डेली न्यूज़ (30 Sep, 2021)



प्रधानमंत्री पोषण योजना

प्रिलिम्स के लिये

प्रधानमंत्री पोषण योजना, मिड-डे मील योजना

मेन्स के लिये

प्रधानमंत्री पोषण योजना की आवश्यकता और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने हेतु ‘प्रधानमंत्री पोषण योजना’ को मंज़ूरी दी है।

  • यह योजना स्कूलों में मिड-डे मील योजना के मौजूदा राष्ट्रीय कार्यक्रम का स्थान लेगी।
  • इसे पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।

मिड-डे मील योजना

  • ‘मिड-डे मील योजना’ शिक्षा मंत्रालय के तहत एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 1995 में शुरू किया गया था।
  • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य हेतु दुनिया के सबसे बड़े स्कूली भोजन कार्यक्रमों में से एक है।
  • इसके तहत कक्षा I से VIII में पढ़ने वाले छह से चौदह वर्ष के आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान करने का प्रावधान शामिल है।
  • खाद्यान्न की अनुपलब्धता अथवा अन्य किसी कारण से यदि विद्यालय में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार आगामी माह की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • प्रधानमंत्री पोषण योजना
    • कवरेज़:
      • यह योजना देश भर के 11.2 लाख से अधिक स्कूलों में कक्षा I से VIII तक नामांकित 11.8 करोड़ छात्रों को कवर करेगी।
        • प्राथमिक (1-5) और उच्च प्राथमिक (6-8) स्कूली बच्चे वर्तमान में प्रत्येक कार्य दिवस में 100 ग्राम और 150 ग्राम खाद्यान्न प्राप्त करते हैं, ताकि न्यूनतम 700 कैलोरी सुनिश्चित की जा सके।
      • इस योजना के तहत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में चल रहे प्री-प्राइमरी या बालवाटिका में पढ़ने वाले छात्रों को भी भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।
        • बालवाटिका एक प्रकार के प्री-स्कूल होते हैं, जिन्हें बीते वर्ष सरकारी स्कूलों में औपचारिक शिक्षा प्रणाली में छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शामिल करने के लिये शुरू किया गया था।
    • पोषाहार उद्यान:
      • इसके तहत सरकार, स्कूलों में ‘पोषाहार उद्यानों’ को बढ़ावा देगी। छात्रों को अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने हेतु उद्यान स्थापित किये जायेंगे।
    • पूरक पोषण:
      • नई योजना में आकांक्षी ज़िलों और एनीमिया के उच्च प्रसार वाले बच्चों के लिये पूरक पोषण का भी प्रावधान है।
        • यह गेहूँ, चावल, दाल और सब्जियों के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु केंद्र सरकार के स्तर पर मौजूद सभी प्रतिबंध और चुनौतियों को समाप्त करता है।
        • वर्तमान में यदि कोई राज्य मेनू में दूध या अंडे जैसे किसी भी घटक को जोड़ने का निर्णय लेता है, तो केंद्र सरकार अतिरिक्त लागत वहन नहीं करने संबंधी प्रतिबंध को हटा लिया गया है।
    • तिथि भोजन की अवधारणा:
      • तिथिभोजन (Tithi Bhojan) की अवधारणा को व्यापक रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा।
      • तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं।
    • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT):
      • केंद्र सरकार राज्यों से स्कूलों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) सुनिश्चित करेगी, जो इसका उपयोग भोजन पकाने की लागत को कवर करने के लिये करेगी।
        • पहले राज्यों को धन आवंटित किया जाता था, जिसमें ज़िला और तहसील स्तर पर एक नोडल मध्याह्न भोजन योजना प्राधिकरण को भेजने से पहले धन का अपना हिस्सा शामिल होता था।
      • इसके माध्ययम से यह सुनिश्चित करना है कि ज़िला प्रशासन और अन्य अधिकारियों के स्तर पर कोई चूक न हो।
    • पोषण विशेषज्ञ:
      • प्रत्येक स्कूल में एक पोषण विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना है, जिसकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि बॉडी मास इंडेक्स (BMI), वज़न और हीमोग्लोबिन के स्तर जैसे स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाए।
    • योजना का सामाजिक लेखा परीक्षा:
      • योजना के कार्यान्वयन का अध्ययन करने के लिये प्रत्येक राज्य में प्रत्येक स्कूल हेतु योजना का सामाजिक लेखा परीक्षा भी अनिवार्य किया गया है, जो अब तक सभी राज्यों द्वारा नहीं किया जा रहा था।
      • शिक्षा मंत्रालय स्थानीय स्तर पर योजना की निगरानी के लिये कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों को भी शामिल करेगा।
    • फंड शेयरिंग:
      • 1.3 लाख करोड़ रुपए की कुल अनुमानित लागत में से केंद्र 54,061 करोड़ रुपए वहन करेगा, जिसमें राज्य 31,733 करोड़ रुपए (45,000 करोड़ रुपए खाद्यान्न के लिये सब्सिडी के रूप में केंद्र द्वारा जारी किए जायेंगे) का भुगतान करेंगे।
    • आत्मनिर्भर भारत हेतु वोकल फॉर लोकल:
      • योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
      • स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय रूप से निर्मित जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • चुनौतियाँ:
    • पोषण लक्ष्यों को पूरा करना:
      • वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
    • गंभीर 'भुखमरी' स्तर:
    • कुपोषण का खतरा:
      • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने कुपोषण की स्थिति में सुधार के बावजूद एक बार पुनः कुपोषण के मामलों में वृद्धि दर्ज की है।
      • भारत में विश्व के लगभग 30% अल्पविकसित बच्चे और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चे हैं।
    • अन्य:
      • भ्रष्ट आचरण और जातिगत पूर्वाग्रह तथा भोजन परोसने में भेदभाव।
  • सरकार द्वारा की गईं अन्य संबंधित पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नवीकरणीय ऊर्जा में धीमी प्रगति: रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये: 

नवीकरणीय ऊर्जा पहलें 

मेन्स के लिये: 

नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्व और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन की वजह से देश में नवीकरणीय ऊर्जा की प्रगति को धीमा कर दिया और जिससे भारत वर्ष 2022 तक अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में पिछड़ गया है।

  • यह रिपोर्ट इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) द्वारा जारी की गई थी। IEEFA एक अमेरिकी गैर-लाभकारी निगम है।
  • भारत स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर, सौर में पाँचवें और पवन ऊर्जा में चौथे स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:
    • सौर ऊर्जा क्षमता:
      • भारत 31 जुलाई, 2021 तक केवल 43.94 GW सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने में सफल रहा है।
        • जबकि भारत को मार्च 2023 तक 40 GW रूफटॉप सोलर और 60 GW ग्राउंड-माउंटेड यूटिलिटी स्केल के साथ ही कुल 100 GW सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करनी है।
    • हरित ऊर्जा क्षमता:
      • वित्त वर्ष 2020-21 में हरित ऊर्जा क्षमता में केवल 7 GW की वृद्धि हुई है।
        • भारत ने वर्ष 2022 के अंत तक 175 GW नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता और 2030 तक 450 GW का लक्ष्य रखा है।
    • ऊर्जा व्यापार राशि:
      • वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कारोबारी क्षेत्रों में विद्युत् के उपयोग की मात्रा में 2020 की तुलना में 20%, 2019 की तुलना में 37% और 2018 की तुलना में 30% की वृद्धि हुई।
        • इससे कीमतों में वर्ष 2020 की तुलना में औसतन 38%, वर्ष 2019 की तुलना में 8% और वर्ष 2018 की तुलना में 11% की वृद्धि हुई।
    • कोयला स्टॉक:
      • ऊर्जा उपभोग में 1,320 लाख टन के नए रिकॉर्ड उच्च स्तर को छुआ है और पिछले पाँच वर्षों के मासिक औसत को पार कर गया है।
        • हालाँकि, दैनिक कोयला स्टॉक की स्थिति के विश्लेषण में गिरावट दर्ज की गई है, क्योंकि अधिक संयंत्रों ने आपूर्ति की सूचना दी थी।
  • सुझाव:
    • भारत की बढ़ती दैनिक मांग की चुनौती के समाधान हेतु अतिरिक्त बेसलोड थर्मल क्षमता में निवेश की आवश्यकता नहीं है।
    • इसके बजाय ऊर्जा प्रणाली को ‘लचीले एवं गतिशील समाधान’ जैसे कि बैटरी भंडारण, पंप किये गए हाइड्रो स्टोरेज, गैस से चलने वाली क्षमता और अपने मौजूदा कोयला बेड़े के लचीले संचालन की आवश्यकता है।
    • सरकार को ऐसे स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना चाहिये, ताकि अधिक मांग को पूरा करने में मदद मिल सके और कम लागत पर ग्रिड को संतुलित किया जा सके।
    • ऊर्जा कीमतें गिरने से यह लागत प्रभावी होगी और अधिकतम मांग के दौरान पावर एक्सचेंज में अधिक कीमतों के खिलाफ एक बफर के रूप में कार्य करेगी।

