शासन व्यवस्था
कैंसर: बचाव और इलाज
- 12 Nov 2019
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वर्तमान समय में कैंसर की बीमारी विश्व में भयानक रूप ले चुकी है, विशेषत: भारत में यह मौत के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। जो आज भी चिंता का कारण बना हुआ है। वर्तमान में हृदयाघात के बाद सबसे ज़्यादा मौतें कैंसर से हो रही हैं। विश्व भर में 4 फरवरी को वैश्विक कैंसर दिवस मनाया जाता है। भारत में इसकी आक्रामकता को देखते हुए और लोगों को जागरूक करने हेतु वर्ष 2014 से कैंसर को लेकर जागरूकता अभियान शुरु किया गया है।जिसके तहत हर वर्ष 7 नवंबर को देश-भर में राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
भारत में जितनी तेज़ी से यह बीमारी फैल रही है उस हिसाब से देश में इसके उपचार की व्यवस्था नहीं हैं। बीमारी से बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि इसके प्रति जागरूकता लाई जाए। कैंसर के संभावित लक्षणों एवं इससे बचाव के प्रति जागरूकता से कैंसर का प्राथमिक स्तर पर ही इलाज संभव हो सकता है, जिससे शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से कम हानि होगी। अगर इसका पता देर से चलता है तो उपचार मुश्किल और महँगा हो जाता है।
आँकड़े
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, भारत में मुँह एवं फेफड़े का कैंसर और महिलाओं में स्तन कैंसर, कैंसर के कारण करीब 50 फीसदी होती हैं और यह संख्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है।
- भारत में प्रतिवर्ष 5,50,000 लोगों की मृत्यु कैंसर की वजह से होती है एवं प्रतिवर्ष कैंसर के 7 लाख से ज़्यादा नए मामले पाए जाते हैं।
- हाल ही में प्रकाशित नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2019 (National Health Profile-2019) के आँकड़ों के अनुसार, 2017-18 के दौरान कैंसर के मामलों में करीब 324 फीसदी बढ़ोतरी हुई।
- इन मामलों में ओरल कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर जैसे मामले शामिल हैं। ये मामले NCDs नॉन कम्युनिकेबल डिजीज़ क्लिनिक में दर्ज हैं।
- इसके अनुसार, वर्ष 2018 में 6.5 करोड़ लोग जाँच के लिये आए, जिसमें से 1,60,000 लोगों में कैंसर की पुष्टि हुई, जबकि वर्ष 2017 में यह आँकड़ा 39,635 था। हालाँकि NCDs क्लिनिक में पहुँचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़कर दोगुनी हो गई है। ज्ञातव्य है कि NCDs में मरीज़ों की जाँच 1 जनवरी, 2018 से 31 दिसंबर, 2018 तक हुई।
- ज्ञातव्य है कि अमेरिका एवं चीन के बाद कैंसर के सबसे अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं।
- National Health Profile में संभावना व्यक्त की गई है कि वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2025 तक कैंसर से जुड़े मामलों में पाँच गुना वृद्धि हो जाएगी।
- गुजरात के बाद कैंसर के सबसे अधिक मामले कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में पाए गए हैं। वर्ष 2018 में गुजरात में कैंसर के 72,169 मामले सामने आए। इसके बाद कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में कैंसर के क्रमश: 20,084 एवं 14,103 मरीज़ सामने आए। वहीं तेलंगाना एवं पश्चिम बंगाल में कैंसर के क्रमश: 13,130 एवं 11,897 मरीज़ थे। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी हुई है।
- वर्ष 2017 में कैंसर से ग्रस्त मरीज़ों की संख्या गुजरात एवं कर्नाटक में क्रमश: 3939 एवं 3523 थी।
- नॉन कम्युनिकेबल डिजीज़ से होने वाली मौतों में कैंसर का स्थान दूसरा है। ज्ञातव्य है कि पहला स्थान हृ्दय रोगों का है।
