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डेली न्यूज़

  • 31 May, 2023
  • 69 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

IPEF मंत्रिस्तरीय बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद-प्रशांत क्षेत्र, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF)

मेन्स के लिये:

भारत को शामिल करने वाले और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते, द्विपक्षीय समूह और समझौते, हिंद-प्रशांत और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) मंत्रिस्तरीय की दूसरी बैठक हुई, जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भागीदार देशों के बीच आर्थिक सहयोग में महत्त्वपूर्ण योगदान को दर्शाया गया।

  • इस आभासी सभा में उच्च-स्तरीय अधिकारियों को ढाँचे के चार स्तंभों में से प्रत्येक स्तंभ से संबंधित वार्ता के विषय में चर्चा करने हेतु आमंत्रित किया गया जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आयोजित किया गया था।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • इस बैठक में स्तंभ II के तहत अपनी तरह के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय IPEF आपूर्ति शृंखला समझौते की वार्ता के समापन की घोषणा की गई जिसका उद्देश्य लचीलापन, दक्षता, उत्पादकता, स्थिरता, पारदर्शिता, विविधीकरण, सुरक्षा, निष्पक्षता और आपूर्ति शृंखलाओं के समावेश को बढ़ाना है। 
  • इस बैठक में अन्य IPEF स्तंभों अर्थात् निष्पक्ष और लचीला व्यापार (स्तंभ I), अवसंरचना, स्वच्छ ऊर्जा एवं डीकार्बोनाइज़ेशन (स्तंभ III) तथा कर एवं भ्रष्टाचार-विरोधी तंत्र (स्तंभ IV) के तहत प्रगति की जानकारी प्राप्त हुई।
  • इस बैठक में कुछ IPEF भागीदारों द्वारा स्तंभ III के अंतर्गत क्षेत्र में नवीकरणीय और निम्न-कार्बन हाइड्रोजन एवं इसके डेरिवेटिव की व्यापक तैनाती को प्रोत्साहित करने के लिये एक क्षेत्रीय हाइड्रोजन पहल की शुरुआत की गई।

IPEF के विषय में:  

  •  परिचय: 
    • यह एक अमेरिकी नेतृत्व वाली पहल है जिसका उद्देश्य भागीदार देशों के मध्य आर्थिक साझेदारी को मज़बूत करना है ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लचीलापन, स्थिरता, समावेश, आर्थिक विकास, निष्पक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है।
    • IPEF को संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत-प्रशांत क्षेत्र के अन्य भागीदार देशों द्वारा संयुक्त रूप से 23 मई, 2022 को टोक्यो में शुरू किया गया था।
  • सदस्य: 
    • ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, फिजी, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका और वियतनाम।
  • स्तंभ:
    • व्यापार (स्तंभ I):
      •  IPEF, भागीदार देशों के बीच व्यापार जुड़ाव मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • इसका उद्देश्य क्षेत्र में आर्थिक विकास, शांति और समृद्धि को बढ़ावा देना है।
      • भारत, IPEF के स्तंभ II से IV में शामिल हो गया, जबकि स्तंभ- I में भारत को  पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
    • आपूर्ति-शृंखला में लचीलापन (स्तंभ II):
      • यह आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक लचीला, मज़बूत और अच्छी तरह से एकीकृत बनाने का प्रयास करता है।
      • संकट प्रतिक्रिया उपायों और व्यवधानों को कम करने के लिये सहयोग पर बल देता है।
      • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे- रसद, संयोजकता और निवेश में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • कौशल उन्नयन और पुनर्कौशल पहलों के माध्यम से कार्यकर्त्ता भूमिकाओं को बढ़ाने का लक्ष्य है।
    • स्वच्छ अर्थव्यवस्था (स्तंभ III): 
      • स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु के अनुकूल प्रौद्योगिकियों पर सहयोग को आगे बढ़ाना।
      • स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान, विकास, व्यावसायीकरण और परिनियोजन पर ध्यान केंद्रित करना।
      • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जलवायु संबंधी परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • निष्पक्ष अर्थव्यवस्था (स्तंभ IV):
      • यह भ्रष्टाचार विरोधी और प्रभावी कर उपायों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • भ्रष्टाचार से निपटने के लिये विधायी और प्रशासनिक ढाँचे में सुधार हेतु भारत के मज़बूत कदमों पर प्रकाश डाला गया।
      • UNCAC (भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) और FATF (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) मानकों को लागू करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-सिंगापुर संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और सिंगापुर, मलक्का जलडमरूमध्य, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA), SIMBEX, डिजिटल कॉमर्स के लिये भारत का खुला नेटवर्क (ONDC)

मेन्स के लिये:

भारत और सिंगापुर संबं

चर्चा में क्यों? 

भारत के केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने हाल ही में मौजूदा संबंधों को मज़बूत करने और शिक्षा एवं कौशल विकास में द्विपक्षीय जुड़ाव को व्यापक बनाने के अवसरों की तलाश के उद्देश्य से सिंगापुर की तीन दिवसीय यात्रा शुरू की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने सिंगापुर सरकार के विभिन्न प्रमुख मंत्रियों से मुलाकात की और स्पेक्ट्रा सेकेंडरी स्कूल का दौरा किया।
    • इसमें सहयोग को मज़बूत करने और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर डीपीएम एवं वित्त मंत्री, सिंगापुर के साथ एक रचनात्मक बैठक शामिल है।
    • बैठक में जीवनपर्यंत शिक्षण के अवसर पैदा करने, भविष्य के लिये तैयार कार्यबल के निर्माण और ज्ञान एवं कौशल विकास को रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमुख  स्तंभ बनाने पर ज़ोर दिया गया।
  • केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 पर प्रकाश डाला और व्यावसायिक शिक्षा, प्रशिक्षण की बाजार प्रासंगिकता और उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचे के साथ कौशल योग्यता ढाँचे के एकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया।
  • मंत्री ने सिंगापुर की सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने, सहयोग करने और भारतीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसे अनुकूलित करने पर ज़ोर दिया। 

सिंगापुर के साथ भारत के संबंध: 