स्रोत: द हिंदू


ज्वार के दाने के आकार को बढ़ाने के लिये जीन

प्रिलिम्स के लिये:

ज्वार, डीएनए अनुक्रम, भारत में ज्वार उत्पादक राज्य

मेन्स के लिये: 

डीएनए अनुक्रम का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय (University of Queensland- UQ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे जीन की खोज की गई है जो ज्वार/सोरगम के दाने के आकार को बढ़ाने में सक्षम है।

प्रमुख बिंदु 

  • ज्वार जीनोम के बारे में:
    • अब तक ज्वार के जीनोम में 125 क्षेत्रों की पहचान की गई है जहांँ डीएनए अनुक्रम (DNA sequence) में भिन्नता अनाज के आकार और पर्यावरणीय परिस्थितियों की प्रतिक्रिया से जुड़ी थी।
    • जिस नए जीन की पहचान की गई है वह अनाज के वज़न को दोगुना करने में सक्षम है।
  • महत्त्व:
    • अनाज का बड़ा आकार फसल के उपभोग मूल्य में सुधार कर सकता है। अनाज का बड़ा आकार इसे लोगों और जानवरों दोनों के लिये अधिक सुपाच्य बनाता है तथा प्रसंस्करण दक्षता में सुधार करता है।
  • ज्वार:
    • यह एक बहुउपयोगी अनाज की फसल है जिसका उपयोग मानव उपभोग, चारे और जैवऊर्जा उत्पादन के लिये किया जाता है।
    • ज्वार दुनिया भर में लोकप्रिय है क्योंकि इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स मान कम होता है यह ग्लूटेन फ्री और पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है।
      • एक अनाज का ग्लाइसेमिक इंडेक्स मान जितना कम होता है, उसके सेवन के दो घंटे बाद रक्त शर्करा (Blood Glucose) के स्तर में अपेक्षाकृत कम वृद्धि होती है।
    • भारत में पाई जाने वाली फसल की किस्म को ज्वार कहा जाता है। कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति देश में ही हुई है और यह इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्य और चारा फसलों में से एक है। 
      • ज्वार के लिये वर्ष 1969 से एक समर्पित अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना लागू है।
    • ज्वार के पौधे बहुत कठोर होते हैं और उच्च तापमान एवं सूखे जैसी स्थितियों का सामना करने में सक्षम होते हैं।
    • 350-400 मिमी की न्यूनतम वार्षिक वर्षा वाले अर्ध-शुष्क क्षेत्र इसकी कृषि हेतु अनुकूल हैं। यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहाँ की स्थितियाँ मक्के की खेती के लिये अत्यधिक गर्म और शुष्क मानी जाती हैं। भारत के प्रमुख ज्वार क्षेत्र/बेल्ट 400-1000 मिमी. वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं
    • इसे विविध प्रकार की मृदाओं पर उगाया जा सकता है। मध्यम से गहरी काली मिट्टी मुख्य रूप से ज्वार की कृषि के लिये उपयुक्त होती है।
  • भारत में ज्वार उत्पादक राज्य:

Jowar-Production

स्रोत: डाउन टू अर्थ


निर्यात ऋण गारंटी निगम (ECGC) की सूची

प्रिलिम्स के लिये:

