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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तीन निर्यात अवसंरचना योजनाओं को मंज़ूरी

  • 17 Jul 2017
  • 5 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि न्यून अवसंरचना के कारण भारत के निर्यातों की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता में कमी आ रही है। अतः केंद्र ने पहली बार मार्च में लॉन्च की गई एक स्कीम के तहत इस समस्या को संज्ञान में लिया। इसके साथ ही सरकार ने तीन प्रस्तावों को मंज़ूरी भी दे दी है जिनमें से पहली मंज़ूरी इम्फाल के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक एकीकृत कार्गो टर्मिनल (Integrated Cargo Terminal-ICT) के निर्माण को दी गई है।

प्रमुख बिंदु

  • निर्यात योजना के लिये व्यापार अवसंरचना (Trade Infrastructure for Export Scheme –TIES) की पहली बैठक 9 जून को सम्पन्न हुई थी। इस बैठक में चिकित्सकीय उपकरणों की जाँच करने के लिये भारत में ‘पहली समर्पित सुविधा’(first dedicated facility) की स्थापना के लिये आवेदन दिया गया था। इसे विशाखापत्तनम में स्थित आंध्र प्रदेश के चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्थापित करने का प्रस्ताव है। जिसमें चार अलग-अलग सुविधाएँ होंगी और इनकी कुल लागत लगभग 169 करोड़ रुपए है। 
  • वर्ष 2015 में भारतीय चिकित्सकीय उपकरण बाज़ार लगभग 4 बिलियन डॉलर का था और भारत से निर्यात होने वाली इन वस्तुओं की कुल लागत वर्ष 2016 में तकरीबन 1 बिलियन डॉलर थी।
  • हालाँकि अधिकार प्राप्त समिति ने कर्नाटक में ‘तटीय काजू अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन’(Coastal Cashew Research and Development Foundation) की स्थापना के प्रस्ताव के लिये भी सैद्धांतिक रूप में मंज़ूरी दे दी है जिसकी कुल अनुमानित लागत 10 करोड़ रुपए है।
  • इम्फाल में एकीकृत कार्गो टर्मिनल के निर्माण की लागत 16.2 करोड़ रूपये है जिसमें निर्यात योजना के लिये व्यापार अवसंरचना की हिस्सेदारी 12.96 करोड़ तथा भारतीय विमान प्राधिकरण की हिस्सेदारी 3.24 करोड़ रूपये की है।
  • विदित हो कि इम्फाल हवाई अड्डे पर कोई कार्गो सुविधा नहीं है और प्रस्तावित एकीकृत कार्गो टर्मिनल दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के लिये हवाई कार्गों आवागमन और वायु कनेक्टिविटी के एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।

बाधाएँ क्या हैं ?

  • वाणिज्य विभाग संबंधी स्थायी समिति द्वारा मार्च 2016 में भारत में निर्यात अवसंरचना पर तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, न्यून अवसंरचना और भारत में अवसंरचना के संचालन के तरीके वस्तुओं के विनिर्माण और निर्यात में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सुनिश्चित करने में दो प्रमुख बाधाएँ हैं।
  • रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय निर्यात अत्यधिक रसद लागतों (logistics costs) के कारण वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो रहा है। भारत में रसद लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14% है जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं (जैसे-अमेरिका और यूरोपीय संघ) में यह सकल घरेलू उत्पाद का क्रमशः 8% और 10% है।
  • स्थायी समिति के अनुसार,  उप इष्टतम रसद क्षमता के कारण रसद पर निर्भर कुछ निश्चित क्षेत्रों को उनकी बिक्री वापसी में 2% का नुकसान होगा। कुछ वर्ष पूर्व किये गए एसोचेम के एक अध्ययन में यह दर्शाया गया कि भारत को न्यून अवसंरचना के कारण अपने व्यापार में लगभग 11% का घाटा हुआ है।

क्या होगा प्रभाव ?

  •  यदि रसद लागतों को देश के सकल घरेलू उत्पाद के 14% से कम करके 9% कर दिया जाएगा तो भारत 50 बिलियन डॉलर रुपए तक की बचत कर सकता है। अतः वैश्विक बाज़ारों में घरेलू वस्तुएँ अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो जाएंगी। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, टीआईईएस का उद्देश्य निर्यात अवसंरचना में अंतरालों को कम कर निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना है।
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