  • पृष्ठभूमि:  
    • भारत और सिंगापुर के बीच घनिष्ठ संबंधों का इतिहास है जो एक सहस्राब्दी के मज़बूत वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और दोनों देशों के लोगों के बीच संबंधों में निहित है। 
    • आधुनिक संबंधों का श्रेय सर स्टैमफोर्ड रैफल्स को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 1819 में मलक्का जलडमरूमध्य के मार्ग पर सिंगापुर में एक व्यापारिक केंद्र की स्थापना की, जो बाद में एक क्राउन कॉलोनी बन गई और वर्ष 1867 तक कोलकाता से शासित हुआ।
      • स्वतंत्रता के बाद भारत, वर्ष 1965 में सिंगापुर को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
  • व्यापार और आर्थिक सहयोग:
    •  सिंगापुर, आसियान में भारत के सबसे बड़े व्यापार और निवेश भागीदारों में से एक है तथा वर्ष 2021-22 में यह आसियान के साथ भारत के कुल व्यापार का 27.3% था।
      •  सिंगापुर, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी प्रमुख स्रोत है। पिछले 20 वर्षों में सिंगापुर से भारत में किया गया कुल निवेश लगभग 136.653 बिलियन डॉलर है और यह कुल FDI प्रवाह का लगभग 23% है। 
    • भारत और सिंगापुर के मध्य वर्ष 2005 में व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • भारत और सिंगापुर ने व्यापार एवं निवेश को बढ़ावा देने के लिये भारत-सिंगापुर बिज़नेस फोरम तथा भारत-सिंगापुर सीईओ फोरम जैसी कई पहलों पर भी सहयोग किया है।
    • हाल ही में भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और सिंगापुर के PayNow को फरवरी 2023 में दोनों देशों के बीच तेज़ी से प्रेषण को सक्षम करने के लिये एकीकृत किया गया है।
  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग:
    • दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता और समुद्री सुरक्षा को लेकर चिंताएँ साझा करते हैं।
      • वर्ष 2015 में राजनयिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर उन्होंने अपने संबंधों को एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत किया।
    • उन्होंने रक्षा सहयोग समझौता- 2003 और नौसेना सहयोग समझौता- 2017, जैसे अपने रक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिये कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • सैन्य अभ्यास:
        • नौसेना: SIMBEX
        • वायु सेना: SINDEX
        • थल सेना: बोल्ड कुरुक्षेत्र
  • शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:
    • DST-CII भारत-सिंगापुर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन का 28वाँ संस्करण फरवरी 2022 में आयोजित किया गया था।
      • इसमें AI, IoT, फिनटेक, हेल्थकेयर, बायोटेक, स्मार्ट विनिर्माण, ग्रीन मोबिलिटी, लॉजिस्टिक और रसद आपूर्ति समाधान, स्मार्ट विनिर्माण तथा सतत् शहरी विकास में भारत एवं सिंगापुर के सहयोग को भी दर्शाया गया है।
    • ISRO ने वर्ष 2011 में सिंगापुर का पहला स्वदेश निर्मित माइक्रो-सैटेलाइट भी प्रमोचित किया था। 
    • सिंगापुर 'आधार' जैसी राष्ट्रीय पहचान प्रणाली की तर्ज पर डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करने पर विचार कर रहा है।
      • एक और संभावित अवसर यह है कि सिंगापुर के 'प्रॉक्सटेरा' (MSME पारिस्थितिकी तंत्र का वैश्विक डिजिटल केंद्र) का भारत के ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) के साथ एकीकरण हो सकता है
  • सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंध: दोनों देश सांस्कृतिक विविधता, भाषायी संबंध और धार्मिक सद्भाव की समृद्ध विरासत साझा करते हैं।
    • सिंगापुर में 3.9 मिलियन की निवासी आबादी में भारतीय लगभग 9.1% या लगभग 3.5 लाख हैं। उन्होंने सिंगापुर के आर्थिक विकास, सामाजिक ताने-बाने और सांस्कृतिक विविधता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
    • आसियान-भारत प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) सिंगापुर में 6-7 जनवरी, 2018 को आसियान-भारत साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में "प्राचीन मार्ग, नई यात्रा" विषय के साथ आयोजित किया गया था।
  • अवसंरचना विकास में सहयोग:
    • अवसंरचना विकास, स्मार्ट शहरों और शहरी नियोजन में सिंगापुर की विशेषज्ञता भारत के सतत् विकास एवं स्मार्ट शहरों के निर्माण के लक्ष्यों के अनुरूप है।  
      • सिंगापुर की कंपनियाँ भारत में औद्योगिक पार्कों, हवाई अड्डों और शहरी अवसंरचना के विकास सहित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2009)

   संगठन                                    मुख्यालय  स्थान

  1. एशियाई विकास बैंक :                       टोक्यो 
  2. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग:             सिंगापुर
  3. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन:      बैंकॉक

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2
(C) केवल 2 और 3
(D) केवल 3

उत्तर: (B)


प्रश्न. दक्षिण-पूर्वी एशिया में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर नीचे दिये गए नगरों का सही स्थितिक्रम क्या है? (2014)

  1. बैंकॉक  
  2. हनोई
  3. जकार्ता 
  4. सिंगापुर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) 4 - 2 - 1 - 3
 (B) 3 - 2 - 4 - 1
(C) 3 - 4 - 1 - 2
(D) 4 - 3 - 2 - 1

उत्तर: (C)

स्रोत: पी. आई. बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदा

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपियन ग्रीन डील, यूरोपीय संघ, ग्रीन हाइड्रोजन, जलवायु परिवर्तन, ISA, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये:

यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी तथा इसका महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने यूरोपियन ग्रीन डील, यूरोपीय संघ के कार्यकारी उपाध्यक्ष के साथ बैठक की। यह बैठक यूरोपीय संघ और भारत के बीच स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी के लिये सहयोग पर चर्चा करने के लिये आयोजित की गई थी।

यूरोपियन ग्रीन डील: 

  • यूरोपियन ग्रीन डील यूरोपीय संघ को एक आधुनिक, संसाधन-कुशल और प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में रूपांतरित करने का प्रयास करती है, इसके साथ यह सुनिश्चित करती है: 
    • वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों का कोई शुद्ध उत्सर्जन न करना। 
    • संसाधनों के उपयोग से अलग आर्थिक विकास।
    • कोई व्यक्ति और कोई स्थान पीछे नहीं छूटे। 
  • अगली पीढ़ी के EU रिकवरी प्लान से 1.8 ट्रिलियन यूरो निवेश का एक तिहाई और EU का सात साल का बजट यूरोपीय ग्रीन डील को फंडिंग प्रदान करेगा।