- वर्ष 2018 में कैंसर के 15,86571 मामले सामने आए, जिनमें से 80,1374 मरीज़ों की मृत्यु हो गई जबकि, वर्ष 2017 में कैंसर के 1,51,7426 मामले सामने आए जिनमें से 7,66,348 मरीज़ों की मृत्यु हो गई। वर्ष 2016 में कैंसर के 1,45,1417 मामले सामने आए, इनमें से 7,32,921 मरीजों की मौत हो गई।
- पिछले 5 वर्षों में कैंसर से ग्रस्त मरीज़ों की संख्या में 25 गुना वृद्धि हुई है |
वर्ष 2018 में आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार
- वर्ष 2018 में कैंसर से विश्व भर में 9.6 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई। जिसमें भारत की हिस्सेदारी 8.17 प्रतिशत है।
- वर्ष 2018 में भारत में कैंसर के 1.16 मिलियन मामले सामने आए।
- वर्ष 1990-2016 के मध्य स्तन कैंसर के मामलों में 39.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई है।
- भारत में कैंसर होने की औसत उम्र में भी गिरावट आ रही है। भारत में अधिकांश स्तन कैंसर के मामले अब 30-50 वर्ष की आयु वर्ग में देखे जा रहे हैं, जबकि विकसित देशों में 50-60 वर्ष की औसत आयु में स्तन कैंसर होने का खतरा सर्वाधिक है |
- भारत में 50-70 प्रतिशत स्तन कैंसर के मामले में जाँच काफी देर से होती है। कैंसर से होने वाली मौत से बचने के लिये शुरुआती दौर में इसकी पहचान और उचित उपचार ज़रूरी होता है। स्तन कैंसर से पीड़ित हर दो महिलाओं में से एक की मृत्यु हो जाती है।
कैंसर के प्रकार
मुँह का कैंसर
- मुँह के कैंसर में होंठ, जीभ, तालू, गला आदि प्रभावित होते हैं। भारत में होंठ, जीभ, मुंह, टाॅन्सिल, लार ग्रन्थि में होने वाले ट्यूमर को कैंसर की श्रेणी में रखा गया है|
- पिछले 7 वर्षों में मुँह के कैंसर में 114 प्रतिशत तक बढ़ोततरी दर्ज़ की गई है।
- पुरुषों में सर्वाधिक होने वाला कैंसर मुँह का कैंसर है। यह सभी प्रकार से कैंसर का 11.28 प्रतिशत है।
- महिलाओं में यह पाँचवाँ सर्वाधिक फैलने वाला कैंसर है जो सभी प्रकार के कैंसर का 4.3 प्रतिशत है।
- पुरुषों और महिलाओं को मिलाकर यह तीसरा सर्वाधिक फैलने वाला कैंसर है।
- ग्लोबोकेन 2012 के अनुसार, नए पंजीकृत मामलों की संख्या 77,003 हैं, जिनमें से 52,067 मरीज़ों की मृत्यु हो गई। 80 प्रतिशत मुंह का कैंसर तंबाकू के कारण होता है।
- मुंह के कैंसर से प्रभावित मरीज़ों की औसत आयु 50 वर्ष है। इनमें से प्रारंभिक अवस्था के रोगी 82 प्रतिशत है और अग्रिम अवस्था के रोगियों का प्रतिशत 27 है।
स्तन कैंसर
- महिलाओं में सर्वाधिक मामले स्तन कैंसर एवं बच्चेदानी के मुख के कैंसर के पाए जाते हैं।
- स्तन कैंसर स्तन की कोशिकाओं में शुरू होने वाला एक ट्यूमर है जो शरीर के अन्य उत्तकों या हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है।
- इसकी स्थिति इतनी गंभीर है कि प्रति एक लाख महिलाओं में से 30 महिलाएँ स्तन कैंसर से पीड़ित हैं।
- प्रत्येक 28 में से एक महिला को उसके जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना होती है।
- शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक 22 में से 1 महिला एवं ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक 60 में से एक महिला को अपने जीवनकाल में कैंसर होने की संभावना रहती है।
- भारत में महिलाओं में पाया जाने वाला यह सबसे सामान्य कैंसर है, जो सभी प्रकार के कैंसर का 27 प्रतिशत है।
- भारत में स्तन कैंसर से पीड़ित हर दो महिलाओं में से एक की मृत्यु हो जाती है।
बच्चेदानी के मुख का कैंसर
- यह भारत में कैंसर का तीसरा सबसे बड़ा प्रकार है, जो भारत में सभी प्रकार के कैंसर का 10 प्रतिशत है। भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे बड़ा कैंसर बच्चेदानी के मुख का कैंसर है। यह महिलाओं में होने वाले सभी प्रकार के कैंसर का 22.86 प्रतिशत है।
- शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाओं में इस कैंसर का खतरा अधिक होता है।
- इस कैंसर के होने के पश्चात् पाँच वर्ष जीवित रहने की औसत दर 48.7 प्रतिशत है।
फेफड़े का कैंसर
- फेफड़े का कैंसर लिम्फ, नोड्स या शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है।
- ग्लोबोकोन 2012 के अनुसार, फेफड़ों के कैंसर के 70,000 मामले सामने आए, जिनमें से 64000 मरीज़ों की मौत हो गई।
- इसमें 40 वर्ष की उम्र तक स्माॅल सेल कैंसर ज़्यादा पाया जाता है और इसका संबंध धूम्रपान से कम देखा गया है। 40 वर्ष से अधिक उम्र के बाद धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में स्केटेमस सेल कैंसर एवं धूम्रपान न करने वालों में एडिनोकार्सीनोमा ज़्यादा होता है।
कोलेरेक्टन कैंसर
- कोलेरेक्टन कैंसर कोलन एवं मलाशय का कैंसर है जो कोलेन या मलाशय के स्तर में पॉलिप्स के साथ शुरू होता है।
- इसे कोलेन कैंसर या रेक्टन कैंसर भी कहा जा सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर कहाँ से शुरू होता है।
- कोलेन कैंसर एवं रेक्टन कैंसर को समान्यत: एक साथ देखा जाता है क्योंकि इनमें एक जैसी कई विशेषताएँ पाई जाती हैं।
- यह कैंसर पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में कम पाया जाता है।
- ग्लोबोकोन 2018 के अनुसार, इस वर्ष कोलेन/रेक्टन कैंसर के 27,605 मरीज़ सामने आए, जिनमें से 19,548 मरीज़ों की मृत्यु हो गई। मलाशय कैंसर होने की औसत उम्र 40-45 वर्ष है।
इसके अलावा आमाशय का कैंसर भारत में छठे स्थान पर है।
प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में होने वाला कैंसर है जो आमतौर पर बहुत ही धीमी गति से बढ़ता है। ज़्यादातर रोगियों को इस कैंसर का पता तब तक नहीं चलता जब तक कैंसर उन्नत अवस्था में नहीं पहुँच जाता।
इलाज और रोकथाम
हाल ही में वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से यह पता लगाया है कि कैंसर कैसे बढ़ता है यानी कैंसर के दौरान डीएनए में आए बदलावों के पैटर्न की जानकारी पाना संभव हो गया है। लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च ICR और यूनिवर्सिटी ऑफ एडनबर्ग की टीम ने मिलकर एक नई तकनीक की खोज की है, जिसे ‘रिवाॅल्वर’ यानी ‘Repeated Evolution of Cancer’ नाम दिया गया है। यह तकनीक कैंसर के दौरान डीएनए में आए बदलाव को रिकॉर्ड करती है एवं इस जानकारी को भविष्य में होने वाले आनुवंशिक बदलाव को समझने के लिये उपयोग करती है।
शोधकर्त्ताओं का कहना है कि ट्यूमर में लगातार होने वाले बदलाव कैंसर के इलाज में एक बड़ी चुनौती थी। साथ ही, कैंसर ड्रग रेजिस्टेंट भी हो सकता है। इस तकनीक से डॉक्टर्स यह पता लगा सकेंगे कि ट्यूमर कैसे विकसित होगा और इसके बढ़ने या ड्रग रेजिस्टेंट होने से पहले ही इसका इलाज शुरू किया जा सकेगा।
हालाँकि डॉक्टर मानते हैं कि यदि समय रहते कैंसर का पता लग जाए तो इसके सफल उपचार की संभावना बढ़ जाती है।
कैंसर के लक्षण
- घाव का जल्दी न भरना ।
- शरीर के किसी हिस्से से असामान्य रक्तस्राव या स्राव होना।
- वज़न में अचानक तेज़ी से कमी आना या भूख नहीं लगना।
- भोजन निगलने में परेशानी या अपच।
- तिल या मस्से में कोई परिवर्तन।
बचाव के तरीके
- जीवनशैली में अनुकूल परिवर्तन।
- वज़न को नियंत्रण में रखना।
- सक्रिय बने रहना।
- नियमित स्वास्थ्य जाँच एवं समय- समय पर कैंसर की जाँच कराना।
- चेतावनी के संकेत एवं लक्षणों के बारे में जानना।
- सुरक्षित यौन व्यवहार को अपनाना।
- पर्यावरणीय कार्सिनोजेन तत्त्वों के जोखिम से बचाव।
- धूम्रपान और शराब का सेवन न करना।
- मसालेदार, तली हुई, संरक्षित और जंक फूड से परहेज करना।