सीपीईसी, चीन-पाकिस्तान और भारत
विदित हो कि चीन के सहयोग से बनाए जा रहे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China Pakistan Economic Corridor-CPEC) को लेकर “इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस” (आईडीएसए) की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें यह कहा गया है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की आवश्यकताओं को समाहित करने की क्षमता नहीं है और वह अनजाने में ही बड़े कर्ज के जाल में फँस सकता है।
रिपोर्ट से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- आईडीएसए की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में सीपीईसी को लेकर आर्थिक व राजनीतिक चर्चा के बीच गिलगित-बालटिस्तान के लोगों की आशा व आकांक्षाओं को नज़रंदाज किया जा रहा है।
- सीपीईसी के खिलाफ उठाई जाने वाली आवाज़ को मीडिया में कोई स्थान नहीं मिलता और पाकिस्तान में कोई भी यह स्पष्ट रूप से बताने की स्थिति में नहीं है कि सीपीईसी के व्यापक परिदृश्य में गिलगित-बालटिस्तान की जगह क्या है।
- रिपोर्ट ने इस बात पर बल दिया है कि इस परियोजना के संबंध में निवेश का बडा हिस्सा पंजाब प्रांत से लगे क्षेत्रों में किए जाने की योजना है। इसको लेकर दूसरे क्षेत्रों से भी परियोजना के बारे में व्यापक स्पष्टता देखने को मिल रही है।
- अनेक अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की आधारभूत संरचना इतनी नहीं है कि इस निवेश का समुचित लाभ उठा सके।
- पाकिस्तान को इस बारे में भी सचेत रहने की ज़रूरत है क्योंकि चीन कोई भी काम धर्मार्थ नहीं करता है और इस ऋण की ब्याज दर काफी उच्च हो सकती है।
सम्भावित प्रभाव
- जानकारों का कहना है कि चीन के साथ ये समझौता पाकिस्तान के लिये भी अनवरत संघर्ष का विषय बना रहेगा। पाकिस्तान को इससे लाभ होने की भी कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।
- यह, एक तरह से चीन द्वारा पाकिस्तान में किया गया निवेश किया है, जिसे लौटाया जाना है। इसके अलावा चीन का निवेश पाकिस्तानी जनता के किसी काम का नहीं होगा, क्योंकि यह चीनी बैंकों से सीधा पाकिस्तान में उसकी निर्माणाधीन उन परियोजनाओं पर लगाया जाएगा, जिनमें चीनी लोग ही काम करेंगे।
- चीन के लिये यह समझौता अवश्य ही बहुत लाभ का है। इससे चीन को हिंद महासागर में प्रवेश मिल गया है। इसके माध्यम से चीन ने भारत और उसके पड़ोसी देशों के अलावा पश्चिम एशिया में अपना राजनैतिक और सैनिक प्रभुत्व बनाने के लिये एक उपनिवेश स्थापित कर लिया है।
- यही कारण है कि इसे चीनी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह देखा जा रहा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन और पाकिस्तान की सेनाओं का मिलन भी भारत के लिये एक चिंता का विषय है।
क्या हो आगे का रास्ता
- पाकिस्तान ने इस पूर्व-पश्चिम गलियारे को अपनाकर न केवल उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को ठुकरा दिया है, बल्कि दक्षिण-एशिया की ओर से मुँह भी मोड़ लिया है।
- दरअसल पाकिस्तान अपने को पश्चिम एशिया का ही भाग समझता है और वह शायद चीन के राजनैतिक-आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा बनकर गौरव का अनुभव भी करता है।
- कुल मिलाकर इसका अर्थ यही है कि आने वाले दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था को चाहे जितना विस्तार मिले, पाकिस्तान इस व्यापार-पथ में रुचि नहीं दिखाएगा। भारत चाहे तो राजनैतिक और कूटनीतिक दांव पेंच लगाकर पाक-चीन गलियारे में अड़चन लगा सकता है।
- लेकिन चीन के इस कदम का भारत यदि सही मायने में प्रतिकार करना चाहता है तो उसे यथाशीघ्र चाबहार परियोजना को पूरा करना होगा। वह चाबहार ही है जो भारत को वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध कराएगा।
- गौरतलब है कि हाल ही में आईएस ने पहली बार चीन के खिलाफ अपने खतरनाक मंसूबों को ज़ाहिर किया है। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी चीन को निवेश के लिये खोलने से पश्चिम की आतंकवादी ताकतों से भी उसकी नजदीकी बढ़ सकती है।
- हालाँकि इस बात की उम्मीद कम ही है कि चीन पश्चिम की आतंकवादी ताकतों को संवेदनशीलता से लेगा, क्योंकि विश्व के किसी भी देश ने आतंकवाद को तब तक गंभीरता से नहीं लिया है जब तक कि वह स्वयं इसका का शिकार न हो गया हो।
निष्कर्ष
- दुनिया की अधिकतर आबादी उत्तरी गोलार्द्ध में निवास करती है, इसलिये व्यापार सामान्य रूप से उत्तर से दक्षिण की ओर ही होता आया है।
- भारत की भी खोज इसी क्रम में हुई थी और एक व्यापार मार्ग मध्य एशिया से पाकिस्तान, उत्तरी भारत से होता हुआ प्रायद्वीपीय भारत तक पहुँचा करता था।
- भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण उत्तरी भारत, अफगानिस्तान जैसे बाज़ारों से कट गया। पाकिस्तान को भी नुकसान झेलना पड़ा।
- लेकिन 1991 में भारत में उदारीकरण के साथ ही नए आर्थिक द्वार खुले और तब से पाकिस्तान को भारत के साथ आर्थिक और व्यावसायिक द्वार खोलने पड़े।
- चीन-पाकिस्तान के इस आर्थिक गलियारे ने पारंपरिक उत्तर-दक्षिण व्यापार पथ को पलटकर रख दिया है। पाकिस्तान ने ऐसे आर्थिक और भौगोलिक मार्ग को चुन लिया है, जिसका नक्शा अब चीन तय करता रहेगा।