विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
PM2.5 और एनीमिया
- 28 Jan 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली (IIT-D) के एक हालिया अध्ययन के दौरान भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में PM2.5 के जोखिम और एनीमिया की घटना के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया।
- PM2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से है, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर (0.000001 मीटर) या उससे कम होता है।
- इन कणों का निर्माण ईंधन जलाने और वातावरण में रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होता है। प्राकृतिक घटनाएँ जैसे- वनाग्नि भी PM2.5 में योगदान देती है। ये कण स्मॉग की घटना के भी प्राथमिक कारण होते हैं।
प्रमुख बिंदु
निष्कर्ष
- लंबे समय तक PM2.5 के संपर्क में रहना 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया का मुख्य कारण बन सकता है।
- बच्चों के लिये जोखिम
- छोटे बच्चे: कम उम्र के बच्चों में एनीमिया होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- गरीबी: कम ‘वेल्थ इंडेक्स’ स्तर वाले बच्चों में एनीमिया के मामले सबसे अधिक दर्ज किये गए।
- मातृ एनीमिया: एनीमिया से पीड़ित महिलाओं के बच्चों में भी एनीमिया की संभावना काफी अधिक रहती है।
- तीव्रता
- PM2.5 स्तर का अधिक जोखिम, बच्चों में औसत हीमोग्लोबिन के स्तर को कम करता है।
- महत्त्व
- यह अध्ययन इस लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण है कि अब तक एनीमिया को केवल पोषण की कमी के दृष्टिकोण से देखा जाता था।
- वायु प्रदूषण के विभिन्न घटक विशेष रूप से PM2.5 सिस्टम इंफ्लेमेटरी जैसी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को प्रेरित करते हैं।
- इन्फ्लेमेशन शरीर की उन चीजों के खिलाफ लड़ने की प्रक्रिया को संदर्भित करती है जो शरीर को नुकसान पहुँचाती हैं, जैसे कि संक्रमण, चोट और विषाक्त पदार्थ आदि।
- समय के साथ इन्फ्लेमेशन का ऊतकों और अंगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- वर्तमान परिदृश्य: इंडिया नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे 2015-2016 (NFHS-4) में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, 15-49 वर्ष आयु की 53.1 प्रतिशत महिलाएँ और पाँच वर्ष से कम आयु के 58.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से प्रभावित थे।
- 'लांसेट ग्लोबल हेल्थ रिपोर्ट' के मुताबिक, 23 प्रतिशत भारतीय पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं।
एनीमिया (रक्त की कमी):
- यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें शारीरिक रक्त की ज़रूरत को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उसकी ऑक्सीजन वहन क्षमता अपर्याप्त होती है। यह क्षमता आयु, लिंग, ऊँचाई, धूम्रपान और गर्भावस्था की स्थितियों के कारण परिवर्तित होती रहती है।
- लौह (Iron) की कमी इसका सबसे सामान्य लक्षण है। इसके साथ ही फोलेट (Folet), विटामिन बी 12 और विटामिन ए की कमी, दीर्धकालिक सूजन और जलन, परजीवी संक्रमण तथा आनुवंशिक विकार भी एनीमिया का कारण हो सकता है। एनीमिया की गंभीर स्थिति में थकान, कमज़ोरी,चक्कर आना और सुस्ती इत्यादि समस्याएँ देखी जाती हैं। गर्भवती महिलाएँ और बच्चे इससे विशेष रूप से प्रभावित होते है।
एनीमिया से संबंधित सरकारी कार्यक्रम:
- भारत सरकार ने वर्ष 2018 में एनीमिया की वार्षिक दर में 1 से 3% तक की गिरावट लाने के लिये गहन राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (Intensified National Iron Plus Initiative -NIPI) कार्यक्रम के एक भाग के रूप में एनीमिया मुक्त भारत (Anaemia Mukt Bharat) कार्यक्रम को शुरू किया था।
- एनीमिया मुक्त भारत (AMB) कार्यक्रम में 6-59 महीने के बच्चों, 5-9 वर्ष की किशोरियों, 10-19 वर्ष के किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को विशेष रूप से लक्षित किया गया है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किशोर और किशोरियों में एनीमिया के उच्च प्रसार की चुनौती को रोकने के लिये साप्ताहिक लौह और फोलिक अम्ल अनुपूरण (Weekly Iron and Folic Acid Supplementation) कार्यक्रम शुरू किया गया है।
- एनीमिया से निपटने के अन्य कार्यक्रमों में एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS), राष्ट्रीय पोषण संबंधी एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम (National Nutritional Anemia Control Program) आदि शामिल हैं।
आगे ही राह
- PM22.5 के स्तर को रोकने के लिये प्रमुखतः शहरी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना चाहिये। एनीमिया के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये एक समग्र स्वास्थ्य रणनीति की आवश्यकता है। साथ ही एनीमिया से संबंधित नीति और इसके कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटने की ज़रूरत है।
- माँ के स्वास्थ्य को एनीमिया के रूप में संबोधित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा समय से पहले प्रसव के कारण शिशु भी एनीमिया से प्रभावित हो सकता है।
- शिशु में एनीमिया के मामले में मातृ प्रभाव के अलावा घरेलू स्तर पर हस्तक्षेप के लिये अधिक व्यापक नीतिगत ढाँचे हेतु पैतृक तथा समग्र घरेलू प्रभावों पर विचार करने की आवश्यकता है।