इनिशियल पब्लिक ऑफर, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम

मेन्स के लिये:

निर्यात को प्रोत्साहन देने हेतु भारत सरकार की पहलें  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निर्यात ऋण गारंटी निगम (Export Credit Guarantee Corporation- ECGC) में पूंजी लगाने और इनिशियल पब्लिक ऑफर (Initial Public Offering) के द्वारा इसे शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराने को मंजूरी दी है।

  • सरकार द्वारा वर्ष 2021-22 से पांँच वर्षों में ECGC में 4,400 करोड़ रुपए की पूंजी लगाई जाएगी।
  • मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA) योजना को जारी रखने और पांँच वर्षों में 1,650 करोड़ रुपए की सहायता अनुदान को भी मंजूरी दी। 

प्रमुख बिंदु 

  • ECGC के बारे में:
    • स्थापना: ECGC लिमिटेड वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के पूर्ण स्वामित्व में है।
      • वर्ष 1957 के प्रारंभ में भारत सरकार द्वारा निर्यात जोखिम बीमा निगम (Export Risks Insurance Corporation) की स्थापना की थी।
      • वर्ष 1962-64 की अवधि के दौरान बैंकों को बीमा कवर की शुरुआत के 1 वर्ष बाद  इसका नाम परिवर्तित कर एक्सपोर्ट क्रेडिट एंड गारंटी कॉरपोरेशन लिमिटेड (Export Credit & Guarantee Corporation Ltd) कर दिया गया।
      • अगस्त 2014 में इसे बदलकर ECGC लिमिटेड कर दिया गया।
    • उद्देश्य: ECGC की स्थापना वाणिज्यिक और राजनीतिक कारणों से विदेशी खरीदारों द्वारा गैर-भुगतान जोखिमों के खिलाफ निर्यातकों को ऋण बीमा सेवाएंँ प्रदान करके निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
    • पूंजी प्रवाह का महत्त्व: यह इसे निर्यात-उन्मुख उद्योगों, विशेष रूप से श्रम-केंद्रित क्षेत्रों (Labour-Intensive Sectors) में अपने कवरेज का विस्तार करने में मदद करेगा।
      • निर्यात ऋण बीमा बाजार में लगभग 85% बाजार हिस्सेदारी के साथ ECGC भारत में एक मार्केट लीडर है जो वित्त वर्ष 2021 में  6.02 लाख रुपए या 28% व्यापार निर्यात में सहायता प्रदान करता है।
      • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम Micro, Small and Medium Enterprises (MSMEs) ECGC के ग्राहक बाज़ार में 97% हिस्सेदारी साझा करते हैं।
      •  ECGC को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया भी शुरू की जा रही है ताकि वह और फंड जुटाया जा सके।
  • राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA) योजना:
    • NEIA ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2006 में रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्त्व के दृष्टिकोण से  भारत से परियोजना निर्यात को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
    • राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA),  ECGC द्वारा मध्यम और दीर्घकालिक (एमएलटी)/परियोजना को (आंशिक/पूर्ण) सहायता देकर निर्यात को बढ़ावा देता है।
    • एक्ज़िम बैंक ने अप्रैल 2011 में ECGC लिमिटेड के साथ मिलकर NEIA योजना के तहत एक नई पहल की शुरुआत की अर्थात् बायर्स क्रेडिट, जिसके तहत बैंक भारत से परियोजना निर्यात हेतु वित्त और अन्य सुविधाएँ प्रदान करता है।

