बीमा योजनाओं के लिये आसान नामांकन और दावा प्रसंस्करण की सुविधा प्रदान करते हैं।
    • डिजिटल रिकॉर्ड दावों के तेज़ी से निपटान और नुकसान का अधिक सटीक आकलन करने में मदद करते हैं।
  • कृषि-तकनीक स्टार्टअप: देहात और एग्रोस्टार (DeHaat and AgroStar) जैसे प्लेटफॉर्म किसानों को बाज़ार की जानकारी, सलाहकार सेवाओं तथा प्रत्यक्ष बिक्री चैनलों तक पहुँचने के लिये डिजिटल उपकरण प्रदान करते हैं, जो उनकी सौदेबाज़ी की शक्ति एवं आय में सुधार कर सकते हैं।
  • मौसम पूर्वानुमान: उन्नत मौसम पूर्वानुमान उपकरण किसानों को मौसम की स्थिति के बारे में समय पर जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें बेहतर योजना बनाने और जोखिम कम करने में मदद मिलती है।
  • ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म: डिजिटल प्लेटफॉर्म किसानों को प्रशिक्षण और शैक्षिक संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिये, किसान सुविधा ऐप का इंटरफेस सरल है और यह पाँच महत्त्वपूर्ण मापदंडों- मौसम, इनपुट डीलर, बाज़ार मूल्य, पौध संरक्षण तथा विशेषज्ञ सलाह, पर जानकारी प्रदान करता है।

डिजिटल कृषि मिशन से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • डिजिटल विभाजन और बुनियादी ढाँचे में अंतराल: कई ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली की कमी है, जिससे डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बाधा आ रही है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2022 में 52% भारतीय आबादी के पास इंटरनेट की पहुँच थी।
  • किसानों में डिजिटल साक्षरता का अभाव: कई किसानों, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों में डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के कौशल का अभाव है।
    • NASSCOM के अनुमान के अनुसार, केवल 2% भारतीय किसान ही खेती में ऐप का उपयोग करते हैं।
  • उच्च प्रारंभिक निवेश लागत: डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिये अक्सर महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, जो छोटे पैमाने के किसानों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार भारत में औसत भूमि का आकार सिर्फ 1.08 हेक्टेयर है, जिससे कई किसानों के लिये उन्नत तकनीक का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
  • विविध कृषि प्रणालियों का एकीकरण: भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र और कृषि पद्धतियाँ सभी के लिये एक समान डिजिटल समाधान विकसित करना चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research - ICAR) को स्थान-विशिष्ट कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये देश भर में 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendras- KVK) स्थापित करने हैं।
  • परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध: पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ गहराई से व्याप्त हैं और कई किसान नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने में हिचकिचाते हैं।
  • मानकीकृत डेटा का अभाव: एकीकृत, मानकीकृत कृषि डेटाबेस के अभाव के कारण डिजिटल समाधानों को प्रभावी ढंग से विकसित करना और कार्यान्वित करना कठिन हो जाता है।
  • सीमित स्थानीय सामग्री: कई डिजिटल कृषि सेवाएँ स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।

आगे की राह

  • ग्रामीण डिजिटल बुनियादी ढाँचे में सुधार: सभी ग्राम पंचायतों को उच्च गति की इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये भारतनेट परियोजना में तेज़ी लाना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल कियोस्क और मोबाइल इंटरनेट सुविधाएँ स्थापित करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: किसानों के बीच डिजिटल कौशल को बेहतर बनाने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करना, व्यावहारिक अनुप्रयोगों और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल इंटरफेस पर ध्यान केंद्रित करना।
  • क्षेत्र-विशिष्ट समाधान विकसित करना: प्रासंगिकता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये भारत की विविध कृषि-जलवायु स्थितियों तथा कृषि प्रथाओं को समायोजित करने हेतु डिजिटल समाधान तैयार करना।
  • उपयोगकर्त्ता-अनुकूल, बहुभाषी अनुप्रयोग विकसित करना: कृषि अनुप्रयोगों के लिये एक मानकीकृत ढाँचा बनाना, जो सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं का समर्थन करता हो।
    • कम साक्षर किसानों द्वारा आसानी से अपनाने के लिये आवाज-आधारित इंटरफेस के विकास को प्रोत्साहित करना।
  • हितधारकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना: अनुकूलित समाधान विकसित करने के लिये कृषि विश्वविद्यालयों और प्रौद्योगिकी कंपनियों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
  • छोटे और सीमांत किसानों पर ध्यान केंद्रित करना: सामूहिक कृषि मॉडल विकसित करना जो छोटे किसानों को प्रौद्योगिकी अपनाने के लिये संसाधनों को एकत्र करने की अनुमति दे।
  • पारंपरिक ज्ञान को डिजिटल समाधानों के साथ एकीकृत करना: ऐसे प्लेटफॉर्म विकसित करें जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों को डिजिटल रूप में प्रस्तुत करें तथा उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोणों के साथ एकीकृत करें।
    • ऐसे AI प्रणालियों के विकास को प्रोत्साहित करें जो पारंपरिक ज्ञान का विश्लेषण कर सकें और उसे सिफारिशों में शामिल कर सकें।
    • उदाहरण के लिये पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (Traditional Knowledge Digital Library- TKDL) मॉडल का विस्तार करके इसमें कृषि पद्धतियों को भी शामिल किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट)’ स्कीम को क्रियान्वित करने का/के क्या लाभ है/हैं? (2017)

  1. यह कृषि वस्तुओं के लिये सर्व-भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है।
  2. यह कृषकों के लिये राष्ट्रव्यापी बाज़ार सुलभ कराता है, जिसमें उनके उत्पाद की गुणता के अनुरूप कीमत मिलती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020)

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