बैठक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी के तहत सहयोग:
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विस्तार:
    • भारत ने उन्नत सौर सेल और पैनलों के लिये विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना सहित अक्षय ऊर्जा क्षमता की वृद्धि के अपने प्रयासों पर प्रकाश डाला।
      • सबसे उन्नत सौर सेल और पैनलों की निर्माण क्षमता में वृद्धि रही है, यह वर्ष 2030 तक कुल 80 GW की उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का अनुमान है।
  • ऊर्जा भंडारण और चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा: 
    • चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति की सुविधा के लिये ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भारत ने अधिक भंडारण क्षमता सुनिश्चित करने की योजना बनाई है और साथ ही ऊर्जा भंडारण के लिये उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) को भी प्रोत्साहित किया है।
    • भारत ने ग्रीन स्टील और अन्य सीमांत प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में यूरोपीय संघ के साथ संयुक्त संचालन का प्रस्ताव रखा, जिसमें भंडारण के रूप में हाइड्रोजन और अमोनिया का उपयोग करते हुए चौबीसों घंटे अक्षय ऊर्जा के लिये भारत की पायलट परियोजना पर प्रकाश डाला गया।
  • हरित हाइड्रोजन और मुक्त व्यापार:
    • भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन की दिशा में प्रगति के लिये मुक्त और खुले व्यापार के महत्त्व पर बल दिया और संरक्षणवाद के प्रति आगाह किया। 
    • इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता बढ़ाने की भारत की योजना और इस संबंध में आगामी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन का उल्लेख है।
  • वैश्विक ऊर्जा क्षमता लक्ष्य:
    • यूरोपियन ग्रीन डील के कार्यकारी उपाध्यक्ष ने नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता में भारत के नेतृत्व की सराहना की है।
    • दोनों पक्षों ने ऊर्जा दक्षता के एजेंडे को वैश्विक स्तर पर लाने तथा वैश्विक ऊर्जा दक्षता लक्ष्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता पर चर्चा की।
  • ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम और ग्रीन मोबिलिटी:  
    • विशेष रूप से ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज सिस्टम और ग्रीन मोबिलिटी के क्षेत्र में सहयोग के अवसरों का पता लगाया गया। भारत का लक्ष्य हरित गतिशीलता में एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार हिस्सेदारी सुनिश्चित करना है, जिसमें अधिकांश दोपहिया, तिपहिया तथा चौपहिया वाहनों का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2030 तक शामिल होने की उम्मीद है।
  • कृषि और ऊर्जा पहुँच को शुद्ध रूप प्रदान करना:
    • ऊर्जा मंत्री ने कृषि में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को रोकने के भारत के लक्ष्य को व्यक्त किया। वैश्विक आबादी, विशेष रूप से अफ्रीका में ऊर्जा की पहुँच के मुद्दे पर चर्चा की गई।
    • बिना पहुँच वाले क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करने में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया और इस मुद्दे को हल करने के लिये यूरोपीय संघ, आईएसए, अफ्रीका तथा भारत के बीच एक साझेदारी प्रस्तावित की गई।

यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु भागीदारी: 

  • परिचय: 
    • यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी पर वर्ष 2016 में यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई थी।
    • यह यूरोपीय संघ की साझेदारी द्वारा वित्तपोषित है और भारत में यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
      • प्राइसवाटरहाउसकूपर्स प्राइवेट लिमिटेड (PwC India) इस परियोजना के लिये NIRAS A/S, EUROCHAMBRES और ऊर्जा, पर्यावरण तथा जल परिषद (CEEW) के साथ मिलकर कार्यान्वयन भागीदार है।
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य सौर और पवन ऊर्जा सहित जलवायु अनुकूल ऊर्जा स्रोतों की तैनाती के लिये संयुक्त गतिविधियों को मज़बूत करके स्वच्छ ऊर्जा तथा पेरिस समझौते के कार्यान्वयन पर सहयोग को सुदृढ़ करना है।
    • ऊर्जा दक्षता (EE), नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और जलवायु परिवर्तन (CC) पर ध्यान केंद्रित करके इस उद्देश्य को प्राप्त करने की परिकल्पना की गई है।
  • फोकस क्षेत्र: 
    • ऊर्जा दक्षता: 
      • ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC) 
      •  लगभग शून्य ऊर्जा भवन (NZEB) 
      • स्मार्ट तैयारी संकेतक (SRI) 
    • नवीकरणीय ऊर्जा: 
      • बड़े पैमाने पर सोलर फोटोवोल्टिक (Solar PV) 
      • सौर PV रूफटॉप
      • अपतटीय पवन 
      • ऊर्जा भंडारण 
      • ग्रीन हाइड्रोजन 
    • जलवायु परिवर्तन: 
      • अनुकूलन
      • शमन
      • शीतलन (कोल्ड-चेन सहित)
      • ज्ञान प्रबंधन
    • अन्य: 
      • स्मार्ट ग्रिड
      • सतत् वित्त

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)

कथन-I: हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (यू.एस.ए.) और यूरोपीय संघ (ई.यू.) ने ‘व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद’ प्रारंभ की है।

कथन-II : संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ यह दावा करते हैं कि वे इसके माध्यम से तकनीकी प्रगति एवं भौतिक उत्पादकता को अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रहे हैं।

उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-I, कथन-II की सही व्याख्या है
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और यूरोपीय संघ (EU) ने 'व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद' शुरू की है।
  • यूरोपीय संघ-अमेरिका व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के लिये प्रमुख वैश्विक व्यापार, आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी मुद्दों के दृष्टिकोण का समन्वय करने और साझा मूल्यों के आधार पर ट्रान्स-अटलांटिक व्यापार एवं आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करती है। इसकी स्थापना 15 जून, 2021 को ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ-अमेरिका शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी। अतः कथन 1 सही है।
  • अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अर्द्धचालक और सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं जैसे मुद्दों पर ध्यान देने के साथ TTC के कार्यों पर चर्चा की।
  • परिषद के माध्यम से यूरोपीय संघ और अमेरिका एक साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं:
    1. व्यापार एवं प्रौद्योगिकी के सामान्य मूल्यों को बनाए रखते हुए समाज और अर्थव्यवस्था की सेवा सुनिश्चित करना।
    2. तकनीकी एवं औद्योगिक नेतृत्व को मज़बूत करना।
      1. द्विपक्षीय व्यापार और निवेश का विस्तार करना।
  • अतः कथन 2 सही नहीं है।

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः (2023)

  1. यूरोपीय संघ का ‘स्थिरता एवं संवृद्धि समझौता (स्टेबिलिटी एंड ग्रोथ पैक्ट)’ ऐसी संधि है, जो: 
  2. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है।
  3. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी आधारिक संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती है।
  4. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती है।

उपर्युक्त में से कितने कथन सही है/हैं?

