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राज्यसभा

विशेष: विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा

  • 03 Apr 2018
  • 23 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
इधर संसद में जिस मुद्दे की सर्वाधिक चर्चा रही वह है तेलुगू देशम और वाईएसआर कांग्रेस द्वारा आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी राज्य (Special Category Status State) का दर्जा देने की मांग। इस मुद्दे पर गतिरोध के कारण संसद में 15 दिन से कोई कामकाज नहीं हो पा रहा। इस मुद्दे पर तेलुगू देशम पार्टी NDA सरकार से अलग हो गई और उसके दो केंद्रीय मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। इसी मुद्दे पर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी दिया गया है। 

विदित हो कि इससे पहले 2013 में बिहार ने भी विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। इसके अलावा राजस्थान, झारखंड भी विशेष श्रेणी राज्य के दर्जे की मांग करते रहे हैं।

क्या है विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा?
आज बेशक केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसी राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज तो दे सकता है, लेकिन विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। लेकिन पूर्व में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के लिये कुछ मापदंड तय किये गए थे, जिनसे उनके पिछड़ेपन का सटीक मूल्यांकन कर उसके अनुरूप दर्जा प्रदान किया जाता था। 

किसे मिलता है (मापदंड)?
इसके मापदंडों में उक्त क्षेत्र का पहाड़ी इलाका और दुर्गम क्षेत्र, आबादी का घनत्व कम होना एवं जनजातीय आबादी का अधिक होना, पड़ोसी देशों से लगे (अंतरराष्ट्रीय सीमा) सामरिक क्षेत्र में स्थित होना, आर्थिक एवं आधारभूत संरचना में पिछड़ा होना और राज्य की आय की प्रकृति का निधारित नहीं होना शामिल था। पूर्व में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अनुसार सामरिक महत्त्व की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐसे पहाड़ी राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा प्रदान किया जाता था जिनके पास स्वयं के संसाधन स्रोत सीमित होते थे। 

इन 11 पहाड़ी राज्यों को मिला है विशेष दर्जा 

  • फिलहाल देश के 11 राज्यों को विशेष दर्जा मिला हुआ है--अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। 
  • जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को 1969 में, हिमाचल प्रदेश को 1971 में, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 1972 में, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम को 1975 में तथा उत्तराखंड को 2001 में विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला।
  • अब तक देश में जिन राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिला है, उसके पीछे मुख्य आधार उनकी दुर्गम भौगोलिक स्थिति एवं वहाँ व्याप्त सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ हैं। 
  • इन राज्यों में अत्यधिक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित होने के कारण उद्योग-धंधे लगाना मुश्किल है। 
  • इन राज्यों में बुनियादी ढाँचे का अभाव है और ये सभी आर्थिक रूप से भी पिछड़े हैं। विकास के मामले में भी ये राज्य पिछड़े हुए हैं। 

क्या लाभ होता है?

  • इन मापदंडों को पूरा करने वाले राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत प्रदान की गई राशि में 90 प्रतिशत अनुदान और 10 प्रतिशत ऋण होता है। 
  • अन्य राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत 70 प्रतिशत राशि ऋण के रूप में और 30 प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में दी जाती है।
  • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने के बाद केंद्र सरकार ने इन राज्यों को विशेष पैकेज सुविधा और टैक्स में कई तरह की राहत दी है। 
  • इससे निजी क्षेत्र इन इलाकों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं जिससे क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिलता है और उनका विकास सुनिश्चित होता है।संविधान के 12वें भाग के पहले अध्याय में केंद्र-राज्यों के वित्तीय संबंधों का उल्लेख है। 
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संविधान क्या कहता है?

  • हमारे संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन देश के कुछ हिस्से अन्य राज्यों की तुलना में संसाधनों के मामले में पिछड़े हुए हैं, इसलिये ऐसे राज्यों को केंद्र ने विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया है। 
  • राष्ट्रीय विकास परिषद कम जनसंख्या घनत्व या बड़ा आदिवासी बहुल इलाका, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय सीमा, कम प्रति व्यक्ति आय और गैर कर राजस्व की कमी के आधार पर ऐसे राज्यों की पहचान करती है।  
  • संविधान के भाग 21 के अनुच्छेद 371 से लेकर 371J तक 12 राज्यों (यथा-महाराष्ट्र, गुजरात, असम, नगालैंड, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और गोवा के बारे में विशेष प्रावधान किये गए हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

