भारतीय राजव्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग
- 22 Sep 2022
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प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के महान्यायवादी। मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही, प्रयोजन और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महत्त्वपूर्ण संविधान पीठ के मामलों में अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करने का निर्णय लिया, जिसकी सुनवाई 27 सितंबर, 2022 से होगी।
- न्यायालयी कार्यवाही के प्रसारण के कारण सकारात्मक प्रणालीगत सुधार संभव हुए हैं।
पृष्ठभूमि:
- स्वप्निल त्रिपाठी बनाम भारतीय सर्वोच्च न्यायालय मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये इसे खोलने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
- इसने माना कि लाइव स्ट्रीमिंग की कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत न्याय तक पहुँचने के अधिकार का हिस्सा है।
- गुजरात उच्च न्यायालय पहला उच्च न्यायालय था जिसने न्यायालयी कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम किया जबकि दूसरा कर्नाटक उच्च न्यायालय था।
- वर्तमान में, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पटना उच्च न्यायालय अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करते हैं।
- इलाहबाद उच्च न्यायालय भी इस विषय पर विचार कर रही है।
भारत के महान्यायवादी का सुझाव:
- लाइव-स्ट्रीमिंग को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की पीठ और केवल संविधान पीठ के मामलों में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश किया जाना चाहिये।
- इस परियोजना की सफलता यह निर्धारित करेगी कि सभी न्यायालयों यानी सर्वोच्च न्यायालय एवं अखिल भारतीय न्यायालय में लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की जानी चाहिये या नहीं।
- महान्यायवादी (AG) ने अपनी सिफारिश के समर्थन में न्यायालयों की भीड़ को कम करने और वादियों के लिये न्यायालयों तक बेहतर भौतिक पहुँच का हवाला दिया, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक आने के लिये अन्यथा लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है।
- महान्यायवादी द्वारा सुझाए गए दिशा-निर्देशों के एक सेट को सर्वोच्च द्वारा अनुमोदित किया गया था। हालाँकि, महान्यायवादी ने सुझाव दिया कि प्रसारण की अनुमति का अधिकार न्यायालय के पास होना चाहिये तथा निम्नलिखित मामलों में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिये:
- वैवाहिक मामले,
- किशोरों के हितों या युवा अपराधियों के निजी जीवन की रक्षा एवं सुरक्षा से जुड़े मामले,
- राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामले,
- यह सुनिश्चित करना कि पीड़ित, गवाह या प्रतिवादी ईमानदारी से और बिना किसी डर के गवाही दे सकें।
- कमज़ोर या भयभीत गवाहों को विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिये।
- यह गवाह के चेहरे के विरूपण का प्रावधान कर सकता है यदि वह गुमनाम/अज्ञात रूप से प्रसारण के लिये सहमति देता है।
- यौन उत्पीड़न और बलात्कार से संबंधित सभी मामलों सहित गोपनीय या संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करना।
- ऐसे मामले जहाँ प्रचार/पब्लिसिटी न्याय के प्रशासन के विरुद्ध हो, और
- ऐसे मामले जो लोगों की भावनाओं को भड़का सकते हैं या उत्तेजित कर सकते हैं और समुदायों के बीच शत्रुता उत्पन्न करने का कार्य कर सकते हैं।
अन्य देशों में परिदृश्य
- संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 1955 से ऑडियो रिकॉर्डिंग और मौखिक तर्कों के प्रतिलेखों की अनुमति दी गई है।
- ऑस्ट्रेलिया: लाइव या विलंबित प्रसारण की अनुमति है लेकिन सभी न्यायालयों में प्रथाएँ और मानदंड अलग-अलग हैं।
- ब्राज़ील: वर्ष 2002 से न्यायालय में न्यायाधीशों द्वारा की गई चर्चा और मतदान प्रक्रिया सहित न्यायालयी कार्यवाही के लाइव वीडियो एवं ऑडियो प्रसारण की अनुमति है।
- कनाडा: कार्यवाही का सीधा प्रसारण केबल संसदीय मामलों के चैनल पर प्रत्येक मामले के स्पष्टीकरण और न्यायालय की समग्र प्रक्रियाओं और शक्तियों के साथ किया जाता है।
- दक्षिण अफ्रीका: वर्ष 2017 से दक्षिण अफ्रीका के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तार के रूप में मीडिया को आपराधिक मामलों में न्यायालयी कार्यवाही को प्रसारित करने की अनुमति दी है।
- यूनाइटेड किंगडम: वर्ष 2005 के बाद न्यायालय की वेबसाइट पर एक मिनट की देरी से कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है, लेकिन संवेदनशील अपीलों में कवरेज वापस लिया जा सकता है।
संबद्ध चिंताएँ और आगे की राह:
- चिंताएँ:
- भारतीय न्यायालयों की कार्यवाही के वीडियो क्लिप जो पहले से ही YouTube और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर संवेदनात्मक शीर्षक और कम संदर्भ के साथ उपलब्ध हैं, जनता के बीच गलत सूचना का प्रसार कर रहे हैं, जैसा कि हाल के दिनों में देखा गया है।
- साथ ही, प्रसारकों के साथ वाणिज्यिक समझौते भी संबंधित हैं।
- लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो का अनधिकृत पुनरुत्पादन चिंता का एक और कारण है क्योंकि सरकार द्वारा बाद में इसका विनियमन बहुत मुश्किल होगा।
- आगे की राह:
- न्यायालयी कार्यवाही का प्रसारण पारदर्शिता और न्याय प्रणाली तक अधिक पहुँच की दिशा में एक कदम है। संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों को सार्वजनिक दर्शकों के लिये उपलब्ध कराना नागरिकों के सूचना और प्रौद्योगिकी का अधिकार है।
- यदि शीर्ष न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण संभव नहीं है, तो वैकल्पिक रूप से कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिये।
- प्रसारकों के साथ करार गैर-व्यावसायिक आधार पर होना चाहिये। व्यवस्था से किसी को अनुचित लाभ नहीं होना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देशों का एक सेट तैयार किया जाना चाहिये कि वीडियो शीर्षक और विवरण भ्रामक नहीं हैं तथा केवल सही जानकारी देते हैं।
- अनधिकृत रूप से वीडियो की लाइव-स्ट्रीमिंग के लिये कड़ी सजा/जुर्माना लगाया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निजता का अधिकार जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है। निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के संविधान में उपर्युक्त्त कथन का सही और उचित अर्थ है? (2018) (a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान। उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |