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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चाबहार परियोजना

  • 25 Nov 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स, चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा, वन बेल्ट वन रोड

मेन्स के लिये:

चाबहार बंदरगाह से संबंधित भारतीय हित और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों

हाल ही में ईरान के बंदरगाह और समुद्री संगठन (Port and Maritime Organisation) ने चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन हेतु लोकोमोटिव और सिग्नलिंग उपकरण उपलब्ध कराने हेतु भारत से अनुरोध किया है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ईरान को इन उपकरणों की प्रत्यक्ष खरीद में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
  • ईरान ने भारत से 150 मिलियन अमरीकी डालर क्रेडिट लाइन को भी सक्रिय करने के लिये कहा है जो वर्ष 2018 में ईरानी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भारत द्वारा इसे प्रदान की गई थी।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • मई 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत ईरान में चाबहार बंदरगाह का उपयोग करते हुए समुद्री परिवहन के लिये क्षेत्रीय हब के रूप में पारगमन और परिवहन गलियारा स्थापित करने की परिकल्पना की गई।
  • अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिये एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग के रूप में चाबहार बंदरगाह से ज़ाहेदान (अफगानिस्तान सीमा) तक एक रेल लाइन का निर्माण भी इस परिवहन गलियारे का एक हिस्सा था।
  • राज्य के स्वामित्व वाली भारतीय रेलवे निर्माण लिमिटेड (Indian Railways Construction Ltd.) ने सभी प्रकार की सेवाएँ, अधिरचना कार्य और वित्तपोषण (लगभग 1.6 बिलियन अमरीकी डॉलर) प्रदान करने के लिये ईरानी रेल मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किये।

इस परियोजना से भारत के अलग होने के कारण:

  • ईरान का रुख:
    • जुलाई 2020 में, ईरान ने परियोजना की शुरुआत और वित्त पोषण में देरी का हवाला देते हुए, स्वयं रेल लाइन निर्माण करने का फैसला किया।
  • भारत का रुख:
    • IRCON ने निर्माण-स्थान निरीक्षण एवं व्यवहार्यता रिपोर्ट को पूरा किया और ईरानी पक्ष द्वारा नोडल प्राधिकरण नियुक्त करने की प्रतीक्षा कर रहा था।
    • यद्यपि इस परियोजना को संयुक्त राज्य अमेरिका से एक विशेष छूट प्राप्त है फिर भी भारत निर्माण कंपनी से समझौता करने में संकोच कर रहा है क्योंकि यह कंपनी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (Islamic Revolutionary Guard Corps) के साथ संबंध रखती है जो प्रतिबंधों के दायरे में आती है।
      • IRGC एक हार्ड-लाइन बल है जो ईरान के नियमित सशस्त्र बलों के समानांतर अपनी सैन्य अवसंरचना को संचालित करता है। अप्रैल 2020 में, ईरान का पहला सैन्य उपग्रह नूर इसने ही लॉन्च किया था।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के भय ने ईरान के फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र परियोजना में भारतीय हित को भी प्रभावित किया है।

भारत के लिये चाबहार पोर्ट का महत्व:

  • व्यापार: इसे तीन भागीदार देशों के साथ-साथ अन्य मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिये सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जा रहा है।
  • सुरक्षा: चीन वन बेल्ट वन रोड (One Belt One Road) परियोजना के तहत अपने स्वयं के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान में चीनी निवेश के साथ विकसित किये जा रहे ग्वादर बंदरगाह के प्रत्युत्तर के रूप में भी काम कर सकता है।
  • कनेक्टिविटी: भविष्य में, चाबहार परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (International North South Transport Corridor) रूस तथा यूरेशिया के साथ भारतीय संपर्क/कनेक्टिविटी का अनुकूलन कर एक दूसरे के पूरक होंगे।

परिदृश्यों का विकास:

  • भारत और ईरान दोनों का ध्यान इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनावी परिणामों पर है ताकि नए परिणाम आने के बाद शायद प्रतिबंधों में कुछ छूट दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से विकसित करने का अवसर दे सके।
  • भारत, चीन और ईरान के बीच 25 साल के रणनीतिक सहयोग समझौते (400 बिलियन अमरीकी डॉलर) पर भी नज़र बनाए हुए है जिसमें चाबहार के अन्य हिस्सों (जिसमें मकरान तट के साथ एक मुक्त व्यापार क्षेत्र और तेल संरचना शामिल हैं) के विकास हेतु वित्तपोषण किया जा सकता है।

आगे की राह

  • ऐसे विश्व में जहाँ कनेक्टिविटी को नई मुद्रा के रूप में देखा जाता है, भारत इस परियोजना को खो सकता है तथा यह परियोजना किसी दूसरे देश, विशेष रूप से चीन को मिल सकती है। इसलिये, भारत को इस क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान के बीच एक संतुलित नीति पर काम करने की आवश्यकता है।
  • एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं रह सकता है और एक शांतिपूर्ण तरीके से विकसित पड़ोस (ईरान-अफगानिस्तान) न केवल व्यापार तथा ऊर्जा सुरक्षा के लिये बेहतर है, बल्कि एक महाशक्ति बनने की भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्रोत: द हिंदू

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