हाल ही में निर्यात संबंधी पहल

  • विदेश व्यापार नीति (2015-20): इसका उद्देश्य वर्ष 2019-20 तक विदेशी बिक्री को दोगुना कर 900 बिलियन डॉलर करना और "मेक इन इंडिया" एवं "डिजिटल इंडिया कार्यक्रम" के साथ विदेशी व्यापार को एकीकृत करते हुए भारत को वैश्विक बनाना था।
  • निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP): यह करों/शुल्कों/लेवी की प्रतिपूर्ति के लिये एक विश्व व्यापार संगठन संगत तंत्र है, जो वर्तमान में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर किसी अन्य तंत्र के तहत रिफंड नहीं किया जा रहा है।
  • ROSCTL योजना: ROSCTL योजना के माध्यम से केंद्रीय/राज्य करों की छूट से कपड़ा क्षेत्र को समर्थन दिया जाता है इसे अब मार्च 2024 तक बढ़ा दिया गया है।
  • सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिज़िन: निर्यातकों द्वारा व्यापार को सुविधाजनक बनाने और FTA (मुक्त व्यापार समझौता) के उपयोग को बढ़ाने के लिये सर्टिफिकेट ऑफ ऑरिज़िन हेतु सामान्य डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू किया गया है।
  • कृषि निर्यात नीति: कृषि, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों से संबंधित कृषि निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिये एक व्यापक नीति लागू की जा रही है।
  • निर्विक योजना: भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम (Export Credit Guarantee Corporation of India- ECGC) ने ऋण की उपलब्धता बढ़ाने और ऋण देने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिये निर्यात ऋण बीमा योजना (Export Credit Insurance Scheme- ECIS) की शुरुआत की है जिसे निर्विक (निर्यात ऋण विकास योजना) कहा जाता है।
  • व्यापार बुनियादी ढाँचे और विपणन को बढ़ावा देने हेतु योजनाएँ हैं- निर्यात योजना के लिये व्यापार अवसंरचना (TIES), बाजार पहुँच पहल (MAI) और परिवहन और विपणन सहायता (TMA) योजना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा,बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

CPEC में अफगानिस्तान: भारत पर पड़ने वाले प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान ने तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान को मल्टी-बिलियन डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजनाओं में शामिल होने पर चर्चा की है।

  • चीन ने अफगानिस्तान में CPEC के रूप में पेशावर-काबुल मोटरवे के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
  • अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिग्रहण और ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ परियोजना के विस्तार ने आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा मोर्चों पर भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा:
    • CPEC पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है।
    • इसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढाँचागत विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे और पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ संपूर्ण पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
    • इसका उद्देश्य चीन के पश्चिमी भाग (शिनजियांग प्रांत) को पाकिस्तान के उत्तरी भागों में खुंजेराब दर्रे के माध्यम से बलूचिस्तान, पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है।
      • यह चीन के लिये ग्वादर पोर्ट से मध्य पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे चीन हिंद महासागर तक पहुँच सकेगा।
    • CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है। वर्ष 2013 में शुरू किये गए ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि और समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
    • भारत CPEC की गंभीर रूप से आलोचना करता रहा है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।

Afghanistan

  • भारत के लिये CPEC के विस्तार के निहितार्थ:
    • रिक्त स्थान की पूर्ति: अमेरिकी बलों द्वारा अफगानिस्तान को छोड़ने के बाद चीन, अफगानिस्तान में उत्पन्न हुई शून्य स्थिति को अपनी बेल्ट एंड रोड (Belt and Road- BRI) पहल द्वारा भरने की कोशिश कर रहा है।
    • चाबहार बंदरगाह का मुद्दा: अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने से भारत, ईरान में चाबहार बंदरगाह में किये गये अपने निवेश को लेकर आशंकित है।
    • भारत की चिंता भारत-ईरान-अफगानिस्तान के त्रिपक्ष के कमज़ोर होने को लेकर है, जो चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को समुद्र तक पहुंँच प्रदान करता है।
    • भारत के आर्थिक प्रभाव का कमज़ोर होना: CPEC के विस्तार का  प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
      • भारत, अफगानिस्तान में सबसे बड़ा क्षेत्रीय अनुदान सहायता देने वाला देश है, जिसने सड़कों, बिजली संयंत्रों, बाँधों, संसद भवन, ग्रामीण विकास, शिक्षा, बुनियादी अवसंराचना सहित विकास कार्यों के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता अफगानिस्तान के प्रति ज़ाहिर की है। 
      • CPEC के विस्तार के साथ चीन अफगानिस्तान में भारत के आर्थिक प्रभाव को नियंत्रित करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
    • आतंकवाद और सामरिक चिंताएंँ: अफगानिस्तान में भारत की सीमित रणनीतिक पहुँच को देखते हुए, चीन अफगानिस्तान में अपने रणनीतिक स्थिति का लाभ उठा सकता है।
      • इसके अलावा, CPEC में अफगानिस्तान के शामिल होने से निश्चित रूप से उसे आर्थिक विकास में मदद मिलेगी, लेकिन साथ ही इससे पाकिस्तान को भारत के संदर्भ में एक बेहतर स्थिति हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
      • ऐसे स्थिति में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
    • सामरिक हवाई अड्डे का नियंत्रण: CPEC के साथ अपने मुद्दों के अलावा भारत इस संभावना से भी आशंकित रहेगा कि चीन, अफगानिस्तान में वायु सेना के बगराम हवाई अड्डे पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर सकता है।
      • बगराम हवाई अड्डा सबसे बड़ा हवाई अड्डा है और तकनीकी रूप से अच्छी तरह से सुसज्जित है, क्योंकि इसे अमेरिकी सेना द्वारा उपयोग किया गया था।
    • दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का दोहन: CPEC के विस्तार के साथ चीन, अफगानिस्तान के समृद्ध खनिजों और अत्यधिक आकर्षक दुर्लभ-पृथ्वी खानों का भी दोहन करना चाहता है।
      • दुर्लभ-पृथ्वी धातुएँ, जो उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों और उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों के लिये प्रमुख घटक हैं।