(a) केवल एक 
(b) केवल दो
(c) सभी तीन 
(d) कोई भी नही

उत्तर. (a) 

व्याख्या:

  • स्थिरता एवं समृद्धि समझौता एक राजनीतिक समझौता है जो यूरोपीय मौद्रिक संघ (EMU) के सदस्य राज्यों के राजकोषीय घाटे तथा सार्वजनिक ऋण की सीमा निर्धारित करता है। अतः कथन 1 सही है।
  • इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य किसी सदस्य राज्य की गैर-ज़िम्मेदार बजटीय नीतियों द्वारा पूरे यूरो क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता को असंतुलित होने से रोकने तथा EMU के अंतर्गत सार्वजनिक वित्त के प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।
  • यूरोपीय संघ स्थिरता एवं समृद्धि समझौता आधारिक संरचना सुविधाओं और प्रौद्योगिकियों को साझा करने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं करता है। अतः कथन 2 और 3 सही नहीं हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत के स्टोन क्रशर सेक्टर के लिये CPCB के नए दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA), ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP), जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974

मेन्स के लिये:

स्टोन क्रशिंग यूनिट्स से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

स्टोन क्रशिंग इकाइयों को लंबे समय से अस्थायी धूल उत्सर्जन और गंभीर वायु प्रदूषण का प्रमुख योगदानकर्त्ता माना गया है।

  • स्टोन क्रशिंग इकाइयों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर बढ़ती चिंता के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने हाल ही में इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
  • ये दिशा-निर्देश नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) की सिफारिशों के अनुरूप हैं

CPCB द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश:

  • CPCB दिशा-निर्देश स्टोन क्रशिंग के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं जैसे- स्रोत उत्सर्जन, उत्पाद भंडारण, परिवहन, जल की खपत तथा कानूनी अनुपालन आदि। 
  • दिशा-निर्देशों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
    • स्टोन क्रशरों का संचालन शुरू करने से पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) से इन्हें संचालित करने की सहमति प्राप्त की जानी चाहिये।
    • स्टोन क्रशिंग इकाई को पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के तहत निर्धारित उत्सर्जन मानदंडों और संबंधित SPCB/PCC द्वारा CTO  में निर्धारित शर्तों का पालन करना चाहिये।
    • क्रशिंग, लोडिंग और अनलोडिंग गतिविधियों से धूल के उत्सर्जन को कम करने के लिये उन्हें पर्याप्त प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, जैसे- धूल दमन प्रणाली, कवर, स्क्रीन और स्प्रिंकलर स्थापित करने चाहिये।
      • वायु के साथ उड़ने वाली धूल को रोकने के लिये उन्हें अपने उत्पादों को ढके हुए क्षेत्रों या भूमिगत कक्ष में स्टोर करना चाहिये।
    • स्टोन क्रशरों को जल का विवेकपूर्ण उपयोग और इसकी उपलब्धता तथा गुणवत्ता भी सुनिश्चित करनी चाहिये, साथ ही कच्चे माल को कानूनी स्रोतों से खरीदना चाहिये तथा लेन-देन का उचित रिकॉर्ड रखना चाहिये।
    • मजिस्ट्रेट/उपायुक्त की अध्यक्षता में ज़िला स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा ताकि उनके अधिकार क्षेत्र में स्थित स्टोन क्रशिंग इकाइयों का नियमित निरीक्षण किया जा सके।
    • स्टोन क्रेशर द्वारा अर्द्धवार्षिक आधार पर श्रमिकों का स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जाना चाहिये।

स्टोन क्रशिंग यूनिट्स से जुड़ा मुद्दा:

  • परिचय:  
    • स्टोन क्रशिंग इकाइयाँ भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में शामिल हैं।
      • ये इकाइयाँ क्रशिंग स्टोन का उत्पादन करती हैं जिनका उपयोग विभिन्न निर्माण गतिविधियों के लिये कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
    • हालाँकि स्टोन क्रशिंग की प्रक्रिया में बहुत अधिक धूल भी उत्पन्न होती है जो श्रमिकों और आसपास की आबादी के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
      • इसके अलावा पत्थर खनन भी इस गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जो पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालता है।
  • हाल के उदाहरण:
    • दिसंबर 2022 में हरियाणा सरकार द्वारा एक मसौदा अधिसूचना में आवासीय क्षेत्रों के पास नए स्टोन क्रशर स्थापित करने के लिये निकटता संबंधी मानदंडों में ढील देने का प्रस्ताव किया गया था। इसकी पर्यावरणविदों द्वारा आलोचना की गई थी, जिन्हें डर था कि यह हवा की गुणवत्ता को खराब करेगा और कृषि भूमि को प्रभावित करेगा।
    • जून 2023 में CSE की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भारत में कई स्टोन क्रशर SPCB से सहमति या पर्यावरण मंज़ूरी के बिना चल रहे हैं।
    • रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इनमें से अधिकतर इकाइयों में उचित प्रदूषण नियंत्रण उपकरण या निगरानी प्रणाली नहीं थी।
  • समस्या के समाधान के लिये कदम: 
    • पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के कार्यान्वयन के तहत ईंट भट्टों और हॉट मिक्स प्लांट के साथ स्टोन क्रशर इकाइयों के संचालन पर प्रतिबंध लगा दिया।
      • GRAP में वे उपाय शामिल हैं जो विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता को बिगड़ने से रोकने और पीएम10 तथा पीएम2.5 के स्तर को 'मध्यम' राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) श्रेणी से आगे जाने से रोकने के लिये उठाए जाएंगे।
    • मई 2023 में पुणे विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला कि पुणे में एक मॉडल स्टोन क्रशर इकाई ने प्रदूषण नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया तथा अपने धूल उत्सर्जन को 90% तक कम कर दिया। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि ऐसी इकाइयाँ भारत में अन्य स्टोन क्रशर हेतु उदाहरण के रूप में काम कर सकती हैं।  