विशेष दर्जे वाले राज्य और विशेष श्रेणी राज्य में अंतर 

  • संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर विशेष दर्जा (Special Status) प्राप्त भारत का एकमात्र राज्य है। 
  • विशेष राज्य का दर्जा संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित अधिनियम के ज़रिये भारत के संविधान में किया गया प्रावधान है। 

अलग है जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा 
जम्मू-कश्मीर भारत के अन्य राज्यों की तरह नहीं है क्योंकि इसे सीमित संप्रभुता प्राप्त है और इसीलिये इसे 1969 में विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। लेकिन जम्मू-कश्मीर ने भारत के अधिराज्य को स्वीकार करते हुए सीमित संप्रभुता हासिल की थी और अन्य देशी रियासतों की तरह भारत के अधिराज्य के साथ उसका विलय नहीं हुआ था, इसलिये इसका विशेष दर्जा अन्य ऐसे राज्यों से कुछ अलग है, जिन्हें विशेष श्रेणी के राज्यों का दर्जा मिला हुआ है। 

  • देश के अन्य राज्यों में लागू होने वाले केंद्रीय कानून इस राज्य में लागू नहीं होते। इसके लिये राज्य सरकार की सहमति होना ज़रूरी है।
  • रक्षा, विदेश नीति, संचार और वित्त के मामलों में ही भारत सरकार का दखल होता है। 
  • केंद्र सरकार संघीय और समवर्ती सूची में आने वाले विषयों पर जम्मू-कश्मीर के लिये कानून नहीं बना सकती।
  • इस विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर को कुछ ऐसी विधायी और राजनीतिक शक्तियाँ भी मिली हुई हैं, जो अन्य राज्यों को प्राप्त नहीं हैं।

क्यों दिया गया विशेष राज्य का दर्जा?

  • यह एक सीमावर्ती पर्वतीय राज्य है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ चीन और पाकिस्तान से लगती हैं।
  • इस क्षेत्र को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद देश विभाजन के समय से लगातार बना रहता है।
  • पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार युद्धविराम का उल्लंघन।
  • वर्ष 1982 में शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के पश्चात् राज्य में अस्थायित्व की स्थिति।
  • उग्रवादियों और भारतीय सैनिकों के मध्य संघर्ष का क्षेत्र बना हुआ है।
  • राज्य में अफस्पा लागू होना, जिससे पता चलता है कि यह एक अशांत क्षेत्र है।
  • चीन (1962) और पाकिस्तान (1965,1971,1999) के साथ हुए युद्धों से राज्य की स्थिति कमज़ोर हो चुकी थी।
  • संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी से यह अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन चुका था।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • इसके अलावा उत्तर-पूर्व के नगालैंड, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम एवं त्रिपुरा तथा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा प्राप्त है, जिसके तहत इन्हें केवल केंद्रीय वित्तीय और आर्थिक सहायता ही मिलती है।

गाडगिल फॉर्मूला

  • तीसरी पंचवर्षीय योजना यानी 1961-66 तक और फिर 1966-1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं था। 
  • उस समय तक केवल योजना आधारित अनुदान ही दिये जाते थे। 
  • 1969 में केंद्रीय सहायता का फार्मूला बनाते समय पाँचवें वित्त आयोग ने डी.आर. गाडगिल फॉर्मूले का अनुमोदन करते हुए तीन राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया--असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर। 
  • इसका आधार था इन राज्यों का आर्थिक पिछड़ापन, दुरूह भौगोलिक स्थिति और वहाँ व्याप्त सामाजिक समस्याएँ। 
  • उसके बाद के वर्षों में पूर्वोत्तर के शेष पाँच राज्यों के साथ तीन अन्य राज्यों को भी यह दर्जा दिया गया।

क्या है डी.आर. गाडगिल फॉर्मूला?
विशेष श्रेणी के राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद जो संसाधन बच जाते हैं, उन्हें 60% जनसंख्या के आधार पर, 25% राज्य की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर, 7.5% राजकोषीय प्रदर्शन के आधार पर और 7.5% इन राज्यों की विशेष परिस्थितियों के आधार पर वितरित किया जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

आंध्र प्रदेश के तर्क

  • आंध्र प्रदेश ने विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की मांग के पीछे तर्क यह दिया है कि हैदराबाद को तेलंगाना की राजधानी बनाने के बाद इसे राजस्व का काफी नुकसान हुआ है। 
  • हैदराबाद से अविभाजित आंध्र प्रदेश को लगभग 75,000 करोड़ रुपए वार्षिक राजस्व प्राप्त होता था। 
  • आंध्र प्रदेश का यह तर्क है कि उसे पोलावरम परियोजना और नई राजधानी अमरावती के लिये भी वित्तीय सहायता चाहिये। 

दिया जाना था विशेष दर्जा
तत्कालीन केंद्र सरकार ने राज्य के विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश के सभी क्षेत्रों, विशेषकर सीमांध्र की समस्याएँ दूर करने के लिये विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की बात कही थी, जिसे विपक्ष का भी समर्थन प्राप्त था।

  • राज्य की अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के लिये केंद्रीय सहायता के तहत 13 ज़िलों वाले आंध्र प्रदेश को पाँच वर्ष की अवधि हेतु विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने की बात कही गई थी जिसमें चार ज़िले रायलसीमा के और तीन ज़िले उत्तर तटीय आंध्र के थे। 
  • राज्य पुनर्गठन विधेयक में निर्धारित किया गया था कि केंद्र सरकार विभाजन के बाद दोनों राज्यों में औद्योगीकरण और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिये कर छूट सहित समुचित राजकोषीय उपाय करेगी। यह छूट कुछ अन्य राज्यों को दी जा रही छूट की तरह ही होगी।
  • विधेयक में यह भी व्यवस्था की गई थी कि शेष आंध्र प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों, विशेष रूप से रायलसीमा और उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश के जिलों में विशेष विकास पैकेज उपलब्ध कराया जाएगा। यह विकास पैकेज ओडिशा में K-B-K (कोरापुट-बलांगीर-कालाहांडी) विशेष योजना तथा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड विशेष पैकेज की तरह का था।
  • पोलावरम परियोजना के तहत सुगम और पूर्ण पुनर्वास और पुनर्स्थापना के लिये अन्य संशोधन यदि आवश्यक हुए तो उन्हें शीघ्र प्रभावी करने की बात कहते हुए केंद्र सरकार ने पोलावरम परियोजना निष्पादित करने की बात कही थी।
  • नए राज्य बनाने के लिये दिन अधिसूचित तिथि से संबंधित इस तरह से नियत किया जाना था कि कार्मिक, वित्त और परिसंपत्तियों एवं देनदारियों के वितरण के संबंध में तैयारी करने का काम संतोषजनक ढंग से पूरा किया जा सके।
  • विभाजन के बाद शेष आंध्र प्रदेश में पहले वर्ष, विशेषकर नियुक्ति दिन और भारत सरकार द्वारा 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें स्वीकार करने की अवधि के दौरान होने वाले संसाधन के अंतर की पूर्ति 2014-15 के लिये नियमित बजट में की जानी थी।

(टीम दृष्टि इनपुट)

अब क्या कहती है केंद्र सरकार?

  • केंद्र सरकार का कहना है कि वह राज्य के लिये विशेष आर्थिक पैकेज तो दे सकती है, लेकिन विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। 
  • हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा न देने के पीछे 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इस रिपोर्ट की सिफारिशें लागू होने के बाद अब किसी को भी विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। 

वित्त आयोग क्या है?
संविधान के अनुच्छेद-280 के तहत वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पाँच साल या जरूरत होने पर इससे पहले भी किया जाता है। इस अनुच्छेद के तहत आयोग को केंद्र और राज्यों के बीच करों के बँटवारे को तय करने का काम दिया गया है। साथ ही, संचित निधि से भी राज्यों को अनुदान देने के संबंध में यह आयोग अपनी सिफारिशें देता है। इनके अलावा यदि राष्ट्रपति उसे वित्तीय मुद्दों को लेकर कोई अतिरिक्त ज़िम्मेदारी सौंपते हैं तो उन पर भी आयोग अपनी रिपोर्ट सौंपता है। वित्त आयोग अधिनियम, 1951 के तहत आयोग को अपने कर्तव्य के पालन में गवाहों को समन जारी करने, किसी दस्तावेज़ को प्रकट करने इत्यादि के संबंध में सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • आंध्र प्रदेश बंटवारे के खिलाफ था जबकि तेलंगाना विभाजन चाहता था; और जब राज्य का विभाजन हुआ तो आंध्र को संसाधनों की हानि उठानी पड़ी। इसलिये आंध्र प्रदेश को कुछ अतिरिक्त मदद देने के लिये विशेष श्रेणी राज्य के दर्जे का वादा किया गया था। 
  • तब विशेष श्रेणी राज्य के दर्जे का विचार अस्तित्व में था, लेकिन 14वें वित्त आयोग के मुताबिक अब ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया जा सकता।
  • विदित हो कि इससे पहले भी वित्त मंत्री ने कहा था कि चूँकि 14वें वित्त आयोग द्वारा केंद्रीय कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया गया है जिससे सभी राज्यों को पहले की तुलना में केंद्र से 50 प्रतिशत अधिक अंतरण प्राप्त होगा इसलिये अब विशेष दर्जे वाले राज्यों की जरूरत नहीं रह गई है।
  • 14वें वित्त आयोग के मुताबिक जिन राज्यों को राजस्व में घाटा हो रहा था, उन्हें मुआवज़ा देने की बात की गई थी और आंध्र प्रदेश के मामले में राजस्व घाटे को लेकर सभी प्रावधानों को पूरा किया जा चुका है।

