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जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन

  • 26 Feb 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission-NHM) की घोषणा की गई है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा। इस पहल में परिवहन क्षेत्र में बदलाव लाने की क्षमता है।

  • NHM पहल के तहत स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक (हाइड्रोजन) का लाभ उठाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:
    • हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन उत्पादन पर ज़ोर।
    • भारत की बढ़ती अक्षय ऊर्जा क्षमता को हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना।
      • वर्ष 2022 तक भारत के 175 GW के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को केंद्रीय बजट 2021-22 से प्रोत्साहन मिला है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा विकास और NHM के लिये 1500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
      • हाइड्रोजन का उपयोग न केवल भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा, बल्कि यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा।
  • हाइड्रोजन:
    • आवर्त सारणी पर हाइड्रोजन पहला और सबसे हल्का तत्त्व है। चूँकि हाइड्रोजन का वज़न हवा से भी कम होता है, अतः यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठती है और इसलिये यह शुद्ध रूप में बहुत कम ही पाई जाती है।
    • मानक तापमान और दबाव पर हाइड्रोजन एक गैर-विषाक्त, अधातु, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है।
    • हाइड्रोजन ईंधन एक शून्य-उत्सर्जन ईंधन है (ऑक्सीजन के साथ दहन के दौरान)। इसका उपयोग फ्यूल सेल या आंतरिक दहन इंजन में किया जा सकता है। यह अंतरिक्षयान प्रणोदन के लिये ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
    • हाइड्रोजन के प्रकार:
      • ग्रे हाइड्रोजन:
        • भारत में होने वाले हाइड्रोजन उत्पादन में सबसे अधिक ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन होता है।
        • इसे हाइड्रोकार्बन (जीवाश्म ईंधन, प्राकृतिक गैस) से निकाला जाता है।
        • उपोत्पाद: CO2
      • ब्लू हाइड्रोजन:
        • जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है।
        • इसके उत्पादन में उपोत्पाद को सुरक्षित रूप से संग्रहीत कर लिया जाता है अतः यह ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में बेहतर होता है।
        • उपोत्पाद: CO, CO2
      • हरित हाइड्रोजन:
        • इसके उत्पादन में अक्षय ऊर्जा (जैसे- सौर या पवन) का उपयोग किया जाता है।
        • इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है।
        • उपोत्पाद: जल, जलवाष्प।
  • एशिया-प्रशांत का रुख:
    • एशिया-प्रशांत उप-महाद्वीप में जापान और दक्षिण कोरिया हाइड्रोजन नीति बनाने के मामले में पहले पायदान पर हैं।
    • वर्ष 2017 में जापान ने बुनियादी हाइड्रोजन रणनीति तैयार की, जो इस दिशा में वर्ष 2030 तक देश की कार्ययोजना निर्धारित करती है और जिसके तहत एक अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला की स्थापना भी शामिल है।
    • दक्षिण कोरिया अपनी ‘हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था विकास और हाइड्रोजन का सुरक्षित प्रबंधन अधिनियम, 2020’ के तत्त्वावधान में हाइड्रोजन परियोजनाओं तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल (Hydrogen Fuel Cell) उत्पादन इकाइयों का संचालन कर रहा है।
      • दक्षिण कोरिया ने ‘हाइड्रोजन का आर्थिक संवर्द्धन और सुरक्षा नियंत्रण अधिनियम’ भी पारित किया है, जो तीन प्रमुख क्षेत्रों - हाइड्रोजन वाहन, चार्जिंग स्टेशन और फ्यूल सेल से संबंधित है। इस कानून का उद्देश्य देश के हाइड्रोजन मूल्य निर्धारण प्रणाली में पारदर्शिता लाना है।
  • भारतीय संदर्भ:
    • भारत को अपनी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों और प्रचुर प्राकृतिक तत्त्वों की उपस्थिति के कारण हरित हाइड्रोजन उत्पादन में भारी बढ़त प्राप्त है।
    • सरकार ने पूरे देश में गैस पाइपलाइन के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने में प्रोत्साहन दिया है और स्मार्ट ग्रिड की शुरुआत सहित पावर ग्रिड के सुधार हेतु प्रस्ताव पेश किया है। वर्तमान ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिये इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं।
    • अक्षय ऊर्जा उत्पादन, भंडारण और संचरण के माध्यम से भारत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन लागत प्रभावी हो सकता है, जो न केवल ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी देगा, बल्कि देश को ऊर्जा के मामले में धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायता करेगा।
  • नीतिगत चुनौतियाँ:
    • उद्योगों द्वारा व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने में हरित या ब्लू हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक वहनीयता सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
      • हाइड्रोजन के उत्पादन और दोहन में उपयोग की जाने वाली तकनीकें जैसे-कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी आदि अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं एवं ये महँगी भी हैं। जो हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को बढ़ाती हैं।
    • एक संयंत्र के पूरा होने के बाद फ्यूल सेल के रखरखाव की लागत काफी अधिक हो सकती है।
    • ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग के लिये अनुसंधान व विकास , भंडारण, परिवहन एवं मांग निर्माण हेतु हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में काफी अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।

आगे की राह:

  • वर्तमान में भारत एक समायोजित दृष्टिकोण के साथ अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने, क्षमता निर्माण, संगत कानून तथा अपनी विशाल आबादी के बीच मांग उत्पन्न कर इस अवसर का लाभ उठाने के लिये एक विशिष्ट स्थान बना सकता है। इस तरह की पहल भारत को उसके पड़ोसियों और उससे भी परे हाइड्रोजन निर्यात करके सबसे पसंदीदा राष्ट्र बनने की दिशा में प्रेरित कर सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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