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB):  

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
    • इसके अलावा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
    • यह भारत में पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिये शीर्ष निकाय है। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत कार्य करता है तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) एवं अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करता है। 
  • CPCB के पास विभिन्न प्रभाग हैं जो प्रदूषण नियंत्रण के विभिन्न पहलुओं जैसे- वायु गुणवत्ता प्रबंधन, जल गुणवत्ता प्रबंधन, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरण मूल्यांकन, प्रयोगशाला सेवाएँ, सूचना प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक भागीदारी आदि का निपटान करती हैं। 

आगे की राह

  • हालाँकि CPCB के दिशा-निर्देशों में प्रदूषण नियंत्रण के कई महत्त्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में और अधिक ध्यान देने एवं सुधार की आवश्यकता है। दिशा-निर्देश ध्वनि उत्सर्जन एवं स्टैंडअलोन स्टोन क्रशर के संचालन की अवधि को संबोधित नहीं करते हैं, जो अक्सर आस-पास के निवासियों हेतु असुविधा और समस्या का कारण बनते हैं।  
  • इसके अतिरिक्त दिशा-निर्देशों का पालन करने हेतु स्टोन क्रशरों के लिये विशिष्ट समय-सीमा प्रदान करना तथा SPCBs को दिशा-निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु निर्देशित करना आवश्यक है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक का परिकलन करने में साधरणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016

  1. कार्बन डाईऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोआक्साइड 
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मीथेन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1, 4 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (ए.क्यू.जी) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। वर्ष 2005 के अद्यतन से ये किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

दुनिया के सबसे घातक पशु रोग से मेंढकों की मृत्यु

प्रिलिम्स के लिये:

पैन्ज़ूटिक , चिट्रिडिओमाइकोसिस या चिट्रिड, ट्रांसबाउंडरी और उभरते रोग, मात्रात्मक पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (qPCR), CSIRO, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-सेलुलर एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (CCMB), उभयचर प्रजाति, फंगल रोग।

मेन्स के लिये:

वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करने वाली उभरती बीमारियाँ, जैवविविधता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति, वन्यजीवों के बारे में जागरूकता

चर्चा में क्यों? 

पिछले 40 वर्षों से चिट्रिडिओमाइकोसिस (Chytridiomycosis, या "चिट्रिड" (Chytrid) नामक एक विनाशकारी कवक रोग विश्व भर में मेंढकों की आबादी को नुकसान पहुँचा रहा है, जिसके कारण मेंढक की 90 प्रजातियाँ समाप्त हो चुकी हैं। यह रोग पैन्ज़ूटिक (Panzootic) अर्थात् विश्व की सबसे घातक वन्यजीव बीमारियों में से एक है।

  • ट्रांसबाउंड्री एंड इमर्जिंग डिज़ीज़ नामक एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन ने इस बीमारी के सभी ज्ञात उपभेदों का पता लगाने के लिये एक विधि विकसित की है, जो उभयचर चिट्रिड फंगस के कारण होती है।

चिट्रिडिओमाइकोसिस या चिट्रिड: 

  • परिचय:  
    • चिट्रिड मेंढकों की त्वचा में प्रजनन करके उन्हें संक्रमित करता है तथा जल एवं नमक के स्तर को संतुलित करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है, अंतत: संक्रमण का स्तर बहुत अधिक होने पर उनकी मृत्यु हो जाती है।
    • उच्च मृत्यु दर और प्रभावित प्रजातियों की उच्च संख्या स्पष्ट रूप से चिट्रिड को अब तक ज्ञात सबसे घातक पशु रोग बनाती है।
  • उत्पत्ति: 
    • चिट्रिड की उत्पत्ति एशिया में हुई है और यह उभयचरों के व्यापार और वैश्विक यात्रा के माध्यम से अन्य महाद्वीपों में फैल गया है।
  • संक्रमण: 
    • चिट्रिड पिछले 40 वर्षों से मेंढकों की आबादी को खत्म कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया में सात प्रजाति सहित 90 प्रजातियों का सफाया हो चुका है और 500 से अधिक मेंढक प्रजातियों पर गंभीर संकट बना हुआ है।
    • कई प्रजातियों की प्रतिरक्षा प्रणाली इस बीमारी से बचाव नहीं कर सकती है जिसके कारण  बड़े पैमाने पर मौतें हो सकती हैं।
      • वर्ष 1980 के दशक में उभयचर जीवविज्ञानियों ने तेज़ी से जनसंख्या में गिरावट पर संज्ञान लेना शुरू किया और वर्ष 1998 में चिट्रिड कवक रोगजनक को अंततः दोषी के रूप में पहचाना गया।
  • बीमारी का निदान:  
    • शोधकर्त्ता मेंढकों की त्वचा की सफाई करके उनमें चिट्रिड का पता लगाने हेतु qPCR परीक्षण का उपयोग किया जाता है और यह नया परीक्षण अधिक संवेदनशील भी है। इसकी विशेषता है कि यह बहुत कम संक्रमण स्तर का पता लगा सकता है जिससे अध्ययन की जा सकने वाली प्रजातियों का दायरा बढ़ जाता है।
      • qPCR का मतलब मात्रात्मक पॉलिमरेज़ शृंखला अभिक्रिया (quantitative polymerase chain reaction) है। यह प्रजाति में DNA की मात्रा को मापने का एक तरीका है। यह परीक्षण वर्ष 2004 में CSIRO, ऑस्ट्रेलिया में विकसित किया गया था जो COVID परीक्षण के विपरीत है। हालाँकि वैज्ञानिक मेंढक की त्वचा को सूँघते हैं लेकिन नाक से नहीं।
        • CSIRO का अर्थ राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन (CSIRO) है जो ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये संघीय सरकारी एजेंसी है।
    • पिछले वर्षों में भारत में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR)- सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के शोधकर्त्ता भी एक नए qPCR परीक्षण पर काम कर रहे हैं जो एशिया में चिट्रिड के तनाव का पता लगा सकता है।
      • ऑस्ट्रेलिया और पनामा में शोधकर्त्ताओं के सहयोग से भारत ने अब qPCR परीक्षण को सत्यापित किया है एवं इन देशों में मज़बूती से चिट्रिड का पता लगाया जा सकता है।
      • यह नया परीक्षण अधिक संवेदनशील है, जिसका अर्थ है कि यह बहुत कम संक्रमण स्तर का पता लगा सकता है, जिससे प्रजातियों के अध्ययन का दायरा व्यापक हो जाता है।
      • नया qPCR परीक्षण एशिया में चिट्रिड के तनाव का कारण और चिट्रिड की एक अन्य निकट संबंधी प्रजाति का पता लगा सकता है जो सैलामैंडर को संक्रमित करता है।
  • कुछ उभयचरों के लिये प्रतिरक्षा:
    • कुछ उभयचर प्रजातियाँ फंगस ले जाने पर अस्वस्थ/रोगग्रस्त नहीं होती हैं, जो हैरान करने वाला है।
    • अब तक प्रतिरोध और प्रतिरक्षा कार्य के बीच कोई स्पष्ट रुझान नहीं पाया गया है। यह भी सबूत है कि चिट्रिड एक मेज़बान की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबा सकता है।
  • प्रजातियों के बारे में अनुसंधान: 
    • चिट्रिड अनुसंधान में एशिया शेष विश्व से पिछड़ रहा है।
    • एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन ने चिट्रिड के सभी ज्ञात उपभेदों का पता लगाने के लिये एक विधि विकसित की है, जो व्यापक रूप से उपलब्ध इलाज की दिशा में काम करते हुए बीमारी का पता लगाने और शोध करने की हमारी क्षमता को आगे बढ़ाएगी। 