राज्यों के पिछड़ेपन और विशेष सहायता पर रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट 

  • जब बिहार ने अपने लिये विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा माँगा तो केंद्र सरकार ने रघुराम राजन समिति का गठन किया। 
  • इस समिति से विभिन्न मानदंडों का इस्तेमाल कर पिछड़े राज्यों की पहचान के लिये तरीके सुझाने को कहा गया था। 
  • इस समिति ने 2013 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों को अतिरिक्त सहायता देने के लिये उन्हें विशेष दर्जा देने वाले मापदंडों को समाप्त कर देश के 28 राज्यों को सबसे कम विकसित, कम विकसित और अपेक्षाकृत विकसित राज्यों की श्रेणी में बांटने का सुझाव दिया था। 
  • इस समिति ने राज्यों को धन देने के लिये एक नई प्रणाली सुझाई थी जो बहुआयामी सूचकांक प्रणाली पर आधारित थी। 
  • इस सूचकांक के आधार पर ही राज्यों को उपरोक्त तीन श्रेणियों में बांटा गया था। 
  • यह सूचकांक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा मापी गई प्रति व्यक्ति खपत और गरीबी अनुपात जैसे मापदंडों पर आधारित था।
  • समिति ने इस सूचकांक पर जिन राज्यों के अंक 0.6 या उससे अधिक हों उन्हें सबसे कम विकसित, 0.6 से कम लेकिन 0.4 से ज़्यादा अंक वाले राज्यों को कम विकसित और 0.4 से कम अंक वाले राज्यों को अपेक्षाकृत अधिक विकसित वर्ग में डालने की सिफारिश की थी।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: केंद्र सरकार से योजना सहायता के उद्देश्य से उपरोक्त 11 हिमालयी तथा पर्वतीय राज्यों को विशेष श्रेणी वाले राज्यों का दर्जा दिया गया है। यह राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद वृद्धि दर, राज्यों में बचत और निवेश दर, उत्पादकता में वृद्धि, व्यापारिक जलवायु, मानवीय विकास, आधारभूत सुविधाओं की स्थिति और विभिन्न योजनाओं द्वारा संसाधनों के हस्तांतरण से जुड़े राज्य सरकार के प्रयास सहित कई घटकों पर निर्भर है। विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा मिलने से विकास योजनाओं के लाभ और निवेश के लिये अनुकूल माहौल बनाने में भी सहायता मिलती है। लेकिन इसके बावजूद इन राज्यों में विकास की वह रफ्तार देखने को नहीं मिलती जिसके लिये इन्हें यह दर्जा दिया गया था। इसका कारण योजनाओं का समय पर पूरा नहीं हो पाना है। 

इस मुद्दे पर हो रही राजनीति संसद पर भारी पड़ी। लगभग दो दर्जन विधेयक संसद से पारित होने की बाट जोह रहे हैं, लेकिन विशेष राज्य के मुद्दे पर लगातार चल रहे गतिरोध के चलते इन पर तथा ऐसे ही अन्य जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाई। यहाँ तक कि अब तक के संसदीय इतिहास में वित्त विधेयक पहली बार बिना चर्चा के पारित हो गया। उल्लेखनीय है कि नए वित्त वर्ष में बजट प्रावधानों को लागू करने के लिये इसका पारित होना ज़रूरी होता है।

वर्तमान मामले में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाय केंद्र ने उसे विशेष राज्यों के बराबर वित्तीय सहायता देने की बात कही है। विशेष श्रेणी के राज्य की अवधारणा आंध्र प्रदेश के विभाजन से पहले लागू थी, लेकिन 14वें वित्त आयोग ने उसे समाप्त कर दिया। राज्य के विभाजन के बाद जिन संस्थानों के गठन को लेकर आंध्र प्रदेश के साथ वादा किया गया था, वह प्रक्रिया जारी है। वैसे भी आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देना बर्र के छत्ते को छेड़ने जैसा होगा और इससे राज्यों के बीच एक नई होड़ शुरू हो जाएगी।

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