आगे की राह

  • अफगानिस्तान और काफी हद तक पाकिस्तान के अशांत क्षेत्रों में CPEC को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक हो गया है कि चीन इस क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को स्थिर करे।
  • अफगानिस्तान में बुनियादी ढाँचे और सुरक्षा की स्थिति बेहतर होने से भारत को अपनी आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद मिल सकती है।
  • हालाँकि भारत के खिलाफ चीन, पाकिस्तान और तालिबान की शत्रुता को देखते हुए, अफगानिस्तान का CPEC में शामिल होना निश्चित रूप से चीन के लिये एक रणनीतिक लाभ और भारत के लिये नुकसान होगा।

स्रोत: द हिंदू


‘विशेष श्रेणी राज्य’ का दर्जा

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी राज्य, वित्त आयोग

मेन्स के लिये:

गाडगिल फाॅर्मूले के आधार पर SCS के लिये निर्धारित पैरामीटर

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिहार सरकार ने ज़ोर देकर कहा है कि उसने बिहार को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (Special Category Status) देने की मांग को वापस नहीं लिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा:
    • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा उन राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा दिया गया वर्गीकरण है, जो भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
    • यह वर्गीकरण वर्ष 1969 में पांँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर किया गया था।
    • यह गाडगिल फाॅर्मूले पर आधारित था जिसमें विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे के लिये निम्नलिखित पैरामीटर निर्धारित किये गए थे:
      • पहाड़ी क्षेत्र।
      • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा।
      • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं की सामरिक स्थिति।
      • आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना का पिछड़ापन।
      • राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
    • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को दिया गया था। तब से लेकर अब तक आठ अन्य राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड) को यह दर्जा दिया गया है। 
    • संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (SCS) देने का कोई प्रावधान नहीं है।
    • राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा पूर्व में योजना सहायता के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा उन राज्यों को प्रदान किया गया था, जिन्हें विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
      • अब ऐसे राज्यों को केंद्र द्वारा विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया जाता है।
    • 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
      • इसके बजाय, इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को 'कर हस्तांतरण' के माध्यम से भरा जाए, केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया, जिसे वर्ष 2015 से लागू किया गया है।
  • SCS वाले राज्यों को लाभ:
    • केंद्र सरकार द्वारा विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक धनराशि के 90% हिस्से का भुगतान किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में केंद्र सरकार केवल 60% या 75% ही भुगतान करती है।
    • खर्च न किया गया धन व्यपगत नहीं होता और उसे भविष्य में उपयोग किया जा सकता है।
    • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।

स्रोत: द हिंदू


न्यायालय की अवमानना

प्रिलिम्स के लिये:

न्यायालय की अवमानना से संबंधित विभिन्न मामले तथा दंड हेतु प्रावधान

मेन्स के लिये:

न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971, न्यायिक अवमानना के प्रकार, न्यायिक अवमानना से संबंधित विभिन्न चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यहाँ माना कि अनुच्छेद 129 के तहत अवमानना के लिये दंडित करने की उसकी शक्ति एक संवैधानिक शक्ति है, जिसे किसी भी कानून द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • निर्णय के प्रमुख बिंदु:
    • अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति इस न्यायालय में निहित एक संवैधानिक शक्ति है जिसे विधायी अधिनियम द्वारा भी कम या समाप्त नहीं किया जा सकता है।
    • अनुच्छेद 142 (2) में कहा गया है कि "संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन" सर्वोच्च न्यायालय के पास अपनी अवमानना की सजा पर कोई भी आदेश देने की पूरी शक्ति होगी।
      • हालाँकि अनुच्छेद 129 में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अभिलेखों का न्यायालय होगा और उसके पास अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति सहित इस प्रकार के न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।
    • दो प्रावधानों की तुलना से पता चलता है कि यद्यपि संविधान निर्माताओं ने यह महसूस किया कि अनुच्छेद 142 के खंड (2) के तहत न्यायालय की शक्तियाँ संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अधीन हो सकती हैं, लेकिन जहाँ तक ​​अनुच्छेद 129 का संबंध है, उसके संबंध में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।
    • न्यायालय द्वारा इस बात पर जोर दिया गया कि अवमानना क्षेत्राधिकार को बनाए रखने का उद्देश्य न्यायिक मंचों की संस्था की गरिमा को बनाए रखना है।
  • ‘न्यायालय की अवमानना’ के विषय में:
    • न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Court Act, 1971) के अनुसार, न्यायालय की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर प्रदर्शित करना है।
      • अभिव्यक्ति 'अदालत की अवमानना' को संविधान द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है।
      • हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 129 ने सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना ​​के लिये दंडित करने की शक्ति प्रदान की।
      • अनुच्छेद 215 ने उच्च न्यायालयों को संबंधित शक्ति प्रदान की।
    • न्यायालय का अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, न्यायालय की अवमानना दो प्रकार की होती है:
      • नागरिक अवमानना: न्यायालय के किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट अथवा अन्य किसी प्रक्रिया या किसी न्यायालय को दिये गए उपकरण के उल्लंघन के प्रति अवज्ञा को नागरिक अवमानना कहते हैं।
      • आपराधिक अवमानना: यह किसी भी मामले का प्रकाशन है या किसी अन्य कार्य को करना है जो किसी भी न्यायालय के अधिकार का हनन या उसका न्यूनीकरण करता है, या किसी भी न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करता है, या किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रशासन में बाधा डालता है।
  • संबंधित मुद्दे:
    • हालाँकि "निष्पक्ष" क्या है इसका निर्धारण न्यायाधीशों की विवेक पर छोड़ दिया गया है।
      • यह ओपन-एंडेड शर्ते कभी-कभी अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संकट में डालता है। 
      • ओपन-एंडेड शर्तें: अधिनियम की धारा 5 में प्रावधान है कि "निष्पक्ष आलोचना" या "निष्पक्ष टिप्पणी" अंतिम रूप से तय किये गए मामले की योग्यता पर अवमानना ​​नहीं होगी।
    • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन: न्यायाधीशों को अक्सर अपने स्वयं हित में कार्य करते हुए देखा जा सकता है, इस प्रकार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है और जनता के विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिसे वे कार्यवाही के माध्यम से संरक्षित करना चाहते हैं।

आगे की राह

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों में सबसे मौलिक है और उस पर प्रतिबंध न्यूनतम होना चाहिये।
    • न्यायालय की अवमानना का कानून केवल ऐसे प्रतिबंध लगा सकता है जो न्यायिक संस्थानों की वैधता को बनाए रखने के लिये आवश्यक हैं।
  • इसलिये नैसर्गिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए आपराधिक अवमानना की कार्रवाई करते समय उच्च न्यायालयों द्वारा नियोजित प्रक्रिया को परिभाषित करते हुए नियम एवं दिशा-निर्देश तैयार किये जाने चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस