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सामाजिक न्याय

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5

  • 01 Mar 2021
  • 21 min read

परिचय

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने में किया जाता है।
  • भारत सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) इस सर्वेक्षण के लिये समन्वय और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये मुंबई स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान  (International Institute for Population Sciences- IIPS) नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • IIPS सर्वेक्षण के कार्यान्वयन के लिये कई फील्ड संगठनों (Field Organizations- FO) के साथ सहयोग करता है।
  • सर्वेक्षण में भारत के राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जानकारी प्रदान की गई है:
    • प्रजनन क्षमता
    • शिशु और बाल मृत्यु दर
    • परिवार नियोजन की प्रथा
    • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य
    • प्रजनन स्वास्थ्य
    • पोषण
    • एनीमिया
    • स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवाओं का उपयोग और गुणवत्ता
  • NFHS के प्रत्येक क्रमिक चरण के दो विशिष्ट लक्ष्य हैं:
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य एजेंसियों द्वारा नीति निर्माण व कार्यक्रम के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर अपेक्षित आवश्यक डेटा प्रदान करना।
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।
    • NFHS के विभिन्न चरणों का वित्तपोषण USAID, बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ, UNFPA तथा MoHFW (भारत सरकार) द्वारा प्रदान किया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका एजेंसी (USAID)

  • USAID संयुक्त राज्य अमेरिका के संघीय सरकार की एक स्वतंत्र एजेंसी है जो मुख्य रूप से नागरिक विदेशी सहायता एवं विकास सहायता के लिये ज़िम्मेदार है।
  • यह दुनिया की सबसे बड़ी आधिकारिक सहायता एजेंसियों में से एक है।
  • अमेरिकी काॅन्ग्रेस ने 4 सितंबर, 1961 को विदेशी सहायता अधिनियम (Foreign Assistance Act) पारित किया जिसने अमेरिकी विदेशी सहायता कार्यक्रमों को पुनर्गठित किया एवं आर्थिक सहायता के लिये एक एजेंसी के निर्माण को अनिवार्य बनाया और 3 नवंबर, 1961 को USAID अस्तित्त्व में आई।
  • यह पहला अमेरिकी विदेशी सहायता संगठन है जिसका प्राथमिक लक्ष्य दीर्घकालिक सामाजिक आर्थिक विकास पर ध्यान देना था। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का इतिहास

  • पहला राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-1) वर्ष 1992-93 में आयोजित किया गया था।
  • दूसरा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-2) भारत के सभी 26 राज्यों में वर्ष 1998-99 में आयोजित किया गया था। इस परियोजना को UNICEF की अतिरिक्त सहायता के साथ USAID द्वारा वित्तपोषित किया गया था।
  • तीसरा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-3) वर्ष 2005-2006 में किया गया था। NFHS-3 की वित्तीय सहायता USAID, अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (UK), बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ, UNFPA और भारत सरकार द्वारा किया गया था।
  • चौथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) वर्ष 2014-2015 में आयोजित किया गया था।
    • 29 राज्यों के अलावा NFHS-4 में पहली बार सभी छह केंद्रशासित प्रदेश शामिल थे और जनगणना 2011 के अनुसार, देश के सभी 640 ज़िलों के लिये ज़िला स्तर पर अधिकांश संकेतकों के अनुमान उपलब्ध कराए गए थे।
    • सर्वेक्षण में प्रजनन, शिशु एवं बाल मृत्यु दर, मातृ और शिशु स्वास्थ्य, प्रसवकालीन मृत्यु दर, किशोर प्रजनन स्वास्थ्य, उच्च जोखिम वाले यौन व्यवहार, सुरक्षित इंजेक्शन, तपेदिक व मलेरिया, गैर-संचारी रोग, घरेलू हिंसा, HIV ज्ञान तथा HIV से ग्रसित लोगों के प्रति दृष्टिकोण सहित स्वास्थ्य से संबंधित कई मुद्दों को शामिल किया गया था।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)- 5

  • NFHS-5 में वर्ष 2019-20 के दौरान हुए सर्वेक्षण के डेटा को इकठ्ठा किया गया और इसमें लगभग 6.1 लाख घरों का सर्वेक्षण किया गया है।
  • NFHS-5 के कई संकेतक NFHS-4 के समान हैं, जो समय के साथ तुलना करने के लिये वर्ष 2015-16 में किये गए थे।
  • कोविड-19 महामारी के कारण सर्वेक्षण के चरण 2 में (शेष राज्यों को शामिल करते हुए) देरी देखी गई तथा इसके परिणाम मई 2021 में उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद है।
  • यह 30 सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) जिन्हें देश को वर्ष 2030 तक हासिल करना है, को तय करने के लिये एक निर्देशक का काम करता है।
  • NFHS-5 में कुछ नए विषय जैसे- पूर्व स्कूली शिक्षा, दिव्यांगता, शौचालय की सुविधा, मृत्यु पंजीकरण, मासिक धर्म के दौरान स्नान करने की पद्धति और गर्भपात के तरीके एवं कारण आदि शामिल हैं।
  • NFHS-5 में नए प्रमुख क्षेत्र शामिल किये गए हैं जो मौजूदा कार्यक्रमों को मज़बूत करने और नीतिगत हस्तक्षेप के लिये नई रणनीति विकसित करने हेतु अपेक्षित इनपुट देंगे। ये क्षेत्र हैं:
    • बाल टीकाकरण का विस्तार 
    • बच्चों के लिये सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के घटक
    • मासिक धर्म स्वच्छता
    • शराब और तंबाकू के उपयोग की आवृत्ति
    • गैर-संचारी रोगों के अतिरिक्त घटक (NCD)
    • 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों में उच्च रक्तचाप और मधुमेह को मापने के लिये विस्तारित आयु सीमा।
  • वर्ष 2019 में पहली बार NFHS-5 ने उन महिलाओं और पुरुषों के प्रतिशत का विवरण एकत्र करने का प्रयास किया, जिन्होंने कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।

NFHS-5 के मुख्य निष्कर्ष

  • अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में जन्म के समय लिंगानुपात  (Sex Ratio at Birth- SRB) या तो अपरिवर्तित रहा है या इसमें वृद्धि देखी गई है।
    • अधिकांश राज्यों में लिंगानुपात सामान्यतः 952 या उससे अधिक है। 
    • हालाँकि तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, गोवा, दादरा नगर हवेली और दमन तथा दीव में जन्म के समय लिंगानुपात 900 से नीचे है।
  • बाल विवाह: देश के कुछ राज्यों में बाल विवाह के मामलों में वृद्धि देखी गई है जिनमें त्रिपुरा (वर्ष 2015-16 में 33.1% से बढ़कर 40.1%), मणिपुर (वर्ष 2015-16 में 13.7% से बढ़कर 16.3%) और असम (वर्ष 2015-16 में 30.8% से बढ़कर 31.8%) प्रमुख हैं।
    • त्रिपुरा, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और नगालैंड जैसे राज्यों में किशोरावस्था में गर्भधारण के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
  • सर्वेक्षण नतीजों में बाल पोषण संकेतक सभी राज्यों में मिश्रित पैटर्न दिखाते हैं। कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की स्थिति में सुधार हुआ है, जबकि कई में मामूली गिरावट आई है। 
    • कुपोषण: इसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है। 18 में से 11 राज्यों में स्टंटिंग में वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि 14 राज्यों में वेस्टिंग में वृद्धि देखी गई है।
    • स्टंटिंग: सर्वेक्षण में शामिल 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 13 में सर्वेक्षण किया गया जिसमें बच्चों में स्टंटिंग के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज़ की गई।
    • वेस्टिंग: 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 12 में सर्वेक्षण किया गया, और NFHS-4 की तुलना में चाइल्ड वेस्टिंग में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई है।
    • अधिक वज़न: 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 5 वर्ष से कम आयु के उन बच्चों के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज़ की गई है जिनका वज़न अधिक है।
    • अतिसार: सर्वेक्षण से पहले दो सप्ताह में अतिसार वाले बच्चों के मामले में भी 6.6% से 7.2% तक की वृद्धि देखी गई ।
  • शिशु और बाल मृत्यु, NMR, IMR और U5MR
    • अधिकांश भारतीय राज्यों में शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट आई है।
      • सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, गोवा एवं असम ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, वहाँ नवजात मृत्यु दर (NMR), शिशु मृत्यु दर (IMR) और बाल मृत्यु दर (U5MR) में भारी कमी देखी गई।
      • सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, गोवा और असम ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया।
      • यहाँ नवजात मृत्यु दर (NMR), शिशु मृत्यु दर (IMR) और बाल मृत्यु दर (U5MR) में भारी कमी देखी गई।
    • त्रिपुरा, अंडमान एवं निकोबार द्वीप, मेघालय और मणिपुर में बाल मृत्यु दर के सभी तीनों मामलों में एक समान वृद्धि दर्ज की गई है।
    • 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुए सर्वेक्षण में बिहार में नवजात मृत्यु दर (34), शिशु मृत्यु दर (47) एवं बाल मृत्यु दर (56) के मामलों में सर्वाधिक मृत्यु दर दर्ज की गई, जबकि केरल में सबसे कम मृत्यु दर थी।
    • महाराष्ट्र में बाल मृत्यु दर पिछले पाँच वर्षों में अपरिवर्तित रही।
  • पाँच राज्यों सिक्किम, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, असम और कर्नाटक में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
    • कर्नाटक में घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है, जबकि NFHS-4 में यहाँ घरेलू हिंसा के 20.6% मामले दर्ज किये गए थे और NFHS-5 में यह आँकड़ा 44.4% हो गया है।