CSIR- कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र: 

  • कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (Centre for Cellular & Molecular Biology- CCMB) आधुनिक जीव विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में एक प्रमुख अनुसंधान संगठन है तथा जीव विज्ञान के अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्रों में नई एवं आधुनिक तकनीकों हेतु केंद्रीकृत राष्ट्रीय सुविधाओं को प्रोत्साहित करता है।
  • CCMB की स्थापना 1 अप्रैल, 1977 को तत्कालीन ‘क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला’ (वर्तमान में भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान, IICT), हैदराबाद के बायोकेमिस्ट्री डिवीज़न के साथ एक अर्द्ध-स्वायत्त केंद्र के रूप में की गई थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'ACE2' पद उल्लेख किस संदर्भ में किया जाता है?  

(a) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों में पुनःस्थापित (इंट्रोड्यूस) जीन  
(b) भारत के निजी उपग्रह संचलन प्रणाली का विकास  
(c) वन्य प्राणियों पर निगाह रखने के लिये रेडियो कॉलर  
(d) विषाणुजनित रोगों का प्रसार  

उत्तर: (D)


प्रश्न. H1N1 वायरस का उल्लेख प्रायः समाचारों में निम्नलिखित में से किस एक बीमारी के संदर्भ में किया जाता है? (2015)

(A) एड्स
(B) बर्ड फलू
(C) डेंगू
(D) स्वाइन फ्लू

उत्तर:D

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक पुनर्चक्रण से खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक पुनर्चक्रण, प्लास्टिक प्रदूषण, अंतर-सरकारी वार्ता समिति, कार्सिनोजेन्स, कीटनाशकों, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व से खतरे

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक पुनर्चक्रण से खतरा

चर्चा में क्यों? 

पेरिस में अंतर-सरकारी वार्ता समिति की बैठक के दूसरे सत्र में ग्रीनपीस फिलीपींस की "फॉरएवर टॉक्सिक: द साइंस ऑन हेल्थ थ्रेट्स फ्रॉम प्लास्टिक रीसाइक्लिंग" नामक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है, जिसमें यह सुझाव दिया गया है कि हालाँकि रीसाइक्लिंग को प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान माना जाता है लेकिन इससे प्लास्टिक की विषाक्तता और अधिक बढ़ जाती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • रसायनों का उच्च स्तर:
    • पुनर्चक्रण से प्लास्टिक में अक्सर उच्च स्तर के रसायन उत्पन्न होते हैं जैसे कि विषाक्त लौ मंदक, बेंज़ीन और अन्य कार्सिनोजेन्स, ब्रोमिनेटेड एवं क्लोरीनयुक्त डाइऑक्सिन सहित पर्यावरण प्रदूषक तथा कई अंतःस्रावी व्यवधान जो शरीर के प्राकृतिक हार्मोन स्तरों में परिवर्तन का कारण बन सकते हैं।
      • प्लास्टिक में 13,000 से अधिक रसायन होते हैं और उनमें से 3,200 मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक माने जाते हैं। 
  • विषाक्तता के कारक:
    • पुनर्चक्रण प्लास्टिक सामग्री में ज़हरीले रसायनों के जमा होने के तीन कारक हैं:
      • शुद्ध प्लास्टिक में ज़हरीले रसायनों से सीधा संदूषण।
      • कीटनाशकों, सफाई सॉल्वैंट्स और अन्य के लिये प्लास्टिक कंटेनर जैसे पदार्थ जो पुनर्चक्रण की शृंखला में प्रवेश करते हैं और प्लास्टिक को दूषित कर सकते हैं।
      • पुनर्चक्रण प्रक्रिया जब प्लास्टिक को गर्म किया जाता है।
  • प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सुविधाओं में बढ़ता आग का जोखिम:
    • प्लास्टिक भंडार में वृद्धि के साथ पुनर्चक्रण सुविधाओं में व्यापक रूप से आग का खतरा बढ़ गया है, विशेषकर वहाँ जो उपयोग की गई बैटरी के साथ ई-अपशिष्ट प्लास्टिक रखते हैं। 
      • वर्ष 2022 में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में एक सर्वेक्षण के अनुसार प्लास्टिक पुनर्चक्रण/रीसाइक्लिंग और अपशिष्ट सुविधाओं में रिकॉर्ड 390 आग की घटनाएँ हुईं।
    • अप्रैल 2023 तक के 12 महीनों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, रूस, दक्षिणी ताइवान, थाईलैंड एवं यूनाइटेड किंगडम तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के फ्लोरिडा, इंडियाना, उत्तरी कैरोलिना से प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सुविधाओं में आग लगने की सूचना प्राप्त हुई है।
  • प्लास्टिक उत्पादन में वृद्धि:
    • प्लास्टिक उत्पादन के वर्ष 2060 तक तीन गुना होने तथा पुनर्चक्रण में केवल न्यूनतम वृद्धि का अनुमान है।  
    • 1950 के दशक से लगभग 8 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है।  
      • इतना ही नहीं कि प्लास्टिक का केवल एक छोटा अनुपात (9%) का कभी भी पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है, वे भी विषाक्त रसायनों की उच्च सांद्रता के साथ समाप्त होते हैं, मानव, पशु एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिये जोखिम को बढ़ाते हैं।
  • प्रभाव: 
    • प्लास्टिक उत्पादन, निपटान और दहन क्रिया सुविधाएँ अक्सर विश्व भर में कम आय वाले देशों तथा हाशिये वाले समुदायों के बीच स्थित हैं, जो कैंसर, फेफड़े की बीमारी की उच्च दर तथा विषाक्त रसायनों के संपर्क से जुड़े प्रतिकूल जन्म परिणामों से पीड़ित हैं।  

