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09 Dec 2021
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
प्रश्न. भारत में उपलब्ध वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिये। विवादों को निपटाने के पारंपरिक तरीकों पर यह क्या सुझाव देता है? (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- समयोचित न्याय प्रदान करने हेतु विभिन्न प्रकार के वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र का वर्णन कीजिये।
- एडीआर तंत्र के सुचारु रूप से कार्य करने हेतु सुझाव दीजिये।
वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) शब्द का उपयोग कानूनी विवादों के समाधान हेतु अन्य वैकल्पिक तरीकों के लिये किया जाता है। व्यापारिक दुनिया के साथ ही आम लोगों द्वारा भी यह अनुभव किया जाता है कि मुकदमा दायर कर समय पर न्याय प्राप्त करना कई लोगों के लिये अव्यावहारिक हो गया है। न्यायालयों के पास अत्यधिक लंबित मामलों के परिणामस्वरूप विवाद से जुड़ी पार्टियों (पक्षों) को अपने मुकदमों की सुनवाई और निर्णय के लिये इंतज़ार करना पड़ता है। विलंबित न्याय की इस समस्या को दूर करने के लिये ही एडीआर तंत्र विकसित किया गया है।
भारत में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र
- पंचाट (आर्बिट्रेशन)- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विवाद को एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण को संदर्भित किया जाता है, जो दोनों पक्षों पर विधिक रूप से बाध्यकारी निर्णय को लागू करता है।
- फास्ट ट्रैक आर्बिट्रेशन- यह कठोर नियमों वाली एक ऐसी समयबद्ध विवाचन प्रक्रिया है जिसमें समय अवधि के विस्तार की अनुमति नहीं होती। विवाद समाधान में कम से कम समय लगने के कारण यह अधिक लागत प्रभावी होती है।
- लोक अदालत- मुकदमों के तेज़ी से निपटारे के लिये राज्य प्राधिकरण या ज़िला प्राधिकरण या उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति या तालुक विधिक सेवा समिति नियमित रूप से लोक अदालतों का आयोजन करती है।
- सुलह (कन्सलिएशन)- यह एक अव्यवस्थित प्रणाली है जिसमें एक तटस्थ व्यक्ति दोनों पक्षों से मिलकर विवाद का समाधान करता है।
- समझौता- यह विवाद को सुलझाने के लिये दोनों पक्षों के बीच स्व-परामर्श को संदर्भित करता है। भारत में इसे कोई वैधानिक मान्यता नहीं है।
- मध्यस्थता- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष संचार और वार्ता द्वारा एक ऐसे समाधान पर पहुँचने का प्रयास करता है जो सभी पक्षों को स्वीकार्य हो।
वैकल्पिक विवाद समाधान के लाभ
- पार्टियों को अपने स्वयं के मध्यस्थ चुनने की स्वतंत्रता होती है। इस तरह पार्टी एक ऐसे विशेषज्ञ का चयन कर सकती है जिसके पास न केवल तकनीकी और प्रक्रियात्मक जानकारी हो बल्कि वह संबंधित विवाद क्षेत्र में अनुभव भी रखता हो।
- मध्यस्थता प्रक्रिया में पार्टियों के पास उनके विवाद के अनुरूप कार्यविधि संबंधी प्रक्रिया और नियमों का चयन करने हेतु अधिक लचीलापन होता है। इसका अर्थ है कि वे नियमों द्वारा शासित होने के लिये औद्योगिक मानकों, देशी कानूनों यहाँ तक की विदेशी कानूनों का भी चयन कर सकती हैं।
- नागरिक कानून वाले देशों के विपरीत, जहाँ मामलों का पैसला एक ज़्यूरी द्वारा किया जाता है, जो आंशिक रूप से अप्रत्याशित और भावुकता की ओर झुका होता है, एडीआर की प्रक्रिया में ज़्यूरी शामिल नहीं है।
- एडीआर प्रक्रिया लागत प्रभावी होती है, क्योंकि इसमें विशेषज्ञों, गवाहों या वकीलों की आवश्यकता नहीं होती है और त्वरित प्रक्रिया के कारण अल्प अवधि में विवादों का निपटारा होता है, जो कि मुकदमेबाज़ी की लंबी प्रक्रिया से बचाता है।
- यह लोगों को अपने विवादों को हल करने की प्रक्रिया में भागीदारी प्रदान करता है जो कथित रूप से जटिल प्रक्रिया और दुरूह भाषा वाली सार्वजनिक, औपचारिक और प्रतिकूल न्याय प्रणाली में संभव नहीं है।
सुझाव
- प्रक्रिया को लेकर जागरूकता पैदा करना और इसे लोकप्रिय बनाना। इसमें गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया की प्रमुख भूमिका होगी।
- कोर्ट में मध्यस्थता और सुलह के लिये आवश्यक कर्मियों और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है। इसके लिये आवश्यक सरकारी व्यय किया जाना चाहिये।
- एडीआर तंत्र पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिये। राज्य-स्तरीय न्यायिक अकादमियाँ सक्रिय भूमिका ग्रहण कर सकती हैं।