NFHS- 4 और NFHS- 5 के बीच तुलना

  • कुल प्रजनन दर (TFR): NFHS-5 के तहत पहले चरण में जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का सर्वे किया गया उनमें से लगभग सभी में NFHS-4 के बाद से कुल प्रजनन दर (TFR) में कमी आई है।
    • कुल 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 19 में प्रजनन दर घटकर (2.1) पर आ गई है।
    • केवल 3 राज्यों- मणिपुर (2.2), मेघालय (2.9) और बिहार (3.0) में यह दर अभी भी निर्धारित प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर है।
  • गर्भनिरोधक प्रसार दर (CPR): इस मामले में अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में काफी वृद्धि हुई है।
    • CPR हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल (74%) में सबसे अधिक है।
    • लगभग सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों के उपयोग में वृद्धि देखी गई है।
  • परिवार नियोजन के लिये जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति न हो पाने के कारण सर्वेक्षण के पहले चरण में शामिल किये गए अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की दर में गिरावट देखी गई है।
    • देश में मेघालय और मिज़ोरम को छोड़कर शेष सभी राज्यों में यह दर 10 प्रतिशत से भी कम हो गई                                                                       है।
  • बैंक खाते: महिलाओं द्वारा परिचालित बैंक खातों के संबंध में NFHS-4 और NFHS-5 के बीच उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गई है।
  • टीकाकरण: 12-23 महीने की आयु के बच्चों में पूर्ण टीकाकरण अभियान के मामले में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िलों में पर्याप्त सुधार दर्ज किया गया है।
    • नगालैंड, मेघालय और असम को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में दो-तिहाई से अधिक बच्चों का टीकाकरण कर उन्हें पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया है।
    • लगभग तीन-चौथाई ज़िलों में 12-23 महीने की आयु के 70  प्रतिशत या अधिक बच्चों को बचपन की बीमारियों से पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया है।
  • संस्थागत प्रसव: 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में पाँच में से चार से अधिक महिलाओं के संस्थागत प्रसव के साथ इसमें व्यापक वृद्धि देखने को मिली।
    • कुल 22 में से 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संस्थागत प्रसव का स्तर 90% से अधिक है।
    • लगभग 91% ज़िलों में सर्वेक्षण से पहले 5 वर्षों में 70% से अधिक संस्थागत प्रसव के मामले दर्ज किये गए।
    • संस्थागत प्रसव में वृद्धि के साथ कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सिजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) से होने वाले प्रसवों में भी विशेष रूप से निजी स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में पर्याप्त वृद्धि हुई है।
  • बेहतर स्वच्छता और खाना पकाने की सुविधा: पिछले चार वर्षों में (वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक) लगभग सभी 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में बेहतर स्वच्छता सुविधा और खाना पकाने के लिये स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने वाले परिवारों का प्रतिशत बढ़ा है।
  • एनीमिया: महिलाओं और बच्चों में एनीमिया चिंता का कारण बना हुआ है।
    • सर्वेक्षण में शामिल 22 में से 13 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएँ एनीमिया से ग्रसित हैं। 
    • यह भी देखा गया है कि 180 दिनों या उससे अधिक समय तक गर्भवती महिलाओं द्वारा पर्याप्त मात्रा में IFA की गोलियाँ लिये जाने के बावजूद एनीमिया के मामले में NFHS-4 की तुलना में आधे से अधिक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वृद्धि हुई है।