सिफारिशें: 

  • यदि देश और कंपनियाँ मौजूदा तकनीकों का उपयोग करके नीतियाँ एवं बाज़ारों में परिवर्तन करें तथा एक  चक्रीय अर्थव्यवस्था में बदलाव करें, तो वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को वर्ष 2040 तक 80% तक कम किया जा सकता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था में प्लास्टिक का कोई स्थान नहीं है और प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने जैसे वास्तविक समाधान के माध्यम से प्लास्टिक उत्पादन को बड़े पैमाने पर कम किया जा सकता है।
  • एक महत्त्वाकांक्षी, कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि की आवश्यकता है जो प्लास्टिक पर निर्भरता को समाप्त कर एक उचित मार्ग प्रदान करे।
    • संधि के माध्यम से सुरक्षित, विषाक्त-मुक्त और पुन: उपयोग-आधारित सामग्री, शून्य-अपशिष्ट अर्थव्यवस्थाओं और नए रोज़गार सृजन को बढ़ावा देना चाहिये। इन प्रथाओं का समर्थन करने के लिये मानव स्वास्थ्य और ग्रह की रक्षा करना, संसाधनों के उपयोग को सीमित करना तथा प्लास्टिक से प्रभावित श्रमिकों एवं समुदायों के लिये एक उचित आपूर्ति और अपशिष्ट शृंखला प्रदान करने की ज़रूरत है। 

प्लास्टिक प्रदूषण: 

  • परिचय: 
    • कागज़, फलों के छिलके, पत्तियाँ आदि जैसे अपशिष्ट के अन्य रूपों के विपरीत जो प्राकृतिक रूप से बायोडिग्रेडेबल (बैक्टीरिया या अन्य जीवित जीवों द्वारा विघटित होने में सक्षम) हैं, प्लास्टिक अपशिष्ट अपनी गैर-बायोडिग्रेडेबल प्रकृति के कारण बहुत लंबे समय (सौ या हज़ारों साल) तक पर्यावरण में बने रहते हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक्स: ये पाँच मिलीमीटर से कम आकार के प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं।
      • माइक्रोप्लास्टिक में माइक्रोबीड्स (उनके सबसे बड़े आयाम में एक मिलीमीटर से कम के ठोस प्लास्टिक कण) शामिल हैं जो सौंदर्य प्रसाधन और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक स्क्रबर्स तथा वस्त्रों में उपयोग किये जाने वाले माइक्रोफाइबर तथा प्लास्टिक निर्माण प्रक्रियाओं में उपयोग किये जाने वाले वर्जिन राल छर्रों में इस्तेमाल किये जाते हैं। 
      • प्लास्टिक के बड़े टुकड़े जिन्हें पुर्नवीनीकरण नहीं किया गया होता है, सूर्य के संपर्क में आने से अपनी बनावट के कारण माइक्रोप्लास्टिक्स अवस्था में आने लिये टूट जाते है।
      • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक: यह एक डिस्पोज़ेबल सामग्री है जिसे फेंकने या पुर्नवीनीकरण करने से पहले केवल एक बार उपयोग किया जा सकता है,सिंगल यूज़प्लास्टिक जैसे प्लास्टिक बैग, पानी की बोतलें, सोडा की बोतलें, स्ट्रॉ, प्लास्टिक प्लेट, कप, अधिकांश खाद्य पैकेजिंग और कॉफी स्टिरर आदि हैं। 

प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न: पर्यावरण में निर्मुक्त हो जाने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है?

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • सूक्ष्ममणिकाएँ (माइक्रोबीड्स) छोटे, ठोस, प्लास्टिक से निर्मित कण हैं जिनका आकर 5 मिली मीटर से कम होता है और जल में में घुलनशील नहीं होते हैं। 
  • मुख्य रूप से पॉलीएथिलीन से बने माइक्रोबीड्स को पॉलीस्टाइन और पॉलीप्रोपाइलीन जैसे पेट्रोकेमिकल प्लास्टिक से भी तैयार किया जा सकता है। उन्हें कई उत्पादों में मिलाया जा सकता है, जिसमें सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल और सफाई उत्पाद शामिल हैं।
  • अपने छोटे आकार के कारण माइक्रोबीड्स सीवेज/मलजल उपचार प्रणाली के माध्यम से बहते हुए जल निकायों तक पहुँच जाते हैं। जल निकायों में अनुपचारित माइक्रोबीड्स का उपभोग समुद्री जानवरों द्वारा किया जाता है जिससे उनमें विषाक्तता उत्पन्न होती है तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचती है।
  • यह विभिन्न उत्पादों में पाए जाते हैं जिनकी सूची में सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल और सफाई उत्पाद शामिल हैं। इन्हें समुद्री और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये हानिकारक माना जाता है।
  • वर्ष 2014 में नीदरलैंड सौंदर्य प्रसाधन माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

भारतीय न्यायपालिका का सशक्तीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्यायपालिका, न्यायालायीय कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, ADR तंत्र, केंद्रीय बजट 2023-24, अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएँ (AIJS)

मेन्स के लिये:

भारतीय न्यायपालिका में प्रमुख कमियाँ

चर्चा में क्यों?  

भारतीय न्यायपालिका कानून के शासन को बनाए रखने और सभी नागरिकों के लिये न्याय सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हालिया प्रगति के बावजूद भारतीय न्यायपालिका विभिन्न कमियों का सामना कर रही है।

भारतीय न्यायपालिका में प्रमुख कमियाँ: 

  • बड़ी संख्या में लंबित मामले:
    • भारत के न्यायालयों पर मुकदमों का अधिक बोझ है जिसके कारण न्याय देने में देरी होती है। लंबित मामलों का कारण मुख्य रूप से न्यायाधीशों की कमी और अकुशल मामला प्रबंधन प्रणाली है।
      • मई 2022 तक न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर  न्यायालयों  में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। यह आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है और न्याय प्रणाली की अपर्याप्तता को प्रदर्शित करता है।
  • अपर्याप्त भौतिक और डिजिटल अवसंरचना: 
    • देश भर में कई न्यायालयों को कक्षों की कमी का सामना करना पड़ता है, शौचालय, प्रतीक्षालय और पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधाओं तक सीमित पहुँच है जो वादियों, वकीलों तथा न्यायालय के कर्मचारियों के लिये असुविधा उत्पन्न करता है, जिसके कारण भीड़-भाड़ अधिक होती है और कार्यवाही में देरी होती है।
      • कोविड-19 महामारी ने आभासी सुनवाई करने और न्याय वितरण की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया है
      • भारत के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल 9 ने न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग लागू की हैसर्वोच्च न्यायालय में लाइव स्ट्रीमिंग केवल संवैधानिक मुकदमों तक ही सीमित है

नोट: लाइव स्ट्रीमिंग और न्यायालय की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग हेतु मॉडल नियम कुछ मामलों को लाइव स्ट्रीमिंग से बाहर करते हैं जैसे कि वैवाहिक मामले, बच्चे को गोद लेना, यौन अपराध, बाल यौन शोषण और कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर।

  • वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) का सीमित उपयोग: मध्यस्थता और मध्यस्थता जैसे ADR तंत्र, न्यायालयों पर बोझ को कम करने में सहायता कर सकते हैं। हालाँकि इनका उपयोग अभी भी भारत में सीमित है।
  • भर्ती में विलंब: न्यायिक पदों को यथाशीघ्र नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन जनसंख्या वाले देश में प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 21 न्यायाधीश हैं (फरवरी 2023 तक)।
    • उच्च न्यायालयों में लगभग 400 रिक्तियाँ और निचले न्यायालयों में करीब 35 फीसदी पद रिक्त हैं।
  • प्रतिनिधित्व में असमानता: चिंता का एक अन्य विषय उच्च न्यायपालिका की संरचना है जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पंजीकृत 1.7 मिलियन अधिवक्ताओं में से केवल 15% महिलाएँ हैं।
    • उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत मात्र 11.5% है।
    • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में केवल तीन महिला न्यायाधीश हैं।
      • न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना वर्ष 2027 में केवल 36 दिनों के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।

भारत की न्यायपालिका को सुदृढ़ एवं सशक्त बनाने हेतु उपाय: 

  • E-कोर्ट प्रणाली को सशक्त बनाना: एक मज़बूत E-कोर्ट प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता है जो न्यायालयी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर सकती है, कागज़ी कार्रवाई को कम कर सकती है तथा दक्षता में सुधार कर सकती है। इसमें केस रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करना, मामलों की ऑनलाइन फाइलिंग को सक्षम बनाना, E-समन, E-पेमेंट तथा सुनवाई हेतु वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शामिल हैं। 
    • E-न्यायालय परियोजना के तीसरे चरण के शुभारंभ हेतु केंद्रीय बजट 2023-24 में 7,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
    • न्याय विभाग द्वारा केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) का उद्देश्य न्यायपालिका के लिये बुनियादी सुविधाओं का विकास करना भी है।
      • CSS न्यायालय भवनों, डिजिटल कंप्यूटर कक्षों, वकीलों के लिये हॉल, शौचालय परिसरों और न्यायिक अधिकारियों के आवासों के निर्माण हेतु राज्य सरकार के संसाधनों में वृद्धि करता है।
      • वित्त वितरण प्रारूप (फंड-शेयरिंग पैटर्न) 60:40 (केंद्र:राज्य), 8 उत्तर-पूर्वी एवं 2 हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 तथा केंद्रशासित प्रदेशों हेतु 100% केंद्रीय वित्त पोषण है।
      • पूर्व CJI, एन.वी. रमना ने न्यायालयों के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की व्यवस्था करने हेतु एक भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI) विकसित करने का सुझाव दिया।
  • नियुक्ति प्रणाली में बदलाव: रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उपयुक्त समय-सीमा तय करना एवं अग्रिम सुझाव प्रदान करना आवश्यक है। 
    • एक और महत्त्वपूर्ण तत्त्व जो निर्विवाद रूप से एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने में भारत की सहायता कर सकता है, वह अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) है। 
  • केस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर: केस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर को विकसित और तैनात करने की आवश्यकता है जो केस की प्रगति को ट्रैक करने में मदद कर सके, प्रशासनिक कार्यों को स्वचालित कर सके तथा न्यायाधीशों, वकीलों एवं अदालत के कर्मचारियों के बीच बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान कर सके। यह न्यायिक प्रक्रिया की समग्र दक्षता में सुधार कर सकता है।
  • डेटा एनालिटिक्स और केस पूर्वानुमान:  भारत पिछले निर्णयों का विश्लेषण करने और मामले के परिणामों का पूर्वानुमान करने के लिये डेटा एनालिटिक्स तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर सकता है ताकि न्यायाधीशों को सूचित निर्णय लेने, विसंगतियों को कम करने एवं निर्णयों की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता मिल सके।
    • हालाँकि यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि यह केवल एक माध्यमिक भूमिका निभाता है।
  • सार्वजनिक कानूनी शिक्षा: सार्वजनिक कानूनी शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो नागरिकों को उनके अधिकारों और दायित्वों को समझने, अनावश्यक मुकदमेबाज़ी को कम करने और आउट-ऑफ-कोर्ट सेटलमेंट को बढ़ावा देने के लिये सशक्त बना सके।
  • नागरिक प्रतिक्रिया तंत्र: एक प्रतिक्रिया तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है जहाँ नागरिक न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिक्रिया प्रदान कर सकें और अदालती अनुभव कमियों एवं सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकें।

  UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत के संविधान के 44वें संशोधन ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से मुक्त रखकर एक अनुच्छेद प्रस्तुत किया।
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में भारत के संविधान में 99वें संशोधन को समाप्त कर दिया।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2   
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही  2 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) 

स्रोत:द हिंदू 


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