मुख्य शर्तें

  • नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर पहले 28 दिन की अवधि के दौरान बच्चों की मौतों की संख्या की ओर इंगित करती है।
    • वर्ष 2030 तक नवजात शिशुओं और 5 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में असामान्य मौतें कम करना। सभी देशों का उद्देश्य नवजात शिशु मृत्‍यु दर को घटाकर प्रति एक हज़ार जीवित जन्मों पर कम-से-कम 12 करना और 5 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में मृत्यु दर को घटाकर प्रति एक हज़ार जीवित जन्मों पर कम-से-कम 25 करना है।
  • कुल प्रजनन दर: TFR 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच की प्रजनन आयु के दौरान एक महिला से जन्म लेने वाले अनुमानित बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है। 
    • प्रतिस्थापन स्तर (प्रजनन क्षमता या प्रजनन क्षमता का वह स्तर) जिस पर एक आबादी खुद को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बदल देती है। प्रभावी प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता: प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन क्षमता विषम लिंगानुपात के लिये समायोजित की जाती है।
    • भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) घट रही है। भारत की वर्तमान कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) 2.2 है जो वांछित कुल प्रजनन दर के स्तर 2.1 के बहुत करीब है।
  • गर्भनिरोधक प्रसार दर: CPR उन महिलाओं का अनुपात है, जो वर्तमान में  कम-से-कम गर्भनिरोधक की एक विधि का उपयोग कर रही हैं या जिनके यौन साथी इसका उपयोग कर रहे हैं।
    • इसे संबंधित वैवाहिक स्थिति और आयु वर्ग की महिलाओं के संदर्भ में प्रतिशत के रूप में दर्ज किया जाता है।
  • जन्म के समय लैंगिक अनुपात (SRB) से अर्थ यह है कि देश में प्रति 1,000 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कितनी है। यह एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है जिससे पता चलता है कि आज भी बेटियों के बजाय बेटों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
  • स्टंटिंग का आशय एक खराब वृद्धि और विकास से है जो बच्चों में खराब पोषण, बार-बार संक्रमण और अपर्याप्त मनोसामाजिक उत्तेजना के कारण होता है।
    • यह पुराने या आवर्तक कुपोषण का परिणाम है, जो आमतौर पर गरीबी, खराब मातृ स्वास्थ्य एवं पोषण, लगातार बीमारी और/या अनुचित भोजन तथा प्रारंभिक जीवन में देखभाल आदि से जुड़ा होता है।
  • यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होता है तो उसे वेस्टिंग कहा जाता है। यह अक्सर तेज़ी से और गंभीर रूप से वज़न घटने का संकेत देता है, हालाँकि यह लंबे समय तक बना रह सकता है। अगर सही तरीके से इलाज न किया जाए तो इससे बच्चों की मृत्यु भी हो सकती है।
  • शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे बच्चों में से एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या को प्रदर्शित करती है।
    • देश में औसत शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मे बच्चों पर 32 है, इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में औसत शिशु मृत्यु दर 36 तथा शहरी क्षेत्रों में 23 है।
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